किताब 2 अप्रैल 2018 से अप्रैल 2018 के बीच पढ़ी गयी
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबेक
पृष्ठ संख्या : 48
प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स
एस सी बेदी जी द्वारा लिखित इस किताब में एक लघु उपन्यास – नकाब नोचने वाले और एक लघु कथा –आतंक को प्रकाशित किया गया है। दोनों ही कृतियाँ पठनीय हैं। चूँकि दोनों अलग अलग कृतियाँ हैं तो ये ही उचित होगा कि उनके प्रति विचार भी अलग- अलग दूँ।
नकाब नोचने वाले 2.5/5
पहला वाक्य:
अँधेरा चारों तरफ फ़ैल गया था।
कर्नल अशोक कैप्टेन रशीद को एक पार्टी से वापस ला रहा था जब कि उसकी गाड़ी का इंजन गर्म हो गया। वो इंजन में पानी भरने के लिए एक तालाब के निकट पहुँचा तो उसे वो विदेशी लड़की दिखाई दी। वो तालाब में डूबने वाली थी। अशोक ने उसे बचाया और अपने साथ अपने निवास स्थान पर लेकर आया।
लड़की के मुताबिक उसका नाम जोरिना था और वो इटली की रहने वाली थी। उसको अपहरण करके इस देश में लाया गया था। अपहरण करने वाले को वो वनमानुष कहती थी क्योंकि उसके डील डौल एक वनमानुष से मिलते थे। लड़की का यह भी कहना था कि उसकी शक्ल बदल दी गई थी।
आखिर कौन थी ये लड़की? क्या उसकी बात में रत्ती भर सच्चाई थी? उसका अपहरण करने वाला कौन था? और अगर उसका अपहरण हुआ था तो उसके पीछे कारण क्या था?
वहीं दूसरी ओर शहर में अजीबो गरीब हरकतें होने लगी थी। कुछ पागल राह चलती औरतों के नकाब खींचने लगे थे। इससे शहर की औरतों में खौफ का माहौल था।
आखिर कौन थे ये पागल और क्यों राह चलती औरतों का नकाब नोच रहे थे?
सवाल तो बहुत थे।
देखना यह था कि क्या कर्नल अशोक इन गुत्थियों को सुलझा पाया?
मुख्य किरदार :
कर्नल अशोक,कैप्टेन रशीद – गुप्तचर विभाग के अफसर
जोरिना – एक विदेशी लड़की जो अशोक को तालाब एक सामने मिली थी
डॉ राघवन – शहर का एक जाना माना सर्जन
हेवस – जोरिना का अपहरण करने वाले गिरोह का सदस्य जो उससे प्यार करता था
गजाना – गजोलाना की राजकुमारी
नकाब नोचने वाले एक पठनीय लघु उपन्यास है। इसमें गुप्तचर विभाग के दो अफसर एक विदेशी लड़की के अपहरण की गुत्थी सुलझाते हुए दिखते हैं। उपन्यास में अशोक और रशीद की जोड़ी है जो कि राजन इकबाल की ही याद दिलाती है। रशीद इसमें कॉमिक साइड किक है। रशीद के रूप में लेखक एस सी बेदी जी का मजाकिया अंदाज अच्छी तरह दिखता है और उसने मुझे बहुत हँसाया। हाँ,चूँकि दोनों के बीच का समीकरण राजन इकबाल सरीखा है तो पाठक को कई बार एकरसता का एहसास हो सकता है। पात्रों के करैक्टराईजेशन ने फर्क लाया जाता तो बढ़िया रहता वरना इसे राजन इक़बाल ही रखना चाहिए था। खाली नाम बदलने से ज्यादा कुछ नहीं बदलता है।
कहानी अच्छी है और इसने मुझे अंत तक बाँध कर रखा। हाँ, अंत में अशोक कहता है उसे अपराधियों के अड्डे का पता चल गया है। ये पता कैसे लगा ये नहीं बताया गया है। इस पर थोड़ी और रोशनी डाली होती तो बढ़िया रहता।
‘क्या अपराधी के अड्डे का पता लग गया है?’
‘हाँ। यहाँ से एक किलोमीटर दूर….. वहीं उनका अड्डा है। मुझे पहले शक था, आज यकीन हो गया है।’
यही मुझे कहानी का कमजोर हिस्सा लगा। अंत में ऐसे लगा जैसे कहानी को जल्द से जल्द निपटाने की कोशिश की गई है। अगर तफसील से सारी चीजें पाठक के सामने आती तो बढ़िया रहता।
इसके इलावा जब सारी चीजें खुलती हैं तो मुझे वो काफी बचकानी लगी लेकिन इससे मुझे दिक्कत नहीं हुई क्योंकि मुख्य किरदार अशोक भी मेरी तरह हैरान था।
बहरहाल कहानी का अंत मुझे रोचक लगा। ये दर्शाती है कि किस प्रकार हमारा सिस्टम ताकतवर लोगों के लिए क़ानून को आसानी से तोड़ता मरोड़ता रहता है। ये अंत काफी यथार्थ के नजदीक है जिसकी उम्मीद मैंने एक बाल उपन्यास में नहीं की थी। बाल उपन्यास अक्सर आदर्शवादी होते हैं। तो इस मामले में थोड़ा जुदा है जो कि मेरे लिए अच्छी बात थी।
आतंक 2/5
किताब मुझे राजा पॉकेट बुक्स की साईट से मिली। आप निम्न लिंक पर जाकर राजा पॉकेट बुक्स में मौजूद बॉक्स सेट लेकर इस किताब को पा सकते हैं:
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