सबसे बड़ी जासूस – डार्लिंग

रेटिंग : 1.5/5
उपन्यास 14 मार्च 2018 से 14 अप्रैल 2018 के बीच पढ़ा गया
संस्करण विवरण:
फॉरमेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 288
प्रकाशक : तुलसी पेपर बुक्स
मूल्य : 60 रुपये
पहला वाक्य:
तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूँज उठा था।
आईआईसी सुरक्षा एजेंसी की माने तो उसकी वैन पैसों को स्थानांतरित करने का सबसे सुरक्षित माध्यम थी। वैन और अपनी तैयारियों पे उन्हें इतना भरोसा था कि उस संस्था के चीफ और इंचार्ज ने बाकायदा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपनी वैन की नुमाईश करवाई थी।

लेकिन सब व्यर्थ रहा। न सुरक्षा के इंतजामात काम और न वैन ही अभेद साबित हुई। सब चीजों को धता बताकर कोई रिज़र्व बैंक से निकले एक अरब अस्सी करोड़ रुपये लेकर रफू चक्कर हो गया था।

कौन था वो जिसने अभेद समझे जाने वाली सुरक्षा व्यवस्था को तोड़ दिया था? 
आखिर पैसे और वैन किधर चले गये थे?

 जब पुलिस की नाकेबंदी का भी कोई परिणाम नहीं निकला तो गृह मंत्रालय ने केस रॉ को सौंपा।

अब इस केस की गुत्थी सुलझाने की जिम्मेवारी डार्लिंग भटनागर की थी।

क्या वो केस को सुलझा पायी? क्या वो पैसों का पता लगा पायी? इस केस को सुलझाने के लिए उसे किन किन परेशानियों से दो चार होना पड़ा?


ये सब जानने के लिए तो आपको इस उपन्यास के पन्ने पलटने होंगे।


मुख्य किरदार:
डार्लिंग भटनागर – रॉ की एक एजेंट
सुभाष बोलेकर – आईआईसी नामक सुरक्षा एजेंसी का चीफ और इंचार्ज 
विश्वनाथ पांडे – आईआईसी का गनमैन 
थपलियाल – रॉ का चीफ 
इंस्पेक्टर प्रद्युम्न – वो इंस्पेक्टर जो वैन चोरी का केस देख रहा था 
श्याम वेगनेलकर – उस कंपनी का चीफ जो वैन मुहैया करवाती थी 
डॉक्टर रुस्तम वाला- शिवाजी ट्रस्ट अस्पताल का हेड डॉक्टर 
शिव मातोंडकर – अस्पताल का गार्ड 
राणे – अस्पताल का दूसरा गार्ड जिसकी नाईट ड्यूटी थी 
दयानंद  राठौर – एक व्यक्ति जिसकी डार्लिंग को तलाश थी 
पीटर – एक आदमी जिसकी चोरी की सिलसिले में डार्लिंग को तलाश थी 
जब्बाल – जैकलिन का दोस्त 
जैकलिन – एक अंतर्राष्ट्रीय चोर जो किसी भी किस्म की चोरी को अंजाम दे देता था
रुस्तम टोपीवाला – गोवा अंडरवर्ल्ड का दाहिना हाथ 
जैक/दिलबहार – गोवा में रॉ का एजेंट 
आशिफ खान – एक सुपारी किलर 
किंगेश्वर – जब्बाल का साथी 
अब्दुल रहमदिल – मुंबई अंडरवर्ल्ड के किंग पिन रघु यादव का खासमख़ास 
वसीम खान – मुंबई अंडरवर्ल्ड के बादशाह सलीम लंगड़े का छोटा भाई 
समीना – वसीम और अब्दुल की माशूक 
डिग्रेट – एक स्थानीय एजेंट जिसने डार्लिंग की मदद की थी 
सर जोसफ स्टीफेन – स्विटज़रलैंड के रूलिंग पार्टी का मुख्य नेता जिसे अब गद्दार घोषित कर दिया गया था 
ब्राडमैन – स्विटज़रलैंड डिवाइडेड पार्टी का नेता जिसने सत्ता पलट कर दिया था और राजा बन बैठा था 
जॉन डिंग – जोसफ का वकील,फोंग लुईस – जोसफ के पिता का अकाउंटेंट, सर जॉन फोक – राजस्व विभाग का मुखिया – तीनो जोसफ के साथी थे 
डैंग:  वसीम खान का साथी और वो व्यक्ति जिसे वेंशन ने हीरे की सुरक्षा का कॉन्ट्रैक्ट दिया था
जैक – ओसिजा फाइट क्लब का मेन फाइटर जिस पर अकसर डैंग पैसे लगाता था 
जैंग फिक्लौंस: स्विटज़रलैंड का सुरक्षा ऑफिस जिससे मिलकर वेंशन हीरे की सुरक्षा करना चाहता था 
वेंशन : इंग्लैंड का अफसर जो हीरे की सुरक्षा के लिए आया था 
जैनी – वेंशन की सैक्रेटरी 
रूह वेंस – गैम्बलर एंड संस शिपिंग कंपनी, जो जमैका की सबसे बड़ी कंपनी थी, का मालिक
रेम्बो – होटल ओमनी,जो होटल कम्पनी के आधीन था, का इंचार्ज
तुलकेट – जमैका अंडरवर्ल्ड का लीडर

डार्लिंग का नाम मैंने काफी सुना था। उसे हिन्दी पल्प(अपराध) साहित्य में रीमा के समतुल्य ही रखा जाता है। यानी उसका भी सबसे महत्वपूर्ण हथियार हनी ट्रैप ही है। ये बात सच ही है क्योंकि इसमें उसका बकायदा एक वक्तव्य ये है:


मेरा नाम सुनते ही दुश्मनों के छक्के छूट जाते हैं- कभी कभी मैं उन्हीं दुश्मनों के लिए शराब का छलकता जाम बन जाती हूँ,जिसे अपने होंठों से लगाने के लिए दुश्मन पूरी तह बेताब हो जाते हैं।
उनके बिस्तर तक पहुँचकर मैं उनकी ही मौत बन जाती हूँ।

तो ये है डार्लिंग। और ये मेरी इससे पहली मुलाकात थी।

डार्लिंग के इस उपन्यास की शुरुआत बड़ी बेहतरीन तरीके से होती है। एक बड़ी चोरी जिसका पीछे करते हुए डार्लिंग को पता लगता है कि चोरी करवाने वाला उससे हमेशा एक कदम आगे है। जिस जिस सबूत के पीछे वो पड़ती है वो ही मिटा दिया जाता है लेकिन डार्लिंग फिर भी पीछा नहीं छोड़ती। इस केस का दायरा अंत तक आते आते इतना वृद्ध हो जाता है कि आप सोचने लगते हो कि कुछ ज्यादा तो नहीं हो गया।

केस के दौरान डार्लिंग गोआ अंडरवर्ल्ड, मुंबई अंडरवर्ल्ड, स्विटज़रलैंड की सेना, और जमैका के अंडर वर्ल्ड से दो चार होती है। उसका मुख्य मिशन चोरी किए गए पैसों की वापसी होता है लेकिन जैसे जैसे वो आगे बढती जाती है उसके मुख्य मिशन के साथ अन्य मिशन भी जुड़ते जाते हैं। इन मिशन में सफलता प्राप्त करने के लिए उसे कई जनों से लड़ना पड़ता है,कईयों का क़त्ल करना पड़ता है और कईयों को अपने हुस्न के जाल में फंसना पड़ता है। इससे कथानक में रोमांच रहता है। एक्शन सीन्स उपन्यास में प्रचुर मात्रा में आपको मिलते हैं।

लेकिन चूँकि कथानक को इतना विस्तार दिया गया है तो कई बार एक्शन के बाद एक्शन बोर करने लगता है। मुझे तो इसने किया। एक के बाद एक कारनामे होते रहते हैं और लगता है जैसे ये चलता ही रहेगा और डार्लिंग गाजर मूली की तरह सबको अकेले काटती रहेगी। इससे कथानक में वो कसावट नहीं बचती जो कि ऐसे उपन्यासों का आनंद लेने के लिए रहनी चाहिए। बोरियत का एक कारण मुझे कमजोर लेखनी भी लगा। कई चीजों से मुझे परेशानी हुई जिन्हें एक बार पढ़कर सुधारा जा सकता था।

पृष्ठ ३९ ४०  में भी डार्लिंग को आसानी से मारा जा सकता था लेकिन सफेद सूट वाला बोलता है उसे ऐसे आदेश नहीं है… ऐसा क्यों बोलता है?/ और उसे मारा क्यों नहीं गया…. इसके विषय में आगे कोई रोशनी नहीं डाली गई है 


‘सर क्यों न इसे ठिकाने लगा दें?’ उसके पास खड़े नकाब पोश बोल पड़ा था, शायद वह मेरे हाव भाव जान चुका था। 
‘हमें इसकी इजाजत नही है। ‘ वही सूटधारी बोला था। 

पृष्ठ ४७ में बम्बइया हिन्दी का प्रयोग करने की कोशिश की गई है जो कि पूरी तरह विफल है….

उदाहरण के लिए देखिए:
‘हटो इधर इच से। पहले अपुन इस इच का ब्यान लेगा। तभी कोई इससे मिलने को सकता है।’
‘क्यूं नाम इच से अपुन को सस्पेंड कराने का है क्या- या अपुन की वर्दी उतरवाने का है’

पृष्ठ ४४ में दयानंद बाद में दयाचंद बन जाता है….

पृष्ठ ८८ ८९ में अब्दुल रहमदिल का डार्लिंग पे पूरा कण्ट्रोल रहता है फिर भी वो उसे मारने का फिल्मी स्टाइल चुनता है जो कि बचकाना था… वो समुद्र के बीच में  थे वैसे ही उसे मारकर फेंक सकता था….

पृष्ठ ५८ गिजलानी से पता लेकर डार्लिंग उसके माशूक पीटर से मिलने जाती है… वो इतनी बड़ी जासूस है तो उसे पता होना चाहिए की चेहरा को भले ही मेकअप से बदल लें लेकिन गुप्तांगों को नहीं बदल सकते हैं…ऐसे में वो पीटर के साथ जिस्मानी रिश्ता बनाती है जिससे वो पकड़ी जाती है…. अब कोई भी जासूस ऐसा क्यों करेगा… बिना रिश्ता बनाए भी पीटर को कण्ट्रोल किया जा सकता था….

पृष्ठ १२४ में उसे आर्मी वालों ने बंधक बनाया रहता है .. वो चार लोगो से लडती है और उन्हें हरा भी देती है लेकिन फिर उसे जाने क्यों दिया जाता है? इसका कोई कारण नहीं दिया गया. उसे आसानी से रोका जा सकता था।  ये प्रसंग मुझे बेतुका लगा क्योंकि इसी बात की बेइज्ज्जति का बदला लेने के लिए सैनिक उसे १२७ पृष्ठ में घेरते हैं….

पृष्ठ 168 में डार्लिंग जेनी का रूप धरकर सर्किट हाउस पहुँचती है….वहाँ एक सैनिक से उसकी मुलाकात भी होती है जो जेनी के रूप में उसे पहचानता है:
‘वैरी गुड।’ मैं वहाँ के इंचार्ज से बोली-‘मिस्टर वेंशन वाकई खुश होंगे तुम्हारे इस काम से। ‘ मैंने कहा था। 
“थैंक यू मैडम।”
यानी लोगों को पता चल गया था कि जेनी वेंशन से पहले आई है। लेकिन फिर इसके अगले पृष्ठ में जेनी वेंशन के साथ आती दिखाई देती है। अब वो सर्किट हाउस का इंचार्ज क्या इतना बेवकूफ था कि उसे पता नहीं लगा कि एक जेनी पहले से दाखिल हो चुकी है और ये दूसरी आ रही है। वो बाकायदा उसे सेल्यूट भी मारते हैं।
बाहर सेल्युटों का स्वर उभरा था। 
तभी मैंने दो जोड़ी क़दमों को भीतर जाते देखा, जो एक लड़की और एक मर्द के थे। 
“तुम… ।” मर्द बोला था – “तुम आराम करो जैनी, मैं जरा मीटिंग खत्म करके आता हूँ।”

पृष्ठ 164 में डार्लिंग बताती है कि उसके पास जेनी की खाली फोटो थी। उसी से उसने जेनी का रूप अख्तियार किया था।
मैं शाम को लौटी थी।
मेरे पास उस लड़की जेनी फ्रोड की तमाम फोटोज थी- उसकी हर दिशा से खींची गई तसवीरें।


अब जाहिर सी बात है कि इनमें वहीं तस्वीरें होंगी जिनमें जेनी ने वस्त्र पहने होंगे। लेकिन फिर भी जेनी बनी हुई डार्लिंग वेंशन से जिस्मानी तालुकात बनाती है। एक बार पहले भी वो इस कारण पकड़ी जा चुकी थी। फिर भी वो ये रिस्क लेती है।


मुझे लगा जैसे वह मुझ पर शक कर रहा है। 
तभी तो उसका दिमाग बदलने के इरादे से मैंने फौरन ही उसके दोनों होठों पर अपने दोनों होंठ चिपका दिए थे। … फिर वही हुआ जो होना था। हमारी तीव्र साँसों में हमारे कपड़े जिस्म से उतरते चले जा रहे थे। 

 अब जिस काम से पहली बार पकड़ी जा चुकी थी उसी काम को करने का क्या फायदा। और फिर वेंशन जैनी के साथ पहली बार हम बिस्तर नहीं हो रहा था। क्या उसे पता नहीं लगा कि जिसके साथ वो सो रहा है वो वो लड़की नहीं है केवल चेहरा मिलता है। ये बेतुकी बात है और लेखक के आलसीपन को दर्शाती है।

इसके इलावा डार्लिंग को इस उपन्यास के दौरान कई जेल बार में फंसना पड़ता है। उन जेलों के विषय में बताया जाता है कि उनमें सुरक्षा व्यवस्था उत्तम है लेकिन फिर भी उधर कैमरे नहीं होते। जबकि कैमरे होना आम बात है। और ये तब जब डार्लिंग खुद ऐसे कैमरे का प्रयोग करती है जो उसकी पुतलियों में फिट होकर लाइव फीड सम्प्रेषित कर रहा है। उपन्यास में मुख्य खलनायक जैंग आखिर में एक सुरक्षित जगह चला जाता है। उसके विषय में कहा गया है कि:
‘मादाम तुमने लाल कुलावा का नाम लिया है, जो यहाँ का बेहद खतरनाक और सुरक्षित इलाका माना जाता है।’
‘कैसे?’
हमारे मुल्क की सेना ने आपातकाल के लिए ऐसे ही सुरक्षित इलाके की तलाश की, जिसमें आपातकालीन स्थिति आने पर देहस के किंग और महत्वपूर्ण दस्तावेजों को सुरक्षित बचाया जा सके। तब सेना का कमांडर जबराल था। वह इतना अधिक दिमागदार था कि उसके सामने शत्रु भी उसके दिमाग का लोहा मानते थे।…..उसने ऐसी जगह का चुनाव किया, फिर उसे इतना सुरक्षित बना दिया कि लाख चाहकर भी इनसान उस तक नहीं पहुँच सकता और जो बात तुमने कही है तो इस वक्त वह इलाका और भी ज्यादा खतरनाक हो गया होगा।
(पृष्ठ 222)
लेकिन इधर भी सुरक्षा के नाम पर खूनी भेड़िये,शेर, तीर इत्यादि रहते हैं। न कैमरों का कोई ज़िक्र और न ही किसी अत्याधुनिक हथियारों का प्रयोग (शुरू में केवल माइंस हैं लेकिन उसके इलावा कहीं और कुछ नहीं इस्तेमाल किया गया है।) किया गया है। इससे सारी चीजें बचकानी लगने लगती है। लगता है लेखक ने आसान सा रास्ता चुना है जिसके विषय में कुछ ज्यादा सोचना न पड़े।

पृष्ठ 285 तुलकेट डार्लिंग को बेहोश करके बाँध कर रखता है। पहले तो मुझे इसी बात का तुक समझ नहीं आया। जब किसी को बेहोश ही कर दिया तो उसे बांधकर होश में लाने की क्या जरूरत। ऐसा कुछ उससे उगलवाना भी नहीं था तुलकेट को। सीधे मारना ही था। फिर भी अगर बाँधना ही है और अब अगर मैं एक अंडरवर्ल्ड किंग हूँ तो किसी को बाँधने से पहले ये जरूर जाँच लूँगा कि उसके पास हथियार तो नहीं है लेकिन इधर डार्लिंग के पास आज़ाद होते ही पिस्टल होती है।
गोलियाँ चली जरूर। 
मगर खाली फर्श पर, क्योंकि मैं हवा में ऊपर उठती चली गई थी। मेरे हाथ पैर आज़ाद थे। 
मेरे हाथ में मेरा पिस्टल चमका। 


ये कुछ चीजें हैं जो मेरी पकड़ में आई। मैंने ये किताब लगभग एक महीने लगाकर पढ़ी। इसका कारण ये ही था कि मैं इसके प्लाट से काफी उकता गया था। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगा कि इसे रबर बैंड की तरह खींचा जा रहा है और मेरे लिए इसे एक ही बैठक में पढ़ना मुश्किल था।

कहानी का कांसेप्ट अच्छा है लेकिन इसे बेहतर तरीके से लिखा जा सकता था। कहानी में कसाव लाया जा सकता था जो कि कथानक में होने वाले घटनाक्रमों को कम करके किए जा सकता था। ऊपर लिखे बिन्दुओं पे भी ध्यान दिया जाता तो कहानी और रोचक बन सकती थी। (हाँ, कहानी में स्विटज़रलैंड की भी पृष्ठभूमि है। उधर लेखक ने सैनिक शाशन तो लगवाया ही लेकिन और भी कई लेखकीय स्वतंत्रता ली है जो कि मुझे तो पच गई लेकिन हो सकता है काफी लोगों को न पचे। मैं अक्सर ऐसे मामलों में लेखक को छूट दे देता हूँ। लेकिन अच्छा होता कि या तो वो रिसर्च करके कहानी लिखते और अगर ऐसा नहीं कर सकते तो काल्पनिक देश का इस्तेमाल करते। )

तो ये मेरी राय है इस उपन्यास के प्रति। अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको ये कैसा लगा? इसके विषय में अपने विचार मुझे कमेंट के माध्यम से जरूर बताइयेगा।

किताब मैंने गुडगाँव बस स्टैंड में मौजूद बुक स्टाल से ली थी। अगर आप लेना चाहते हैं अपने शहर में मौजूद ऐसे स्टाल का चक्कर लगा सकते हैं। हो सकता है मिल जाए। वैसे एक बात कहूँ बुरा नहीं मानियेगा लेकिन अगर इसे नहीं भी पढेंगे तो ज्यादा कुछ नहीं खोएंगे। 


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

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8 Comments on “सबसे बड़ी जासूस – डार्लिंग”

  1. घोस्ट राइटिंग से डार्लिंग के बहुत से उपन्यास बाजार में‌ उपलब्ध हैं। इनमें‌ कहानी में दिमाग लगाने की कहीं जरूरत नहीं होती। असंख्य दुश्मन और एक अकेली नायिका सब पर भारी होती है।
    मैंने ऐसे बहुत से उपन्यासों में देखा है मुख्य विलेन की तरफ से ऐसा आदेश होता है की नायिका को खत्म नहीं करना, अब पता नहीं वो विलेन दुश्मन नायिका से कौन सा आचार डालने का फार्मूला जानना चाहता है।
    मैंने वर्तमान में देखा है की कोई भी लेखक आधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ उपन्यास नहीं लिख पाता।
    असंख्य गलतियों से भरपूर आपने उपन्यास पढा, समीक्षा लिखी, धन्यवाद।

    1. मैंने आजतक डार्लिंग का कोई उपन्यास नहीं पढ़ा था तो जब दुकान में दिखा तो मन को रोक नहीं पाया। वैसे घोस्ट राइटर द्वारा लिखे गए उपन्यासों से मुझे ज्यादा अपेक्षा नहीं होती है लेकिन इसमें थोड़ा बहुत एडिटिंग हुई होती और थोड़ा बहुत सुझाव से ये एक पढने लायक उपन्यास बन सकता था। अभी भी इसमें रोमांच तो है ही। तकनीक का इस्तेमाल लेखक न उधर किया है जिधर उसे आसानी हुई है। इसलिए मैंने जेल में कैमरे का उदाहरण दिया था। अगर उधर लेखक कैमरा इस्तेमाल करता तो उसे दिमागी कसरत करके डार्लिंग द्वारा उसका तोड़ दिखलाना पड़ता जो कि मुमकिन तो था लेकिन मेहनत का काम था। लेकिन फिर घोस्ट राइटिंग में कोई क्यों मेहनत करेगा।
      आपने टिपण्णी की उसके लिए शुक्रिया।

  2. Can you plz share pdf or doc so that we can also go through novel. Who is writer and what kind of story all about…is it fun oriented?

    1. I don't have pdf or doc of the novel. I buy novels and then write about them. The later part of you questions have been answered in the article.

  3. डार्लिंग का नॉवेल तो कोई सा न पढ़ा और न पढ़ने की इच्छा है पर आपकी दी हुई समीक्षा पढ़ने में भरपूर मजा आया| ऐसे ही लिखते रहे |

    1. जी शुक्रिया। डार्लिंग के दूसरे उपन्यास भी मैं जरूर पढ़ना चाहूँगा। उपन्यास सही था। 

    1. जी मेरे पास जो संस्करण था उसके प्रकाशक का नाम तो तुलसी पेपरबैक्स था। यह तो मैंने पोस्ट में ही बता दिया था। रीमा भारती एक किरदार है जिसके नाम से उपन्यास आते थे। वह प्रकाशक नहीं हैं।

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