सिंगला मर्डर केस – सुरेन्द्र मोहन पाठक

रेटिंग : 3/5

उपन्यास १६ जुलाई २०१६ से २० जुलाई २०१६ के बीच में पढ़ा 
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 317
प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स 
सीरीज : सुनील १२१
पहला वाक्य :
सुबह ‘ब्लास्ट’ के ऑफिस में जनरल शिफ्ट अभी शुरू ही हुई थी जब कि सुनील ने चपरासी मानसिंह को अर्जुन का पता करने को बोला। 
हिमेश सिंगला सिंगला एंड सिंगला नाम की स्टॉक ब्रोकर्स फर्म का पार्टनर था। वह अमीर था और दिल्ली की हाई सोसाइटी में वो  एक प्ले बॉय के रूप में मशहूर था। वो औरतों का रसिया था और अपनी इस प्रवृति हो छुपाता भी नहीं था। फिर वो अपने घर के ड्राइंग रूम में मरा हुआ पाया गया।  किसी ने उसकी गोली मारकर ह्त्या कर दी थी। 
अब शैलेश सिंगला, जो कि हत्प्राण का बड़ा भाई और पार्टनर था, ने सुनील से इस मामले की जाँच करने की गुजारिश की थी। क्योंकि सुनील की उससे वाकिफियत थी तो वो भी इसके लिये तैयार हो गया। 
आगे क्या हुआ? भई, ये तो उपन्यास पढ़कर ही पता लग पायेगा। 

सिंगला मर्डर केस सुनील सीरीज का सबसे नया उपन्यास है। अगर गिनती में देखा जाये तो यह इस सीरीज का 121 वाँ उपन्यास है। किसी सीरीज में इतने उपन्यास हो सकते हैं ये ही आपको हैरत डाल देता है लेकिन फिर अगर आपको ये बताया जाए कि इस सीरीज के 121 उपन्यासों के इलावा इसी लेखक ने 170 और उपन्यास लिखे हैं तो ये बात आपको हैरत में डालने के लिए काफी है।

पाठक सर एक प्रॉलिफिक राइटर हैं इसमें कोई शक नहीं है। और अगर आप उनके उपन्यास पढ़ते हैं तो जानते होंगे जितना मज़ा उनकी कहानी में प्लाट देता है उससे ज्यादा मज़ा किरदारों का अंदाजे बयाँ देता है। कई बार तो वो प्लाट पर भारी भी पड़ता है।

सिंगला मर्डर केस की अगर बात करूँ तो इसमें सुनील सीरीज के सारे गुण मुझे दिखे। और कुछ नए बदलाव भी दिखे। उपन्यास एक हु डन इट है।  मैं अंत तक इस बात का पता नहीं लगा पाया कि क़त्ल किसने किया। मेरे लिए एक अच्छे हु डन इट का यही मापदंड होता है और इसमें ये उपन्यास पूरी तरीके से पास है।

हाँ, उपन्यास क्योंकि एक ही क़त्ल के चारों और घूमता है तो इसमें थ्रिल की कुछ कमी लगती है। लेकिन अपने बाकी सुनिलियन ट्रेट्स से ये इस कमी को पूरा कर देता है। रमाकांत और सुनील की जुगलबंदी पढ़ने में आनन्द तो देती ही है। ऊपर से प्रभु दयाल का सुनील से नर्मी से पेश आना भी मुझे अच्छा लगा।अब इतने सालों तक एक साथ ही केसेस के ऊपर काम करते हुए उनके बीच थोड़ा मित्रता का माहौल बनना ही चाहिए। देखना है जितनी ढील इस उपन्यास में प्रभु ने सुनील को दी वो आगे भी जारी रहेगी या फिर से प्रभु सुनील के तरफ सख्त रवैया अख्तियार करेगा।

अंत में केवल यही कहूँगा कि उपन्यास मुझे पसंद आया और अगर आपको हु डन इट शैली के उपन्यास पसन्द हैं तो आपको इस उपन्यास से निराशा नहीं होगी।
असली अपराधी 2.5/5
पहला वाक्य:
विनोद बाली ने घर में कदम रखा।
विनोद बाली एक वकील था और वकीलों के फर्म माथुर बंसल बाली एसोसिएट्स में एक जूनियर पार्टनर था। इसके इलावा वो कीर्ति का पति था जो कि अमीर घराने की लड़की थी। जब फर्म के सीनियर पार्टनर टी आर माथुर ने उस पर ग़बन का आरोप लगाया तो उसके पैरों तले जमीन निकल गयी। उसकी चोरी पकड़ी गई थी और अब उसके सीनियर पार्टनर ने उसे तीन दिन के भीतर बीस लाख की ग़बन की हुई रकम वापस करने के लिए कहा था। ये उसके लिए मुनासिब नहीं  था। वो अपनी पत्नी के आगे गिड़गिड़ाना नहीं चाहता था और इसके इलावा उसके पास अपनी बर्बादी रोकने के लिए कोई दूसरा चारा भी नहीं था। उसका बर्बाद होना निश्चित था। लेकिन फिर उसके सीनियर पार्टनर की हत्या हो गयी। और इल्जाम विनोद पर आया। 
उसकी पत्नी के अनुसार उसे फंसाया जा रहा था। वो बेगुनाह था। वो खुद भी अपने को बेगुनाह बता रहा था। तो कौन था असली अपराधी जिसने इस अपराध को अंजाम दिया?क्यों हुआ था माथुर का कत्ल?
इन सब सवालों के जवाब की तलाश विवेक आगाशे को भी थी। बस देखना ये था कि विनोद को सजा होने से पहले वो इस राज से पर्दा उठा पाते हैं या नहीं।
असली अपराधी एक लघु कथा है जो सिंगला मर्डर केस के साथ ही छपी है। कहानी के विषय में कहूँ तो कहानी एक अलग तरह की है। ये दूसरी मर्डर इन्वेस्टीगेशन से अलग है। कहानी एक बार पढ़ी जा सकती है।
इस किताब में आयी दोनों कृतियों ने मेरा मनोरंजन किया। मुझे दोनों ही पढ़ने योग्य लगी। अभी सुनने में आया है कि सुनील का नया कारनामा जल्दी ही आने वाला है तो इसके लिए मैं उत्सुक हूँ।

हाँ, किताब के पृष्ठों की क्वालिटी बहुत अच्छी है। राजा पॉकेट बुक्स  की अपनी खामियाँ हो सकती हैं जैसे वो प्रचार प्रासार में इतने आगे नहीं हैं लेकिन उनके छापे उपन्यास (जो वाइट पेपर पे छपते हैं) पेपर के मामले में हार्पर से कई गुना बेहतर होते हैं। और इसके लिए राजा पॉकेट बुक्स बधाई का पात्र भी हैं।

अगर अपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है तो आप इसे निम्न लिंक ऐ मँगवा सकते हैं:
पढ़ने के बाद अपनी राय से मुझे जरूर अवगत करायिगा।

इस इलावा एक और बात। गुडरीडस के एक थ्रेड से मुझे पता लगा कि सिंगला मर्डर केस और  एस एस वैन डाइन (S S Van Dine )के उपन्यास द बेन्सन मर्डर केस (The Benson Murder Case) में काफी समानता है। दोनों में एक स्टॉक ब्रोकर का कत्ल होता है। मेरे पास द बेन्सन मर्डर केस पड़ा है तो मैं उसको पढ़ने के बाद इस विषय में कुछ कह पाऊँगा। और उसके बाद ही इधर विस्तार में लिखूँगा।

तब तक के लिए पढ़ते रहिये। क्योंकि जो पढ़ते हैं वो न पढ़ने वालों की तुलना में ज्यादा जीते हैं। ये मैं नहीं एक अनुसंधान कह रहा है। विस्तार से इधर पढ़िए।
Report study claims people who read books may live longer


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “सिंगला मर्डर केस – सुरेन्द्र मोहन पाठक”

  1. ये उपन्यास नहीं पढा।
    अभी ख्वाजा अहमद अब्बास का उपन्यास इंकलाब पढा है।
    जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर लिखा गया उपन्यास है॥

    1. सही है। अब तक तो पढ़ ही लिया होगा आपने??

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