संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 120 | प्रकाशक: सी बी टी प्रकाशन | चित्रांकन: बी जी वर्मा
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
दीपक, निखिल, काजिम, संजय ने मिलकर एक सीक्रेट सोसाइटी का निर्माण किया था।
दोस्तों की इस सीक्रेट सोसाइटी का मकसद था बिना किसी भेदभाव के लोगों की मदद करना।
और फिर एक दिन सोसाइटी के सदस्य निखिल का अपहरण हो गया।
निखिल का अपहरण किसने किया?
क्या सीक्रेट सोसाइटी अपने सदस्य की मदद कर पाई?
इस दौरान उन्हें क्या क्या परेशानी आई?
किरदार
माधुरी – दीपक की माँ
साही – सौरभ के पिता
उदयराज – साही के ऑफिस का चपरासी
रामदीन – उदयराज के पिता
मनीष – दीपक का बड़ा भाई
बलवीर – उदयराज का जानकार
रंजना – निखिल की दीदी
सुहासिनी – निखिल की मां
तपन – निखिल का दोस्त
मेरे विचार:
‘पाँच जासूस’ चिल्ड्रेनस बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित लेखिका शकुंतला वर्मा का बाल उपन्यास है। उपन्यास को प्रकाशन द्वारा आयोजित बाल साहित्य प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार मिला था। उपन्यास प्रथम बार 1996 में प्रकाशित हुआ था और तब से अब तक यह 14 बार पुनः मुद्रित हो चुका है।
उपन्यास के केंद्र में दीपक, निखिल, काजिम, संजय नाम के दोस्त हैं। यह दोस्त एक ही मोहल्ले में आस पास रहते हैं और इन्होंने एक ऐसी सोसाइटी जिसे ये सीक्रेट सोसाइटी कहते हैं, आपस में मिलकर बनाई है जिसके माध्यम से यह आसपास के लोगों की मदद करना चाहते हैं। इस बच्चा पार्टी का लीडर दीपक है जिसे जासूसी में रुचि है और इस कारण वो रोमांचक चीजों की तलाश में रहता है। ऐसे में बच्चे कौन कौन से मामले सुलझाते हैं यही उपन्यास का कथानक बनता है।
प्रस्तुत कथानक में बच्चे दो मामले सुलझाते हुए दिखते हैं। पहला तो अपने दोस्त सौरभ के पिता के खोए हुए बैग को ढूँढने का मामला है और दूसरा अपने दोस्त निखिल के अपहरण का मामला है। पहला मामला छोटा है और दूसरा मामला बड़ा। निखिल के अपहरण के दौरान उनकी सोसाइटी में सदस्य बढ़ जाते हैं और निखिल की बड़ी बहन रंजना और दोस्त तपन भी उनकी सोसाइटी में शामिल हो जाते हैं।
मामले दोनों रोचक हैं। हाँ, पहला मामले में जिस तरह से संयोग के माध्यम से चीज सुलझ जाती है वो उसे थोड़ा कमजोर कर देती है। बच्चे जब गुनाहगार तक पहुँचते तब वह अपने साथी से बात कर रहा होता है जिससे मामला खुलता है। अगर बच्चे तहकीकात करके मामले की जड़ तक पहुँचते तो बेहतर होता। वैसे भी शक के घेरे में एक ही व्यक्ति था। ऐसे में दौड़ भाग कम ही होनी थी। हाँ, अपहरण के मामले में बच्चा पार्टी को अच्छी खासी मेहनत करनी पड़ती है। शायद इसलिए लेखिका ने शुरुआती मामला उन्हे आसान पकड़ाया था।
कथानक की एक और कमी यह दिखी है कि लेखिका दीपक के प्रति अत्यधिक उदार दिखती हैं। वो बच्चा पार्टी का नेता है यह तो साफ है। सबसे समझदार भी है। पर सभी जरूरी बातों का उसके द्वारा ही ढुँढवाया जाना थोड़ा खटकता है। अगर दूसरे बच्चे भी मामले से जुड़े जरूरी रहस्य पता लगाते दिखते तो बेहतर होता। यहाँ ऐसा नहीं है कि वो कोई काम नहीं करते हैं। लेखिका उन्हें काम करते दिखलाती हैं लेकिन जहाँ जरूरी चीजें होती हैं वहाँ दीपक ही मौजूद रहता है।
एक चीज कथानक में ऐसी थी जो मुझे खटकी। बच्चे उपन्यास में एक सीक्रिट सोसाइटी का निर्माण करते हैं और अपनी मीटिंग से पूर्व एक पासवर्ड रखने की सोचते हैं। ये सब तो ठीक है लेकिन फिर जिस तरह से वो अपनी सीक्रेट सोसाइटी के बारे में हर किसी को बताते रहते हैं वो अटपटा लगता है। ये बात गुप्त रखी जाती तो बेहतर होता।
किरदारों की बात की जाए तो उपन्यास के सभी किरदार हमारे आस पास के लोगों की याद दिलाते हैं। बच्चों के बीच में बच्चों वाली खींच तान चलती रहती है जो कि रोचक है। हँसी मज़ाक भी उनके बीच चलता रहता है। काज़िम का किरदार विशेष रूप से हास्य पैदा करता है। उसके साथ घटनाएँ भी हास्यजनक होती हैं जिन्हें पढ़कर मज़ा आता है। बांग्ला भाषी तपन की हिंदी बांग्ला प्रभावित है तो उससे हास्य भी पैदा हो जाता है। पर अच्छी बात ये है कि सभी बच्चे उस हिंदी का मज़ाक नहीं उड़ाते हैं। उन्हें इस बात से मतलब नहीं होता है कि उसका उच्चारण कैसा है। उसके बाते जो हास्यजनक होती हैं उसपर ही वो हँसते दिखते हैं। रंजना उन सबसे बड़ी है और इस कारण अधिक समझदार है। यह कहानी में दिखता भी है।
बच्चों से इतर अलावा वयस्क किरदार भी उपन्यास में मौजूद हैं लेकिन जरूरत भर के हैं। दीपक के बड़ा भाई मनीष का एक किरदार उपन्यास में मौजूद है। दीपक उसे बहुत मानता है। मनीष जासूस बनने का प्रशिक्षण ले रहा है और उनकी मदद करने के लिए बहुरूप तैयार करता है। उसका होना रोचकता बढ़ाता है।
उपन्यास की भाषा सहज सरल है। बांग्ला भाषी किरदार के होने के चलते लेखिका ने वो लहजा भी प्रयोग किया है। वहीं पूर्वांचली लहजा भी उपन्यास में लाने की कोशिश की है। हाँ, वो खोमचे वाले के तौर पर ही दिखता है। अगर खोमचे वाले के इतर भी बच्चों की सोसाइटी में रहने वाले लोगों के बीच भी कोई व्यक्ति उस लहजे वाला होता तो बेहतर होता। अभी ये थोड़ा स्टीरियोटिपिकल (रूढ़िबद्ध) सा लगता है।
अंत में यही कहूँगा कि उपन्यास पढ़ने लायक है। मुख्यधारा के हिंदी बाल साहित्य में रहस्य रोमांच कथाएँ कम ही होती हैं तो इसे पढ़ा जाना चाहिए। और जिस हिसाब से 1996 में प्रकाशित होंने के बाद इसका 14 बार पुनः मुद्रण हो चुका है वो दर्शाता है कि लोग इसे पढ़ भी रहे हैं। आपने नहीं पढ़ा है तो पढ़कर देखें।
पुस्तक लिंक: अमेज़न
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आपने उपन्यास के विषय में रोचक जानकारी दी है।
यह बाल उपन्यास मेरे पास भी है, समय मिलते ही पढने की कोशिश रहेगी।
धन्यवाद
आपको लेख पसंद आया ये जानकर अच्छा लगा। आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा रहेगी। आभार।