संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 104
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
आईएसबीएन: 9789387889873
मूल भाषा: कन्नड़
अनुवादक: अजय कुमार सिंह
घाचर घोचर – विवेक शानभाग |
पहला वाक्य:
विंसेंट कॉफी हाउस में वेटर है।
कहानी:
कॉफी हाउस में आना कथावाचक की दिनचर्या का एक जरूरी हिस्सा है। कथावाचक रोज इधर आता है और अपना काफी समय इधर बिताकर अपने घर लौट जाता है। ऐसा नहीं है कि कथावाचक कोई वयोवृद्ध है जो कि रिटायर हो चुका है बल्कि कथावाचक तो एक नौजवान युवक है जिसकी हाल फिलहाल में शादी हुई है। परन्तु कथावाचक के पास कोई काम नहीं है और न उसे काम करने की जरूरत है।
लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था। कभी कथावाचक का परिवार निम्न मध्यम वर्गीय होता था। खर्चे पूरे करने के लिए उन्हें काफी जद्दोजहद करनी होती थी लेकिन फिर परिस्थितियाँ बदली और समृद्धि उनके द्वार पर आई। लेकिन यह ऐश्वर्य अकेला नहीं आया है। यह अपने साथ काफी कुछ लाया है।
और यही काफी कुछ इस उपन्यास में बताया गया है।
अचानक से आये इस समृद्धि का कथावाचक के परिवार और परिवार के सदस्यों की नैतिकता पर क्या असर पड़ता है यही उपन्यास की कथावस्तु बनता है।
मुख्य किरदार:
विंसेंट – कॉफ़ी हाउस का वेटर जहाँ कथावाचक रोज अपना वक्त काटने आता है
वेंकटप्पा – कथावाचक के चाचाजी
मालती – कथावाचक की बड़ी बहन
सुहासिनी – एक स्त्री जो कि वेंकटप्पा से मिलने आई थी
कुमुदा – कथावाचक की माँ
अनीता – कथावाचक की पत्नी
पिताजी – कथावाचक की पत्नी
विक्रम – मालती का पूर्व पति
रवि – वेंकटप्पा का मुलाजिम
मेरे विचार:
घाचर घोचर विवेक शानभाग के इसी नाम के कन्नड़ उपन्यास का हिन्दी अनुवाद है। उपन्यास का अनुवाद अजय कुमार सिंह ने किया है और अनुवाद अच्छा हुआ है। अजय कुमार सिंह बधाई के पात्र हैं। वहीं उपन्यास के आवरण चित्र के लिए शुऐब अहमद द्वारा बनाया गया है और वह भी इतने आकर्षक आवरण चित्र के लिए बधाई के पात्र हैं।
घाचर घोचर के विषय में जब पहली बार सुना था तो हर कोई इसकी बहुत ज्यादा तारीफ़ कर रहा था। इसके नाम ने भी मेरा ध्यान आकर्षित किया था। उस वक्त मैंने यही सोचा था कि यह कन्नड़ का ही शब्द होगा और मैं इसका अर्थ जानना चाहता था। हर किसी के जुबान पर इस किताब का नाम था और यह वह नेक्स्ट बिग थिंग थी जिसके विषय में व्यक्ति बात करते करते नहीं अघाता है। ऐसे में मेरा ध्यान भी इसने आकर्षित किया था। मैंने इसे लेने की सोची थी लेकिन चूँकि उस वक्त मेरी अपेक्षाएं इससे काफी ज्यादा हो गयी तो मैंने रुकने का फैसला किया। अक्सर बड़ी बड़ी पुस्तकों को भी आप किसी अपेक्षा के साथ पढ़ते हो और वह आपके अपेक्षा अनुरूप नहीं निकलती है तो निराशा तो होती ही है। इसी कारण मैंने किताब को पढ़ना मुल्तवी कर दिया। फिर एक बार अमेज़न में घूमते हुए मुझे इसका हिन्दी संस्करण दिखा तो मेरी बांछे खिल गयी। अन्य भारतीय भाषाओं में लिखी कृतियों को मैं अक्सर हिन्दी में ही पढ़ना पसंद करता हूँ। फिर हिन्दी संस्करण का आवरण चित्र भी इतना आकर्षक था कि मैं इस किताब को लेने से खुद को न रोक पाया। अमेज़न की माने तो यह किताब मैंने सितम्बर 2019 में मंगवाई थी और आज जाकर लॉक डाउन में इसका नम्बर आ गया है। चलो देर आय दुरस्त आये।
किताब की कहानी की बात करूँ तो यह किताब एक ऐसे परिवार की है जिसके पास धन अचानक से आता है। कथावाचक के परिवार में उसके माता पिता, बहन और चाचा हैं। चाचा ने विवाह नहीं किया है। कथावाचक के चाचा खुद का व्यापार शुरू करते हैं और यह व्यापार इतना फलता फूलता है कि कथावाचक का परिवार अचानक से अमीर हो जाता है। इस अचानक से आयी सम्पन्नता का परिवार के सदस्यों के आपसी समीकरण और उनकी नैतिकता पर क्या असर पड़ता है यही इस कहानी की विषय वस्तु बनता है।
उपन्यास सात अध्यायों में विभाजित है। उपन्यास की शरूआत में कथावाचक कॉफ़ी हाउस ने बैठा हुआ है। इस कॉफ़ी हाउस में आने से पहले उसकी जिंदगी में क्या उथल पुथल हुई है वह धीरे धीरे करके आगे के अध्यायों के माध्यम से पाठकों के सामने आता जाता है। उपन्यास के आगे के अध्याओं में कथावाचक के परिवार के हर सदस्य से मिलते हैं और इसी दौरान हम जानते हैं कि जब उनके पास पैसे नहीं थे तो परिवार कैसा रहता था और अब जब उनके पास पैसे आ गये तो परिवार किस तरह रहता है। परिवार के पास धन नहीं था लेकिन आपसी सद्भाव और प्रेम और साथ रहने की इच्छा जरूर थी। उनके पास नैतिकता भी थी। लेकिन जैसे जैसे घन उनके जीवन में आता रहता है वैसे वैसे ईमानदार पिता उन्हें बेकार और महत्वहीन लगने लगता है। उसे वे लोग धन की चमक के आगे नजरअंदाज कर देते हैं और उनकी नैतिकता का पतन हो जाता है। इस नैतिकता का पतन की आखिरी सीढ़ी आखिर का अध्याय है जब वो चाय पीते हुए ऐसी बातों पर विचार विमर्श करते रहते हैं जिसे पढ़कर आपकी रूह काँप जाती है। आपको पता नहीं होता कि वह केवल बातें कर रहे हैं या अपने मनोभावों को दर्शा रहे हैं।
उपन्यास के सभी पात्र रोचक हैं।
उपन्यास में सबसे पहले कथावाचक पाठकों को विंसेंट से मिलवाता है। पश्चमी परिवेश के कई उपन्यासों और फिल्मों में बारटेंडर को एक थेरापिस्ट की तरह ही दर्शाया जाता है। ऐसा दर्शाया जाता है कि लोग आकर उसके पास अपने दुखड़े रोते हैं और ज्यादा बारटेंडर्स को पता होता है कि उन्हें किस व्यक्ति से क्या कहना है। विंसेंट का किरदार इधर कुछ कुछ ऐसा ही है। वह ग्राहक के बिना बोले ही जानता है कि उसे क्या चाहिए। वह ग्राहक को देखकर उसके मनोभावों को समझ जाता है और कई बार ऐसी चीजें बोल जाता है जो कि दिखती तो साधारण हैं लेकिन उनका अर्थ गहरा होता है। वैसे मुझे लगता है कि अगर कोई ऐसी जगह है जहाँ आप रोज जाते हैं तो उधर एक तरह का रिश्ता बन ही जाता है। फिर अच्छा दुकानदार या होस्ट वही होता है जो कि व्यक्ति को देखकर उसकी मनोदशा समझ जाए और उस तरह से अपना सामान रखे। मेरे खुद के साथ कई बार ऐसा होता है। जिस व्यक्ति के पास चाय पीने जाता हूँ उसे अलग अलग ग्राहकों की पसंद का ख्याल रहता है। किसे चाय के साथ मट्ठी पसंद है, किसे पार्ले जी और किसे सुट्टा उसे सब पता रहता है। साथ ही कई बार वह यह भी भांप जाता है कि कौन परेशान है और कौन खुश और उसी तरह से उसकी हल्की फुलकी बातचीत होती है। शायद आप भी अपने जिंदगी में किसी विंसेंट जैसे किरदार से टकराते हों। विंसेट ज्यादा बोलता नहीं है। कुछ ही वाक्य उसने उपन्यास में कहे हैं लेकिन वह बेहद जरूरी है। मुझे ऐसा लगता है कि विंसेट क्थावाचक की अंतरात्मा की तरह है। जो कही किसी कोने में मौजूद है। रह रहकर उसे कचोटती है लेकिन चूँकि कथावाचक इतना अकर्मण्य है कि वह कुछ करना नहीं चाहता है तो वह उसकी जिंदगी में गौण हो जाती है। विंसेंट की तरह जिसका महत्व केवल कॉफ़ी हाउस के अंदर तक ही काथावाचक के लिए है। वह झटका जरूर देता है लेकिन वह झटका बस पल भर का होता है और कथावाचक फिर अपने पुराने ढर्रे में पहुँच जाता है।
अनीता कथावाचक की पत्नी है और वह अपने विचारों की पक्की है। मध्यम वर्ग हमेशा से ही हमारे समाज में नैतिकता की परचम थामे खड़ा रहा है। अनीता इस अमीर परिवार में ऐसी ही है। वह मध्यम वर्ग से आती है और उसे इस परिवार की नैतिक मूल्यों के बीच खुद को जमाना कठिन लग रहा है। इस वजह से कई बार वह परिवार के लिए ऐसे शीशे का काम करती है जो कि उनके दूषित हो चुके मूल्यों को प्रतिबिम्बित करता है। इस कारण परिवार के कई सदस्य उससे द्वेष रखते हैं।
उपन्यास के बाकि पात्र चाचा, माँ और मालती अपने अपने स्वार्थों से घिरे हुए हैं। अपने अपने स्वार्थों के चलते वह ऐसे काम करते हैं जिससे उनके स्वार्थों की तो पूर्ती होती है लेकिन दूसरों के लिए वह दुःख का बायस बनते हैं। इनके लिए परिवार की समृद्धि ही सबसे बड़ी चीज है और उसके आगे यह किसी चीज को महत्व नहीं देते हैं। यह वो कैसे करते हैं इसे आप उपन्यास पढ़कर ही जाने तो बेहतर होगा। हाँ, पहली बार आप चाचा से मिलेंगे तो आपको लगेगा कि वह कितने अच्छे हैं। सबका ध्यान रखते हैं लेकिन फिर जैसे जैसे बातें पता चलती जाती है कि इस ध्यान रखने के पीछे उनका अपना स्वार्थ है। वह एक छत्र राज की कामना करते हैं। उनके कई निर्णय आगे चलकर परिवार के सदस्यों की भलाई के लिए नहीं अपितु अपने इस राज को कायम करने के लिए ही प्रतीत होते हैं। माता और बहन का किरदार इतना ढका छुपा नहीं है। उनका स्वार्थ साफ दिखता है।
परिवार के सबसे दीन हीन सदस्य हैं पिताजी जो कि शायद इस परिवार के नैतिक मूल्यों दर्शाते हैं। जैसे धन आने से इस परिवार ने अपने नैतिक मूल्यों को त्याग दिया है वैसे उन्होंने पिताजी को भी त्याग दिया है। अब वे बेचारे अलग थलक पड़े रहते हैं।
आखिर में उपन्यास का कथावाचक है। वह अपनी जिंदगी से खुश नहीं है लेकिन वह इसे ठीक करने के लिए कुछ करना भी नहीं चाहता है। वह सब देखता समझता है। क्या गलत है क्या सही है उसे सब पता है लेकिन अपने स्वार्थ के चलते वह चुप रहता है। कई बार मुझे लगा था कि अनीता उसके अंदर कुछ जगाएगी लेकिन उपन्यास के अंत होने तक ऐसा दिखाई नहीं देता है।
उपन्यास रोचक है। पाठक को बांधकर रखता है और फिर अंत में पाठकों को ऐसे कई ऐसे सवालों के साथ छोड़ देता है जो उसे डरा भी सकते हैं या परेशान भी कर सकते हैं। हाँ, उपन्यास का अंत जिस जगह होता है उधर से कथावाचक किस तरफ मुड़ता वह मैं देखना चाहता था लेकिन अब इसकी कल्पना ही कर सकता हूँ।
अचानक से आया धन किस तरह से व्यक्तियों पर असर डालता है यह इसमें दिखता है। जो जो इस परिवार में होता है वह वह आपने अपने इधर उधर भी देखा होगा। यह बदलाव केवल ही धन ही नहीं अपितु ताकत के आने से ही व्यक्ति के अंदर होता है। इसलिए आपने देखा होगा कि अच्छे खासे व्यक्ति जब राजीनति में जाता है तो उसका नैतिक पतन होना शुरू हो जाता है। जैसे धन की लत होती है वैसे ही इस ताकत की लत होती है और इसी लत के चलते वह इस चीज को बचाने के लिए अपनी आत्मा से हर तरह के समझोते करने को तैयार हो जाता है। एक आम परिवार के इन्हीं समझोतों को यह उपन्यास बाखूबी दर्शाता है।
मैंने अभी तक यह नहीं बताया कि उपन्यास के नाम का अर्थ क्या है? यहाँ मैं इतना कहूँगा कि यह शब्द कन्नड़ भाषा का नहीं है। घाचर घोचर का अर्थ आपको उपन्यास पढ़ने के दौरान ही पता चलेगा। और मैं चाहता हूँ आप उपन्यास पढ़ने के दौरान खुद ही इस अर्थ को पाएं। हाँ, इतना जरूर कहूँगा कि उपन्यास और मुख्य किरदार की मनः स्थिति पर पर यह शीर्षक फिट बैठता है। शायद मैं भी अब अपने जीवन में इस शब्द का प्रयोग करूँ।
उपन्यास मुझे पसंद आया। इस उपन्यास को एक बार पढ़ा जाना चाहिए। हाँ, उपन्यास की तारीफ़ में इतने कसीदे पढ़े जा चुके हैं कि मैं यह कहने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ कि हो सके तो बिना अपेक्षाओं के इसे पढ़ियेगा। क्या पता अपेक्षाओं के चलते आप इसका उस तरह से रसावादन न कर सकें जिस तरह करना चाहिए।
रेटिंग: 3.5/5
उपन्यास में मौजूद कुछ पंक्तियाँ जो मुझे पसंद आई:
धन एकदम बीमारी की तरह न आये तो ठीक, उसे तो धीरे धीरे पौधे की तरह ही बढ़ना चाहिए।
अगर विन्सेंट इस तरह एक रेस्टोरेंट में वेटर न होता, अगर उसका कोई और आकर्षक नाम होता, उसके चमकती हुई लम्बी दाढ़ी होती, वह किसी आलीशान बँगले में रहता और यही बातें कहता तो लाखो लोग उसके सामने हाथ बाँधे खड़े रहते। उस तरह के उच्च महाकाव्यों में और विंसेंट की बातों में आखिर फर्क क्या था? बातें तो सन्दर्भ और सुनने वालों की मनः स्थिति के अनुसार रूप धारण कर लेती हैं। उस दृष्टि से देखा जाए तो अवतार लेकर आये हुए व्यक्तियों ने ऐसी कोई महान कोई बड़ी-बड़ी बातें नहीं की। उनकी सामान्य बातों को ही लोगों ने बड़े-बड़े अर्थों से भरा हुआ नहीं देखा क्या? आखिर शब्दों की शक्ति का स्फोट होता है ग्रहण करने वाले के मन में ही तो। है कि नहीं? और फिर क्या कोई दावे के साथ कह सकता है कि भगवान किस रूप में अवतरित होंगे?
पैसा हमें नचाता है, इसमें कोई शक नहीं। शायद यह उसका स्वभाव, उसकी शक्ति है। कम होने पर वह हमारे अधिकार में रहता है। ज्यादा होने पर वह हमारे ऊपर अधिकार जमा लेता है।
अगर आपने इस किताब को नहीं पढ़ा है तो आप इस किताब को निम्न लिंक पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं।
किंडल | पेपरबैक
प्रश्न 1: अगर आपको अचानक से बहुत सारा धन मिल जाये तो आप इसका क्या करेंगे?
प्रश्न 2: अगर कोई व्यक्ति आपसे कहे कि आप एक बार में उससे जितना चाहे धन माँग सकते हैं, तो आप उससे कितना धन माँगेंगे?
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© विकास नैनवाल ‘अंजान’
Bahut achhe
जी आभार….