एक ही अंजाम – सुरेन्द्र मोहन पाठक

संस्करण विवरण

फॉर्मैट: ई बुक | प्रकाशन: डेली हंट | प्रथम प्रकाशन: 1993

पुस्तक लिंक: अमेज़न

Book Excerpt: Ek hi Anjaam |  Surender Mohan Pathak | पुस्तक अंश: एक ही अंजाम | सुरेन्द्र मोहन पाठक

कहानी 

शाह परिवार के लोग शिवालिक इंडस्ट्रीज पर कई वर्षों से एक छत्र राज करते आए थे परन्तु अब उनके राज को डगमगाने एक व्यक्ति भारत आ चुका था। 
यह व्यक्ति कांति देसाई था जो शाह परिवार के हाथों से शिवालिक इंडस्ट्रीज का नियंत्रण  लेकर उसकी कमान खुद संभालने की इच्छा रखता था। कांति देसाई अपने इस इरादें में कामयाब होते भी नजर आ रहा था। ऐसा भी कहा जा रहा था कि कनाडा से लौटे कांति के पीछे भारत सरकार का हाथ था जो कि शाह परिवार के बड़ते रुतबे को कम करना चाहती थी। 
पर शाह परिवार ने भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेली थी और वह कांति शाह को रास्ते से हटाने की पूरी योजना बना चुके थे। 
एक युद्ध होने को तैयार था। ऐसा युद्ध जो शिवालिक के अगले मालिक का नाम निर्धारित करता। 
लेकिन  इस युद्ध में अनिरुद्ध शर्मा, जो पेशे से एक टीवी प्रड्यूसर था, फँस गया था। और वह इस बुरी तरह फँसा कि उसके पीछे पुलिस तो पड़ी साथ ही शाह और कांति देसाई के आदमी भी पड़ गए। 
शिवालिक इंडस्ट्रीज का जो होना होता वो होता लेकिन इतने लोगों के अपने पीछे पड़े होने से अनिरुद्ध को अपना एक ही अंजाम होता नजर आ रहा था। और वह अंजाम था मौत। 
आखिर अनिरुद्ध कॉर्पोरेट घरानों की इस लड़ाई के बीच में कैसे फँसा? 

यह दोनो पार्टियाँ उससे क्या चाहते थे?

अपनी जान को साँसत से निकलवाने के लिये अनिरुद्ध को क्या करना पड़ा?

शिवालिक इंडस्ट्रीज में आखिर किसका राज काबिज हुआ? 
ऐसे कई असंख्य प्रश्नों के उत्तर आपको इस कथानक को पढ़ कर प्राप्त होंगे। 

मुख्य किरदार 

कांति देसाई – एक एन आर आई जो आठ माह पहले ही मुम्बई आया था और शिवालिक ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज को खरीदने के फिराक में था
हरी भाई शाह – शिवालिक ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज का सी एम डी
किशोर शाह- हरी भाई शाह का सबसे छोटा बेटा
राजू सावंत – एक दुर्दांत हत्यारा जो कि शाह परिवार का ट्रबल शूटर था
निर्मल कोठारी – रॉ का एक उच्चाधिकारी
शिवाजी साबले – कांति देसाई का खास और राजू सावंत जैसा ही मवाली
सिन्हा और कुरेशी – रॉ के एजेंट और निर्मल के मातहत। सिन्हा रॉ का इलेक्ट्रॉनिक एक्सपर्ट था
अनिरुद्ध शर्मा – बम्बई दूरदर्शन में एक प्रोड्यूसर
राधिका – अनिरुद्ध शर्मा की बीवी जिसने उससे तलाक की अर्जी दायर की थी
मेघना – अनिरुद्ध की एक लौती बेटी जिसकी कस्टडी राधिका को मिली थी
अब्दुल रहमान अल यूसुफ – दुबई में रहने वाला एक व्यक्ति जो कि अंतरराष्ट्रीय कांट्रैकट किलर था
हेमंत जरीवाला – एक डायमंड ट्रेडर जो कि फेन्स भी था
विनायक राव – हेमंत का सहायक
अलेक्स अलेमाओ – गोआ में अनिरुद्ध शर्मा का दोस्त
चर्चिल – अलेमाओ का नौकर
सोनिया वाल्सन – हेमन्त के साथ आई लड़की
लारा स्टील – होटल सोल्टी ओबेरॉय में मौजूद एक पॉप सिंगर
प्रभाकर भावे- शिवाजी साबले का खास आदमी
चंचल पैठकर – टेनिस क्लब की बीस वर्षीय अटेंडेंट
राजेन्द्र शिंदे – एक बड़े इंडस्ट्रियल घराने का सिक्योरिटी चीफ
भिड़े,शेट्टी – सावंत के आदमी
महाडिक – शिवजी साबले का आदमी
सुरेश शाह, हरीश शाह – हरिभाई शाह के बेटे
दशरथ कोइराला – नेपाल का एक उद्योगपति
मुकेश कुलकर्णी, वीरेश कुलकर्णी – कुलरकर्णी बन्धु जिनसे मिलने देसाई नेपाल आया था।
गोवर्धन मेहता – हीरों का व्यापारी

मेरे विचार

एक ही अंजाम लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा लिखी गयी एक रोमांचकथा है। यह उपन्यास पहली बार 1993 में प्रकाशित हुआ था और जो संस्करण मैंने इसका पढ़ा है वह डेलीहंट से 2014 में प्रकाशित हुआ था। लेख के शुरुआत में ही मैं यह बता देना चाहूँगा कि एक ही अंजाम एक बेहतरीन रोमांचकथा है और आपका मनोरंजन करने में पूरी तरह सक्षम है। 
जब भी सफेद पोश लोगों के आपराधिक गठजोड़ की बात आती है तो जहन में सबसे पहले नेताओं का नाम आता है। परंतु यह भी सच है कि जितना गठजोड़ राजनेताओं का अपराधियों से होता है उतना ही बड़े बड़े व्यापारियों या धनाढ्य लोगों से भी होता है। अपने काले कारनामों को अंजाम देने के लिये और अपने प्रतिद्वन्दियों को पत्ता साफ करने के लिये यदा कदा वह लोग ऐसे अपराधियों का इस्तेमाल करते रहते हैं।  सुरेन्द्र मोहन पाठक का उपन्यास एक ही अंजाम भी मुख्यतः ऐसे दो व्यापारियों की कहानी है जिनके बीच में एक कंपनी के नियंत्रण को लेकर खींचतान हो रही है। यह दोनो व्यपारी किस तरह से कुछ भी कानूनी या गैरकानूनी कार्यवाही करके इस कंपनी का नियंत्रण हथियाना चाहते हैं यह इस कहानी का मुख्य कथानक बनता है। इनके द्वारा आपसी लड़ाई में जीत हासिल करने के लिए जो हथकंडे अपनाए जाते हैं वह आपको ऐसे सफेद पोश लोगों के स्याह चेहरे से तो वाकिफ़ करवाते ही हैं साथ में कथानक में वह कानून को जिस तरह अपने हिसाब से चलाते दिखते हैं वह आपको कहीं पर डराते भी हैं।  वैसे तो यह एक गल्प है परन्तु उपन्यास पढ़ते हुए आप भी जानते हैं कि ऐसा होना असल में मुनासिब है। 
उपन्यास में भारतीय खूफिया एजेंसी का भी जिक्र है जो भारत सरकार की कहने पर इस मामले में शामिल होती है। सरकार चाहे तो क्या क्या कर सकती है यह बात इधर दर्शाया गयी है। सरकार जिसे उठाना चाहे उसे किस तरह उठा सकती है और जिसे गिराना चाहे उसे किस तरह गिरा सकती है यह भी इधर देखा जाता है। अगर असल जिंदगी की बात की जाए तो कई बार ऐसे उदाहरण देखने को मिल जाते हैं जो कि सरकार की मुखालफत करने का साफ साफ नतीजा होते हैं। जो आपके साथ नहीं है उनको प्रताड़ित करने के लिये क्या क्या ताकत के शीर्ष पर बैठे लोग करते हैं यह भी इधर दिखता है। 
कई बार व्यक्ति गलत समय पर गलत जगह होता है और उसको इसका खामियाजा उठाना पड़ता है। कहानी के मुख्य किरदार अनिरुद्ध शर्मा के साथ यही होता है। वह अपनी बुरी किस्मत के चलते ऐसी जगह पर आ जाता है कि जहाँ ना चाहते हुए भी वह शाह परिवार और कांति देसाई के लोगों के लिये महत्वपूर्ण हो जाता है और दोनो ही पार्टियाँ उसे पाने के लिये लड़ने लगती हैं। इस दौरान अनिरुद्ध शर्मा को इस बात का भी अहसास होता है कि किस तरह कानून पैसे वालों के सामने सजदा करता है और अगर पुलिस चाहे तो कैसे बेगुनाह को भी गुनाहगार साबित कर सकती है। अनिरुद्ध अपनी खिलाफ चली जा रही चालों से किस प्रकार लड़ता है और इसके लिए उसे क्या क्या करना होता है यह उपन्यास में रोमांच बनाए रखता है। अनिरुद्ध एक शराबी भी है और शराब किस तरह एक हँसते खेलते परिवार को बर्बाद कर सकती है वह भी पाठक उसके जीवन से जान सकता है। शराब के अनिरुद्ध के जीवन पर होते असर और शराब को लेकर उसके जीवन में जो बदलाव आते हैं उससे पाठक कुछ सीखना चाहे तो सीख सकता है। 
उपन्यास में रोमांच तो है ही साथ ही रहस्य का तड़का भी लेखक द्वारा लगाया गया है। उपन्यास में मौजूद सोनिया वालसन का किरदार ऐसा ही एक रहस्यमय किरदार है। वह अनिरुद्ध के साथ इस कहानी में जुड़ जाती है लेकिन उसे लेकर संशय हमेशा बना रहता है। वह कौन है और जो कर रही वो क्यों कर रही है यह जानने के लिये भी पाठक उपन्यास के पृष्ठ पलटते चला जाता है। अपनी बात करूँ तो मुझे उसका किरदार पसंद आया। चूँकि वह ऐसे पेशे में जिसमें उसका अपराधियों से पाला पड़ता रहता होगा तो मैं जरूर जानना चाहूँगा कि लेखक ने इस किरदार को लेकर भी कभी कुछ और लिखा था। अगर आपको पता होगा तो मुझे जरूर इस बात से अवगत करवाइएगा। 
एक ही अंजाम में आपको रहस्य रोमांच तो मिलेगा ही साथ ही कई जगह हास्य भी मिलेगा। बच्चे मन के मासूम होते हैं और कई बार ऐसी बातें कर देते हैं कि उनके अभिभावकों को बगले झाँकनी पड़ जाती हैं। उपन्यास में अनिरुद्ध शर्मा की बेटी मेघना ऐसा ही एक किरदार है। मेघना एक सात वर्षीय लड़की है जो उपन्यास में कई बार ऐसी बातें कर देती है कि उसे पढ़कर आपकी बेसाख्ता हँसी निकल जाती है। मुझे उसका किरदार काफी पसंद आया। 
उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप ही हैं। ज्यादातर किरदार अपने स्वार्थ के चलते एक दूसरे से भिड़ रहे हैं। कई आपराधिक चरित्र के लोग यहाँ मौजूद हैं। हेमंत जरीवाला, अलेक्स आलेमाओ अब्दुल रहमान अल यूसुफ, शिवाजी साबले और राजू सावंत इनमें से रोचक लगे। 
इन सबके अलावा एक और किरदार उपन्यास में मौजूद था जिसने मेरी रुचि जगाई। यह निर्मल कोठारी नाम का व्यक्ति है जो रॉ का बड़ा अफसर है। वह एक सरकारी मुलाजिम है और सरकारी काम करते हुए उसे मिशन के लिये कुछ ऐसे काम करने होते हैं जो सही नहीं कह जा सकते हैं। वह व्यक्तिगत तौर पर इसके विषय में क्या सोचता है और उसके द्वारा किए गए इन निर्णयों को वह अपने मन में किस तरह उचित सिद्ध करता है यह अगर उपन्यास में दर्शाया होता तो अच्छा रहता। यह एक जटिल किरदार हो सकता है जिसके मनोवैज्ञानिक पहलू को मैं समझना चाहूँगा। मैं ऐसे एक किरदार के दृष्टिकोण  से लिखे गए उपन्यास को जरूर पढ़ना चाहूँगा। 
अंत में यही कहूँगा कि एक ही अंजाम एक पठनीय रोमांचकथा है जो कि पाठक को शुरू से लेकर अंत तक बांध कर रखती है। कई जगह उपन्यास में मौजूद हास्य आपको गुदगुदाता है तो कई जगह कथानक में आते घुमाव आपको चौंका भी देते हैं। उपन्यास का आखिरी टकराव (मिसाइल वाला प्रसंग) भले ही कुछ को थोड़ा फिल्मी लगे लेकिन जिस तरह के बड़े कैनवास पर लेखक कहानी को उकेरा है उससे देखते हुए यह एकदम फिट बैठता है। उपन्यास मुझे बहुत पसंद आया। 
अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो एक बार इसे जरूर पढ़ना चाहिए। 
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आज का प्रश्न

प्रश्न: आपको रहस्यकथाएँ (mystery) पसंद हैं या रोमांचकथाएँ (thriller)?  इन विधाओं में अपने पसंदीदा उपन्यासों के नाम भी मुझसे जरूर साझा कीजिएगा।  

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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10 Comments on “एक ही अंजाम – सुरेन्द्र मोहन पाठक”

    1. मेरी पोस्ट को चर्चाअंक में शामिल करने हेतु हार्दिक आभार।

  1. बहुत बढ़िया समीक्षा, विकास भाई। सुरेंद्र जी के कुछ उपन्यास मैं ने भी पढ़े है। बहुत ही लाजबाब रहते है।

    1. जी आभार मैम। आपने सही कहा कि उनके उपन्यास पठनीय रहते हैं।

  2. विस्तृत पक्षों पर सुंदर समीक्षा करती पोस्ट, कहानी रोचक सस्पेंस से भरी लग रही है।

    1. जी टिप्पणी आपको पसंद आयी यह जानकर अच्छा लगा। कहानी वास्तव में रोचक है। आभार।

  3. पाठक जी की एक अलग ही पहचान करवाती हुई सुन्दर प्रस्तुति ।

  4. पुस्तक के सभी पहलुओं पर प्रकाश डालती शानदार समीक्षा।

    1. लेख आपको पसन्द आया यह जानकर अच्छा लगा मैम।

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