फटिकचंद – सत्यजित राय | अनुवाद: मुक्ति गोस्वामी | रेमाधव प्रकाशन

संस्करण विवरण:

फॉर्मेट: हार्डकवर | पृष्ठ संख्या: 88 | प्रकाशक: रेमाधव प्रकाशन | अनुवाद: मुक्ति गोस्वामी

पुस्तक लिंक: अमेज़न

फटिकचंद - सत्यजित राय | अनुवाद: मुक्ति गोस्वामी | रेमाधव प्रकाशन

कहानी

जब उससे उसका नाम पूछा गया था तो उसने फटिक चंद्र पाल बताया था परंतु यह उसका असल नाम न था।

उसे तो याद भी न था कि वह कौन था और उस जंगल में क्या कर रहा था जहां उसे होश आया था।

होश आने पर उसने देखा था कि जहां पर वह गिरा था वहां से कुछ दूरी पर एक गाड़ी क्षत्विक्षित हालत में खड़ी थी जिसके अंदर मौजूद दो आदमी मर चुके थे। उसे ये भी याद न था कि वह कौन थे और क्या वो उनके साथ ही कहीं जा रहा था?

आखिर कौन था फटिकचंद?

उसे कुछ याद क्यों नहीं आ रहा था?

क्या उसकी याददाश्त लौटी?

किरदार

फटिकचंद्र पाल – एक दस बारह साल का बच्चा जो कि अपनी याददाश्त खो चुका था
हारून एल रसीद – एक खेल दिखाने वाला कलाकार जो कि फटिक को मिला था
उपेन गुई – बेंटिंग स्ट्रीट पर चाय की दुकान चलाने वाले 
दिनेश चंद – पुलिस दारोगा 
सैमसन – एक अपरधी
बॅंकू घोष, नारायण कर्मकार रघुनाथ – सैमसन के गैंग के सदस्य 
शार्दिंदु सान्याल – कोलकता के जाने माने बैरिस्टर 
केष्टोदा – उपेन के चाय की दुकान का कुक 
सतू – केष्टो का बेटा 
सुधीनद्र – शार्दिंदु सान्याल का मंझला बेटा 
प्रीतीन – शार्दिंदु सान्याल का संझला बेटा
निखिल /बाबलू – शार्दिंदु सान्याल का सबसे छोटा बेटा
रजनीबाबू – शार्दिंदु सान्याल

मेरे विचार

‘फटिकचंद’ (Phatikchand) सत्यजित राय (Satyajit Ray) का लिखा किशोर उपन्यास है जो कि बांग्ला में 1970 में प्रथम बार प्रकाशित हुआ था। रेमाधव प्रकाशन (Remadhav Publication) द्वारा इसका हिंदी अनुवाद 2006 में प्रकाशित किया गया था। बांग्ला से हिंदी अनुवाद मुक्ति गोस्वामी (Mukti Goswami) द्वारा किया गया है।
उपन्यास के केंद्र में फटिकचंद और हारुन है। हारून एक जगलर है जो कि गेंदों, छुरियों को हवा में उछालने का खेल दिखाकर अपना जीवन यापन करता है। वह एक तेज तर्रार व्यक्ति है जिसने दुनिया देखी है। वहीं दूसरी तरफ फटिकचंद एक 10-12 वर्षीय किशोर है जो कि एक दुर्घटना में अपनी याददाश्त खो चुका है। ऐसे में फटिक की मुलाकात हारून से होती है और उनके बीच में नेह का रिश्ता बन जाता है। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि फटिक में हारून को अपना बचपन दिखता है। हारून फटिक की मदद जिस तरह करता है, उसे जिस तरह मुसीबतों से बचाता है और आखिरकार उसे जैसे उसके घर ले जाता है यही सब उपन्यास का कथानक बनता है। 
उपन्यास में भले अपहरण और अपराधी मौजूद हों लेकिन यह मुख्यतः हारून और फटिक के रिश्ते पर केंद्रित है। हारून किस तरह उसे अपनी दुनिया से अवगत करवाता, उसका ख्याल रखता है और जरूरत पड़ने पर उसके अभिभावक की भूमिका भी निभाता है। इस पर लेखक ने अधिक ध्यान दिया है। चूँकि फटिक की याददाश्त तब खोयी रहती है जब उसका अपहरण हो रहा था। ऐसे में इन अपहरणकर्ताओं की भी कहानी में भूमिका रहती है जिससे बीच में रोमांच के तत्व भी कहानी में आते हैं लेकिन यह तत्व कम हैं। रोमांच पैदा करना उपन्यास का मूल मकसद नहीं है और इन तत्वों का प्रयोग भी लेखक एक कारण के लिए करता है और जब उनकी जरूरत पूरी हो जाती है तो इस पहलू की इतिश्री भी बिना अधिक नाटकीयता के साथ कर देता है। 
फटिकचंद जब कोलकता आता है तो उसे चाय की दुकान पर भी काम करना पड़ता है। अक्सर हमें बच्चे ढाबों, चाय की टपरियों पर काम करते दिख जाते हैं। जहाँ हारून फटिक को छोड़ता है वो उपेन नामक व्यक्ति की होती है जो कि एक अच्छा और दयालु व्यक्ति रहता है। यहाँ फटिक को जो अनुभव होते हैं उसके माध्यम से लेखक ने ऐसी जगहों पर कार्य करने वाले बच्चों के जीवन की एक तस्वीर खींची है। हर कोई उपेन की तरह अच्छा नहीं होता है। फटिक को यहाँ एक लड़का मिलता है जिसके माध्यम से लेखक ने यह दर्शाया है कि कैसे कई बार ऐसी जगहों पर मालिकों द्वारा इन बाल कामगारों का शोषण किया जाता है। सरकार ने बाल मजदूरी को गैरकानूनी करार जरूर दे दिया है लेकिन कानून बनाने वालों ने यह नहीं सोचा कि अक्सर ऐसी जगहों पर कार्य करने वाले अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं। ऐसे में अगर आप कानून के नाम पर उन्हें यहाँ से हटा देंगे तो उनकी आय का स्रोत ही खत्म हो जाएगा और कानून का पालन तो वैसे भी इतनी कड़ाई से नहीं होगा। ऐसे में शोषण और बढ़ जाएगा। इसके बनिस्पत अगर सरकार ऐसे बाल कामगारों को अधिकार दे और इन्हें प्रशिक्षण और शिक्षा साथ साथ दे तो शायद यह ऐसे कामगारों के लिए बेहतर विकल्प होगा।
अक्सर हम लोग व्यक्ति के आर्थिक संपन्नता को देखकर उसको इज्जत देखते हैं। व्यक्ति अगर आर्थिक रूप से सशक्त है उसे इज्जत बख्शी जाती है और अगर नहीं है तो उसके साथ तू तड़ाक की भाषा बोली जाती है। समाज का यह संभ्रांत वर्ग किस तरह से अपने से आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के साथ बेइमानी करने से भी गुरेज नहीं करता है यह भी इधर एक प्रसंग के माध्यम से लेखक दर्शाते हैं। वहीं उसके उलट ऐसे लोग भी हैं जो आर्थिक रूप से भले ही सशक्त न हो लेकिन वो रिश्तों को अधिक अहमियत देते हैं यह भी इधर दिखता है। 
चूँकि उपन्यास 84 पृष्ठ लंबा है तो मुझे यह भी लगता है कि चीजें बहुत अधिक तेजी से घटित होती हैं। मुझे लगता है हारून और फटिक के रिश्ते को कुछ और जगह देनी चाहिए थी। उनके बढ़ते स्नेह को दर्शाने के लिए और घटनाएँ उपन्यास में दर्शाई जा सकती थीं। चूँकि यह उपन्यास का केंद्र भी है तो अगर इसे और जगह दी जाती और इनका रिश्ता और अधिक उभर कर आ सकता था। वहीं अपहरणकर्ताओं के साथ उनकी मुठभेड़ थोड़ा और अधिक रोमांचक हो सकती थी। अभी तो यह जरूरतभर को दर्शाई गई है। अपराधियों का अंत भी जिस तरह होते हुए दर्शाया गया है वह और रोमांचक हो सकता था।
अनुवाद की बात की जाए तो अनुवाद स्तरीय है। पढ़ते हुए लगता नहीं है कि आप अनुवाद पढ़ रहे हैं। हाँ, संपादनऔर प्रूफ रीडिंग की कुछ छोटी मोटी गलतियाँ हैं जिन्हें ठीक किया जा सकता था। उदाहरण के लिए:
पृष्ठ 31 में लिखा है उस गुंडे ने उसके सीने में अपनी पाँच अँगुलियाँ गड़ाकर उसे अंदर ढकेलते हुए अंदर चला गया।’ जबकि इसे होना चाहिए था ‘उस गुंडे ने उसके सीने में अपनी पाँच अँगुलियाँ गड़ाई और उसे अंदर ढकेलते हुए अंदर चला गया।’ या ‘वह गुंडा उसके सीने में अपनी पाँच अँगुलियाँ गड़ाकर उसे अंदर ढकेलते हुए अंदर चला गया।’ 

ऐसे ही पृष्ठ 39 में लिखा है ‘डुगडुगी और ढोल, वहाँ सभी खेलों में बच रहे थे।’। यहाँ बच की जगह बज होना चाहिए था।
पृष्ठ 42 में दर्ज है ‘फटिक ने देखा उसमें चार चमते हुए पीतल के डिजाइनदार बॉल थे।’। यहाँ चमते हुए की जगह चमकते हुए होना चाहिए था।
पृष्ठ 58 में दर्ज है: सँझला बेटा प्रीतीन खामोश था। खोए हुए भाई के साथ उसकी उग्र का फर्क ज्यादा नहीं था। 
यहाँ उग्र की जगह उम्र होना चाहिए था। 
पृष्ठ 62 में दर्ज है: ‘दुकान के इर्द गिर्द चक्कर काटते थे या नहीं, यह फटिक नहीं जानता था, क्योंकि रोज उसे सुबह से रात तक दुकान में व्यस्त रहता था।’ जिसे ‘दुकान के इर्द गिर्द चक्कर काटते थे या नहीं, यह फटिक नहीं जानता था, क्योंकि रोज वह सुबह से रात तक दुकान में व्यस्त रहता था।’ होना चाहिए था।
अंत में यही कहूँगा कि फटिकचंद सत्यजित राय का रोचक उपन्यास है जो कि दोस्ती के महत्व को दर्शाता है। आज के समय में जब व्यक्ति स्वार्थ के लिए रिश्ते बना रहा है ऐसे में कई बार लोग निरस्वार्थभाव से रिश्ते निभाते हैं। हारूनदा और फटिक के बीच के ऐसे ही एक रिश्ते की कहानी यह दर्शाता है। उपन्यास पठनीय है और पढ़ा जा सकता है।
पुस्तक लिंक: अमेज़न

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “फटिकचंद – सत्यजित राय | अनुवाद: मुक्ति गोस्वामी | रेमाधव प्रकाशन”

  1. बहुत सुन्दर समीक्षा । काफी समय के बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ ।पढ़ने के लिए बहुत सारी सामग्री देख कर मन प्रफुल्लित हो गया ।अति व्यस्तताओं के बीच पढ़ना छूट सा गया है । धीरे-धीरे सभी पोस्ट पढ़ूँगी । स्वतन्त्रता दिवस की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई ।

    1. पुस्तक के ऊपर लिखा यह लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। अन्य लेखों के प्रति आपकी राय की प्रतीक्षा रहेगी।

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