संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 54 | प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास
पुस्तक लिंक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास
कहानी
संजीव और मीनाक्षी राय बहादुर सत्येंद्र सिंह के बच्चे थे।
सत्येंद्र सिंह गाँव के जमींदार थे और अंग्रेजों के समर्थक थे। गाँव के सभी लोग उनसे घबराते थे।
जब मीनाक्षी छुट्टियों में अपने गाँव आई थी तो उसने अपने भाई संजीव को गाँव की चौपाल में कुछ कहानियाँ सुनाने को दी?
आखिर क्या थी ये कहानियाँ ?
मीनाक्षी ने क्यों यह कहानी संजीव को सुनाने को दी?
इन कहानियों को सुनाने का क्या नतीजा निकला?
मुख्य किरदार
रायबहादुर सत्येंद्र सिंह – गाँव के जमींदार
संजीव – सत्येंद्र सिंह का पुत्र
मीनाक्षी – सत्येंद्र सिंह की बेटी
चंदन – संजीव के घर का नौकर
शमशेर सिंह – सत्येंद्र सिंह का दोस्त
राम सिंह – सत्येंद्र सिंह का लठैत
राम गोपाल, शफीक, परमजीत सिंह, राजेश और सुरेन्द्र – आज़ादी के दीवाने के सदस्य
मेरे विचार
कहानियों में बहुत ताकत होती है। वैसे तो कहानियों को लोग वक्त गुजारी का जरिया समझ लेते हैं लेकिन ये हमें प्रेरित करती हैं, शिक्षा देती हैं और कई अलग तरह से हमारे ऊपर असर डालती हैं। यह भी देखा गया है कि ढंग की कहानियाँ हमारे अंदर अवचेतन रूप से ऐसे ऐसे बदलाव कर देती हैं जिससे हम अवगत भी नहीं होते हैं। कहानियों की ऐसी ही खूबी दर्शाती है यह बाल उपन्यासिका ‘जीतेंगे हम’।
‘जीतेंगे हम’ 54 पृष्ठों में फैली साबिर हुसैन की बाल उपन्यासिका है। यह उपन्यासिका राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (नेशनल बुक ट्रस्ट) के द्वारा नेहरू बाल पुस्तकालय शृंखला के तहत प्रकाशित की गई है।
‘जीतेंगे’ हम के केंद्र में एक युवा संजीव है। संजीव राय बहादुर सतेंद्र सिंह के पुत्र है। जहाँ सत्येंद्र सिंह गाँव के जमींदार हैं, अंग्रेजों के समर्थक है और अपना कार्य करने के लिए गाँव वालों पर अत्याचार करने से भी नहीं चूकते हैं वहीं संजीव एक संवेदनशील किशोर है जिसे अपने पिताजी का गाँव वालों पर अत्याचार करना पसंद नहीं है।
जमींदार साहब किसी से नाराज हो जाएँ तो उनके कारिंदे उस आदमी को कोड़े मार-मारकर खाल उधेड़ देते हैं। किसी कारण कोई लगान न जमा कर पाए तो उसके हल-बैल हवेली में पहुँच जाते हैं फिर वह किसान जमींदार का मजदूर बन जाता। कितने ही किसान जिस जमीन के पहले मालिक थे उसी जमीन पर आज मजदूरी कर रहे हैं, उस जमीन के मालिक जमींदार साहब हैं। पिता का लोगों पर अत्याचार करना संजीव को अच्छा नहीं लगता। एक दो बार उसने अपनी माँ से कहा तो उन्होंने समझा दिया कि तुम अभी बच्चे हो, यह राजकाज ऐसे ही चलते हैं। (पृष्ठ 16)
उसकी गाँव की पढ़ाई खत्म हो चुकी है और अब वह शहर जाने वाला है। इस दौरान गाँव में वह खाली है। इन दिनों उसकी बड़ी बहन मीनाक्षी भी गाँव में आयी हुई है। वह संजीव को कुछ कहानियाँ देती है जिन्हें वह गाँव के लोगों को सुनाने के लिए कहती है। यह कहानी देश के उन वीरों की हैं जिन्होंने देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दिया था। संजीव जानता है कि देश अभी गुलाम है और यह जरूरी है कि देश के लोगों को भी इसका पता चले।
इन कहानियों का क्या असर होता है। उसका जीवन कैसे बदलता है? आगे की पढ़ाई के लिए संजीव जब शहर जाता है तो उसके साथ क्या होता है? यह सब इस उपन्यासिका में दर्शाया है।
इस उपन्यासिका में जमींदारों द्वारा गाँव वालों पर जुल्म तो दिखता ही है साथ ही अंग्रेजों के जुल्म भी दिखते हैं। उपन्यासिका पृष्ठभूमि भारत छोड़ो आंदोलन के वक्त की है और इस दौरान अंग्रेज भारतीयों के साथ क्या सुलूक कर रहे थे वह इस उपन्यासिका को पढ़कर जाना जा सकता है।
रास्ते में भज्जू काका मिल गए। उनके सिर पर पट्टी बंधी थी, पूरा गाँव जानता है कि भज्जू काका सुराजी हैं और गांधी जी को मानते हैं।
“क्या हुआ काका?” शिवकुमार ने पूछा।
“कुछ नहीं बेटा, हम लोग शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे और पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया जिसमें बहुत से लोग घायल हो गए,” काका ने बताया। (पृष्ठ 8)
“कहाँ घूम आए संजीव?” फूफा जी ने पूछा
“कहीं नहीं, बाजार घूमने गया था।” संजीव ने बताया।
“मेला मैदान में हो रही सभा में तुम मत जाना, हो सकता है वहाँ पुलिस लाठी चला दे। कलेक्टर ने पुलिस से कह दिया है कि वह सुराजियों को मारे और जेल में बंद कर दे,” फूफा उसे समझाते हुए बोले। (पृष्ठ 37)
इसके अतिरिक्त संजीव द्वारा सुनाई गई कहानियों में अलग-अलग समय में देश के लिए लड़ने वालों का जिक्र मिलता है जो कि देश के उन वीरों से भी पाठकों का परिचय करवाता है जिससे उनका परिचय शायद न हुआ हो। संजीव जब शहर जाता है उसका परिचय एक क्रांतिकरी संगठन ‘आज़ादी के दीवाने’ से भी होता है। उस वक्त देश के लिए मर मिटने वाले युवा किस तरह से आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे हैं और इस दौरान उन्हें किन-किन बातों का ध्यान रखना होता है यह भी इधर दिखता है।
“हम लोगों को कोई काम नहीं बताया,” साथ चलते हुए संजीव ने मीनाक्षी से पूछा ।
“हमें भी काम मिलेगा, वैसे लोगों को जगाने के लिए समझाना भी हमारा काम है,” मीनाक्षी बोली।
“लेकिन…।”
“ये बातें मत करो, यहाँ सी आई डी वाले घूमते रहते हैं,” मीनाक्षी बोली।
संजीव मीनाक्षी की बात समझ गया और वह स्कूल के बारे में बातें करने लगा। (पृष्ठ 35)
ऐसा नहीं है कि उपन्यासिका के हर किरदार आजादी के लिए प्रेरित हैं। उपन्यासिका में कई किरदार ऐसे हैं जो कि इसे बिना वजह का मानते हैं। उनका सोचना है ‘कोउ नृप हो हमें क्या हानि’ वहीं कई स्वार्थवश भी अंग्रेजों का साथ देते दिखते हैं। ऐसे में लेखक उस समय के हर पहलू को दर्शा पाए हैं।
यह वह जीवन है जिससे हमारी पहले की पहली पीढ़ी शायद परिचित रही हो लेकिन हमारी नई पीढ़ी इतना परिचित नहीं है। यह उपन्यासिका उस वक्त के समय को इस अंजान पीढ़ी से परिचित करवाने की कोशिश करती है और इसमें सफल होती है। पढ़ते हुए आप भी देश भक्ति की भावना से ओत प्रोत हो जाते हैं।
उपन्यासिका में कथानक की खूबसूरती बढ़ाने के लिए पार्थ सेनगुप्ता के चित्र मौजूद हैं। कहानी के मुख्य बिंदुओं को इन रंगीन चित्रों से दर्शाए गया है। चित्र बहुत अच्छे बन पड़े हैं और पुस्तक की खूबसूरती पर चार चाँद लगा देते हैं। बाल पाठकों को यह चित्र बहुत पसंद आएँगे।
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उपन्यासिका में मौजूद चित्र |
अंत में यही कहूँगा कि ‘जीतेंगे हम’ एक देश भक्त युवा की पठनीय और प्रेरित करने वाली कहानी है जो देश भक्त लोगों की कहानियों से प्रेरित होता है और देश की सेवा में अपना सर्वस्व त्याग कर देता है। अगर आपके घर में बाल पाठक हैं तो आपको यह पुस्तक उन्हें अवश्य देनी चाहिए ताकि वह जान सकें कि कितने लोगों के बलिदानों से हमें यह आज़ादी मिली है।
पुस्तक लिंक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास
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एक रोचक बाल रचना की जानकारी के लिए धन्यवाद।
मेरी इच्छा है इस रचना को पढने की।
जी आभार। नेशनल बुक ट्रस्ट की वेबसाइट से आप इसे ऑर्डर कर सकते हैं।