लघु-कथा: स्वप्न – विकास नैनवाल ‘अंजान’

लघु-कथा: स्वप्न - विकास नैनवाल 'अंजान' | hindi flash fiction: swpna by Vikas Nainwal

“पता है मेरा सपना क्या है?”, उसने मेरी तरफ देखते हुए संजीदगी से कहा।

“क्या?” मैंने सवाल किया।

उसने इधर-उधर देखा। फिर मेरी आँखों में देखा। फिर वह चुप हो गयी। हम लोग ऑफिस से निकल कर घर की तरफ जा रहे थे। वो और मैं एक ही दफ्तर में काम करते थे। साथ काम करते-करते हमें दो तीन वर्ष हो गए थे। इन दो तीन वर्षॉं में मैंने उसे जितना जाना था उससे यही समझा था कि वह एक बड़े शहर में रहने वाली बिंदास लड़की थी। हँसती, खेलती मुस्कराती वह लड़की ज़िंदगी की पुड़िया सी लगती थी। जहाँ चली जाती वहीं रौनक ला देती। उसका एक सवाल के ऊपर इस तरह चुप हो जाना मुझे कहीं खटक सा गया था।

“क्या सपना है? बता न?”, मैंने इसरार किया।

उसने मुझे देखा और फिर जैसी उसकी नज़र कहीं शून्य में देखने लगी। उसकी उँगलियों ने उसके चेहरे पर आई लटों को किनारे धकेल दिया।

फिर एक गहरी साँस लेकर उसने कहा, “मेरा एक सपना है कि कुछ पल के लिए मैं ऐसी जगह चली जाऊँ जहाँ खुले में घूमते हुए मुझे दो जोड़ी आँखें मुझे ताड़ती हुई, मुझे जाँचती-परखती,टटोलती न महसूस हों।”

मैंने उसे सुना। मैं चुप रहा। उसे देखते रहा। फिर मैंने अपनी आँखें बंद कर दी।

“क्या हुआ अपनी आँखें क्यों बंद कर दी?” उसने खिलखिलाते हुए पूछा।

“इन दो जोड़ी आँखों से बचाने के लिए।” मैंने आँख खोलते हुए जवाब दिया।

वो मुस्कराने लगी। लेकिन न जाने क्यों इस बार उसकी मुस्कराहट उसकी आँखों तक नहीं पहुँच पायी थी।

अब हम दोनों चुप थे।

इस चुप्पी को उसके स्टेशन के आगमन ने तोड़ा। “अच्छा बाय।”, वह कहकर उतर मेट्रो से बाहर चली गयी।

“बाय।”, मैं बुदबुदाया।

मैं उसे जाते हुए देखता रहा। वह सीधे चली जा रही थी और मैं मेट्रो में खड़ा उसके नामुमकिन से लगते स्वप्न के विषय में केवल सोच सकता था।

समाप्त

यह रचना रचना संग्रह ‘एक शाम तथा अन्य रचनाएँ’ से ली गयी है। आप किंडल अनलिमिटेड के सब्सक्राइबर हैं तो वहाँ इस रचना संग्रह को पढ़ सकते हैं:

अमेज़न


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *