संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 265 | प्रकाशक: धीरज पॉकेट बुक्स | श्रृंखला: जगत सीरीज
पहला वाक्य:
जगत ने टैक्सी ड्राईवर से कहा – ‘अकबरपुर जाना है भाई, नूरजहाँ होटल में।’
कहानी:
सत्यपाल सिंह के पूर्वज कभी अकबरपुर के जागीरदार हुआ करते थे और वह अकबरपुर के राजा कहलाते थे। यही कारण था कि अकबरपुर में सत्यपाल सिंह का काफी नाम और दबदबा था।
जब अचानक एक दिन सत्यपाल सिंह को उसके फार्म हाउस में कत्ल कर दिया गया तो खुफिया विभाग के जासूस जगन और बंदूकसिंह को मामले की तहकीकात के लिए भेजा गया।
पुलिस सत्यपाल सिंह के कातिल का पता नहीं लगा पाई थी और अब कत्ल से पर्दा उठाने की जिम्मेदारी जगन और बंदूक सिंह की थी।
वहीं अंतर्राष्ट्रीय ठग जगत भी इन्हीं दिनों अकबरपुर पहुँचा हुआ था। परिस्थितयाँ ऐसी बन गयी कि वह भी जगन और बंदूक सिंह की तहकीकात में मदद करने लगा
आखिर सत्यपाल सिंह का कत्ल किसने किया था?
सत्यपाल सिंह को क्यों मारा गया था?
क्या जगत, जगन और बंदूकसिंह की तिकड़ी इस मामले को सुलझा पाई? मामले की तह तक पहुँचने के लिए उन्हें किन किन परेशानियों से दो चार होना पड़ा?
जगत – एक अंतर्राष्ट्रीय ठग
जगन और बंदूक सिंह – खुफिया विभाग के जासूस
दीपाली – एक युवती जो कि राह जनी करती थी
शेखर – दीपाली का पति
सत्यपाल सिंह – अकबरपुर रियासत के राजा
जयश्री – सत्यपाल सिंह की रानी
मुनीर – सत्यपाल सिंह के फार्म हाउस में काम करने वाला सबसे वृद्ध नौकर
किशन, राजू, मानो, राजो – सत्यपाल सिंह के फार्म हाउस में काम करने वाले नौकर
रामदास – सत्यपाल सिंह का नौकर
सुमन, काजल, फिरोजा, गुलाब – अकबरपुर की वैश्याएँ
ठाकुर बलराम सिंह – अकबर पुर का एक खानदानी रईस
जगपत,महाकाल, मस्तान – अकबरपुर के गुण्डे
सरिता – एक अध्यापिका जो कि जगपत के मोहल्ले में ही रहती थी
बिरजू चौधरी- एक डकैत
ठाकुर शमशेरसिंह – पुलिस सुप्रीटेंडेंट
मेरे विचार:
हत्यारे की प्रेमिका जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा द्वारा लिखा गया उपन्यास है। वैसे तो उपन्यास के आवरण चित्र पर इसे जगत श्रृंखला का उपन्यास कहा गया है लेकिन इसमें जगत के अलावा जगन और बन्दूकसिंह भी मौजूद हैं और उपन्यास में जिस मामले की तहकीकात होती दिखाई देती है वह मामला इन्हीं दोनों का रहता है।
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हत्यारे की प्रेमिका का कथानक अकबरपुर नामक शहर में बसाया गया है। अकबरपुर एक रियासत रहा है जहाँ खानदानी रईस लोग रहते हैं। वैसे तो यह एक छोटा सा शहर है लेकिन इसकी अपनी संस्कृति है। इस संस्कृति में यहाँ के रईस हैं, राजा रानी हैं, वैश्याएँ हैं, गुण्डे मवाली हैं और लेखक पाठको को अकबरपुर के इन सभी किरदारों से के माध्यम से इस संस्कृति से वाकिफ करवाते हैं।
यह उपन्यास एक रहस्यकथा कहा जा सकता है क्योंकि उपन्यास उपन्यास में जगन और बंदूक सिंह अकबरपुर राजा सत्यपाल सिंह की हत्या का मामला सुलझाने के लिए आते हैं। जगत यूँ तो बिना किसी कारण अकबरपुर में आता है लेकिन जगन और बंदूकसिंह को इस मामले में उलझता देख वह भी इनकी मदद करने लगता है। हत्या का पता लगाने के लिए वह किस तरह तहकीकात करते हैं और किन किन लोगों से मिलकर क्या क्या हथकंडे अपनाते हैं यही सब कुछ पाठक को उपन्यास पढ़ते हुए पता लगता है।
उपन्यास में जगन और बंदूकसिंह जासूसी करते हैं लेकिन वे लोग आम इनसान ही हैं कोई जादूगर नहीं यह बात उपन्यास में कई बार दृष्टिगोचर होती है। अपनी तहकीकात में कई बार वह विफल भी होते हैं। जो संदिग्ध होता है उसके खिलाफ सबूत न मिलने पर वह हाथ भी मलते रह जाते हैं। कई बार उनके अंदाजे गलत भी साबित होते हैं और कई बार उन्हें ऐसा भी लगता है कि यह मामला ठंडे बस्ते में जा सकता है। जगत उनकी मदद करता है लेकिन उसे भी सब कुछ पता नहीं है। यानी इनमें से कोई भी ऐसा जासूस नही है जो करिश्माई ढंग से सब जान जाए और बाद में पाठक को हैरत में डाल दे। ऐसे में उपन्यास में दर्शाई गयी तहकीकात यथार्थ में होने वाली तहकीकातों के ज्यादा नजदीक लगती है। हाँ, अपनी जासूसी के दौरान कई तरह के असामाजिक तत्वों से यह तिकड़ी भिड़ती है और जिस तरह दिमाग लगाकर भिड़ती है वह देखना रोचक रहता है।
उपन्यास में एक बड़ा मोड़ है जो कि आखिर में आता है लेकिन लेखक के बताने से पहले पाठक अंदाजा लगा लेता है कि यह ट्विस्ट क्या होगा।
वैसे उपन्यास का मुख्य प्लाट पॉइंट सत्यपाल सिंह की मृत्यु है जिसका रहस्य जगन और बंदूक सिंह को सुलझाना है लेकिन इस उपन्यास में एक ट्रैक दीपाली का भी है। दीपाली की कहानी में एंट्री शुरुआत में ही हो जाती है। वह अकबरपुर और सलीमपुर के बीच की सुनसान सड़क पर राहजनी करती है। उसका टकराव जगत से शुरुआत में ही हो जाता है और फिर इनके बीच एक रिश्ता सा बन जाता है। वह कौन है और क्यों यह सब कर रही है यह पाठक को कहानी जैसे जैसे आगे बढती है इससे पता लगता रहता है।
ओम प्रकाश शर्मा
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
मैंने जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा जी के कम ही उपन्यास पढ़े हैं लेकिन चाहे वे कम रोचक रहे हों, होते मौलिक ही थे, विदेशी उपन्यासों की नक़ल नहीं । आपकी समीक्षा अच्छी है विकास जी । अकबरपुर उत्तर प्रदेश में अयोध्या के निकट का एक औद्योगिक कस्बा है जहाँ मैं अगस्त 2007 में अपनी नौकरी के चलते दौरे पर गया था (दिल्ली से कैफ़ियत एक्सप्रेस पकड़ी थी) । छोटा रेलवे स्टेशन है ग्रामीण क्षेत्र का ।
वाह! अकबरपुर के विषय में जानकर अच्छा लगा। जनप्रिय लेखक के उपन्यास थोड़े धीमे जरूर होते हैं लेकिन मुझे भाते है। विशेषकर उनके किरदार। हिंदी में मौलिक उपन्यास लिखना बड़ी बात है क्योंकि ज्यादातर लेखकों इधर भारतीयकरण ही किया है। आभार।
अच्छी समीक्षा।
जी आभार….
जबर्दस्त रीव्यू विकास भाई। दिल खुश हो गया पढ़कर। रियलिटी ही तो जनप्रिय जी के उपन्यासों की खासियत है।
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के उपन्यासों का यही तो मजा रहता है। ऊपर लिखा चाहे सिर्फ जगत या राजेश सीरीज हो, उपन्यास में किसी भी हीरो की सरप्राइज एंट्री हो सकती है। उनके कई उपन्यासों में जगत, जगन, बन्दूकसिंह की तिकड़ी ने खूब मस्ती की है। 'ऑपरेशन कालभैरव' भी पढ़ियेगा। इसमें एक अपराधी को गच्चा देने के लिए जगत, जगन, बन्दूकसिंह नाटक करते हैं, जिसमें उस अपराधी के सामने जगत और जगन एक-दूसरे से अनजान होने का नाटक करते हुए एक-दूसरे को धमकाते हैं, वहां बहुत मजा आता है क्योंकि जगन, बन्दूकसिंह दोनों जगत की बहुत इज्जत करते हैं। जगत को कुछ भी गलत बोलने की वे सपने में भी सोच सकते।लेकिन अपराधी को जाल में फंसाने जगन जगत से ऐसे बात करता है, जैसे किसी अपराधी या गुंडे-बदमाश से बात कर रहा हो ।
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के एक से एक शानदार उपन्यास हैं।
एक उपन्यास में बहुत मजा आता है। बन्दूकसिंह कि बहुत तेज कार चलाने की आदत है। लेकिन एक बार ये लोग किसी केस के सिलसिले में दो कारों से कहीं जा रहे थे। एक कार जगत चला रहा था और एक बन्दूकसिंह। बेहद कुशल और तेजरफ्तार में कार चलाने का आदि होने के बाद भी रास्ते में एक बार भी बन्दूकसिंह जगत से आगे कार नहीं निकाल पाता है।
जगत सीरीज के और उपन्यास पढ़कर आप जान जाएंगें की जगन, बन्दूकसिंह जगत का इतना सम्मान क्यों करते हैं। बल्कि राजेश, जो जगन, बन्दूकसिंह से भी बड़े जासूस हैं, वो भी जगत की बहुत इज्जत करते हैं और जगत भी उन्हें बड़ा भाई मानता है। जगन, बंदूकसिंह तो जगत के सामने बच्चे हैं। अंतरराष्ट्रीय ठग होने के बावजूद राजेश के घर में एक कमरा जगत के लिए रहता है, जिसका एक दरवाजा बाहर खुलता है और उसकी चाभी जगत के पास भी रहती है। जगत जब भी दिल्ली आता है तो मौका मिलने पर राजेश के घर जरूर जाता है। ज्यादा रात हो रही हो तो बिना राजेश और तारा भाभी को डिस्टर्ब किए उसी कमरे में ठहर जाता है।
चूंकि जगत के प्रेम सम्बन्धों के किस्से भी मशहूर हैं इसलिए अगर उसके साथ कोई महिला मित्र होती है तो वो राजेश, तारा के यहां नहीं जाता। बाकी बाद में इस बात के लिए उसे राजेश, तारा से बहुत डांट खानी पड़ती है कि दिल्ली आए और उनसे नहीं मिले। घर पर रुकने की जगह बाहर होटल में रुके।
बस राजेश के साथी जासूस जयन्त से जगत का थोड़ा छत्तीस का आंकड़ा चलता है और दोनों एक-दूसरे की खूब टांग खींचते हैं। जयन्त जगत को मिस्टर ठग कहता है और जगत जयन्त को मिस्टर जासूस। इन दोनों की कैमिस्ट्री भी गजब की है।
रोचक जानकारी दी अपने ब्रजेश भाई। इनके और उपन्यास पढ़ने की कोशिश रहेगी।