संजीव जायसवाल को मैं लम्बे समय से पढ़ रही हूँ। सीबीटी में कार्य करते हुए उनकी पुस्तकों का सम्पादन करने का भी मुझे अवसर मिला। उनके लेखन की सबसे बड़ी विशेषता है निरंतरता और विषयों की विविधता। वह लगातार लिख रहे हैं और ऐसे सामयिक विषयों को अपनी कहानियों व उपन्यासों के माध्यम से सम्प्रेषित करते हैं जिन्हें बच्चों द्वारा पढ़ा जाना और समझा जाना दोनों ही जरूरी है।

इन दिनों बाल साहित्यकारों की भीड़ में जो उपदेश व सीख से कहानी का आरम्भ व अंत करते हैं और घिसे-पिटे विषयों पर अपनी कलम चलाए जा रहे हैं, उनके बीच संजीव जायसवाल का अपनी एक अलग पहचान कायम रखना निस्संदेह काबिले तारीफ है। अतिशयोक्ति नहीं, प्रामाणिकता झलकती है उनकी रचनाओं में। तथ्यों और एक संदेश को पिरोने के बावजूद कहानी बोझिल नहीं होती और रोचकता व पठनीयता निरंतर बनी रहती है।
विभिन्न विषयों को अलग-अलग पात्रों के माध्यम से चाहे वे बच्चे हों, पशु-पक्षी, निर्जीव वस्तुएँ या तकनीक—कहानी को जिस तरह से वह गढ़ते हैं, वह उत्सुकता को चरम पर पहुँचा देती है। इन दिनों पढ़ी उनकी चार बाल पुस्तकों का बारीकी से अवलोकन करने के बाद यह कहा जा सकता है कि वे बच्चों को ही नहीं, वयस्कों को भी पसंद आएँगी।
बाल मन को समझना लिखने के लिए बहुत आवश्यक है। तभी तो कहा जाता है कि बच्चों के लिए लिखना कठिन चुनौती है। आपको स्वयं बच्चा बन उनके मनोविज्ञान को समझना व उनके जीवन से जुड़ी छोटी-छोटी घटनाओं पर पैनी नजर रखना जरूरी होता है। आज जब तकनीक व सोशल मीडिया के चलते एक्सपोजर बढ़ गया है, बच्चों के पास हर समाधान को ढूँढने के लिए ‘गूगल दादा’ मौजूद हैं, उनके हाथ में स्मार्ट फोन और काम को सरल बनाने के लिए लैपटॉप है, ऐसे में उनके हिसाब से सोचकर लिखना बाल साहित्यकार को सफल लेखक बनाता है।
उनके कहानी संग्रह ‘सोशल मीडिया का राजकुमार’ में तकनीक आधारित छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। इनमें निहित 12 कहानियों के पात्र तकनीक से जुड़े हैं। जैसे कंप्यूटर, मोबाइल, माउस, फोन, इत्यादि। सारी कहानियों में एक नयापन है और इसके पात्र जिनसे आज का बच्चा अत्यधिक प्रभावित है, कहीं-कहीं इसलिए सजीव लगते हैं, क्योंकि वे हमारी दुनिया का एक अहम हिस्सा बन चुके हैं।
सारी कहानियों का सार देने का अर्थ होता है पाठकों के समक्ष कहानी के सस्पेंस को खोल देना। किताब अगर बच्चा या अभिभावक स्वयं पढ़े तो बेहतर रहता है। हालाँकि इस संग्रह की पहली कहानी का जिक्र करना चाहूँगी, क्योंकि इससे पहले इस विषय पर मैंने कोई कहानी नहीं देखी। वन-डे इंटरनेशनल, ट्वेंटी-ट्वेंटी और टेस्ट मैच की तकरार होती है कि कौन ज्यादा लोकप्रिय और पसंद किया जाने वाला मैच है। आखिर में स्टेडियम उनके विवाद को सुलझाता है। शुरु से आखिर तक कहानी में रोचकता व मनोरंजन के रेशे निहित हैं कि बिना पूरी पढ़े उसे छोड़ना असम्भव है। इसी तरह ‘चिट्ठी कौन लिखे’ या ‘शिकायत डॉट कॉम’ कहानी बेहद दिलचस्प है।
हर कहानी में संदेश छिपा है, पर बहुत ही सूक्ष्म रूप से। अगर पुस्तक के चित्रों, प्रस्तुति व आकार पर ध्यान दिया जाता तो और बेहतर होता है। पुस्तक का मूल्य भी अधिक है।
‘बादल रोने लगा’ नामक पुस्तक अपने शीर्षक के कारण पहली नजर में आकर्षित करती है। इसमें 10 कहानियाँ हैं जिनका मुख्य उद्देश्य बच्चों को एक अद्भुत दुनिया में ले जाना है। जहाँ वे हँसते हैं, क्योंकि इस संग्रह की कहानियाँ ज्ञान बाँटने के बजाय गुदगुदाती हैं। इन्हें बार-बार पढ़ जा सकता है। पात्र जितने दिलचस्प हैं उतने ही मजेदार उनके नाम और कारनामे हैं। ‘पिंटू आइस पार्लर’ हो या ‘कटहल ने दौड़ाया’ या ‘टीटू तुम फिर आना’ प्रत्येक कहानी अगर पात्रों की शरारत की वजह से होंठों पर हँसी ले आती है तो कुछ न कुछ सिखाती भी है।
इस संग्रह की कहानियों में एक चटपटापन है, सरलता है और शैतानी है। बच्चे ऐसी ही कहानियाँ पढ़ना चाहते हैं।
छपाई में आने वाले खर्च की वजह से कीमत प्रकाशक को अधिक रखनी पड़ती है, और चित्रों के लिए एआई का सहारा लेना पड़ता है। पुस्तक में यूँ तो चित्र कहानी को व्यक्त करते हैं व उससे मेल खाते हैं, लेकिन उनको और बेहतर बनाया जा सकता था। व्याकरण व वर्तनी की त्रुटियाँ इस पुस्तक में खटकती हैं।

चित्र पुस्तकें लिखने में भी संजीव जायसवाल सिद्धहस्त हैं। ‘सूरज चन्दा साथ साथ’ सुंदर चित्रों व छपाई के कारण तो उत्तम पुस्तक है ही, साथ ही उसका कथानक बच्चों को लुभाता है। सूरज और चांद तो बच्चों की कहानियों के प्रचलित विषय रहे हैं और उनके इर्दगिर्द असंख्य कहानियाँ सदियों से बुनी जा रही हैं। प्रकृति के अपने कुछ नियम होते हैं, जो अगर टूटें तो सब उलट-पुलट जाता है। इस चित्रकथा में भी जब सूरज और चंदा एक साथ निकलते हैं तो क्या होता है, यही बताया गया है। छोटे-छोटे वाक्यों में लेखक ने खूबसूरती से पूरी कहानी को चित्रित किया है। चित्र पुस्तक लिखना सरल काम नहीं है, लेकिन इस पुस्तक के लिए लेखक को साधुवाद।

‘होगी जीत हमारी’ एक उपन्यास है जो कपिल राय के अपने दोस्त रजत के साथ शहर से गाँव आने से शुरू होता है। उसका गाँव में रहने वाला दोस्त कपिल मुंडा से उसकी भेंट होती है और फिर रहस्यमय तरीके से कपिल मुंडा का अपहरण हो जाता है और कपिल राय गायब हो जाता है। दो पात्रों के नाम एक होने के कारण एक रहस्य निर्मित होता है और उत्सुकता धीरे-धीरे रहस्य की कई परतों को खोलती है। आदिवासी समाज, पेड़ों का कटना और गांववालों को नशे का आदी बनाना—उपन्यास का फलक बड़ा है, पर कहानी का ताना-बाना इस तरह बनाया गया है कि हर पात्र आवश्यक व कथानक अनिवार्य लगता है। पर्यावरण के मुद्दे को उठाया गया है, पर बिना इस पर बात किए।
ऐसे उपन्यासों में जहाँ नायक और खलनायक हों, जहाँ अच्छाई व बुराई हो, आदर्शवाद का झलकना स्वाभाविक होता है, लेकिन लेखक ऐसा करने से पूरे उपन्यास में बचें। अपने पिता को सही रास्ते पर लाने के लिए कपिल राय जो कदम उठाता है और आखिर में प्रायश्चित के रूप में उसके पिता जो करने को तैयार होते हैं, वह भी एक अच्छा समाधान है। लेखक जो संदेश देना चाहते हैं, उसे बहुत सधे ढंग से इस तरह दिया है कि कहानी नीरस नहीं लगती। ‘चित्र आंदोलन’ की अवधारणा विश्नोई समाज के ‘चिपको आंदोलन’ की याद दिलाती है।
एक पठनीय व दिलचस्प उपन्यास जिसे हर बच्चे की किताबों की शेल्फ में होना चाहिए।
टिप्पणीकार परिचय

सुमन बाजपेयी पिछले तीन दशकों से ऊपर से साहित्य के क्षेत्र में सक्रिय हैं। ‘सखी’ (दैनिक जागरण की पत्रिका ), मेरी संगिनी और 4th D वुमन में वो असोशीएट एडिटर रह चुकी हैं। चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट में उन्होंने सम्पादक के रूप में कार्य किया है। सम्पादक के रूप में उन्होंने कई प्रकाशकों के साथ कार्य किया है। अब स्वतंत्र लेखन और पत्रकारिता कर रही हैं।
कहानियाँ, उपन्यास, यात्रा वृत्तान्त वह लिखती हैं। उनके बाल उपन्यास और बाल कथाएँ कई बार पुरस्कृत हुई हैं।
वह अनुवाद भी करती हैं। सुमन बाजपेयी अब तक 150 से ऊपर पुस्तकों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद कर चुकी हैं।
हाल ही में प्रकाशित उनके उपन्यास ‘द नागा स्टोरी ‘ और ‘श्मशानवासी अघोरी‘ पाठकों के बीच में खासे चर्चित रहे हैं।
उनके बाल उपन्यास तारा की अनोखी यात्रा, क्रिस्टल साम्राज्य, मंदिर का रहस्य बाल पाठकों द्वारा पसंद किये गए हैं।