पुस्तक अंश: बेताल और शहजादी | सुरेन्द्र मोहन पाठक

‘बेताल और शहज़ादी’  लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक (Surender Mohan Pathak) द्वारा लिखा हुआ दूसरा बाल उपन्यास है। यह उपन्यास पहली बार 1972 में प्रकाशित हुआ था। उपन्यास अनिल की कहानी कहता है। शहजादी शबनम जब अपने राज्य को छोड़कर भाग जाती है तो उसका प्रेमी उसकी तलाश में निकल पड़ता है। इस यात्रा में उसके साथ क्या होता है यही इस किशोर उपन्यास की कहानी बनती है। 

आज एक बुक जर्नल आपके लिए बेताल और शहजादी एक छोटा सा अंश लेकर प्रस्तुत हुआ है। उम्मीद है यह अंश आपको पसंद आएगा। 

*****

पुस्तक अंश: बेताल और शहजादी | सुरेन्द्र मोहन पाठक | Book Excerpt: Surender Mohan Pathak - Betal Aur Shehzadi

बेताल ने अपना शक्तिशाली कन्धा बन्द दरवाजे के साथ भिड़ाया और जोर से भीतर की ओर धक्का दिया।

दरवाजा धीरे से चरमराया।

बेताल ने फिर धक्का दिया।

तीन चार धक्कों के बाद दरवाजे का एक पल्ला चौखट से उखड़ गया।

बेताल भीतर प्रविष्ट हुआ।

अनिल ने भी झिझकते हुए भीतर कदम रखा। भीतर दुर्गन्ध बहुत तेज थी।

अनिल ने अपनी नाक दबा ली।

भीतर एक तेल का दिया जल रहा था। दिये का मद्धिम प्रकाश कमरे में फैला हुआ था।

कमरे के एक कोने में दीवार के साथ लगी एक गठरी सी पड़ी थी।

बेताल ने दिया अपने हाथ में ले लिया और उसे अपने सामने किये उस गठरी की ओर बढ़ा।

गठरी के समीप पहुँचकर बेताल ने दिया ऊँचा किया। दिये का प्रकाश सीधा उस गठरी पर पड़ा।

वह गठरी नहीं थी। वह एक वृद्ध व्यक्ति का शरीर था। लगता था कि वृद्ध दीवार के साथ लगा बैठा-बैठा ही मर गया था। लाश को कीड़े खा रहे थे। जिससे लगता था कि उसे मरे काफी दिन हो गये थे! लाश में से दुर्गन्ध फूट रही थी।

“यह करीबो है।” – बेताल धीरे से बोला।

“लेकिन…” – अनिल बड़ी मुश्किल से उबकाई रोकता हुआ बोला – “शहजादी शबनम कहाँ है?”

“बगल में एक और दरवाजा है” – बेताल शान्ति से बोला – “उसे खोलकर भीतर देखो।”

अनिल झिझकता हुआ बगल के दरवाजे की ओर बढ़ा। उसने दरवाजे को धक्का दिया। दरवाजा बन्द नहीं था। वह भारी चरचराहट की आवाज करता हुआ खुल गया। अनिल ने डरते हुए कदम रखा।

भीतर वाला कमरा बाहरी कमरे से छोटा था। उसमें भी एक दिया जल रहा था।

भीतर उसे जो दृश्य दिखाई दिया, उससे उसकी आँखें फट पड़ीं। उसके मुँह से एक तेज आवाज निकली और वह यूँ बगोले की तरह बाहर की ओर भागा जैसे उसने भूत देख लिया हो।

बेताल ने उसे बीच रास्ते में पकड़ लिया।

“क्या हुआ?” – बेताल ने पूछा।

“भ… भू…भूत…” – अनिल आतंकित स्वर में बोला।

“होश में आओ।” – बेताल ने उसे झिंझोड़ा।

अनिल के चेहरे पर जैसे राख पुती हुई थी। वह यूँ काँप रहा जैसे उसे जूड़ी का बुखार चढ़ गया हो।

बेताल ने दीपक यथास्थान रख दिया और मजबूती से अनिल का हाथ थामे छोटे कमरे की ओर बढ़ा।

अनिल बेताल की पकड़ से स्वयं को मुक्त न कर सका, लेकिन भीतर का दृश्य दुबारा देखने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। उसने आँखें बन्द कर लीं।

भीतर कमरे में एक अति सुन्दर युवती अधर में लटकी हुई थी। वह कमरे के फर्श से छ: फुट ऊँची फर्श से समानान्तर यूँ लेटी हुई थी, जैसे हवा में नहीं बिस्तर पर लेटी हुई हो। वह एकदम सफेद परिधान पहने हुए थी और उसके सुनहरे बाल नीचे लटक रहे थे।

“आँखें खोलो।” – बेताल ने अनिल को झिंझोड़ा।

अनिल ने डरते-डरते आँखें खोलीं।

“यह शहजादी शबनम है?” – बेताल ने पूछा।

अनिल के मुँह से बोल नहीं फूटा। उसकी घिग्घी बन्धी हुई थी। उसने जल्दी से स्वीकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया।

बेताल अनिल को द्वार पर ही खड़ा छोड़कर आगे बढ़ा। उसने हवा में लटकी हुई शबनम के समीप जाकर उसका शरीर छुआ।

शबनम की साँस बड़े व्यवस्थित ढंग से चल रही थी और वह बिलकुल सोई हुई मालूम हो रही थी।

बेताल ने उसके शरीर के नीचे हवा में हाथ फिराया। कहीं कोई सहारा नहीं था। शबनम बिना किसी आधार के हवा में तैर रही थी।

बेताल ने उसे जोर से झिंझोड़ा।

शबनम की नींद नहीं टूटी।

बेताल ने उसकी बाँहें पकड़ीं और सीधा करके जमीन पर उसके पाँव टिका दिये।

कुछ क्षण शबनम जमीन पर खड़ी रही फिर वह गैस भरे गुब्बारे की तरह जमीन से ऊपर उठने लगी।

*****

पुस्तक विवरण:

पुस्तक: बेताल और शहज़ादी | लेखक: सुरेन्द्र मोहन पाठक | प्रकाशक: साहित्य विमर्श 

पुस्तक लिंक: अमेज़न | साहित्य विमर्श 

नोट: एक बुक जर्नल में प्रकाशित इस छोटे से अंश का मकसद केवल पुस्तक के प्रति उत्सुकता जागृत करना है। आप भी अपनी पुस्तकों के ऐसे रोचक अंश अगर इस पटल से पाठकों के साथ साझा करना चाहें तो वह अंश contactekbookjournal@gmail.com पर उसे हमें ई-मेल कर सकते हैं।

यह भी पढ़ें


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About एक बुक जर्नल

एक बुक जर्नल साहित्य को समर्पित एक वेब पत्रिका है जिसका मकसद साहित्य की सभी विधाओं की रचनाओं का बिना किसी भेद भाव के प्रोत्साहन करना है। यह प्रोत्साहन उनके ऊपर पाठकीय टिप्पणी, उनकी जानकारी इत्यादि साझा कर किया जाता है। आप भी अपने लेख हमें भेज कर इसमें सहयोग दे सकते हैं।

View all posts by एक बुक जर्नल →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *