साहित्यानुरागी गुरप्रीत सिंह बुट्टर से एक बातचीत

परिचय:
 

गुरप्रीत सिंह बुट्टर
गुरप्रीत सिंह
गुरप्रीत सिंह श्री गंगानगर राजस्थान के रहने वाले हैं। वह राजस्थान शिक्षा विभाग में व्याख्याता (Lecturer) के पद पर कार्यरत हैं और साहित्य के प्रति विशेष अनुराग रखते हैं। 

लोकप्रिय साहित्य से जुड़ी खबरे और पढ़ी गयी पुस्तकों की समीक्षाएं वह यदा कदा पाठकों से साझा करते रहते हैं। उन्होंने लोकप्रिय साहित्य के संरक्षण के लिए कई कदम भी उठाएं हैं। 
अपने खाली वक्त में निम्न ब्लॉगस का संचालन भी करते हैं और इन्हीं ब्लॉगस के माध्यम से वह साहित्य से जुड़े अपने कार्यों को वो करते रहते हैं:
स्वामी विवेकानन्द पुस्तकालय- बगीचा | साहित्य देश | युवाम

‘एक बुक जर्नल’ की साक्षात्कार श्रृंखला में आज हम गुरप्रीत सिंह से की गयी एक छोटी सी बातचीत आपके समक्ष ला रहे हैं।  इस बातचीत में हमने उनका साहित्य के प्रति झुकाव, उनके द्वारा किया जा रहे लोकप्रिय साहित्य के संरक्षण के प्रति कार्य, उनके ब्लॉगों और उनके लेखन को जानने की कोशिश की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आयेगी।

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प्रश्न: गुरप्रीत कुछ अपने विषय में बताएं। आप कहाँ से हैं, फिलहाल कहाँ पर हैं और अभी क्या कार्य कर रहे हैं?

उत्तर: मैं मूलतः राजस्थान के श्रीगंगानगर  जिले के गाँव बगीचा का निवासी हूँ।

राजस्थान शिक्षा विभाग में व्याख्याता (Lecturer) के पद पर कार्यरत हूँ। वर्तमान पदस्थापन राजस्थान के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू में है।

प्रश्न: साहित्य की तरफ झुकाव कब हुआ? वह कौन सी किताबें थीं जिन्होंने साहित्य के प्रति अनुराग पैदा किया?

उत्तर: साहित्य के साथ तो जुड़ाव बचपन की प्रथम‌ किताब से ही है। मुझे याद है, जब में कक्षा तीसरी में था, हिन्दी की एक किताब में कहानी पढ़ी थी। तब से ही कहानियाँ मुझे अच्छी लगती थी।

वैसे घर पर पापा भी खूब पढ़ते थे। मेरे घर पर आज भी हिन्दी, पंजाबी, संस्कृत और उर्दू का साहित्य मिल जायेगा। पंजाबी और उर्दू की हस्तलिखित प्रतियाँ भी उपलब्ध हैं। हालांकि मेरा पठन-पाठन हिन्दी में हुआ है, पर पंजाबी परिवार से होने के कारण पंजाबी की रचनाएँ भी पढी हैं।

प्रश्न: आप ब्लॉगस भी चलाते हैं। इस सफर की शुरूआत कैसे हुई?

उत्तर: मेरे तीन ब्लॉग है।

   www.yuvaam.blogspot.com

   www.svnlibrary.blogspot.com

   www.sahityadesh.blogspot.com

 पढ़ने के साथ-साथ लिखने का शौक भी जाग गया। मेरे रचनाएँ हिन्दी भाषी सभी राज्यों से प्रकाशित हुयी हैं। इंटरनेट पर रचनाएँ पढ़ता था तो कुछ साहित्यिक मित्रों (लघु पत्रिकाओं के लेखक मित्र) की रचनाएँ ब्लॉग/साइट पर पढ़ता तो मेरी भी इच्छा हुयी की मेरा भी ब्लॉग हो तब ‘युवाम’ ब्लॉग अस्तित्व में आया।

पढ़ने के साथ-साथ मैं कभी-कभी समीक्षा भी फेसबुक पर लिखता था। और आपके ब्लॉग पर समीक्षाएं भी पढ़ता था। मेरे दूसरा ब्लॉग ‘Svnlibrary’ तो आपके ब्लॉग की प्रेरणा से अस्तित्व में आया है।

तीसरा ब्लॉग ‘साहित्यदेश’ सन् 2017 में लोकप्रिय साहित्य संरक्षण हेतु बनाया है।

प्रश्न:  साहित्य देश के रूप में लोकप्रिय साहित्य के लिए कुछ करने का जज्बा कैसे पैदा हुआ?

उत्तर: जब मैं विभिन्न सोशल साइट पर देखता था की लोग लोकप्रिय साहित्य की जब चर्चा करते हैं तो उनके सम्मुख एक विशेष समस्या आती थी वह समस्या थी किस लेखक ने कितने उपन्यास लिखे, कौन-कौन से लिखे। तब मेरे मन में यह विचार आया की सभी उपन्यासकारों के उपन्यासों आदि की जानकारी एक जगह एकत्र होनी चाहिए।

प्रश्न: साहित्य देश को लेकर आपके आगे की क्या योजनायें हैं?

उत्तर: मेरे पास बहुत सी योजनाएं है। लेकिन लेखक और प्रकाशक के स्वयं दिलचस्पि  न लेने के कारण तथा समयाभाव के कारण बहुत सी योजनाएं अधर में हैं।

प्रश्न: लोकप्रिय साहित्य की कई कृतियाँ समय की रेत में दफन सी हो गयी हैं। ऐसी कृतियों को उभारने के लिए क्या किया जा सकता है? क्या आपकी योजनाओं में ये कृतियाँ भी शामिल हैं?

उत्तर: मुझे हार्दिक दुख होता है। जब लोकप्रिय साहित्य की अनमोल रचनाएँ खत्म होने की चर्चा चलती है। इस क्षेत्र में जितना लिखा गया उसके विपरीत उसके एक प्रतिशत संरक्षण के लिए किसी ने कोई भी प्रयास नहीं किया।

अधिकांश लेखकों और प्रकाशकों के पास उस लेखन की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। संरक्षण के लिए मेरे कदम भी एक अल्प प्रयास है। जब तक स्वयं लेखक-प्रकाशक सहयोग नहीं करेंगे तब तक कुछ भी संभव नहीं है। हालांकि आबिद रिजवी जी के दो उपन्यासों (पहला शिकार’, खूबसूरती का कत्ल) के साथ किंडल पर उपन्यास प्रकाशित करने की कोशिश की है। यह भी तब संभव हो पाया है जब आबिद रिजवी साहब ने सहर्ष निशुल्क अनुमति प्रदान की।

संरक्षण के दौरान बहुत कुछ रोचक और दिलचस्प घटनाएँ भी मेरे साथ गुजरी हैं‌। मैंने देखा है जिन लेखकों की रचनाएँ स्वयं लेखक के पास नहीं है, स्वयं लेखक को यह भी नहीं पता की इस शीर्षक से उसने कोई रचना की है या नहीं लेकिन जब उनसे इस संबंध में कोई चर्चा की जाये तो वे प्रकाशन की अनुमति नहीं देते।

हालाँकि यहाँ मेरा कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं रहा, बस उपन्यास भविष्य के लिए सुरक्षित हो जाये यह इच्छा है। इसलिए कुछ पुरानी रचनाएँ संग्रह कर रहा हूँ।

प्रश्न: आप कहानियाँ भी लिखते हैं। आपकी कुछ कहानियाँ बाल पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुई हैं। कुछ इसके विषय में बताएँ?

उत्तर: सन् 2006 में ‘चंपक’ पत्रिका से मेरा लेखन आरम्भ होता है। उसके बाद विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं‌ मेरी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैं। पर अब लंबे समय से लेखन पर विराम लगा हुआ है।

नोट: युवाम पर प्रकाशित गुरप्रीत सिंह की रचनाओं को  निम्न लिंक पर जाकर पढ़ा जा सकता है:
कविता | ग़ज़ल बाल कहानी | लघु-कथा

प्रश्न: वैसे तो आप ब्लॉग पर लेख लिखते रहते हैं लेकिन मैं कहानी या उपन्यास के विषय में पूछना चाहूँगा कि क्या आप ऐसी किसी रचना पर कार्य कर रहे हैं?

उत्तर: कुछ विचार हैं जिन्हें मूर्त रूप देना है।  अगर समय मिला तो कोशिश रहेगी लिखने की। पर अभी तो मेरा ध्यान सिर्फ पढ़ने और साहित्य संरक्षण पर ही है।

प्रश्न: गुरप्रीत जी, आपसे बात करके अच्छा लगा। आखिर में एक सवाल एक पाठक के रूप आप प्रकाशकों या लेखकों से क्या कहना चाहेंगे? वह ऐसा क्या करें कि लोकप्रिय साहित्य का स्वर्णिम युग दोबारा लौट कर आ जाए? वहीं दूसरी तरफ आप पाठकों से क्या कहना चाहेंगे?

उत्तर: मेरा लेखकों और प्रकाशकों से यही निवेदन है की सार्थक रचनाओं को बढ़ावा देना चाहिए। लेखकगण गहन अध्ययन और अनुंसाधन के साथ लेखन करे तो यकीनन वैश्विक स्तर के साहित्य की रचना कर सकते हैं। और उस साहित्य को आगे बढाने का काम फिर प्रकाशक का है।

अच्छी कहानियाँ तो महत्व दें और प्रचार-प्रसार भी ध्यान देने की महत्ती आवश्यकता है।

वर्तमान समय लेखक का समय है, वह अच्छी रचना के दम पर वैश्विक पहचान स्थापित कर सकता है। 

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तो यह थी साहित्यानुरागी गुरप्रीत सिंह के साथ ‘एक बुक जर्नल’ की छोटी सी बातचीत। बातचीत पर अपने विचारों से आप हमें जरूर अवगत करवाईयेगा।

‘एक बुक जर्नल’ में मौजूद अन्य साक्षात्कार आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
साक्षात्कार

© विकास नैनवाल ‘अंजान’


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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17 Comments on “साहित्यानुरागी गुरप्रीत सिंह बुट्टर से एक बातचीत”

  1. विकास भाई आपका हार्दिक धन्यवाद।

    1. बातचीत करने के लिए आभार, गुरप्रीत भाई।

  2. बेहद शानदार. गुरप्रीत भाई ने सचमुच लोकप्रिय साहित्य के संरक्षण की दिशा में शानदार कार्य किया है. इस शानदार साक्षात्कार के लिए बधाई विकास भाई. आपसे और गुरप्रीत भाई से उपन्यास जगत के लोगों, लेखकों, पाठकों, सभी को बहुत उम्मीदें हैं.

    1. जी आपने सही कहा। गुरप्रीत जी ने लोकप्रिय साहित्य के संरक्षण के लिए जो कार्य किया है वो बेहतरीन है। साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा आभार।

  3. साहित्य,प्रकृति एवं शिक्षा प्रेमी भाई गुरप्रीत को हार्दिक शुभकामनाएं।

  4. साहित्य अनुरागी गुरप्रीत जी साक्षात्कार प्रकाशित कर आपने अच्छा प्रयास किया है। बहुत बहुत बधाई

    1. साक्षात्कार आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा सर। आभार।

  5. उपयोगी और जानकारीपरक बात-चीत।

  6. कुछ लोग साहित्य को आने वाली नस्लों के लिए सहजकर रखना चाहते हैं उनमें से ही एक है गुरप्रीत जी ।
    ‌भविष्य के लिए शुभकामनाएं

  7. गुरुप्रीत जी द्वारा की जा रही लोकप्रिय साहित्य संरक्षण की पहल स्वयं में अनूठी एवं अप्रतिम है । गुरुप्रीत जी को अनेकों शुभकामनाएं । शानदार साक्षात्कार हेतु विकास जी को बधाई ।

    1. हार्दिक आभार अंकुर भाई।

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