कान का बुंदा – योगेश मित्तल | तहकीकात 3

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पेपरबैक | प्रकाशक: नीलम जासूस कार्यालय |  पृष्ठ संख्या: 22 | अंक: तहकीकात 3

पुस्तक लिंक: अमेज़न

कान का बुंदा - योगेश मित्तल | तहकीकात 3

कहानी 

राजनगर का एक पॉश इलाका था साकेत जहाँ पर रहने वाले  दामोदर सिंघानिया का उसकी परचून की दुकान में कत्ल हो गया था।

ऐसे में मामला जब इंस्पेक्टर रामदयाल के पास आया तो उसने विस्फोट के क्राइम रिपोर्टर अनिल कुमार चक्रवर्ती को भी अपने साथ आने को कहा।

आखिर किसने किया था सेठ का कत्ल?

क्या अनिल मामले की तह तक जा पाया?

मुख्य किरदार

अनिल कुमार चक्रवर्ती – राजनगर के अखबार विस्फोट का क्राइम रिपोर्टर 
रामदयाल – पुलिस इंस्पेक्टर 
सुनील कुमार चक्रवर्ती – अनिल का भाई 
शिखा – अनिल की भाभी 
विवेक और विनीता – सुनील और शिखा के बच्चे 
दामोदर सिंघानिया – एक परचून की दुकान का मालिक 
शेर बहादुर – दामोदर का नौकर 
शेखर बनर्जी – दामोदर का पड़ोसी 
बसंती – शिखा के यहाँ काम पर आने वाली स्त्री 
अमिता, नमिता – बंसती की बेटी

मेरे विचार

‘कान का बुंदा’ लेखक योगेश मित्तल (Yogesh Mittal) की एक उपन्यासिका है जो कि तहकीकात (Tehkikat) के तीसरे अंक में प्रकाशित हुई है। यह विस्फोट के क्राइम रिपोर्टर अनिल कुमार चक्रवर्ती को लेकर लिखी गई उनकी दूसरी कहानी है। इससे पहले तहकीकात के दूसरे अंक में इस किरदार को लेकर लिखी कहानी ‘सुपर मॉडल का कत्ल’ प्रकाशित हो चुकी है। 

प्रस्तुत कहानी की बात करें तो कहानी  में मौजूद अपराध और उसका  खुलासा तो वैसे साधारण है लेकिन इसमें लेखक ने अनिल के परिवार को दर्शाया है जो कि कहानी को अधिक रोचक बना देता है । । एक कत्ल होता है और फिर अनिल कत्ल की तहकीकात के लिए साकेत आता है जहाँ उसका भाई सुनील कुमार चक्रवर्ती अपनी पत्नी शिखा और बच्चों विनीता और विवेक के साथ रहते हैं। उसके यहाँ आने से  हमें अनिल की पृष्ठ भूमि भी जानने का मौका मिलता है और साथ साथ अपने भाई के परिवारवालों से उसका कैसा नाता है ये भी देखने को मिलता है। इसके अतिरक्त कहानी में अनिल के भविष्य की योजनाओं के विषय में भी हमें पता लगता है जो कि मुझे रोचक लगा। 

इसके अतिरिक्त पूरी कहानी में अनिल का विनोदी स्वभाव भी देखने को मिलता है। जिस प्रकार वह हँसी मज़ाक करता रहता है वह कहानी को रोचक बना देता है। 

जहाँ तक अपराध की बात है तो परचून की दुकान में अनिल को एक ऐसी चीज मिल जाती है जो कि पुलिस तो जरूरी न समझकर नजरंदाज कर देती है लेकिन वही वस्तु आगे जाकर केस सुलझाती है। कहानी में ज्यादा घुमाव नहीं हैं। इतना कहूँगा कि इधर जिस तरह से यह पता लगता है कि वह वस्तु किसकी थी उस तरीके को थोड़ा और जटिल बनाया जाता तो बेहतर होता। अभी तो संयोग से ही अनिल को यह बात पता लग जाती है। पहले पहल मुझे लगा कि लेखक इसका प्रयोग कहानी में ट्विस्ट लाने को करेंगे लेकिन जब ऐसा न करके उन्होंने कहानी को सीधा सादा समाप्ति की दिशा दे दी तो थोड़ा निराशा हुई। कहानी में थोड़ा ट्विस्ट देते तो यह और मजेदार कहानी यह बन सकती थी।

कहानी में अपराध तो है लेकिन उसके कारण पर भी बात की गई है। जो कारण दर्शाया गया है उसकी रू में अनिल का आखिरी का निर्णय सही ही लगता है। हाँ, जो कारण सेठ के चरित्र में आए विकार का दिया है वो जमता नहीं है। इधर इतना ही कहूँगा कि आदमी अगर शरीर की भूख में इतना अंधा हो जाए कि उसे केवल शरीर दिखे न उम्र दिखे न सामने वाले की इच्छा तो वह आदमी सही नही हो सकता। उसे अगर घर में भी शरीर मिलता तो भी वह अपराध करता ही।

अंत में यही कहूंगा कि कहानी पठनीय है। अनिल के परिवार को जानना अच्छा लगा और उम्मीद है आगे भी उसके परिवार से मुलाकात होती रहेगी। उसके विनोदी स्वभाव को देखना भी मनोरंजक था। हाँ कहनी में अपराध का खुलासा करने के लिए अनिल को थोड़ा अतिरिक्त मेहनत करनी होती तो बेहतर होता। अभी लेखक ने आसानी मामला सुलटवा दिया। उम्मीद है लेखक अगली कहानी में अनिल को कोई जटिल मामला देंगे। 

पुस्तक लिंक: अमेज़न

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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