- 30 जनवरी को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में होगा कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा ‘दियासलाई’ का लोकार्पण
- करुणा में है दुनिया बदलने की शक्ति, मेरे जीवन-संघर्ष की कहानी करुणा से प्रेरित : कैलाश सत्यार्थी
- नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हस्ती की मूल रूप से हिन्दी में प्रकाशित पहली आत्मकथा है ‘दियासलाई’ : अशोक महेश्वरी
29 जनवरी, 2025 (बुधवार)
नई दिल्ली/जयपुर। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित भारतीय मूल के पहले व्यक्ति कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा ‘दियासलाई’ का लोकार्पण गुरुवार को जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में होगा। आत्मकथा में उन्होंने अपने संघर्षपूर्ण जीवन की कहानी साझा की है। साथ ही, उन्होंने भारत और दुनियाभर के बच्चों के कल्याण और मुक्ति के लिए किए गए प्रयासों का भी उल्लेख किया है। उनकी आत्मकथा को राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। यह नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किसी हस्ती की मूल रूप से हिन्दी भाषा में प्रकाशित होने वाली पहली आत्मकथा है।
दियासलाई में भरी होती है अनन्त संभावनाएँ : कैलाश सत्यार्थी
अपनी आत्मकथा के प्रकाशन की घोषणा पर कैलाश सत्यार्थी ने कहा, ‘दियासलाई’ में मेरे बचपन की शरारतों से लेकर अब तक की कहानी है। इसमें सबसे प्रमुख वह विनम्र प्रयास है, जब मैंने यह महसूस किया कि बच्चों की गुलामी, उनका शोषण और उनके साथ अत्याचार, सभ्यता के विकास के साथ नहीं चल सकते। मैंने ठान लिया कि इस बुराई को खत्म करना है। यह लंबा संघर्ष था जिसमें बहुत लोगों ने मेरा साथ दिया।
इस राह में बहुत मुश्किलें आईं, हमारे ऊपर हमले हुए, तीन साथी शहीद हो गए; लेकिन अब मुड़कर देखता हूँ कि वह कौन सी ताकत थी जिसने मुझे लड़ते रहने का माद्दा दिया। मैं पाता हूँ कि मेरे पूरे जीवन-संघर्ष की कहानी करुणा से प्रेरित है। करुणा कोई कमजोर भावना नहीं है। करुणा दुनिया को बदलने की शक्ति रखती है। एक बेहतर दुनिया बनाने की अगर कोई ताकत है तो वह करुणा है। जहाँ हम एक-दूसरे की समस्या को अपनी समझें, महसूस करें और उसको दूर करने के लिए जुट पड़ें, यही मेरी ज़िन्दगी रही है।
मैंने अपनी आत्मकथा का नाम ‘दियासलाई’ इसलिए रखा क्योंकि दियासलाई में अनन्त संभावनाएँ भरी होती हैं। दुनिया को रोशन करने की संभावनाएँ। वह खुद जल जाती है, मगर वह एक भी दिए को जला देती है तो वह दिया अनगिनत दियों को जला सकता है और सारी दुनिया प्रकाशित हो सकती है।
कई दशकों की इस लंबी यात्रा के बारे में लिखना आसान नहीं था लेकिन आप सभी के प्यार और भरोसे ने मुझे यह लिखने को प्रेरित किया। अब ‘दियासलाई’ आपके हाथों में आने के लिए तैयार है। मुझे उम्मीद है कि यह पुस्तक आपको अँधेरे से उजाले की ओर आने के लिए प्रेरित करेगी ताकि हम सब मिलकर एक दुनिया बना पाएँ और करुणा का वैश्वीकरण कर सकें।
हिन्दी भाषा भाषियों के लिए यह एक अभूतपूर्व क्षण : अशोक महेश्वरी
राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, यह हमारे लिए गौरव की बात है कि नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा का प्रकाशन हम कर रहे हैं। यह पहली बार है जब किसी नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हस्ती की आत्मकथा का प्रकाशन मूल रूप से हिन्दी भाषा में हो रहा है। हम हिन्दी भाषा भाषियों के लिए यह एक अभूतपूर्व क्षण है।
उन्होंने कहा, कैलाश सत्यार्थी का जीवन हम सबके लिए प्रेरणादायी है। हम उनके सामाजिक कार्यों और योगदान से परिचित हैं, इस किताब के माध्यम से उनके अनथक संघर्ष के ब्योरों से भी परिचित होंगे। उन्होंने दुनियाभर में बालश्रम और बंधुआ मजदूरी की जकड़ में फँसे बच्चों को मुक्त कराने और उनकी शिक्षा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। कई बार उन्होंने अपने ऊपर जानलेवा हमले भी झेले। उनके इस लंबे और निरंतर संघर्ष की कहानी किंचित पहली बार इस किताब में विस्तार से सामने आ रही है।