कहानी: आतंक – एस सी बेदी

आतंक-एस सी बेदी | कहानी

‘आतंक’ एस सी बेदी द्वारा लिखी गई एक लघु-कथा है। यह कथा कश्मीर की पृष्ठभूमि पर लिखी गयी है।

एस सी बेदी द्वारा लिखी गयी यह लघु-कथा उनके द्वारा लिखे गये रोमांचक उपन्यास ‘नकाब नोचने वाले ‘में प्रकाशित हुई थी। ‘नकाब नोचने वाले’ राजा बाल पॉकेट बुक्स में प्रकाशित एस सी बेदी के चौबीसवें सेट में मौजूद था। एस सी बेदी राजन इकबाल शृंखला के लिए विख्यात हैं पर उन्होंने फिलर के तौर पर ऐसी छोटी छोटी कहानियाँ भी लिखी हैं। चूँकि यह कहानी आउट ऑफ प्रिंट है तो हमें लगा कि इसे भी पाठकों तक पहुँचना चाहिए और उन्हें पता होना चाहिए कि बेदी जी ने कई कहानियाँ भी लिखी है। उम्मीद है आपको यह कहानी पसंद आएगी।


उसके हाथ-पाँव बंधे हुए थे और वह बड़ी बेबसी अनुभव कर रहा था।

उसका नाम शबीर था। वह एक रईस बाप का बेटा था। उसका अपहरण उस समय हुआ जब वह कॉलेज से घर जा रहा था। शाम हो गयी थी और वह पहाड़ी पगडंडी पर चला जा रहा था। तभी एक जीप उसके पास आकर रुकी।

तीन व्यक्तियों ने उसे घेर लिया। सबके हाथों में ए के 47 राइफल थी।

“जीप में बैठो।” एक व्यक्ति गुर्राया।

“क्यों?”

“तड़ाक!” एक भरपूर थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा। फिर वही व्यक्ति गुर्राया – “जानता नहीं हम आतंकवादी हैं। ‘क्यों’ कहने की तेरी हिम्मत कैसे हुई। जीप में बैठता है या गोली मारूँ।”

शबीर जानता था – अगर उसने जरा सा भी विरोध किया तो वे गोली मार देंगे। इसलिए वह चुपचाप जीप में बैठ गया। उसकी आँखों में काली पट्टी बाँध दी गयी।

जीप द्वारा उसे कहाँ ले जाया गया है – वह नहीं जानता था। उसकी आँखों से जब पट्टी हटायी गयी तो उसने खुद को इसी कोठरी में पाया।

उसे खाने-पीने के लिये दिया गया, फिर उससे एक पत्र लिखवाया गया – उसकी तरफ से ।

अब्बा हुजूर,

मेरा अपहरण कर लिया गया है। यह लोग बहुत खतरनाक हैं। अगर आप मेरी रिहाई चाहते हैं और मुझे ज़िंदा देखना चाहते हैं तो यह लोग जो माँगते हैं, इन्हें दे दीजिये।

आपका बेटा
शबीर

पत्र लिखे आज दो दिन हो गये थे। आज तीसरा दिन था। उसे खाना-पीना ठीक समय पर दे दिया जाता था। आज भी दो बदमाश खाना लाये। एक के हाथ में ए के 47 राइफल थी। दूसरे के हाथ में भोजन की थाली थी।

उसके हाथ पाँव खोल दिये गये और खाना खाने के लिए कहा गया।

खाना खाने के बाद शबीर ने पूछा – “क्या मैं जान सकता हूँ, तुम लोग कौन हो?”

“आतंक का मतलब जानते हो?”

“हाँ। भय फैलाना।”

“हम कश्मीर में भय फैलाकर, कश्मीर को भारत से अलग-थलग कर देना चाहते हैं।”

“क्या तुम लोग काश्मीरी नहीं हो?”

दोनों हँस पड़े।

“इसमें हँसने की क्या बात है?”

“हम काश्मीरियों के भेष में पाकिस्तान से यहाँ आयें हैं आतंक फ़ैलाने।”

“फिर मेरा अपहरण क्यों किया गया?”

“भारत सरकार ने हमारे तीन लीडरों को गिरफ्तार कर लिया है। तुम्हारे बदले हम उन्हें छुड़ाना चाहते थे। तुम जिस बाप के बेटे हो वह रईस तो है ही, सरकार में भी उच्च पद पर आसीन है। इसलिए हमारी माँग मान ली गयी है।”

“यानी अब मुझे छोड़ दिया जायेगा?”

“आज रात गोल पहाड़ी पर अदला-बदली होगी। वह सिर्फ एक लीडर को छोड़ने के लिए तैयार हुए हैं।”

“और तुम लोग मान गये?”

“हाँ! क्योंकि फिर किसी का अपहरण करके, हम अपने दूसरे व तीसरे लीडर को भी छुड़ा लेंगे।”

शबीर कुछ नहीं बोला । वह लोग प्लेट उठाकर चले गये। उनकी बातें सुनकर शबीर का खून खौलने लगा था।

वह खुद को सच्चा मुसलमान, सच्चा काश्मीरी व सच्चा हिंदुस्तानी मानता था। कश्मीर हिंदुस्तान का एक अभिन्न अंग है, जो हिंदुस्तान से कभी भी अलग नहीं हो सकता है।

पाकिस्तान, काश्मीरियों का तथा हिंदुस्तान का दुश्मन है। वह उसे उसके मकसद में कामयाब नहीं होने देगा। उसके बदले अपने पाकिस्तानी लीडर को स्वतंत्र नहीं करा पाएँगे।

वह ऐसा नहीं होने देगा।

उसने दृढ निश्चय कर लिया चाहे, कुछ भी हो – वह हिंदुस्तान के दुश्मन को उस अदला-बदली द्वारा आज़ाद नहीं होने देगा। चाहे उसके लिए उसे अपने प्राण ही क्यों न त्यागने पड़ें।

आधे घंटे बाद फिर दो व्यक्ति अंदर प्रविष्ट हुए। एक के हाथ में ए के 47 राइफल थी।

“चलो। राइफलवाला बोला।”

“कहाँ?”

“जहाँ हम ले चलें?”

उसके हाथ पाँव खोल दिये गये और वह खामोशी से उनके साथ हो लिया।

बाहर एक जीप खड़ी थी। जीप में दो और आतंकवादी मौजूद थे। एक ने ड्राइविंग सीट सम्भाली।

दूसरा उसकी बगल में बैठा। उसके पास भी राइफल थी।

जब जीप सड़क पर दौड़ने लगी तो उसके पास बैठा आतंकवादी बोला – “शबीर! क्या तुम जिंदा रहना चाहते हो?”

“हाँ!”

“तो भागने की कोशिश मत करना, अगर भागने की कोशिश की तो बदन गोलियों से छलनी कर दिया जायेगा।”

शबीर मुस्करा दिया। फिर उसने पूछा – “तुम्हारे साथी को लेकर कितने लोग आ रहे हैं?”

“उसके साथ सिर्फ तुम्हारे अब्बा और एक इंस्पेक्टर होगा।”

शबीर ने गहरी साँस ली।

एक जगह जीप रुक गयी। शबीर को लेकर सब नीचे आ गये। थोड़ी दूरी पर एक जीप खड़ी थी। उसके पास तीन मानव परर्छाइयाँ खड़ी दिखाई दे रही थीं।

उनसे अभी कुछ बात होती, उसके पहले ही शबीर ने पास खड़े आतंकवादी पर झपट्टा मारा और उसके हाथ से राइफल छीनकर एक बड़ी चट्टान के पीछे छलाँग लगा दी।
उस पर फायर हुए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। फिर उसकी राइफल गर्जी, दो आतंकवादी ढेर हो गये।

बाकी दो आड़ में होकर उस पर फायर करने लगे थे। “अब्बा हुजूर!” वह चिल्लाया -“मैं शबीर बोल रहा हूँ। मैं इन पाकिस्तानी आतंकवादियों से निपट लूँगा। आप इनके लीडर को लेकर भाग जाइये।”

कहने के साथ ही वह फिर फायरिंग करने लगा। फायरिंग दुश्मन की तरफ से भी हो रही थी।

शबीर ने एक और आतंकवादी मार गिराया। चौथा आतंकवादी, किसी तरह उसके पीछे पहुँच गया। उसके पास सिर्फ रिवॉल्वर था। उसकी चलाई दो गोलियाँ शबीर की पीठ में घुस गयीं।

वह एकदम से पलटा और फायरिंग कर दी। गोलियों ने उस आतंकवादी को छलनी कर दिया। मरने से पहले शबीर ने साबित कर दिया था कि वह सच्चा मुसलमान, सच्चा काश्मीरी व सच्चा हिंदुस्तानी है।

समाप्त


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