संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पैपरबैक | पृष्ठ संख्या: 124 | प्रकाशक: नीलम जासूस कार्यालय
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
चरनदास ने जब इक्कीस वर्ष की उम्र में अपने गुरु खलीफा मस्तराम से दीक्षा ली थी तो उन्होंने उसे सख्त हिदायत दी थी कि वह चालीस की उम्र तक औरत से दूर रहे।
लेकिन इस दीक्षा को लिए तीन साल भी न हुए होंगे कि उसकी ज़िंदगी में तूफान आ गया।
वैसे तो चरनदास ने कल्लूमल की लड़की चमेली को कई दफा देखा था लेकिन उस दिन जो उसे दिखी तो उसके दिल में बस गयी।
अब चरनदास के दिल में वही समायी हुई थी और चरनदास अपने गुरु की दीक्षा को भूल उसे पाने की इच्छा रखता था।
क्या चरनदास की इच्छा पूरी हुई?
क्या चमेली को चरनदास का प्रेम स्वीकार हुआ?
मुख्य किरदार
चरनदास – एक तेईस वर्षीय युवक
खलीफा मस्तराम – एक पहलवान जिससे चरनदास पहलवानी सीखता था
शोभा – चरनदास की भाभी
हरीश – एक वकील और मोहल्ले का लव गुरु
कलावती – हरीश की पत्नी
चमेली – मोहल्ले की एक युवती जिस पर चरनदास का दिल आ गया था
मिसेज डेविस – चमेली की टीचर
रोज – मिसेज डेविस की बेटी और चमेली की दोस्त
कल्लूमल – दुकानदार और चमेली का पिता
चंपा – चमेली की माँ
छद्दमी – चंपा का भाई
मेरे विचार
जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा एक ऐसे लोकप्रिय साहित्यकार हैं जिन्होंने अपने लेखकीय जीवन में कई विधाओं में उपन्यास लेखन किया हैं। उन्होंने अपराध कथाएँ भी लिखीं, ऐतिहासिक चरित्रों को लेकर लेखन भी किया और सामाजिक उपन्यास भी लिखे। पाठक के तौर पर मैं अब तक उनकी अपराध कथाओं को ही पढ़ पाया था। वैसे तो उनकी अपराध कथाओं में भी सामाजिक सारोकार की बातें होते हैं लेकिन मेरा मन उनका लिखा खालिस सामाजिक साहित्य और ऐतिहासिक साहित्य भी पढ़ने का था। इसी क्रम में मैंने उनकी लिखी ‘धड़कनें’ नीलम जासूस कार्यालय से खरीदी थी और अब जाकर उसे पढ़ा है।
‘धड़कनें ‘ जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा का लिखा सामाजिक उपन्यास है। उपन्यास की कहानी एक युवक चरनदास की है जो कि एक दिन जब अपने मोहल्ले की लड़की चमेली को देखता है तो उसके प्यार में पड़ जाता है। चरनदास के इस प्यार का क्या नतीजा होता है और इसके चलते मोहल्ले में क्या होता है यही उपन्यास में दर्शाया गया है।
हल्के फुल्के अंदाज में लिखा हुआ यह उपन्यास और उसके किरदार हमारे समाज के एक ऐसे चरित्र को दर्शाता हैं जिसमें आज भी उतना अधिक बदलाव नहीं हुआ है। इस उपन्यास के माध्यम से लेखक ने अन्तर्जातीय विवाह और उसे लेकर प्रेमी युगलों को जिन जिन परेशानियों का सामना करना पड़ता है उसे बड़े रोचक ढंग से दर्शाया है।
उपन्यास का शुरुआती हिस्सा चरनदास के अपने प्रेम से चमेली को वाकिफ करवाने के प्रसंगों से बना है और यह प्रसंग रोचक हैं। कैसे एक अक्खड़ बुद्धि चरनदास अपने प्रेम को पाने के लिए तिकड़म लगाता और इसमें किस तरह वह मोहल्ले के हरीश को अपना गुरु मनोनीत करता है यह देखना रोचक रहता हैं। वहीं चमेली की दोस्त रोज भी यही किरदार निभाती है लेकिन वो काफी व्यवाहरिक है। रोज और चमेली की बातचीत भी रोचक रहती है।
हाँ, चूँकि उपन्यास कम पृष्ठ संख्याओं का था तो प्रेम के समीकरण को बैठने के लिए जितनी खींच तान की जरूरत थी उससे कम दर्शाई गई है। सिर मुंडाते ही ओले पड़ने की तर्ज पर कहानी में कुछ ऐसा हो जाता है कि फिर एक अंतर्जातीय प्रेम करने वाले प्रेमी युगलों को क्या क्या भुगतना पड़ता है यह इसमें दिखता है। आज भी ऐसे युगलों के लिए मामला आसान नहीं हुआ है तो मैं समझ सकता हूँ कि उस वक्त भी नहीं रहा होगा।
हाँ, चूँकि यहाँ नायक है तो वह परेशानियों से जूझना जनता है और जिन परेशानियों से वह नहीं जूझ सकता उसके लिए उसे मदद हरीश के रूप में मिलती है।
उपन्यास अंत तक पठनीय रहता है और लेखक ने इसमें शिक्षा देने के लोभ को संवरण करते हुए ऐसे हल्के-फुल्के अंदाज में अपनी बात कही है कि उपन्यास कहीं से भी बोझिल प्रतीत नहीं होता है।
उपन्यास का अंत रोचक है और दर्शाता है कि व्यक्ति की पहचान उसकी जाति के बजाय उसके गुणों से होती है
और जोड़ी भी ऐसे दो लोगों की ही फब्ती है जिनका आपस में मेल हो।
प्रेम अपने साथ जिम्मेदारी भी लाता है और प्रेमियों को उसका निर्वाह करना चाहिए यह भी यह दर्शाता है।
उपन्यास में चिट्ठियाँ का भी अपना महत्व है। चरनदास की लिखी चिट्ठियाँ हो या चमेली की लिखी चिट्ठियाँ उन्हें पढ़ना मुझे रोचक लगा था। दोनों ही किरदार मासूम लगते हैं। जहाँ वो तेज तर्रार दिखने की कोशिश भी करते हैं उसमें भी एक तरह की मासूमियत छुपी है। इन चिट्ठियों को पढ़कर बरबस ही चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है।
उपन्यास में किरदार जीवंत हैं। हरीश का किरदार अच्छा बन पड़ा है और मोहल्ले के ऐसे व्यक्ति को दर्शाता है जिसे मोहल्ले के युवा लव गुरु मानते हैं। ऐसे लोग आज भी मोहल्ले में मिल जाते हैं।
व्यवहारिक लकड़ी के रूप में रोज का किरदार मुझे पसंद आया। वह प्रेम की दुश्मन दिखती जरूर है लेकिन ऐसे दोस्तों का होना जरूरी है जो कि भावना में काबू रखने पर आपको मजबूर करें।
खलनायक के रूप में चमेली की माँ, बाप और मामा छद्दमी हैं लेकिन वो, चमेली के माँ-बाप उतने बुरे नहीं हैं। वह आम माँ बाप हैं जो आज भी दकियानूसी ख्यालों के हैं।
छद्दमी से जिस तरह चरन दास पार पाता है उसे पढ़कर मज़ा आ जाता है। वहीं कल्लूमल को जिस तरह हरीश बोतल में उतारते हैं वह भी आपके चेहरे पर मुस्कान ले आता है।
कमी की बात करूँ तो प्रस्तुत संस्करण की छपाई तो अच्छी है लेकिन संस्करण में थोड़ा बहुत वर्तनी की गलतियाँ हैं जिन्हें एक और बार प्रूफरीड करके सुधारा जा सकता था। वहीं क्योंकि उपन्यास में पृष्ठ कम हैं, शायद उन दिनों ऐसा रखने के लिए लेखकों को कहा जाता था, तो इसके चलते चरन और चमेली के बीच प्रेम जल्दी ही विकसित होता दिखता है। वहीं पहली मुलाकात में ही इनके जीवन में ऐसी मुसीबत आ जाती है जो कि थोड़ी देर में आती तो शायद बेहतर रहता।
अंत में यही कहूँगा कि उपन्यास पठनीय है और पढ़ा जा सकता है। आज भी इसमें दर्शाये मुद्दे प्रासंगिक हैं और इस कारण आज भी इस उपन्यास से व्यक्ति जुड़ाव महसूस करेगा। अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो एक बार पढ़कर देख सकते हैं। अगर आपने इसे पढ़ा है तो इसके विषय में अपनी राय से हमें जरूर अवगत करवाइएगा।
अगर आपने जनप्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा के उपन्यास पढे हैं तो अपने पसंदीदा पाँच सामाजिक उपन्यासों के नाम हमसे जरूर साझा कीजिएगा।
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