छोटू – अरुण गौड़

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 52 | प्रकाशक: फ्लाईड्रीम्स पब्लिकेशन 

समीक्षा: छोटू - अरुण गौड़
छोटू अरुण गौड़ का पहला कहानी संग्रह है। इस पुस्तक में लेखक की चार कहानियों को संग्रहित किया गया है।  यह कहानियाँ निम्न हैं:
1. गुलामी का पट्टा 
पहला वाक्य:
उसने स्कूल यूनीफोर्म भी पहन रखी थी, वो भाई-बहनों के साथ भी खेल रहा था।
गुलामी का पट्टा तेरह साल के लड़के किशन की कहानी है। किशन एक गरीब परिवार से आता है और अपनी बुरी आर्थिक स्थिति के कारण काम करने को मजबूर है। ऐसे में उसके साथ ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती है कि वह देवेन्द्र चौधरी नामक क्रूर व्यक्ति के खेतों में काम करने को मजबूर हो जाता है। यहाँ उसका जीवन नारकीय है और जब अति हो जाती है तो वह यहाँ से भाग निकलने की योजना बना लेता है। लेकिन भाग निकलने की सोचना और भाग निकलना दो अलग अलग बातें हैं। वह अपने मकसद में कामयाब हो पाता है या नहीं यही कहानी की विषयवस्तु बनती है।
गुलामी का पट्टा इस संग्रह की पहली कहानी है। हमारे देश में गरीबी वर्ग और जाति देखकर नहीं आती है। गरीब परिवारों के बच्चे अक्सर छोटी उम्र में ही परिवार की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाने के लिए कार्य करने लगते हैं। और काम की तलाश में वो कभी कभार ऐसे लोगों के चंगुल में फँस जाते हैं जो कि उन्हें गुलाम बनाकर रखते हैं। अरुण गौड़ की यह कहानी ऐसे ही एक लड़के किशन की है। अक्सर जब आम व्यक्ति और सरकार गरीबों के विषय में सोचती है तो वह इसे एक ही वर्ग या जाति तक सीमित करके रखती है। कई बार उनकी नीतियाँ भी इस तरह बनी होती हैं जो कि एक ही वर्ग या जाति के लोगों को लाभ पहुँचाती है। लेखक इस कहानी के माध्यम से यह भी दर्शाना चाहते हैं कि गरीबी ऐसी चीज है जो कि जाति धर्म देखकर नहीं आती और इसलिए जब नीति निर्धारक नीतियाँ बनाते हैं तो उन्हें ऐसी उच्च कही जाने वाले जातियों के गरीब गुरबों का भी ध्यान रखना चाहिए।
वहीं कहानी का मुख्य ध्येय ऐसे लोगों की पीड़ा को उभारना भी है जो कि अपनी आर्थिक विपन्नता के कारण ऐसे जल्लादों के चंगुल में फँस जाते हैं। कहानी पढ़ते हुए बरबस ही कई ऐसी खबरे आपके जहन में चलने लगती हैं जहाँ किशन जैसे कई युवक और युवतियों को दयनीय स्थिति में छुड़ाया गया। वैसे तो कहानी में देवेन्द्र जैसे पात्र हैं जो कि मानवता को शर्मसार कर देते हैं लेकिन इसके उलट कहानी के अंत में कई ऐसे पात्र भी आते हैं जो कि मानवता में आपका विश्वास बनाये रखते हैं। कहानी चूँकि किशन के बच निकलने की है तो यह रोमांचकथा सी  भी प्रतीत होती है। किशन बच पायेगा या नहीं यह जानने के लिए आप कहानी पढ़ते चले जाते हैं।
  
एक रोचक और पठनीय कहानी।
2.छोटू
पहला वाक्य:
आरती आज फिर उस चाय की गुमटी पर आई थी।
आरती जब भी उस दस साल के लड़के छोटू को चाय की दुकान पर देखती तो उसका दिल पसीज जाता। आरती को यह बात खलती कि स्कूल जाने की उम्र में वह लड़का इधर बर्तन साफ कर रहा था।
 
इसी उहापोह की स्थिति से निकलने का आरती को एक ही उपाय सूझा और उसने एक फैसला कर लिया। आखिर क्या था आरती का फैसला?
हमारी देश में बाल श्रम करवाना दंडनीय अपराध है लेकिन यह एक ऐसा कानून है जिसकी धज्जियाँ अक्सर उड़ाई जाती हैं। कई बार हम अपनी अलग दुनिया में बैठे ये सोच सकते हैं कि अगर इन कानूनों का सख्ताई से पालन हो तो कितना अच्छा हो लेकिन क्या असल में ऐसा है?  नीतिनिर्धारकों ने क़ानून बनाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री तो कर दी हैं लेकिन वह यह नहीं समझते हैं कि एक बच्चे को काम करने की जरूरत क्यों पड़ती हैं। चूँकि वह इस चीज को नहीं समझते हैं या समझना नहीं चाहते हैं इस कारण इन कानूनों के बनने के बाद भी इन कानूनों का पालन नहीं होता है और अगर इनका पालन करवाया जाए तो श्रमिक पर क्या असर होता है यह इस कहानी से लेखक ने दर्शाया है। 
छोटू एक विचारोतेज्जक कहानी है जो कि यह दर्शाती है कि जब तक बाल श्रम के कारणों का निदान नहीं होगा तब तक इस कानून का कोई असल फायदा नहीं होगा। 

3. नई पहचान 
पहला वाक्य:
ना जाने आज सुबह से ही, बचपन की यादों के ठंडे झोंके, बार बार सुन्दर को चूम रहे थे।
आज भी हमारे समाज में व्यक्ति की नहीं औहदे की इज्जत की जाती है। मैंने देखा है कि मेहनत मजदूरी करने वालों को अक्सर लोग हिकारत की नजरों से देखते हैं। रिक्शा चलाने वाले भाई को तू तड़ाक से बोला जाता है वहीं अगर कोई व्यक्ति किसी दफ्तर में कार्य करता है तो उससे आप जनाब करके बात की जाती है। यह सोच अक्सर सभी वर्गों के लोगों में पाई जाती है। इसी सोच को दर्शाती यह कहानी है। यही सोच है जिस कारण कई लोग अपने से आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों से दोस्ती करने से कतराते हैं। इस कहानी के नायक सुन्दर को भी ऐसे ही कई अनुभव हुए थे लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने उसे यह अहसास दिलाया कि सब एक से नहीं होते और कई लोगों के लिए दोस्ती अभी भी औहदे की मोहताज नहीं है।
एक पठनीय कहानी।
4. छलावा
पहला वाक्य:
बचपन बहुत अनमोल होता है।
छलावा एक बाल रोमांच कथा है। अक्सर बचपन में भूत प्रेत के किस्से काफी आकर्षित करते हैं। कहीं भूत के होने की खबर मिले तो उस जगह को देखने की इच्छा मन में बलवती हो जाती है। इन बातों से डर भी बहुत लगता है लेकिन कौतुहल इतना अधिक होता है कि उस जगह पर जाने का लोभ संवरण करना मुश्किल हो जाता है। यह कहानी भी बालकों की ऐसी ही एक टोली की कहानी है।
मुझे यह कहानी बहुत पसंद आई क्योंकि मेरे बचपन की काफी यादों को इसे ताज़ा कर दिया था। एक मनोरंजक कथा। उम्मीद है लेखक ऐसी बाल रोमांचकथाएँ लिखते रहेंगे।
अंत में यही कहूँगा कि छोटू एक पठनीय कथाओं का संग्रह हैं जिसकी कहानियों को मैंने एक ही बैठक में पढ़ लिया था। इस कहानी संग्रह की कहानियों के केंद्र में बच्चे ही हैं। जहाँ पहले तीन कहानियों में लेखक बाल मजदूरों की समस्याओं, उनकी दयनीय परिस्थितियों और उनके प्रति लोगों के व्यवहार को पाठक के समक्ष रखते हैं वहीं आखिरी की कहानी एक हल्की फुलकी रोमांच कथा है जो कि बचपन की यादो को दोबारा से जीवंत कर देती है। मुझे तो यह संग्रह पसंद आया। आप भी एक बार पढ़ कर देख सकते हैं।
© विकास नैनवाल ‘अंजान’

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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4 Comments on “छोटू – अरुण गौड़”

  1. बहुत बढ़िया कहानी संग्रह है। मुझे यह किताब पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

  2. आपकी समीक्षा ही बता रही है विकास जी कि यह पुस्तक सभी वर्गों के पाठकों के लिए पठनीय है । इससे परिचय करवाने के लिए हार्दिक आभार आपका ।

    1. जी आभार। आपने सही कहा कि यह सभी वर्गों के लिए है।

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