सोने का किला – सत्यजित राय

उपन्यास जनवरी 19, 2019 से जनवरी 20, 2019 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:

फॉर्मेट:
पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 120 | प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन

सोने का किला - सत्यजित राय
सोने का किला – सत्यजित राय

पहला वाक्य:
फेलूदा ने फटाक से किताब बंद की, दो चुटकी बजाकर एक लंबी जम्हाई ली और बोले, ‘ज्योमेट्री’

दुर्गा पूजा की छुट्टियाँ चल रही थी और इसलिए तोप्से इस वक्त खाली था। उसके मन में बार-बार यह ख्याल आ रहा था कि यह वक्त किसी रोमांचक केस में शामिल होने के लिए बेहद उपयुक्त था। वैसे भी स्कूल के चलते उसे फेलूदा के साथ ऐसे साहसिक कारनामों में शामिल होने का वक्त कम ही मिल पाता था।

और फिर जैसे उसके मन की इच्छा पूरी हो गयी। उनके पास सुधीर धर जी अपनी परेशानी लेकर आये। कुछ दिनों पहले ही उनके आठ साल के बेटे मुकुल धर के विषय में यह पता चला था कि वो जातिस्मर है। जातिस्मर यानी ऐसा व्यक्ति जो अपने पिछले जन्म की बात याद कर सकता हो।अपने पिछले जन्म की बात बताते हुए उसने एक सोने के किले और एक गढ़े खजाने का जिक्र किया था। इस चीज की अख़बारों में भी काफी चर्चा हुई  थी।

देश के जाने माने पेरासाइकोलॉजिस्ट हेमंग हाजारे  ने इस मामले में दिलचस्पी ली थी और वो मुकुल को लेकर राजस्थान चले गए थे। लेकिन फिर एक ऐसी घटना हुई कि सुधीर को फेलूदा के पास आना पड़ा। उन्हें ये यकीन हो गया कि मुकुल के पीछे कुछ असमाजिक तत्व पड़े थे जिनसे मुकुल की जान को खतरा हो सकता था।

सुधीर चाहते थे कि फेलूदा पता लगाएं कि मुकुल के पीछे कौन पड़ा है और उनका मकसद क्या है? साथ ही सुधीर यह भी चाहते थे कि फेलूदा  मुकुल की हिफाजत का जिम्मा भी लें।

क्या फेलूदा ने इस मामले की छानबीन का जिम्मा स्वीकार किया? 
आखिर मुकुल के पीछे कौन और क्यों पड़ा था? 
क्या मुकुल सचमुच जातिस्मर था? क्या सचमुच कोई खजाना था?




मुख्य किरदार:
प्रदोष सी मित्तर उर्फ़ फेलूदा – एक अट्ठाइस वर्षीय युवक जो कि जासूसी का काम करता है
तपेश रंजन मित्तर उर्फ़ तोप्से  – फेलूदा का छोटा भाई
लालमोहन गाँगुली उर्फ़ जटायू – रोमांचकारी उपन्यासों के लेखक जो जटायू नाम से उपन्यास लिखते थे
सुधीर धर – एक किताबों के दूकान के मालिक जो मदद लेने फेलूदा के पास आये थे
मुकुल धर – सुधीर जी का बेटा जिसे पिछले जन्म की बातें याद आ रही थी
श्रीनाथ – फेलूदा का नौकर
हेमांग हाजारे – एक जाने माने पेरासाइकोलॉजिस्ट
शिवरतन मुख़र्जी – सुधीर धर के पडोसी
नीलू – शिवरतन जी का नाती
मनोहर – शिवरतन का नौकर
अनुतोष बटोब्याल  -फेलूदा के कॉलेज के दोस्त
सिधू ताऊ – तपेश जी के रिश्तेदार
भवानंद – एक धोखेबाज जिसका भांडाफोड़ हेमंग ने कहा था
मंदार बोस – एक घुमक्क्ड जिससे फेलूदा और साथियों की मुलाकात जोधपुर में हुई थी
इंस्पेक्टर राठौड़ – राजस्थान पुलिस के अफसर
प्रोफेसर तिवारी – हेमांग हाजारे के दोस्त
हरमीत सिंह – पंजाबी ड्राइवर
गुरुबचन सिंह – एक पंजाबी ड्राइवर

फेलूदा से जुड़ी जितनी भी कृतियाँ मैंने पढ़ी हैं, सभी मुझे पसंद आई हैं। यह चीज सोने के किले पर भी लागू होती है। वैसे तो यह किताब मैंने मई 2017 में ली थी लेकिन इसे पढ़ने में काफी वक्त लग गया। यह इसलिए भी हुआ क्योंकि मैंने यह सोचा हुआ था कि मैं इस किताब को पढ़ने की शुरुआत में असल सोने के किले के सामने करूँगा। और यह मैं इस साल कर पाया। इस जनवरी को जैसलमेर में मौजूद सोने के किले के सामने इसके शुरूआती पृष्ठ पढ़े। लेकिन फिर उपन्यास पूर्णतः पढने में काफी वक्त निकल गया। उस वक्त दूसरे उपन्यास पढ़ रहा था तो उनमे व्यस्त हो गया।  खैर, देर आये दुरस्त आये।

उपन्यास रोचक है।  उपन्यास जिस विचार के चारो ओर बुना हुआ है वो मुझे पसंद आया। शुरू से ही यह पाठक के ऊपर अपनी पकड़ बनाकर चलता है। उपन्यास में इस्तेमाल जातिस्मर शब्द मेरे लिए नया शब्द था। मैंने पिछले जन्म को याद रखने वाले कई लोगों के विषय में पढ़ा जरूर है लेकिन उनके लिए जातिस्मर शब्द पहली बार पढ़ा।

उपन्यास में रहस्यमय किरदार हैं। फेलूदा और तोप्से के साथ  खतरनाक घटनाएं होती हैं। फेलूदा को धमकी मिलती है। उनके रास्ते में अड़चने आती है। यानी उपन्यास में हर वो चीज होती है जो कथानक में पाठक की रूचि बनाये रखती है।

उपन्यास के किरदारों की बात करूँ तो फेलूदा और तोप्से के बीच का समीकरण मुझे हमेशा की तरह पसंद आया। कहानी हम तोप्से के नजरिये से देखते है तो कई जगह बचपना ही दिखता है जो कि पढ़ने में मुझे अच्छा लगा। दूसरी तरफ फेलूदा है। वो तोप्से से बढ़ा है तो उसको लेक्चर भी देता है। बढ़े भाई जैसा उसकी टांग भी खींचता है और उसे सही दिशा में गाइड भी करता है। उपन्यास में लेखक लाल मोहन गाँगुली उर्फ़ जटायू से पहली बार फेलुदा और तोप्से मिलते हैं। जटायू  का किरदार मज़ेदार है। जब भी वो आते हैं तो कुछ न कुछ मजाकिया होता है जिससे कथानक में हास्य का भाव बना रहता है। उपन्यास में कई और रोचक प्रसंग हैं जिसमें सिधु ताऊ का अंग्रेजी शब्दों को तोड़ नये  शब्द बनाने का प्रसंग मुझे बहुत मजेदार लगा।

उपन्यास मुझे पसंद तो आया लेकिन कुछ कमी भी लगी। ऐसे लगा कि कुछ बिन्दुओं  पर और काम होता तो उपन्यास और अच्छा बन सकता था। वो चीजें निम्न हैं:

उपन्यास कई बार धीमा सा प्रतीत होता है। घटनाक्रम में सभी कुछ आराम  से हो रहा हैं। ऐसा इसलिए भी है पाठक के तौर पर हमे पता है कि किसी को जान का खतरा नहीं होगा। इसलिए कथानक थोड़ा ढीला चलता है। इसकी गति थोड़ी  ज्यादा तेज होती और कथानक थोड़ा टेंशन क्रिएट कर (तनाव बना कर रख) पाता तो ज्यादा बेहतर रहता। यह टेंशन एक अच्छे थ्रिलर की खासियत होती है।

उपन्यास का अंत थोड़ा कम मज़ेदार लगा। उसमे रोमांच और हो सकता था। ऐसा लगा जल्दी में निपटाया गया हो। खलनायक और फेलूदा के बीच ज्यादा कुछ नहीं हुआ।  खजाने के मामले में भी बात साफ नहीं हुई । या तो वो सच होती या झूठ। इसके न होने से एक उपन्यास के खत्म होने पर एक तरह के अधूरेपन का अहसास होता है जो मुझे अच्छा नहीं लगा।

उपन्यास में एक दो जगह वर्तनियों की गलतियाँ थी और कुछ जगह प्रिंटिंग की गलतियाँ थी।


उपन्यास के कुछ अंश जो मुझे पसंद आये:
‘…मनुष्यों के मन के मामलों को भी ज्योमेट्री की सहायता से जाना जाता है। सीधे-सीधे आदमी का मन सरल रेखा में चलता है। खराब आदमी का मन साँप की तरह टेढ़ा-मेढ़ा चलता है। पागल का मन कब किधर चल पड़े यह कोई नहीं कह सकता। यहाँ भी वही जटिल ज्योमेट्री।’ (पृष्ठ 8)

मैं बिना प्रमाण के किसी चीज का विश्वास नहीं करता। जो आदमी अपना दिमाग खुला नहीं रखता वह मूर्ख बनता है,इस बात के इतिहास में कई प्रमाण हैं।  (पृष्ठ 17)

अंत में यही कहूँगा कि सोने का किला एक पठनीय और रोमांच से भरपूर उपन्यास है। जटायू का इस श्रृंखला में आगमन होता है। उसके आने से उपन्यास में मौजूद मज़ेदार हिस्से काफी बढ़ जाते हैं। इतना तो तय हो गया है कि बिना जटायू के फेलूदा के उपन्यास अब थोड़े से फीके लगेंगे। उनका होना कॉमेडी का तड़का डालकर उपन्यास रुपी पकवान को औ ज्यादा सुस्वादु बना देता है।

आपको इस उपन्यास को एक बार तो जरूर पढ़ना चाहिए।

मेरी रेटिंग: 3.5/5 

अगर यह उपन्यास आपने पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा। अगर आपने यह उपन्यास नहीं पढ़ा है और पढ़ने के इच्छुक हैं तो इसे निम्न लिंक पर जाकर खरीद सकते हैं:
पेपरबैक
हार्डबैक

सत्यजित राय जी की दूसरी किताबें भी मैंने पढ़ी हैं। उनके विषय में मेरी राय आप निम्न लिंक को क्लिक करके जान सकते हैं:
सत्यजित राय

बांग्ला से हिन्दी में अनूदित दूसरी किताबें भी मैंने पढ़ी हैं। उनके विषय में मेरी राय आप निम्न लिंक पर क्लिक करके जान सकते हैं:
बांग्ला से हिन्दी

हिन्दी साहित्य की दूसरी रचनाओं के ऊपर मेरी राय आप निम्न लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं:
हिन्दी साहित्य

सोने का किला के साथ सोने के किले के सामने


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

4 Comments on “सोने का किला – सत्यजित राय”

  1. आपकी शानदार रोचकता लिए हुए समीक्षा ने इसको पढने की उत्सुकता जगा दी।

    1. जी फेलूदा श्रृंखला के उपन्यास आपको निराश नहीं करेंगे। सत्यजित राय जी का कहानी संग्रह सत्यजित राय की कहानियाँ में फेलूदा की कुछ कहानियाँ है। यह संग्रह भी मुझे काफी पसंद आया था क्योंकि इसमें मिस्ट्री,हॉरर विज्ञान गल्प की कहानियाँ हैं जो कि बेहद मनोरंजक है।
      https://amzn.to/2RorwWD

    1. It's a thriller novel. So enjoy it. If you want to deliberately take a moral from it than since the criminals get arrested in the end so one can say it shows how crime doesn't pay.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *