संस्करण विवरण
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 68 | प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास | अनुवाद: आरती स्मित
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
पंद्रह वर्षीय बूट्स जब दिल्ली से कोलकाता अपनी मौसी के घर छुट्टियाँ बिताने मम्मी प्रीति के साथ जा रहा था।
जब वह एयरपोर्ट पहुँचे थे तब उसे इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उसकी एक गलती कैसे उसके आगे के दिनों को रोमांचक बना देगी।
आखिर बूट्स ने क्या गलती थी?
आखिर क्या था खोए मोबाइलों का रहस्य?
बूट्स की इस रहस्य में क्या भूमिका रहने वाली थी?
मुख्य किरदार
बुद्धा उर्फ बूट्स – एक पंद्रह वर्षीय किशोर
प्रीति – बूट्स की मम्मी
श्रीला – बूट्स की मौसी और प्रीति की बड़ी बहन
संदीप – बूट्स के मौसा जी
आलिया – बूट्स की मौसेरी बहन जो उससे एक साल छोटी थी
विकी – बूट्स का मौसेरा भाई जो कि 18 वर्ष का था
रिंकी – आलिया की सहेली
राजा – आलिया का पड़ोसी
मंगलराम – राजा का रसोइया
विजय – रिंकी के पापा का ड्राइवर
रोमेन – पुलिस कमीश्नर
मि. मिश्रा – सिलीगुड़ी के पुलिस अफसर
मेरे विचार
‘खोए मोबाइल का रहस्य’ तानुका भौमिक एंडोव (Tanuka Bhaumik Enodw) का लिखा बाल उपन्यास है। यह उपन्यास उनके अंग्रेजी उपन्यास द मिस्ट्री ऑफ मिसिंग मोबाइल फोन्स (The Mystery of Missing Mobile Phones) का हिंदी अनुवाद है। अनुवाद डॉक्टर आरती स्मित द्वारा किया गया है। उपन्यास राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा प्रकाशित है।
उपन्यास की मुख्य कहानी बंगाल में घटित होती है। बूट्स एक पंद्रह वर्षीय किशोर है जो कि अपनी मां प्रीती के साथ अपनी मौसी के यहाँ कोलकाता जा रहा होता है। दिल्ली एयरपोर्ट में उसका मोबाइल सिक्योरिटी चेकिंग के दौरान बदल जाता है और इस कारण उसे कुछ ऐसा पता चल जाता है जो कि मोबाइल और मोबाइल के मालिक की प्रति उत्सुकता जगा देता है। उसे लगने लगता है कि जरूर दाल में कुछ काला है और फिर जब मोबाइल धारक उसी की फ्लाइट में दिखता है तो उससे बूट्स इस मामले के विषय में अधिक जानने की कोशिश करता है। इस कोशिश का क्या नतीजा निकलता है। इस कोशिश के कारण कोलकाता में उसके साथ क्या होता है? जानकारी पाने पर वह क्या करते है? खोए मोबाइलों का रहस्य क्या रहता है? इन सब प्रश्नों के उत्तर उपन्यास में प्राप्त होते हैं।
उपन्यास का कथानक छोटे छोटे सात अध्यायों में विभाजित है। भाषा सरल है और पात्र सजीव हैं। कहानी में चीजें इस तरह घटित होती हैं कि कहानी में रोचकता अंत तक बनी रहती हैं।
पात्रों की बात करूँ तो उपन्यास के केंद्र में बूट्स नामक 15 वर्षीय किशोर है। वह एक जिज्ञासु प्रवृत्ति का बालक है जो कि बात की तह तक जाने में विश्वास करता है। इसके लिए वह खतरे भी उठा सकता है। वह तेज दिमाग भी है और यह उपन्यास के अंत में एक जरूरी रहस्य तक पहुँचता है इससे पता लगता है।
उपन्यास में उसकी मुख्य साथी उसकी मौसरे बहन आलिया है जिसके साथ उसके दोस्ती जैसे रिश्ते हैं। आलिया रहस्य तक पहुँचने में न केवल उसकी मदद करती है बल्कि जब लगता है वह असफल होंगे तो उसे ढाढ़स भी बँधाती रहती है।
उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप ही हैं।
वैसे तो उपन्यास रोचक है लेकिन इसके कथानक में एक कमी ऐसी है जो कि सभी चीजों पर भारी पड़ती है और उपन्यास को औसत बना देती है।
रहस्यकथाओ में व्यक्तिगत तौर पर मुझे संयोग इतने पसंद नहीं आते हैं। अगर किसी रहस्यकथा में संयोग अधिक हो तो ऐसा लगता है जैसे लेखक ने सरल मार्ग चुना है। ऐसा ही इस उपन्यास के लिए कहा जाता है। उपन्यास में संयोगों की मात्रा बहुत अधिक है। जब भी पात्र ऐसी जगह फँसते हैं जहाँ से आगे का रास्ता कठिन दिखता है तभी संयोग से उनके साथ ऐसी चीज हो जाती है जो कि आगे का मार्ग प्रशस्त कर देती है। अगर उपन्यास को संयोगों की श्रृंखला कहा जाए तो गलत न होगा।
इस कारण ऐसा लगने लगता है जैसे लेखिका ने हमारे नायकों के लिए चीजें थोड़ा आसान बना दी हैं। हाँ, उपन्यास में भाग दौड़ करते दिखते जरूर हैं लेकिन जरूरी चीजें उनके लिए आसान रहती हैं। फिर वो खलनायक तक पहुँचना हो, रहस्यमय मामले का पता लगना हो। अगर थोड़ा किरदारों को दिमाग लगाना पड़ता और कुछ खतरों का सामाना करते हुए यहाँ तक पहुँचना होता तो शायद कथानक और रोमांचक और बेहतर बन सकता था। यहाँ ये भी बताना चाहूँगा कि आखिर में एक बूट्स जिस तरह से दिमाग लगाकर रहस्य का पता लगाता है वो अच्छा बन पड़ा है।
उपन्यास के विषय में मैं पहले ही बता चुका हूँ कि यह अंग्रेजी उपन्यास द मिस्ट्री ऑफ लॉस्ट मोबाइल फोन्स का हिंदी अनुवाद है। लेकिन उपन्यास का अनुवाद ऐसा है जो कि कथानक के साथ न्याय नहीं कर पाता है। हर भाषा की अपनी प्रकृति होती है, अपना लहजा होता है। बात को कहने का सलीका होता है। एक ही बात हिंदी और अंग्रेजी में अलग अलग तरह से कही जायेगी। पर यहां ऐसा लगता है जैसे अनुवादिका ने अनुवाद शाब्दिक कर दिया है। वाक्य विन्यास हो, बिंब हों या बात कहने का लहजा वो ऐसा है जिसमें अंग्रेजी की काफी असर दिखता है। ऐसा लगता है बस शब्द अंग्रेजी से हिंदी कर दिए गए हों। अनुवाद बेहतर होता तो उपन्यास पढ़ने का अनुभव और अच्छा हो सकता था।
उपन्यास का शीर्षक भी मुझे लगता है खोए मोबाइल का रहस्य की जगह खोए मोबाइलों का रहस्य या खोए मोबाइल फोनों का रहस्य होता तो बेहतर होता।
अंत में यही कहूँगा कि ‘खोए मोबाइल का रहस्य’ एक ऐसा उपन्यास है जिसे एक बार पढ़ सकते हैं। अगर कथानक संयोगों पर इतना निर्भर न करता और किरदारों को थोड़ा और मेहनत कारवाई गई होती तो उपन्यास और अधिक रोमांचक बन सकता था। अब इस कारण यह औसत बनकर रह जाता है।
पुस्तक लिंक: अमेज़न
यह भी पढ़ें
- सुरेखा पाणंदीकर (Surekha Panandikar) के बाल उपन्यास तलाश (Talash) पर टिप्पणी
- एनिड ब्लाइटन (Enid Blyton) के सीक्रेट सेवन शृंखला के उपन्यास गुड वर्क, सीक्रेट सेवन (Good Work, Secret Seven) पर टिप्पणी
- सुमन बाजपेयी (Suman Bajpeyi) के बाल उपन्यास मंदिर का रहस्य (Mandir Ka Rahasya) की समीक्षा
- डॉक्टर मंजरी शुक्ला (Dr Manjari Shukla) के बाल कथा संग्रह जादुई चश्में (Jadui Chashme) की समीक्षा
- सुरेन्द्र मोहन पाठक (Surender Mohan Pathak) के बाल उपन्यास कुबड़ी बुढ़िया की हवेली (Kubadi Budhiya Ki Haweli) की समीक्षा