कौतुक ऐप – सूर्यानाथ सिंह | राष्ट्रीय पुस्तक न्यास

संस्करण विवरण

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 78 | प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास | चित्रांकन: पार्थ सेनगुप्ता

पुस्तक लिंक: अमेज़न | राष्ट्रीय पुस्तक न्यास 

कहानी 

अभय शंकर एक जाने माने वैज्ञानिक थे जिन्होंने अपने पोते, हृदय, कोतुक एप का निर्माण किया था। उनका ये सपना था कि देश की सरकारी एजेंसी इसे लॉन्च करे पर ऐसा कुछ हो न सका। 

अब उनके पोते हृदय ने ये ठाना था कि वो अपने दादा का सपना पूरा करेगा।

क्या वो अपने दादा का सपना पूरा कर पाया?

ये उसने कैसे किया?

मुख्य किरदार 

अभय शंकर – एक मशहूर वैज्ञानिक जो अब रिटायर हो चुके थे
हृदय – अभय शंकर का पोता
अन्वय – हृदय का दोस्त
जयंत – एक लड़का जिसके पिता बड़े व्यवसायी थे
बलवीर – जयंत के घर में रखा हुआ सहायक

मेरे विचार 

आज का समय तकनीक का समय है और तकनीक की चाबी के रूप में जो चीज उभर कर आई है वो हमारा मोबाइल है। जब ग्राहम बेल ने फोन का आविष्कार किया था तो मकसद दूर बैठे व्यक्ति के साथ संपर्क साधना था। पर आज के समय में मोबाइल बातचीत के अलावा भी कई कार्य करने में सक्षम है। फिर वो चाहे जानकारी जुटाना हो, खाना मँगवाना हो, सेहत का ख्याल रखना हो या कहीं जाने के लिए गाड़ी मँगवाना हो। ये सब काम अब मोबाइल में मौजूद ऐप के माध्यम से आसानी से हो सकता है। ऐसे ही एक ऐप की कल्पना प्रस्तुत बाल उपन्यास ‘कौतुक ऐप’ में की गई है। 
‘कौतुक ऐप’ राष्ट्रीय पुस्तक न्यास द्वारा प्रकाशित सूर्यनाथ सिंह का लिखा बाल उपन्यास है। उपन्यास का प्रथम संस्करण 2021 में आया था। उपन्यास को वर्ष 2023 का साहित्य अकादमी बाल साहित्य पुरस्कार प्राप्त हुआ था। 
उपन्यास के केंद्र में हृदय नामक बालक है। हृदय अपने दादा अभय शंकर का दुलारा है। जो बातें हृदय के दादा अपने परिवार के किसी भी सदस्य से नहीं करते हैं उन बातों को हृदय को बताते हैं। इन्हीं बातों में से एक बात कौतुक ऐप की भी है जो उन्होंने हृदय के कहने पर ही बनाया था। अभय शंकर एक जाने माने वैज्ञानिक हैं जिन्होंने अपने गुजरने से पहले कौतुक ऐप नामक एक मोबाइल एप्लीकेशन बनाया था जिसके चलते बच्चों को तो काफी कुछ सीखने को मिलता ही लेकिन वैज्ञानिकों को भी अनुसंधान में काफी मदद मिलती। पर दफ्तरी राजनीति के चलते उनका ऐप जब वैज्ञानिक अनुसंधान परिषद पास नहीं करता है तो हताशा से भर जाते हैं। इसके कुछ दिनों बाद उनकी मृत्यु हो जाती है और हृदय अपने दादा के सपना पूरा करने की ठान लेता है। पर ये काम करने से पहले जो मुसीबत आकर उसे घेर देती है यही उपन्यास का कथानक बनता है। 
हृदय के अलावा उपन्यास में मौजूद जयंत का किरदार भी रोचक है।  वो एक अमीर खानदान का लड़का है जिसके माता पिता उसे घर में रखना पसंद करते हैं। वह नहीं चाहते कि वो मोहल्ले के लड़कों के साथ खेले। उसके एकाकीपन को लेखक ने अच्छे से दर्शाया है। ऐसे बच्चे अक्सर वस्तुओं में ही अपनी खुशी देखने लगते हैं जो कि इस उपन्यास में दिखता है। जयंत ही वह किरदार है जो कथानक में कॉन्फ्लिक्ट पैदा करता है। इस कारण भी वह जरूरी है।
इनके अतिरिक्त बाकी किरदार कथानक के अनुरूप ही हैं। 
प्रस्तुत उपन्यास के माध्यम से लेखक मौजूदा समाज पर टिप्पणी करते दिखते हैं। फिर वो दफ्तरी राजनीति के कारण अच्छी चीजों को नकारना हो या हमारा मोबाइल के ऊपर आश्रित होना। मोबाइल के कारण किस तरह से हम परिवार के साथ रहकर भी एकाकी जीवन जी रहे हैं यह भी इसमें दिखाने की वो कोशिश करते हैं। ऐसे में बुजुर्गों पर जो इसका असर पड़ता है वह भी एक बातचीत के जरिए वह बतलाते हैं। हम लोग अब मोबाइल के इतने आदी हो चुके हैं कि अगर जरा भी देर के लिए कोई ऐप काम करना बंद कर देता है तो हम परेशान हो जाते हैं और तनाव में आ जाते हैं। ऐसे में अगर मोबाइल व्यवस्था ध्वस्त हो जाए तो किस तरह से वह हमारे जीवन की रेलगाड़ी को पटरी से हटा देगी यह भी इस उपन्यास में दिखता है। मोबाइल एक शक्तिशाली यंत्र है जिसने एक आम नागरिक के हाथ में ऐसी ताकत दे दी है जिससे वह काफी कुछ चुटकियों को बजाकर कर लेता है। पर जो चीज जितनी शक्तिशाली होती है उसका सदुपयोग और दुरोपयोग उतना ही अधिक हो सकता है। प्रस्तुत उपन्यास में कोतुक ऐप के माध्यम से यह भी लेखक द्वारा दर्शाया गया है। 
उपन्यास की लेखन शैली सहज और सरल है। नौ अध्यायों में यह उपन्यास विभाजित है और प्रत्येक अध्याय छोटे छोटे उपाध्यायों में विभाजित है। इस कारण इसे पढ़ना आसान हो जाता है। उपन्यास में पार्थ सेनगुप्ता द्वारा बनाए  रंग बिरंगे चित्र भी मौजूद हैं जो कि उपन्यास में घट रही घटनाओं को चित्रित करते हैं। इन चित्रों के होने से उपन्यास और आकर्षक हो जाता है। 
कोतुक ऐप - सूर्यानाथ सिंह | राष्ट्रीय पुस्तक न्यास
पुस्तक में मौजूद कुछ चित्र
उपन्यास के कथानक की कमी की बात करूँ तो शुरुआत में उपन्यास के केंद्र में हृदय नामक बच्चा है लेकिन बीच में वह केंद्र से हट सा जाता है। वह कौतुक ऐप से कुछ करने की कोशिश करता है लेकिन वो ऐप उसके हाथ से निकल जाता है। ऐसे में लेखक चाहते तो वह हृदय को  ऐप को हथियाने वाले तक पहुँचने की कोशिश करता दिखा सकते थे। इससे एक तरह का रोमांच भी उपन्यास में आ सकता था पर ऐसा कुछ हुआ नहीं।  पर वह ऐप से होने वाली परेशानियों तक ही सीमित रहते हैं। ऐसा होने से उपन्यास में रोमांच के आने की जो संभावना बन रही थी वह जाया हो गयी। मुझे लगता है कि रोमांच के तत्व कुछ उपन्यास में होते तो यह और अच्छा उपन्यास बन सकता था। 
अंत में यही कहूँगा कि कौतुक ऐप एक पठनीय बाल उपन्यास है जिसे एक बार पढ़कर देखा जा सकता है। मौजूदा समाज पर तकनीक के विकसित होने के चलते क्या असर पड़ता है और इस तरह आश्रित होने पर क्या नुकसान हो सकता है यह भी इधर दिखता है। उम्मीद है बाल पाठकों का मनोरंजन करने में यह सफल तो होगा ही साथ ही उन्हें कुछ सीख भी दे जाएगा। 

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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