तीन अप्रैल,उन्नीस सौ एकतीस के दिन मंदसौर,म.प्र. में एक सम्पन्न परिवार में महेंद्रकुमारी का जन्म हुआ था। उसके पिता पढाई लिखाई से जुड़े और साम्यवादी विचारों वाले,सामाजिक चेतना संपन्न व्यक्ति थे।
महेंद्र कुमारी को वे प्यार से मन्नू बुलाते थे।
अपनी मानसिक बनावट में वे एक खुले हुए आदमी थे और किशोरी पुत्री को उन्होंने न अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ सड़कों पर भाषण देने से रोका न उसकी शिक्षा-दीक्षा में कोई बाधा आने दी।
मन्नू के लिये यह आश्चर्य का विषय था कि ऐसा सुलझा हुआ शख्स पत्नी को ले कर एक निहायत सामंती सोच क्यों रखता था।
मन्नू बड़ी हो रही थीं और देख रही थीं, माँ का सत्तर सीढियाँ चढ़ कर महज पति को पानी पिलाने जाना।
कहीं इसी समय के आसपास उस किशोरी में एक विद्रोह भाव पनपने लगा था।
उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और मिरांडा हाउस में पढ़ाने लगीं ।
इसी समय के आसपास उन्होंने लिखना शुरू किया। ‘ मैं हार गई’, ‘ त्रिशंकु ‘, ‘ एक पलेट सैलाब’ और ‘ तीन निगाहों की एक तस्वीर ‘, वे लगातार लिख रही थीं। अपने राजनैतिक उपन्यास ‘ महाभोज ‘ से वे चर्चित हुईं और ‘ उनके अमर शाहकार ‘ आपका बंटी’, जो कि बाल मनोविज्ञान पर लिखी एक अद्भुत कृति है, ने कितने ही घर टूटने से बचा लिये ।
वे ‘ नयी कहानी ‘ आंदोलन के त्रिभुज ( राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर, मोहन राकेश) का अदृश्य चौथा कोण थीं ।
उनके ‘ प्रेम के स्थायित्व के आख्यान ‘ अर्थात उपन्यास ‘ यही सच है’ पर ‘ रजनीगन्धा ‘ नाम से एक खूबसूरत फिल्म बनी।
सहचर राजेन्द्र यादव के साथ मिलकर उन्होंने ‘ एक इन्च मुस्कान ‘ लिखा, जिसका मन्नू द्वारा लिखा अंश राजेन्द्र बेहतर मानते थे ।
यह सच भी है। जहाँ राजेन्द्र का वैचारिक चौकन्नापन उनके लेखन प्रवाह को बाधित करता है,वहीं मन्नू अपनी कहन में सहज दिखती हैं ।
मन्नू की नायिकायें सशक्त हैं, स्वावलंबी है और सही या गलत,अपने फैसले कर सकती हैं ।
हम आपको याद करेंगे भी और याद रखेंगे भी,मन्नू ।
आप अपनी सहजता में भी विशिष्ट थीं, अपनी आधुनिकता में भी अपनी जड़ों से जुड़ी हुईं ।
– रैना उवाच
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मैंने इनकी स्वामी पढ़ी है, जो शरतचंद्र के स्वामी पर आधारित है। मेरे ख़्याल से तीन बार पढ़ी है। भी अपनी पसंदीदा हिन्दी किताब की बात आएगी, मन्नू भंडारी हमेशा याद आएंगी।
जी स्वामी मैंने भी पढ़ी थी। आप हो सके तो आपका बँटी भी पढिए। अच्छी कृति है।