लम्बे हाथ – सुरेन्द्र मोहन पाठक

संस्करण विवरण

फॉर्मैट: ईबुक | प्रकाशक: डेलीहंट  

कहानी 

भूषण गुप्ता ने अपने तलाक के बाद फैसला किया था कि वह कभी विशालगढ़ में कदम नहीं रखेगा और अपनी पूर्व पत्नी मुक्ता की शक्ल तक नहीं देखेगा। वो अलग बात थी कि मुक्ता के पास ही उसका बेटा राजू था जिसे वह जान से ज्यादा चाहता था और जिसे केवल साल में एक बार ही मिल पाता था। 

पर परिस्थितियाँ  ऐसी बन गयी कि अपने इकलौते बेटे राजू के लिए उसे विशालगढ़ आना पड़ा। 

यह उसकी फूटी किस्मत ही कही जायेगी कि भूषण गुप्ता को विशालगढ़ आए कुछ ही वक्त हुआ था कि मुक्ता का कत्ल हो गया।

हालात ऐसे हो गए कि भूषण को अपनी जान साँसत में फँसती हुई साफ दिखने लगी। पुलिस को लगता था कि कत्ल भूषण ने किया था और कातिल ने उसका पुलिंदा बाँधने का पूरा इंतजाम किया था। 

अब कातिल को ढूँढने में ही भूषण की गत थी क्योंकि ऐसा न करने पर कानून के लंबे हाथों की गिरफ्त में उसने अपने आप को पाना था।

आखिर किसने किया था मुक्ता का कत्ल?

भूषण का पुलिंदा बांधने का कातिल ने क्या इंतजाम किया था?

पुलिस को क्यों लगता था कि कत्ल भूषण द्वारा किया गया है?

क्या अपराधी एक कत्ल करके रुक गया या विशालगढ़ में और अपराध होने अभी बाकी थे?

यह भी पढ़ें: लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक के उपन्यास ‘लम्बे हाथ’ का एक रोचक अंश

मुख्य किरदार

भूषण – कथावाचक
राजू – भूषण का आठ साल का बच्चा
मुक्ता – भूषण की पूर्व पत्नी जो विशालगढ़ में रहती थी
अनीता – मुक्ता की बहन
डॉक्टर अग्रवाल – अनीता और मुक्ता के पिता
सत्यनारायण – अनीता का पति और ब्लैकबर्ड रेस्टोरेंट और बार का मालिक
किशोर सक्सेना – मुक्ता का पति जिसकी चार माह पहले मोटर एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई थी
हरी वालिया – वह आदमी जिससे मुक्ता का अफेयर बताया जाता था
प्रकाश चौधरी – भूषण गुप्ता का बचपन का दोस्त
रामकली – अनीता की मेड
सरोज – मुक्ता की मेड
आशा – मुक्ता ने जो नर्स राजू के ख्याल रखने के लिए रखी थी
महेश्वरी –  हरी की पत्नी
इंस्पेक्टर तिवारी – मुक्ता के कत्ल के मामले की तहकीकात करने वाला
अम्बा – विशाल गढ़ का एक वकील जो भूषण के लिए किया गया था
हकूमत सिंह – एक पुलियसा
दीपक हांडा – एक प्राइवेट डिटेक्टिव जिसे महेश्वरी ने मुक्ता के पीछे लगाया था
जगतपाल अस्थाना – कलेक्टरगंज में रहने वाला एक मिलिट्री से रिटायर्ड अफसर

मेरे विचार 

‘लम्बे हाथ’ लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक का लिखा उपन्यास है। उपन्यास पहली बार 1982 में प्रकाशित हुआ था। मैंने इसका डेली हंट द्वारा प्रकाशित संस्करण पढ़ा जो कि वर्ष 2014 में प्रकाशित हुआ था।

अपराधी चाहे कितना भी चालाक क्यों न हो लेकिन कानून के ‘लम्बे हाथ’ अगर वो चाहे तो अक्सर गुनाहगार के गिरेबान तक पहुँच ही जाते हैं। सुरेन्द्र मोहन पाठक का प्रस्तुत उपन्यास लम्बे हाथ भी इसी चीज को दर्शाता है। 

उपन्यास का केंद्र भूषण गुप्ता है जो कि कई वर्षों बाद अपने बेटे के खातिर विशालगढ़ लौटा है। वह विशालगढ़ क्यों लौटा है और विशालगढ़ पहुँचने पर कैसे उसका नाम एक कत्ल से जोड़ा जाता है और फिर किस तरह कातिल पकड़ा जाता है और सारा मामला उजागर होता है यही सब उपन्यास का कथानक बनता है। 

यह मूलतः एक रहस्य कथा है जिसमें लेखक पाठक के सामने कई संदिग्ध किरदार खड़े कर देते हैं। इससे होता ये है कि शक की सुई कई किरदारों पर घूमती है और असल अपराधी का पता लगाना मुश्किल सा हो जाता है।

कथानक में लेखक समय समय पर घुमाव भी लाते हैं जो कि कथानक में रुचि बनाए रखते हैं। 

उपन्यास के किरदार कथानक के अनुरूप अच्छे से गढ़े हुए हैं। मुक्ता,आशा, अनीता सरोज उपन्यास के मुख्य महिला पात्र हैं जो कि जैसी होती हैं वैसी दिखती नहीं हैं और जैसी दिखती हैं वैसी होती नहीं है।

अक्सर प्राइवेट डिटेक्टिव मामले की जाँच करते हुए ऐसी बातों से रूबरू हो जाते हैं जो कि उनके क्लाइंट पर उनका होल्ड मजबूत कर देते हैं। कई बार अपराधिक प्रवृत्ति के प्राइवेट डिटेक्टिव इसका फायदा उठाने से भी नहीं चूकते हैं और ऐसा ही इधर भी दिखता है।

 वहीं उपन्यास के कई किरदार ऐसे हैं जो होते कुछ और निकलते कुछ हैं और ये भी कथानक को रोचक बनाते हैं। कई बार लोग पुलिस पर विश्वास न करके मामले को अपने हाथ में ले लेते हैं और इससे क्या क्या नुकसान होता है ये भी कथानक में देखा जा सकता है।

किरदारों और कथानक के अतिरिक्त उपन्यास में एक महत्वपूर्ण चीज वह स्थान भी है जहाँ पर कथानक घटित होता है। अगर आप सुरेन्द्र मोहन पाठक को पढ़ते आए हैं तो यह भी जानते होंगे कि अपने कई कथानकों को उन्होंने काल्पनिक शहरों में बसाया है।  राजनगर और विशालगढ़ ऐसे दो काल्पनिक शहर हैं जहाँ शायद उन्होंने अपने सबसे ज्यादा कथानकों को बसाया होगा। जहाँ राजनगर एक मेट्रो सिटी है वहीं विशालगढ़ राजनगर के नजदीक पड़ने वाला एक कस्बा है जहाँ हर कोई हर किसी को जानता है। जहाँ राजनगर एक ऐसा शहर है जिसे लेकर कई लेखकों ने रचनाएँ लिखी हैं वहीं मेरे ख्याल से विशाल को लेकर खाली पाठक साहब ने ही उपन्यास लिखे हैं। (बाँकेलाल के कॉमिक्स भी विशालगढ़ में ही अधिक घटित होते हैं क्योंकि यह विक्रम सिंह का राज्य है लेकिन उसकी तुलना उपन्यासों से करना सही नहीं होगा।) विशालगढ़ नामक इस छोटे से कस्बे में बसाये गए कथानक में अक्सर कस्बे की ज़िंदगी नुमाया होती है और कथानक स्मॉल टाउन चार्म लिए होता है।  प्रस्तुत उपन्यास भी लेखक ने विशालगढ़ में बसाया है और यह चार्म भी थोड़ा बहुत इधर देखने को मिलता है।

अगर अपनी बात करूँ तो मुझे अब तक उनके इस शहर में बसाये गए निम्न कथानक के विषय में ही पता है:

ब्लैकमेलर की हत्या, जीने की सजा, धोखाधड़ी, मेरी जान के दुश्मन

हो सकता है कि पाठक साहब के इनसे ज्यादा उपन्यासों के कथानक विशालगढ़ में घटित हुए हों। प्रस्तुत उपन्यास पढ़ते-पढ़ते मेरे मन में बस एक सवाल आया कि क्या विशालगढ़ में घटित होते इन अलग अलग कथानकों के किरदार कभी मिले हैं या फिर किसी एक किरदार ने किसी दूसरे उपन्यास की घटना का जिक्र आपस में किया है? लम्बे हाथ को पढ़ते हुए मुझे इस बात का ध्यान रखना याद नहीं रहा था लेकिन अब आगे से मैं इसका ध्यान रखूँगा। 

अंत में यही कहूँगा कि सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा लिखा गया यह उपन्यास रोचक है। भले ही यह आज से 40 वर्ष पहले लिखा गया हो लेकिन आज भी पाठकों का मनोरंजन करने में सफल होता है। अगर आप रहस्यकथाओं के शौकीन हैं और अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो एक बार पढ़ कर देख सकते हैं।

नोट: ऊपर लेख में राजनगर का जिक्र मैंने किया है। राजनगर के विषय में आप एक रोचक लेख पढ़ना चाहें तो आप जितेंद्र माथुर द्वारा लिखा गया यह लेख भी पढ़ सकते हैं। अगर हिंदी लोकप्रिय लेखन में आपकी रुचि है तो आपको उनका लिखा यह लेख अवश्य पसंद आएगा:

राजनगर : हिंदी जासूसी उपन्यासों के संसार का एक कल्पित किन्तु लोकप्रिय नगर

 

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

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4 Comments on “लम्बे हाथ – सुरेन्द्र मोहन पाठक”

  1. विशालगढ़ में जैसा आपने कहा वैसे तो, अलग-अलग कथानकओ के किरदार शायद कभी नहीं मिले, मगर हां, इंस्पेक्टर सिन्हा, जो कि विशालगढ़ के एक काबिल पुलिस अफसर है, वह मुझे लंबे हाथ के अलावा मेरी जान के दुश्मन में भी देखने को मिले थे।
    मैंने तो उनके विशालगढ़ में बसआए हुए कुछ उपन्यास ही पड़े हैं, शायद 3 या 4।
    , उनमें लंबे हाथ और मेरी जान के दुश्मन में ही इंस्पेक्टर सिन्हा रिपीट हुए थे।

    1. मेरी जान के दुश्मन पढ़ने की कोशिश रहेगी। शायद इसका डेली हंट से प्रकाशित संस्करण मेरे पास होगा।

  2. बहुत अच्छी समीक्षा विकास जी. मेरे लेख का संदर्भ देने हेतु हार्दिक आभार.

    1. पुस्तक पर लिखा लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा सर। आभार। अगर मेरी पोस्ट से कुछ पाठक आपके बेहतरीन लेख तक पहुंचते हैं तो ये मेरे लिए खुशी की बात होगी। आभार।

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