साक्षात्कार: ‘देवदूत’ और ‘जाल’ शृंखला के लेखक हरीश शर्मा से एक छोटी सी बातचीत

 

साक्षात्कार: 'देवदूत' और 'जाल' शृंखला के लेखक हरीश शर्मा से एक छोटी सी बातचीत

हरीश शर्मा मुंबई में रहते हैं और वहीं एक स्कूल में एक लैब अटेंडेंट की पोस्ट पर कार्यरत हैं। वह लेखक भी हैं।  गज़लों,कविताओं से अपनी लेखनी की शुरुआत कर वह अब उपन्यास लेखन की तरफ मुड़ गए हैं। देवदूत और जाल उनकी दो शृंखलाएँ हैं जिन्हें पाठकों का भरपूर प्यार प्राप्त हुआ है। 

हाल ही में एक बुक जर्नल ने हरीश शर्मा से उनके लेखन, लेखन के उनके सफर और उनकी रचनाओं पर बात की।आप भी पढ़िए। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी। 
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प्र: नमस्कार हरीश जी, ‘एक बुक जर्नल’ में आपका स्वागत है। कृपया पाठकों को अपने विषय में संक्षिप्त रूप से बताइए। आपका जन्म कहाँ हुआ, शिक्षा दीक्षा कहाँ हुई, फिलहाल कहाँ कार्यरत हैं?

उ: ‘एक बुक जर्नल’ के पाठकों को नमस्कार, साथ ही ‘एक बुक जर्नल’ को भविष्य के लिए शुभकामनाएँ।

 मेरा नाम हरीश शर्मा है। मेरा जन्म वर्तमान में उत्तर प्रदेश के अयोध्या में हुआ था। मेरी शुरुआती कक्षा चार तक की शिक्षा गाँव के ही प्राथमिक स्कूल में ही हुई थी और उसके बाद की शिक्षा मुंबई में हुई।  बी एस सी. करने के पश्चात मैं वर्तमान में मुंबई में ही एक स्कूल में लैब अटेंडेंट के पोस्ट पर कार्यरत हूँ।

प्र: साहित्य के प्रति आपका अनुराग कैसे जागृत हुआ? क्या बचपन से ही घर में साहित्य का माहौल था? क्या घर में पुस्तकें पढ़ने के लिए आती थीं? अगर हाँ तो किस तरह की किताबे आपके यहाँ आती थी और आपको किस तरह की पुस्तकें पढ़ना पसंद था?

उ: घर में तो किसी को ऐसे तो पढ़ने का शौक नहीं था पर सुना था कि कभी मेरी माँ को कहानियाँ पढ़ने का शौक रहा था।  बचपन से ही मुझे चित्रकला और संगीत पसंद थे। 

साहित्य मेरे लिए पढ़ना शुरू में कठिन था। क्योंकि मेरी रूचि भी नहीं थी और मुझे साहित्य के विषय कुछ पता भी नहीं था। पर मुंबई आने के बाद रेडियो और सिनेमा से अवगत हुआ। तो उस समय मुझे गीत और ग़ज़ल अच्छे लगते थे। 

इसके उपरांत जब गाँव जाना होता था तो मेरे सबसे छोटे चाचा जी को पढ़ने का शौक था तो शायरी और ग़ज़ल की किताबें पढ़ने का अवसर वहाँ मुझे प्राप्त होता था। 

प्र: लेखन की शुरुआत कैसी हुई? आपको ऐसा कब लगा कि आपको लिखना चाहिए? 

उ: लेखन की शुरुआत तो 1996 के बाद ही हो गई थी। 

गाँव में चाचा जी के पास जाता था तो उधर किताबें पढ़ने को मिलती थी तो उन्हें पढ़कर ही लिखने का मन भी होने लगा पर मेरा पूरा झुकाव गीत और ग़ज़ल पर था। आगे चलकर मैंने 1996 में एक उपन्यास लिखा ‘अधूरे रास्ते’ जो अभी भी डायरी की शक्ल में मेरे पास पड़ा हुआ है।

मैंने फिल्मों में भी भाग्य आजमाने की कोशिश की पर पूर्ण रूपेण नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि जब उधर आना-जाना शुरू किया तो फ़िल्मी कल्चर मुझे पसंद नहीं आया और 2003 के बाद मैंने सब कुछ छोड़ दिया। फिर समय आया 2018 एन्ड का। एक घटना हुई, स्कूल में कुछ बच्चों ने एक छोटा सा कॉमेडी नाटक किया और जिसमें यह दर्शाने की कोशिश की कि हमारे जैसे लोग कुछ होते ही नहीं। यहाँ  हमारे जैसे से मतलब है थोड़े पुराने प्रकार के जो आज के युवाओं की नजर में उनके जैसे आधुनिक नहीं दिखाई देते हैं। मतलब जो थोड़ी गंभीर मुद्रा में रहते है, डांस नहीं कर सकते इत्यादि।  उनका इरादा गलत नहीं था।उनका इरादा गलत नहीं था। पर बात मुझे दिल पर लगी, और वहीं मैंने ठान लिया की मैं सबको जबाब दूँगा, परन्तु मौन रहकर। और फिर मैंने ‘देवदूत – द गॉड्स क्रिएशन’ लिखी और फिर सफर आज तक जारी है।

प्र: क्या आपको अपनी पहली पद्य रचना और पहली लिखी गद्य रचना याद है? वो रचनाएँ कौन सी थीं? क्या पाठकों को इसके विषय में बताना चाहेंगे?

उ: मेरी पहली पद्य रचना तो याद नहीं पर एक मैंने पुस्तक ‘मेरे अलफाज हो तुम’ के रूप में एक संग्रह जरूर प्रकाशित किया है। 

 मेरी पहली गद्य रचना जैसे कि  ऊपर लिखा ‘अधूरे रास्तें’ है जो आज भी डायरी की शल्क में मेरे पास है।

 

प्र: अब तो आपके उपन्यास प्रकाशित हो रहे हैं? तो फिर क्या पाठकों को कभी ‘अधूरे रास्ते’ पढ़ने को मिलेगा?

उ: अधूरे रास्ते शायद कभी पुस्तक की शक्ल में न आ सके। कारण कहानी में 80 और 90 दशक का चित्रण है। जो शायद आज के समय के हिसाब से नहीं ढल सकेगी।

प्र: आपको इसे लाना चाहिए। फिर चाहे थोड़ा अपडेट करके लाएँ और किंडल फॉर्म मे ही लाएँ। लोगों को आज भी ऐसी कहानियाँ पसंद आती हैं। अच्छा ये बताइए कि आपका लिखने  का रूटीन कैसा होता है? आप दिन भर में कितना वक्त लेखन को देते हैं? क्या कोई तय समय सीमा है?

उ: लेखनी के लिए मेरी कोई समय सीमा नहीं है, जब समय मिलता है लिख लेता हूँ। बस मूड होना चाहिए। 

प्र: क्या आप अपने लेखन के लिए शोध भी करते हैं? यह प्रक्रिया कैसी होती है? अब तक आपको अपनी किस किताब के लिए सबसे अधिक शोध करना पड़ा और उसमें क्या क्या परेशानी आयी?

उ: लेखन का शोध लेखक द्वारा लिखी जा रही पुस्तक के विषय पर निर्भर करता है। मैं देवदूत का पार्ट 1 जब लिख रहा था, तो मैंने एक नाम ‘अवनिंद्रा’ नेट पर सर्च के दौरान देखा था  जो बहुत पसंद आया था। इसका अर्थ होता है ‘धरती का राजा’। मुझे कोई ऐसा नाम चाहिए था जो लोगों पर अपना असर डाले। क्योंकि विलेन हमेशा हीरो से दस गुना ताकतवर होना चाहिए। तभी वह हीरो को टक्कर दे सकता है। फिल्मों में भी अगर आप देखेंगे तो बहुत से विलेन के नाम आज भी फिल्मों के पहले आते है। उदाहरण के लिए, गब्बर सिंह, शोले, मोगैंबो, शाकाल, इसी तरह मुझे कोई हटकर नाम चाहिए था। मेरी तलाश अवनिंद्रा, अष्टक, जिब्राला, पर समाप्त हुई। ऐसे ही देवदूत 2 में मुझे बहुत अधिक शोध करना पड़ा। क्योंकि इसमें पुराणों में वर्णित 14 लोकों के विषय में छोटा सा अंश था। इस अंश के लिए मुझे इन लोकों की जानकारी इकट्ठा करनी पड़ी थी।  

 इनके अतिरिक्त मृत्यु का वर्ष और अँधकार का युग मेरी ऐसी पुस्तकें हैं जो कि 100% जो शोध पर ही निर्भर थी। मृत्यु का वर्ष, पैंडेमिक (कोरोना महामारी) के समय ही लिखा था तो खबरें न्यूज से मिल जा रही थी। थोड़ी सर्च जैसे इसके पहले कब-कब पैंडेमिक आया था, कहाँ से आया था और उसका असर कहाँ  और कैसा हुआ था, यह सब मुझे नेट पर सर्च करना पड़ा था। 

‘अँधकार का युग’ तो पूरी तरह से विकिपीडिया, और बहुत से देशी विदेशी इतिहासकारों और अन्य वेबसाइट्स के सहयोग से लिखा गया है। इनका जिक्र और क्रेडिट भी पुस्तक में मैंने दिया है। 

शोध का सबसे आसान तरीका अब इंटरनेट ही है पर मृत्यु का वर्ष में मैंने देश और विदेश के कई मित्रों का सहयोग लिया था। 

जैसे.. मैं न्यूज के माध्यम से तो यह जान सकता था कि अमेरिका में क्या हो रहा है। परंतु असली जानकारी वहाँ का कोई निवासी ही दे सकता था। इसलिए इस पुस्तक में दूसरे देशों के मित्रों के भी रियल टाइम लेख आपको उनके नाम और फोटो के साथ मिलेंगे।

शोध लेखन का एक महत्वपूर्ण अंश है जो निरंतर लेखन और लेखक को गति प्रदान करता है। 

प्र: आपने दो शृंखलाएँ लिखी हैं। एक देवदूत और एक जाल। दोनों ही अलग तरह की शृंखलाएँ हैं। कुछ इन शृंखलाओं के विषय में बताइए?

उ: देवदूत जो है वो मेरे दिल के बहुत करीब है। मैं पहले उसे भी एक जासूसी कहानी की ही तरह लिख रहा था। तीन अध्याय तक आप यह महसूस कर सकते है पर बाद में वह मिथकों की ओर मुड़ गई। कैसे नहीं जानता, शायद इसके पीछे ईश्वर की इच्छा हो। 

देवदूत की कहानी शुरू होती है, आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व, यानी महाभारत के युद्ध के बाद। जब देवताओं को लगता है कि कलयुग में अधर्म इतना बढ़ जायेगा कि वेद और और अन्य धर्म ग्रंथों को सुरक्षित रख पाना असंभव हो जायेगा।तो इसके लिए देवता एक नई सृष्टि का निर्माण करते है। जो सृष्टि मंगल ग्रह पर बसाई गई। और पृथ्वी लोक की कुछ पुण्य आत्माओं को मंगल ग्रह पर बसा लिया गया।  मंगल का राजा नरसिंह को बनाया जाता  है। इसके साथ ही  कुछ रक्षकों को भी देवता मंगल ग्रह पर भेजते हैं जिसमें से देवदूत भी एक था। परंतु अब कलियुग की शुरुआत हो चुकी थी तो शुक्राचार्य, जिन्हें देवताओं का शत्रु कहा जाता है,  को ज्ञात था कि कलियुग में कोई देवता पृथ्वी की सुरक्षा के लिए नहीं आ सकता। और यही उन्हें  देवताओं से अपना प्रतिशोध लेने का सबसे सही अवसर लगा। उन्होंने एक साजिश रची। पृथ्वी पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए। यह साजिश क्या थी? इसके लिए शुक्राचार्य को क्या करना पड़ा और देवदूत का इस साजिश को रोकने में क्या भूमिका था यही सब शृंखला का कथानक बनता है। 

यह दो भागों में बँटी हुई शृंखला लेकिन  असल में देवदूत का फर्स्ट पार्ट जो है सही मायने में सेकंड पार्ट है। यहीं इस कहानी की खूबसूरती भी है। फर्स्ट पार्ट वर्तमान में शुरू होकर भविष्य में जाता है। और पुनः वर्तमान में आ जाता है।

जाल एक सस्पेंस थ्रिलर और मिस्ट्री  है जिसमें गुरुनाथ बेनेगल और चाणक्य राजगुरु मुख्य किरदार हैं। यह लोग किसी के पीछे है और उन्हें उसके होने का सिग्नल एक सेफ हाउस में मिलता है। पर जब वे सेफ हाउस में पहुँचते  हैं। इस सेफ हाउस में कौन कौन है और वहाँ क्या होता है यही जाल की कहानी बनती है। इस शृंखला में पाँच उपन्यास हैं जो कि आपस में जुड़े हुए हैं।  सभी मिस्ट्री उपन्यास हैं और इनमें हमारे नायकों को आपराधिक केस सुलझाने पड़ते हैं। इन अपराधों के पीछे कौन हैं यह जानना उनका मकसद रहता है। 

जाल, जब लिखना शुरू किया तब मेरे मन में ये नहीं था कि उसकी शृंखला बनेगी लेकिन फिर कैसे एक के बाद दो, फिर तीन, चार, और फिर पाँच तक पहुँच गई पता ही नहीं चला। 

मैं अपनी पुस्तक के विषय के साथ ही उनके किरदारों के नाम भी रोचक रखने की कोशिश करता हूं। जैसे देवदूत में, देवदूत, अवनिंद्रा, त्रिकाला, त्रिपुण्ड, अष्टक, जिब्राला, नरसिंह, त्रिनभ, कपाली, राहू, केतु, तमस, एकलव्य इत्यादि।  

जाल में, गुरुनाथ बेनेगल, और चाणक्य राजगुरु मुख्य किरदार हैं  और दूसरे भी बहुत से है।

प्र: आप अपनी पुस्तकों के लिए आप विषय किस प्रकार चुनते हैं? क्या कोई घटना होती है जिससे प्रभावित होते हैं, या कोई विचार कौंधता है मन में? मसलन आपके मन में देवदूत और जाल लिखने का ख्याल कैसे आया?

उ: घटनाएँ और विचार तो आपको प्रभावित करते ही हैं। एक छोटी सी चिंगारी आग लगाने के लिए बहुत होती है। पर सच कहूँ तो मैं कुछ नहीं करता सब अपने आप होता रहता है। ऐसा लगता है कि विधि का विधान है। पुस्तक लिखते समय आपका पहले का सोचा हुआ विषय बदलता रहता है। अंत में कुछ नया और अच्छा ही सामने आता है जो शायद हमारे सोचे हुए से अच्छा होता है। 

प्र: जाल में आप लोगों को रहस्यकथाएँ दे रहे हैं। एक रहस्यकथा लिखना खासा कठिन होता है। आप इसके लिए मापदंड क्या निर्धारित करते हैं? आपके नजर में एक रहस्यकथा क्या है और आपको इसे लिखने में क्या क्या परेशानी आती हैं? 

उ: जाल के अलावा भी बहुत सी कहानियाँ दिमाग में चलती है। पर एक रहस्यकथा का लेखन सबसे आसान लगता है। कारण! आप 90% लेखन में यह जानते है कि कहानी आपको कहाँ तक ले जानी है जो पढ़ने वाला नहीं जानता। और यहीं सबसे पड़ा प्लस पॉइंट होता है। एक कत्ल में चार लोगों को फँसा दो और पाँचवे को कातिल दिखा दो। पर कारण और कथानक अच्छा होना चाहिए। मुझे लगता है जासूसी उपन्यास सबसे अच्छा वहीं होता है जिसमें एक्शन कम हो, और सस्पेंस अधिक!

प्र: आपकी एक पुस्तक अँधकार का युग बी सी टू ए डी है? कुछ इसके विषय में बताइए?

उ: अंधकार का युग, पुस्तक ऐतिहासिक पुस्तकों दर्ज सबसे खूँखार  हत्यारों के ऊपर है। जिसमें अंग्रेज और मुगल भी आते है। भारत पाकिस्तान का बँटवारा भी हैऔर हिटलर भी है। जरूरी नहीं की इन्होंने बस नुकसान ही किया है। कुछ ने अपने देश के लिए अच्छा भी किया है। जैसे स्टालिन ने देश में पूंजीवाद को बढ़ाया, और रूस को हिटलर से बचाया। माओ ने चीन के लिए अच्छा भी किया है इत्यादि। इस पुस्तक में इनके दोनों पहलुओं को दिखाया गया हैं।

प्र: अच्छा, कहते हैं इतिहास में कुछ भी निष्पक्ष नहीं होता। ‘अँधकार का युग में आप ऐतिहासिक बातों को लिख रहे हैं। इसमें क्या आपने निष्पक्ष होने की कोशिश की है? क्या आप इसमें सफल हो पाएँ हैं?

उ: मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जिसे ईश्वर भी संतुष्ट नहीं कर पाए। राम और कृष्ण भी नहीं। आप कितनी भी कोशिश कर ले, पर सभी को संतुष्ट करना असंभव है। बारिश किसान के लिए खुशियाँ लेकर आती है पर वहीं जब अधिक हो जाए तो खुशियाँ मना रहा किसान भगवान को कोसने लगता है। तो सभी घटनाओं का परिणाम सही और गलत दोनों तरह का होता है। मेरा भी यह मानना है और मैंने अपनी पुस्तक में दोनों ही पहलुओं को दर्शाने की कोशिश की है। 

प्र: आपको किस तरह का लेखन करना व्यक्तिगत रूप से पसंद है? गल्प (फिक्शन) या कथेतर (नॉन फिक्शन) में से क्या लिखना पसंद है?

उ: मुझे सभी प्रकार का लेखन पसंद है। फिक्शन और जासूसी तो मैंने लिखा है। पर आने वाली कई बुक्स कथेतर श्रेणी की भी होगी जो हमारे जीवन के सभी पहलुओं को दर्शाएगी।

प्र: अच्छा क्या आप पढ़ते भी हैं या फिर क्या आप पहले पढ़ते थे? आपके प्रिय साहित्यकार कौन से हैं?

उ: मैं अधिक नहीं पढ़ता, समय का अभाव के कारण। पर कुछ अच्छा लगा और छोटी कहानी है तो एक नजर देख लेता हूँ। किसी लेखक को कभी पढ़ा नहीं तो किसी साहित्यकार के विषय में कुछ कह नहीं सकता।

प्र: आपकी आने वाली पुस्तकें क्या है? क्या पाठकों को उनके विषय में कुछ बताना चाहेंगे? 

उ: मेरी आने वाली पुस्तकें एक तो सस्पेंस थ्रिलर है और दूसरी सामाजिक है। इसमें जीवन के बहुत से रंग देखने को मिलेंगे। मेरी कोशिश है कि मैं सभी विषय पर लिखूँ। सफल कहाँ तक होऊँगा, ये तो पाठक ही बता सकते हैं।

 

प्र. अब बातचीत का पटाक्षेप करते हैं। क्या आखिर में आप पाठकों को कुछ संदेश देना चाहेंगे? अगर हाँ तो वह दे सकते हैं?

उ:  मैं पाठक मित्रों से यहीं कहना चाहूँगा कि एक पुस्तक लिखने में बहुत ही अधिक समय और मेहनत लगती है। पुस्तक पसंद आना नहीं आना यह विषय और रुचि पर निर्भर करता है। पर अगर आप अच्छा रिस्पॉन्स नहीं दे सकते तो बुरा भी ना दे। यह उनके लिए है जो मित्र किसी और राइटर को पसंद करते है, और किसी लेखक की तुलना दूसरे लेखक से करना चाहते है। जबकि एक ही कहानी दो लेखक दो तरीके से लिखते है। सबका कहानी कहने का अपना एक अलग अंदाज होता है। कोई पूर्ण नहीं होता। सभी से कहीं न कहीं गलती होती है। 

उदाहरण के लिए, मेरी बुक सेल्फ पब्लिश होती है। तो पब्लिशर बुक का फ्रंट पेज ही अमेजन और फ्लिपकार्ट पर अपलोड करते है। साथ ही बुक का संदर्भ भी इंग्लिश में डालते है। जो हिंदी पढ़ने वालों के लिए समझ पाना मुश्किल होता है। इसीलिए मैं अपनी बुक का एक बैक कवर अमेजन पर अपलोड करता हूँ ताकि बुक को खरीदने की इच्छा रखने वाले मित्र यह जान सके की बुक का मैटर क्या है। लेकिन  इस बात पर बहुत से लोग नेगेटिव कमेंट करते हैं कि लेखक अपनी बुक का खुद ही रिव्यू दे रहा है।  इसके पीछे कि मेरी मंशा क्या होती है वह नहीं जानते।

सभी पढ़ने वाले मित्रों का धन्यवाद! आप सभी के जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहे। अंजान जी का मुझे अवसर प्रदान करने के लिए धन्यवाद!

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यह थी लेखक हरीश शर्मा से हमारी एक छोटी सी बातचीत। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आयी होगी। इस बातचीत के विषय में अपनी राय आप हमें टिप्पणी के माध्यम से दे सकते हैं। आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी। 

हरीश शर्मा के उपन्यास अमेज़न पर उपलब्ध है। आप निम्न लिंक पर जाकर उनके उपन्यास प्राप्त कर सकते हैं:

अँधकार का युग: बी सी टू ए डी | मृत्यु का वर्ष

जाल शृंखला: जाल | जाल 2: मिशन काली | जाल 3: लाइव मर्डर | जाल 4: लाइव शो  | जाल 5: लॉकर रूम

देव दूत शृंखला: देवदूत: द गॉड्स क्रिएशन | देवदूत और देवलोक शम्बाला 

नोट: साक्षात्कार शृंखला के तहत हमारी कोशिश रचनाकारों और उनके विचारों को  पाठकों तक पहुँचाना  है। अगर आप भी लेखक हैं और इस शृंखला में भाग लेना चाहते हैं तो contactekbookjournal@gmail.com पर हमसे संपर्क कर सकते हैं। 


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “साक्षात्कार: ‘देवदूत’ और ‘जाल’ शृंखला के लेखक हरीश शर्मा से एक छोटी सी बातचीत”

    1. आपसे बात करके अच्छा लगा। आभार।

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