मगरमच्छ | राज कॉमिक्स | तरुण कुमार वाही

 संस्करण विवरण

फॉर्मैट: पैपरबैक | प्रकाशक: राज कॉमिक्स | पृष्ठ संख्या: 32 | शृंखला: डोगा 

टीम 

कथा निर्देश: संजय गुप्ता | लेखक: तरुण कुमार वाही | सहलेखक: भरत | चित्रांकन: मनु 

कहानी 

टाइगर एक खतरनाक अपराधी था जिसके ऊपर कत्ल का इल्जाम था। वह अब जेल से फरार हो गया था। 

अब डोगा ने उसे पकड़ने का फैसला कर लिया था। 

वहीं टाइगर का भी अपना मकसद पूरा होने से पहले किसी के हाथ नहीं आना चाहता था। 

आखिर टाइगर का मकसद क्या था? 

टाइगर को जेल में क्यों डाला गया था?

क्या डोगा टाइगर को पकड़ पाया?

मेरे विचार

इस बार मामा जी के पास गया था तो उधर से हवलदार बहादुर के साथ  डोगातिरंगा और थ्रिल हॉरर सस्पेंस शृंखला के कॉमिक भी ले आया था। डोगा के कॉमिक को पढ़े हुए लगभग एक साल हो गया था (इससे पूर्व बटलर पढ़ा था दिसम्बर में) तो सोचा इसका एक कॉमिक पढ़कर देखा जाए और इसलिए मगरमच्छ पढ़ने का इरादा किया। 

‘मगरमच्छ’ एक 32 पृष्ठ का कॉमिक बुक है जो कि 1996 में प्रकाशित हुआ था। कॉमिक बुक की कहानी तरुण कुमार वाही द्वारा लिखी गयी है और आर्ट मनु का है। कॉमिक के ऊपर नागराज ईयर 1996 लिखा है तो इसी से मैंने यह अंदाजा लगाया है। उम्मीद है सही ही होगा। 

इस कॉमिक बुक की कहानी वहाँ से शुरू होती है जहाँ पर इससे पूर्व प्रकाशित कॉमिक बुक ‘तंदूर’ की कहानी खत्म हुई थी। तंदूर मैंने पढ़ी तो नहीं लेकिन अब पढ़ने की इच्छा जागृत हो गयी है। हाँ, अगर आपने तंदूर नहीं पढ़ी है और मगरमच्छ पढ़ना चाहते हैं तो मेरी सलाह यहइन होगी कि पहले आप तंदूर पढ़ें और फिर इस कॉमिक की तरफ बढ़ें। आपको ज्यादा मज़ा आएगा। 

कहानी की बात करूँ तो चूँकि यह 32 पृष्ठ की कहानी है तो यह बात तो पढ़ते हुए ही आपको पता रहती है कि यह ज्यादा जटिल नहीं होगी। अगर होती तो दो भागों में खिंची हुई होती। इस कारण एक अपेक्षा आपकी इससे बंध जाती है। 

जैसा कि ऊपर बताया कि कहानी वहीं से शुरू होती है जहाँ पर तंदूर की कहानी खत्म हुई थी परंतु मगरमच्छ की कहानी मूलतः एक अपराधी टाइगर की है। टाइगर जेल से भागा है और हालात ऐसे हो जाते हैं कि वह अपने को पकड़ने आए पुलिस वालों पर भारी पड़ जाता है। डोगा भी अपराधी टाइगर को पकड़ने की कोशिश करता है और फिर परिस्थिति ऐसी बन जाती हैं कि डोगा को यह जानने की उत्सुकता हो जाती है कि आखिर टाइगर को जेल में डाला क्यों गया था और टाइगर क्यों जेल से भागा था? इन सवालों का जवाब डोगा को कहाँ पर ले जाते हैं और फिर कथानक क्या मोड़ लेता है यही कॉमिक का कथानक बनता है। 

चूँकि कथानक 32 पृष्ठों का है तो यह सीधा सादा है जिसमें ज्यादा ट्विस्ट नहीं है पर कॉमिक में एक्शन बना रहता है।हाँ, अगर आप रहस्य कथा के शौकीन हैं तो यह आपको निराश ही करेगा।

वहीं कॉमिक में ऐसी स्थिति आती है कि मोनिका और डोगा के बीच के समीकरण में बदलाव होने का अंदेशा भी दर्शायी देता है। देखना होगा कि इस कॉमिक का अंत जिस मोड़ पर होता है वह मोनिका और डोगा के बीच के समीकरण पर क्या असर डालता है। कॉमिक में इंस्पेक्टर चीता और नये कमिश्नर के बीच का समीकरण भी रोचकता जगाता है। वहीं यह उत्सुकता जगाता है कि लेखक आगे इस समीकरण को कैसे भुनाएँगे।

कॉमिक में एक कोण स्वामिभक्ति का भी है। इधर स्वामिभक्ति की परिभाषा मुझे थोड़ा अजीब ही लगी। यहाँ इतना ही कहूँगा कि अगर एक व्यक्ति के चार मालिक हैं और एक मालिक अपराधी गतिविधियों में लिप्त हो तो किसी की स्वामिभक्ति जितनी उस अपराधी के तरफ होगी उससे ज्यादा उन तीन मालिकों की तरफ होगी जो ईमानदार थे। यह छोटी सी बात कॉमिक का एक किरदार नहीं समझ पाता है। न डोगा ही इसे लेकर उसे कोई तर्क देता है। अगर देता तो बेहतर रहता। 

कॉमिक में एक आतंकवादी वाला कोण भी है जिसे क्लाइमेक्स में एक्शन के लिए प्रयोग किया गया है। इससे क्लाइमैक्स एक्शन से भरपूर बना है लेकिन आतंकवादियों की संख्या मुझे थोड़ा कम ही लगी थी। थोड़ा ज्यादा होती तो बेहतर होता। कहानी के अंत में आतंकवादियों और उनके साथी को लेकर कोई अधिक खुलासा नहीं होता है। यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या आगे की कहानियों में यह खुलासा हुआ है या फिर ऐसे ही लेखक ने कुछ करना था तो कर दिया है। अगर किसी ने इस कॉमिक के बाद के कॉमिक पढ़ें तो इस विषय में कमेंट्स के माध्यम से अवश्य बताइएगा।  

वहीं कॉमिक का शीर्षक भी इससे न्याय नहीं करता है। ऐसा लगता है कि शीर्षक पहले ही सोच लिया गया हो लेकिन फिर लेखक शीर्षक के हिसाब से कहानी नहीं लिख पाएँ हो। बस एक खाना पूर्ति कर सी गयी है। मुझे लगता है शीर्षक बेहतर हो सकता था। इस चीज के अलावा कॉमिक का आर्ट मुझे तो ठीक ठाक लगा। कथानक के साथ न्याय करता है। 

आर्टवर्क की बात की जाए तो आर्टवर्क अच्छा है। हाँ, पैनल्स में टाइगर, जो कि एक फैक्ट्री का गार्ड रहता है, वह शारीरिक संरचना में डोगा से बीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं लगता है। यह थोड़ा अजीब लगता है। थोड़ा उसकी सेहत कम होती तो बेहतर न होता। 

अंत में यही कहूँगा कि डोगा का कॉमिक एक्शन के मामले में तो संतुष्ट करता है लेकिन कहानी थोड़ा और मजबूत हो सकती थी। कहानी में थोड़े ट्विस्ट अधिक होते तो बेहतर होता पर फिर शायद यह 32 पृष्ठ के कॉमिक में संभव नहीं होता। खैर, कॉमिक एक बार तो पढ़ा जा ही सकता है।

 

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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