भूतिया हवेली – मनमोहन भाटिया

किताब दिसम्बर 21,2018 से दिसम्बर 23,2018 के बीच पढ़ी गई


संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 60
प्रकाशन : फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशन

भूतिया हवेली - मनमोहन भाटिया
भूतिया हवेली – मनमोहन भाटिया

मनमोहन भाटिया जी को मैं अक्सर प्रतिलिपि पर पढ़ता आया हूँ। उनकी कहानियाँ रोचक होती हैं इसलिए जब पता लगा कि फ्लाई ड्रीम्स प्रकाशन से उनकी पुस्तक आ रही है तो इसे लेना ही था। भूतिया हवेली मनमोहन भाटिया जी छः कहानियों का संग्रह है। सभी कहानियाँ भूत-प्रेत और तंत्र -मंत्र  जैसे विषयों  के चारो ओर बुनी गई हैं।

संग्रह में निम्न कहानियाँ हैं:


1)भूत

पहला वाक्य:
होटल ब्रिस्टल पहुँचकर सीधे रिसेप्शन पर गया।

व्यापार के सिलसिले में कथावाचक जब भी नवयुग सिटी आता था तो उसका ठिकाना होटल ब्रिस्टल ही बनता था। पिछले तीन सालों से रिसेप्शन पर उसका स्वागत श्वेता ही कर रही थी। लेकिन अब ऐसा नहीं होना था। किसी ने उसका कत्ल कर दिया था।
 जब रात को अचानक कथावाचक की नींद खुली और वो बाहर आया तो उसने एक लड़की को होटल के गलियारे में जाते हुए पाया। उस लड़की को देखकर उसके होश फाख्ता हो गये। आखिर कौन थी वह लड़की? वह क्या चाहती थी?

‘भूत’ इस कहानी संग्रह की पहली कहानी है। होटल ऐसी जगह है जहाँ कुछ न कुछ होता रहता है। बड़े बड़े होटलों के साथ तो भूतिया किस्से जुड़े रहते हैं और वो कई बार उनके प्रचार में काम करते हैं। होटल के रूप में इस कहानी की सेटिंग मुझे पसंद आई।

कहानी का शुरू का हिस्सा थोड़ा सा  अनावश्यक लगा। सीधे भूत दिखने से शुरुआत होती तो कहानी बेहतर रहती। आदमी शुरू से रोमांचित रहता। कहानी में बीच में फिर एक ठहराव आता है। उससे भी कहानी में रोमांच बाधित होता है।

कहानी ठीक है एक बार पढ़ी जा सकती है।

रेटिंग : 2/5

2) अच्छा भूत


पहला वाक्य:
कुफरी में स्कीइग का लुत्फ़ उठाने और पूरा दिन मौज मस्ती करने के पश्चात कुमार,कामना, प्रशांत और पायल शाम को शिमला की ओर बीएमडब्ल्यू में जा रहे थे।

यह जनवरी का महीना था और इसलिए दिल्ली से आये चार दोस्तों – कुमार,कामना, प्रशांत और पायल  ने बर्फबारी का लुत्फ़ उठाने का प्लान बनाया था। अपनी योजना के तहत पूरा दिन कुफरी में बिताने के बाद ही वो वापस लौट रहे थे कि उनके साथ कुछ ऐसा हुआ जिसने उनकी ज़िन्दगी बदल दी।

 भूत शब्द सुनते ही हमारे मन में सबसे पहले जो भावना जागृत होती है वो शायद डर ही होगा। इसलिए अच्छा भूत शीर्षक कहानी के प्रति उत्सुकता जगाता है।

बचपन में हमे बोला जाता था कि अगर कहीं कुछ ऐसे भूत प्रेत दिखें तो उनके आगे हाथ जोड़कर अपने रास्ते बढ़ जाना। ज्यादातर भूत नुक्सान नहीं करते हैं। लेकिन फिल्मो, उपन्यासों में अक्सर ज्यादातर भूत हानि ही पहुंचाते हैं तो लोगों के मन में उनको लेकर एक डर का भाव है।

हमने अपनी रोज मर्रा की ज़िन्दगी में कई लोगों से उनके भूतों के अनुभव सुने हैं। यह अनुभव भी कुछ ऐसा ही है। इसमें अति नाटकीयता नहीं है। हाँ, कहानी के बीच में थोडा बहुत सस्पेंस बनता है लेकिन चूँकि शीर्षक हमे पता है तो हम अंदाजा लगा लेते हैं। मेरे हिसाब से शीर्षक अच्छा भूत की जगह मददगार होता तो ज्यादा सही रहता। इससे सस्पेंस बरकरार रहता।

कहानी एक बार पढ़ी जा सकती है।

रेटिंग: 2/5



3) काली बिल्ली


पहला वाक्य:
पर्वत श्रृंखला के बीच में से सुबह उगता सूर्य मनमोहक लग रहा था।

रीना और राकेश मसूरी के निकट धनौल्टी में छुट्टियाँ मनाने के लिए रुके थे। इस बार दोनों ने होटल की जगह एक कोठी को अपने रहने के लिए ठीक करवाया था। पहाड़ों की सुंदर वातावरण में दोनों का कुछ दिन बिताने का इरादा था।

परन्तु नैसर्गिक सौन्दर्य के अलावा भी एक और चीज थी जिसने उनका ध्यान आकृष्ट किया था। वह थी एक काली बिल्ली जिसे उन्होंने अपनी कोठी के नजदीक और इलाके में घूमते हुए देखा था। वो बिल्ली किसी का इन्तजार सा करती प्रतीत होती थी।

वहीं पहाड़ी मान्यताओं के अनुसार कोठी का नौकर कालूराम उस बिल्ली को बिल्ली नहीं भूत बताता था। आखिर क्या था उस बिल्ली का रहस्य? क्या सचमुच पहाड़ी नौकर की दकियानूसी बातें सही थी?

काली बिल्ली मुझे इस संग्रह की बेहतर कहानियों में से एक लगी। इसमें रहस्य भी है और रोमांच भी है। काली बिल्ली का रहस्य जानने के लिए पाठक कहानी पढ़ता जाता है। अंत थोड़ा और रोमांचक हो सकता था। बदले वाला सीन थोड़ा विस्तृत होता तो ज्यादा मजा आता।

रेटिंग 2.5/5

4) भूतिया महल


पहला वाक्य:
विनोद राय ऑफिस में मीटिंग के बाद मीटिंग में पूरा दिन व्यस्त रहे। 

विनोद राय को जब बेल्जियम के प्रख्यात वास्तुकार राफेल ने यूरोप आर्किटेक्ट अधिवेशन में हिस्सा लेने का न्योता दिया तो विनोद राय ने इसे सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। विनोद राय के लिए यह गर्व की बात थी कि उन्हें राफेल ने खुद बुलाया था। राफेल का इरादा विनोद के साथ किसी प्रोजेक्ट पर भी काम करने का था।
लेकिन फिर उधर ऐसा कुछ हुआ कि विनोद सीधा भारत लौट आया। आखिर ऐसा क्या हुआ था?

यह कहानी मैंने प्रतिलिपि में भी पढ़ी थी। उस वक्त भी मुझे यह एक कमजोर कहानी लगी थी। इधर चूँकि ज्यों की त्यों बिना बदलाव के डाली गई है तो अभी भी मेरे विचार यही हैं कि यह एक कमजोर कहानी है।

 सच बताऊँ तो जैसे किस्से राफेल इस कहानी में लोगों को सुनाता है वैसे किस्से मैं छोटे में अपने भाई बहन को सुनाता था और मेरे बड़े भाई बहन मुझे सुनाते थे। हमारी सिट्टी पिट्टी इतनी गुम नही होती थी जितनी कि इस कहानी में मौजूद विनोद राय की हुई थी। यह बात मुझे अतार्किक लगी थी।

हाँ,अगर कहानी को सही साबित करने वाली कुछ घटना होती तो शायद विनोद की प्रतिक्रिया थोड़ी तर्कसंगत होती। ऐसी किसी घटना के न होने से कहानी काफी कमजोर हो गई है।

कांसेप्ट के रूप में यह अच्छा था लेकिन इसका क्रियान्वन और अच्छी  तरीके से किया जा सकता था।

रेटिंग: 1.5/5

5) भूरी बिल्ली

पहला वाक्य:
डेविड पेशे से वकील है। 

डेविड और विनोद दो दोस्त हैं जो अपने व्यापार के साथ साथ प्रॉपर्टी का व्यापार भी करते हैं। एक प्रॉपर्टी के चक्कर में ही उन्होंने न्यू समर हिल जाने की योजना बनाई। उन्हें नहीं जाना चाहिए था।

इस कहानी में भी यही विचार है कि भटकती रूह एक बिल्ली का रूप ले लेती है। यह लोककथा मैं पहली बार इसी किताब में सुन रहा हूँ। मैं पहाड़ से आता हूँ लेकिन उधर भी ऐसी कुछ चीज मैंने सुनी नहीं है।  मैं जरूर जानना चाहूँगा कि इस लोक कथा के विषय में लेखक को किधर पता चला या यह उनके ही दिमाग की उपज है।

यह एक ठीक ठाक कहानी है। थोड़ा बहुत रोमांच और सस्पेंस इधर है। भूरी बिल्ली का क्या रहस्य है यह जानने को पाठक उत्सुक रहता है।

रेटिंग 2/5

6) हवेली

पहला वाक्य:
जून का महीना और समय दोपहर के लगभग ढाई बजे राजस्थान के – पर विवेक अपनी मित्र सुदर्शन के साथ कार में सफ़र कर रहे थे। 

विवेक और सुदर्शन दोनों दोस्त और पार्टनर थे। दोनों ही वास्तुकार थे और एक काम के सिलसिले में रंग बांगडू जा रहे थे। रंग बांगडू में उन्हें सेठ पन्नालाल के यहाँ कुछ काम करना था। जब कार चलाते चलाते वो थक गये तो उन्होंने एक जगह रुकने का फैसला किया, नहीं रुकना चाहिए था।

यह संग्रह की बेहतर कहानियों में से एक है। माहौल डरावना है। बीहड़ के बीच में बसा हुआ गाँव डर पैदा करेगा ही। भंवर लाल का किरदार भी रोचक है।

कहानी की एक कमी मुझे यह लगी कि मुख्य किरदारों को अपनी प्राण रक्षा के लिए जो संघर्ष करना पड़ा वह थोड़ा कम था। वे लोग आसानी से ही अपने हमलावर से पीछा छुड़ाने में सफल हो जाते हैं जबकि इधर एक तरह का सस्पेंस बनाया जा सकता था।

एक ठीक ठाक कहानी है जो और बेहतर हो सकती थी।

रेटिंग: 2.5/5

संग्रह एक बार पढ़ा जा सकता है। भूतों के किस्से जब हम सुनते हैं तो उसमें इतनी नाटकीयता नहीं होती है। असल ज़िन्दगी में भूतों के किस्से ऐसे ही साधारण होते हैं। किसी को कुछ कहीं दिख गया, कुछ महसूस हुआ और ऐसे ही किस्से मैंने सुने हैं। यही चीजें संग्रह में मौजूद कहानियों में भी है।

कहानियों के पीछे के विचार रोचक और अलग हैं लेकिन रोमांच और रहस्य की कमी के कारण वो अपनी छाप उस तरह से नहीं छोड़ पाते हैं जिस तरह का उनमें सामर्थ्य था। कहानियों के रोमांच और रहस्य वाले तत्व पर और काम होता तो यह बेहतरीन कहानियाँ बन सकती थी।

उम्मीद है अगले संग्रह में यह इन सब बातों पर काम होगा।

 रेटिंग है: 2/5

अगर आपने इस संग्रह को पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।
अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है और पढ़ना चाहते हैं तो आप इसे निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं:
पेपरबैक
किंडल


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

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7 Comments on “भूतिया हवेली – मनमोहन भाटिया”

  1. मैं भी यह किताब खरीद चुका हूँ पर पढ़ी नहीं है अब तक😎

    1. वाह! ये तो अच्छी बात है।किताब को पढ़कर अपने विचारों से अवगत जरूर करवाईयेगा।

  2. सुन्दर समीक्षा…., नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँँ विकास जी ।

    1. जी शुक्रिया। नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें, मीना जी।

  3. हां मैंने यह किताब पढी है। मुझे कहानियाँ कोई विशेष न लगी।
    जैसे पहली कहानी की बात करें तो इसमें कथावाचक का किरदार ही अनावश्यक है, जब भूत सब कुछ स्वयं कर सकता है तो कथावाचक की कहां आवश्यकता थी।
    अच्छी समीक्षा, धन्यवाद।
    भूतिया हवेली- shorturl.at/qQRT8
    – गुरप्रीत सिंह, राजस्थान

    1. आभार गुरप्रीत जी। किताब पर लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।

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