समीक्षा: नारीपना – मोहित शर्मा

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई बुक | प्रकाशक: डेलीहंट 

किताब लिंक: गूगल बुक्स

समीक्षा: नारीपना - मोहित शर्मा | Book Review: Naripana -Mohit Sharma Zehan | Mohit trendster

नारीपना मोहित शर्मा ‘जहन’ का एक रचना संग्रह है। इस संग्रह में उनकी कहानियों, लघु-कथाओं और कविताओं को संकलित किया गया है। नारीपना में मोहित शर्मा की ग्यारह रचनाओं को संकलित किया गया है। इन रचनाओं में दो कहानियाँ , सात लघु-कथाएँ और दो कविताएँ शामिल हैं।

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संग्रह की पहली रचना नारीत्व ईला की कहानी है। ईला जब दो साल पहले पुलिस में भर्ती हुई थी तो उसके घर में सबका सीना गर्व से चौड़ा हो गया था। लेकिन अब दो साल बाद उसे पुलिस की नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। ईला को बर्खास्त क्यों किया गया? इस प्रश्न का उत्तर कहानी में पाठकों को मिलता है। 

अक्सर चीजें वैसे नहीं होती हैं जैसे सबके सामने दिखती हैं। फिर पुलिस वालों को लेकर तो एक तरह का पूर्वग्रह हम लोगों के बीच मौजूद रहता है। याद है न दिल्ली मेट्रो में जब एक पुलिस वाला बीमारी के चलते खड़े खड़े निढाल होकर गिर गया था तो सबने सहज ही से उसे शराबी मान लिया था। इस कहानी में भी लेखक ने इस प्रवृत्ति पर टिप्पणी की है। कैसे किसी घटना को आप तक पहुँचाया जाता है, कैसे नेता एक घटना को अपने राजनीतिक स्वार्थ के चलते उसे एक तरह से दिखाकर अपना वोट बैंक बनाने की कोशिश करते हैँ और इसका संबंधित व्यक्ति पर क्या असर पड़ता है इसको लेखक ने बाखूबी दर्शाया है। कहानी दिल को छू जाती है। 

संग्रह की दूसरी रचना सुनहरी जो मीरा एक कविता है। कविता में कवि ने मीरा के जीवन को दर्शाने की कोशिश की है। मीरा बाई की कहानी अपने आप में बहुत अनूठी है और इसका जिक्र कवि कुछ यूँ करते हैं:

अब तक बस शहजादों-परवानों के किस्सों को लकीर माना,
फिर एक नयी दीवानी को जाना 

वहीं उन्होंने अपनी भक्ति के कारण जो कुछ सहा उसके विषय में वो कुछ यूँ कहते हैं:

जाने कैसा मोह, जाने कौन सहारा
एक उसकी वीणा, दूजा जग सारा
तानों की अगन यूँ सही,
काँटों की सेज पर सोई

संग्रह की तीसरी रचना बाइनरी मम्मी एक लघु-कथा है।  बाइनरी नंबर सिस्टम में केवल दो ही नंबर 0 और 1 ही होते हैं। इस कहानी की मम्मी भी कुछ ऐसी ही है। कई बार माँ बाप भी बच्चों को लेकर इतने ओवरप्रोटेक्टिव हो जाते हैं कि वह न चाहते भी उनका नुकसान कर जाते हैं। यह भी लेखक ने इधर दर्शाया है। जीवन में चीजों का संतुलन होना काफी जरूरी है और अगर आप अपने बच्चे को संतुलित जीवन देते हो तो उसके लिए यही सबसे अच्छा रहता है। 

संग्रह की चौथी रचना उदार प्रयोग जर्मनी में नाजी सरकार द्वारा रोमन जिप्सी लोगों के नर संहार को केंद्र मे रखकर लिखी गयी है। यह एक ऐसी माँ की कहानी है जो अपने बच्चों को उज्ज्वल भविष्य की चाह में अपने से जुदा तो कर देती है लेकिन जब असलियत उसे मालूम होती है तो वह यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाती है। द्वितीय विश्वयुद्ध आज से  सत्तर-अस्सी  साल पहले हुआ था लेकिन  इस कहानी की महिला जैसी महिलायें आज भी हमारे आस पास हैं। गाँव से बच्चे बच्चियाँ उज्ज्वल भविष्य और नौकरी की तलाश में शहर तो आते हैं लेकिन यहाँ आकर उनका शारीरिक और यौन शोषण होने लगता है। उनकी माँयें भी ऐसी ही छली जाती हैं। आए दिन ऐसी खबर आती रहती हैं। तब हम सोचने में मजबूर हो जाते हैं क्या हम इंसान कहलाये जाने के लायक हैं? क्या सच में हमने विकास किया है? क्या समाज बदला है?

संग्रह की पाँचवी रचना अ चुड़ैलस लव स्टोरी है। यह कहानी संग्रह की बाकी रचनाओं से दो मामलों में अलग है। पहला तो ये कि यह एकलौती ऐसी रचना है जिसका शीर्षक अंग्रेजी में है और दूसरा यह कि यह इस संग्रह की एकलौती ऐसी रचना है जिसे रोमन स्क्रिप्ट में लिखा  है।  ऐसा क्यों है ये तो लेखक को ही पता होगा। 

बहरहार कहानी की बात करें तो यमदूतेश  की नौकरी तड़ापुर नाम की जगह जब लगती है तो उसे अहसास होता है उसे किन परेशानियों में धकेल किया है। तड़ापुर में चुड़ैलों और भूतप्रेतों का आतंक है और यमदूतों को उनसे बनाकर रखनी पड़ती है। ऐसे में यमदूतेश इस मामले को कैसे सुलझाता है यही कहानी का कथानक बनता है। 

कहानी एक हास्यकथा है जो पढ़ते हुए आपको गुदगुदाती है। वहीं यमदूत और प्रेत किसी सरकारी दफ्तर के कर्मचारी से  लगते हैं। उनकी हरकतें देखकर ऐसे भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों की शक्लें आपकी आँखों के सामने तैरने लगती हैं जिनसे जीवन में कभी न कभी आपका पाला पड़ा होगा। रोचक कहानी है। 

कुछ पल और गुजार ले इस संग्रह की छठवीं रचना है। आजकल बच्चों पर प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन करने का काफी दबाव रहता है। यह दबाव कई बार बच्चों के घातक भी हो जाता है और कई बार अच्छी प्रतिभाएँ हार मानकर दुनिया से चली जाती हैं। यह लघु-कथा ऐसी ही एक लड़की की है। एक बार असफल होना जीवन का असफल होना नहीं होता है यही लेखक ने इधर दर्शाने की कोशिश की है। वह कहते हैं:

कुछ समस्याएँ जो कभी जीवन को चारों और से घेरे ग्रहण लगाए सी प्रतीत होती है, जिनके कारण सुखद भविष्य की कल्पना असंभव लगती है, चंद महीनों बाद ऐसी समस्या का अस्तित्व तक नहीं रहता। थोड़ा और समय बीत जाने के बाद तो दिमाग पर जोर डालना पड़ता है कि ऐसी कोई दिक्कत भी थी जीवन में। 

उपरोक्त बात हमें याद रखने की जरूरत है और अगर आप अभिभावक हैं तो इसे अपने बच्चों को सिखाने की भी आपको जरूरत है। 

छद्म मुफ्तखोरी इस संग्रह की अगली लघु-कथा है। सरिता, नीतू और रीमा के वार्तालाप से यह लघु-कथा बनी है। यह लघु-कथा ऐसे लोगों को जरूर पढ़नी चाहिए जो अक्सर ऐसे चीजों जैसे जाति, धर्म, लिंग, खूबसूरती इत्यादि पर गर्व करते हैं जिनको पाने के पीछे उनका कोई हाथ नहीं होता है। यह सब चीजें तो बस एक संभावना हमे देती है और व्यक्ति व्यर्थ ही इन पर गर्व करता फिर्ता है।  एक जरूरी शिक्षा देती लघु-कथा। 

संग्रह की अगली रचना किस्मत से कुश्ती की पृष्ठभूमि खेल है। हाल ही में ओलिम्पिक खत्म हुए हैं और इस लघु-कथा में  भी एक खिलाड़ी की हालत ही दर्शाई गयी है। जब व्यक्ति ओलिम्पिक जीतता है तो देश के कोने कोने से उस पर उपहार और पुरस्कार बरसने लगते हैं वहीं अगर कोई खेल हार जाता है तो यही लोग उनकी लानत-मलानत करने से भी नहीं चूकते हैं। पर खिलाड़ी किन परिस्थितियों में खेल रहा है हमें उसके विषय में पता नहीं होता है। वहीं दूसरी और  कई खिलाड़ी ऐसे भी हैं जो प्रतिभाशाली होते हूए भी उस मंच तक अपनी गरीबी के कारण नहीं पहुँच पाते हैं। वो हर वक्त अपनी किस्मत से कुश्ती करते रहते हैं और ज्यादातर समय हार भी जाते हैं । हमे अगर खेल के लिए कुछ करना है तो ऐसे खिलाड़ियों की पहचान कर उन्हें ऐसी सुविधाये देनी होंगी ताकि कम से कम लोग आभाव के चलते खेल से किनारा न करें। यह लघु-कथा यही दर्शाती है। 

कहते हैं जोड़े स्वर्ग में बनते हैं लेकिन कई बार कुछ जोड़ों को देखकर लगता है कि यह एक दूसरे के लिए नहीं बने हैं। स्वर्ग में अगर यह जोड़ा बना है तो कुछ क्रॉस कनेक्शन सा हो गया है। संग्रह की अगली लघु-कथा क्रॉस कनेक्शन ऐसे ही दो जोड़ों के विषय में लिखी गयी है। यह लघु-कथा कम एक टिप्पणी ज्यादा लगती है। अगर इसे थोड़ा और विस्तार दिया जाता और जोड़े की औरतों के दृष्टिकोण को भी इसमें शामिल होता तो बेहतर रहता। 

परदे के पीछे इस संग्रह की अगली रचना है जिसमे रीऐलिटी शोस कि असलियत दर्शाने की लेखक ने कोशिश की है। आजकल हर चीज बिकाऊ है और दुख, दर्द, गरीबी टीवी पर प्रतिभा से ज्यादा बिकती हैं। इसी चीज को लघु-कथा के माध्यम से लेखक ने दर्शाया है। 

संग्रह की आखिरी रचना सावन से रूठने की हैसियत न रही एक प्रेम रस में भीगी हुई कविता है। कविता मन को छू जाती है।  कुछ पंक्तियाँ देखिए:

अपनी शिनाख्त के निशां मिटा दिये कब से …
बेगुनाही की दुहाई दिये बीते अरसे ….
दिल से वो याद जुदा तो नहीं
मुद्दतों उस इंतज़ार की एवज़ में वीरानों से दोस्ती खरीदी,
ज़माने से रुसवाई के इल्ज़ाम की परवाह तो नहीं !
सावन से रूठने की हैसियत ना रही

रोज़ दुल्हन सी संवार जाती है मुझको यादें ….
हर शाम काजल की कालिख़ से चेहरा रंग लेती हूं….
ज़िन्दगी को रू-ब-रू कर लेती हूं …
कभी उन यादों को दोष दिया तो नहीं …
सावन से रूठने की हैसियत ना रही।

इस संग्रह में लेखक ने समाज से जुड़े अलग अलग मुद्दों पर बात करने की कोशिश की है। हाँ, संग्रह की शुरुआत में उन्होंने इस नारी केंद्रित संग्रह कहा था जो कि अधिकतर रचनाओं में दिखता है। लेकिन कुछ रचनाओं में केंद्र पात्र महिला नहीं है। जैसे क्रॉस कनेक्शन, परदे के पीछे, अ चुड़ैलस लव स्टोरी भी एक स्त्री के दृष्टिकोण से लिखी जाती तो और अच्छा होता। इनमें स्त्रियाँ तो हैं लेकिन उनका दृष्टिकोण गायब है।  वहीं कुछ लघु-कथाएँ जैसे क्रॉस कनेक्शन, परदे के पीछे ऐसे विषय पर लिखी गयी हैं जिनके ऊपर काफी कुछ लिखा जा सकता है। ऐसे में लघु-कथा अपना कार्य तो पूरा करती हैं लेकिन एक पाठक के रूप में मैं जरूर चाहूँगा कि लेखक इन पर कुछ विस्तृत तौर पर लिखें। 

अंत में यही कहूँगा कि यह एक पठनीय रचनाओं का संग्रह है जिसे एक बार पढ़ा जा सकता है। मैं लेखक की काफी रचनाएँ मैं पढ़ चुका हूँ जो कि अधिकतर लघु-कथाएँ या कहानी ही रहती है तो उनसे ये आशा रहेगी कि भविष्य में उनके द्वारा लिखी बड़े कलेवर की रचना हमें पढ़ने के लिए हमें मिलेगी।

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

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2 Comments on “समीक्षा: नारीपना – मोहित शर्मा”

    1. जी लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा सर। आभार।

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