संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 286 | शृंखला: अविनाश भारद्वाज #1
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
गिरिराज वर्मा नैनीताल के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। हर कोई उनका सम्मान करता था। यही कारण था कि जब उनकी किसी ने हत्या कर दी थी लोगों के लिए यह हैरानी की बात थी।
पुलिस का मानना था कि गिरिराज वर्मा कुछ समय से अपने परिचितों से कटकर रहने लगे थे और इस दौरान उनके साथ एक लड़की रहा करती थी। पुलिस समझती थी कि यह लड़की सनाया गौतम थी और इसी ने दौलत के लिए गिरिराज वर्मा का कत्ल किया था। पर अब यह सनाया गौतम हवा में कपूर की तरह गायब हो गई थी और उन्हें ढूंढे नहीं मिलती थी।
वहीं गिरिराज वर्मा के पड़ोसियों का मानना था कि गिरिराज वर्मा के साथ लड़की नहीं कोई चुड़ैल रहती थी। वह समझते थे कि गिरिराज वर्मा में आयी तब्दीली एक चुड़ैल के काले साये के कारण थी और इसी काले साये ने उनकी हत्या कर दी थी।
आखिर कौन थी सनाया गौतम? उसका गिरिराज वर्मा से क्या रिश्ता था?
पुलिस को क्यों लगता था कि वह गिरिराज वर्मा की कातिल थी?
गिरिराज वर्मा के पड़ोसी उसे क्यों प्रेतात्मा मानते थे?
इन्हीं सब सवालों ने पुलिस के साथ साथ गिरिराज वर्मा के परिवार वालों को भी परेशान कर रखा था। चूँकि हत्या के तीन महीने बाद भी पुलिस मामले में आगे नहीं बढ़ पाई थी तो इसलिए गिरिराज वर्मा के परिवार वालों ने अविनाश भारद्वाज नामक प्राइवेट डिटेक्टिव को इस काम पर लगवाया था।
क्या अविनाश भारद्वाज इस गुत्थी को सुलझा पाया?
मुख्य किरदार
विचार
‘काला साया’ लेखक अजिंक्य शर्मा द्वारा लिखा गया अविनाश भारद्वाज शृंखला का पहला उपन्यास है। यह उपन्यास 2020 में प्रकाशित हुआ था। अविनाश भारद्वाज शृंखला में अब तक लेखक दो उपन्यास लिख चुके हैं। मैंने पिछले साल नवंबर में इस शृंखला का दूसरा उपन्यास दूसरा चेहरा पढ़ा था और उसके बाद से ही मैं पहला उपन्यास काला साया पढ़ना चाहता था। तो इस बार अपनी यह इच्छा मैंने पूरी कर ही दी।
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कोई भी व्यक्ति कैसा है इसके विषय में हम लोग बस वही देखकर अंदाजा लगा सकता है जो कि वह दुनिया के सामने रखता है। लेकिन उसका असल रूप कैसा है इसका अंदाजा लगाना काफी मुश्किल होता है। वहीं अगर व्यक्ति की पहचान एक अच्छे व्यक्ति के रूप में हो और हमें उसके विषय में कुछ ऐसी जानकारी मिले जिससे उसके चरित्र पर दाग लगे तो मेरा मानना है कि लोग उस पर ज्यादा आसानी से विश्वास कर लेते हैं। शायद लोग किसी की अच्छाई पर अंदर ही अंदर विश्वास नहीं करते हैं और ऐसे में किसी भी ऐसी चीज जो उनके इस विश्वास को पुख्ता करती है उसे मान लेते हैं। प्रस्तुत उपन्यास भी ऐसे ही किरदारों को लेकर रचा गया है जिनके विषय में या तो लोगों द्वारा गलत धारणा बना दी गई थी, या उनके चरित्र पर उन्होंने शक कर दिया था।
‘काला साया’ एक ऐसे कत्ल की कहानी है जिसने नैनीताल शहर के लोगों को हैरानी में डाल दिया था। कहानी की शुरुआत मोहित वर्मा नाम के व्यक्ति के घर लौटने से होती है। इसी मोहित के पिता की हत्या तीन महीने पहले हो गई थी लेकिन वह मजबूरी के चलते इससे पहले भारत नहीं आ पाया था। अब वह आया है। मोहित के पिता की हत्या किसने की यह एक ऐसी गुत्थी बन गई है जिसने सबका दिमाग हिलाकर रख दिया है। पुलिस भी अपनी जाँच से कहीं पहुँच नहीं पाई है। मोहित आता है तो उसके जीजा की पहचान के वजह से मोहित और उसके साथ पाठकों को केस की बारीकियों का अंदाजा होता है। सनाया गौतम नाम के किरदार में पता लगता है और आगे का उपन्यास इसी रहस्यमय किरदार की पहचान को उजागर करने की कवायद से भरा होता है। इस दौरान मोहित न केवल केस के तहकीकात करने वाले अफसर वैभव शुक्ला से मिलता है बल्कि लेक सिटी ट्रिब्यून की पत्रकार शालिनी अवस्थी और साथ ही प्राइवेट डिटेक्टिव अविनाश भारद्वाज से भी मिलता है। यह चारों लोग किस तरह से मिलकर इस मामले को सुलझाते हैं और इस दौरान इनके सामने क्या क्या चीजें आती हैं वही इस उपन्यास की कहानी बनती है। चूँकि उपन्यास अविनाश भारद्वाज शृंखला का है तो यह बात तो लाजमी ही है कि केस सुलझाने में सबसे ज्यादा हाथ अविनाश और उसकी टीम का रहेगा। यही होता भी है।
उपन्यास में सबसे मुख्य बात दो चीजों का पता लगाना है। एक तो ये कि सनाया गौतम कौन थी और दूसरा ये कि उसका गिरिराज सक्सेना से क्या संबंध था। पूरा उपन्यास इसी चीज की तलाश में गुजरता है। इस दौरान उपन्यास में कई रोचक किरदार और कुछ रोचक मोड़ आते हैं जो कि उपन्यास पढ़ते चले जाने के लिए आपको विवश कर देता हैं। उपन्यास अंत तक आपको बाँधकर रखता है। आखिर तक लेखक ने यह पूरी कोशिश की है कि पाठक कातिल का पता लगाने में कामयाब न हों और ऐसा करने में वो काफी हद तक कामयाब भी हुए हैं।
उपन्यास के किरदारों की बात करें तो लेखक ने इस उपन्यास में कई रोचक किरदारों को गढ़ा है। वैसे तो अविनाश उपन्यास का नायक है लेकिन उसकी सेक्रेट्री रोशनी भी कम नहीं है और उस पर भारी पड़ती ही लगती है। इन दोनों किरदारों के बीच जो नोकझोंक दर्शाई गई है वह रोचक है।
वैभव शुक्ला एक कड़क पुलिस वाले के रूप में जमता है और शालिनी अवस्थी एक सक्षम पत्रकार के रूप में उभर कर आती है। लेखक खुद पत्रकार हैं और एक पत्रकार के दफ्तर में किस तरह की राजनीति हो सकती है यह भी उन्होंने अपने उपन्यास में शालिनी के अनुभवों के माध्यम से दर्शाया है। शालिनी का एटीट्यूड प्रभावित करने में सफल होता है और अगर लेखक चाहें तो उसे लेकर एक खालिस थ्रिलर लिख सकते हैं। मैं तो उसे जरूर पढ़ना चाहूँगा। वैसे मुझे उम्मीद रहेगी कि वैभव, शालिनी और अविनाश की तिकड़ी हमें आगे भी किसी मामले में देखने को मिले।
अजिंक्य शर्मा के लिखे उपन्यास अगर आप पढ़ते हैं तो यह जानते ही होंगे कि उनके हर एक उपन्यास में एक किरदार ऐसा रहता है जो सबसे अतरंगी होता है और मुख्य किरदार न होकर भी इतना प्रभावित कर देता है कि आप उसकी पूरी कहानी जानने को उत्सुक हो जाते हैं। ऐसा ही एक किरदार यहाँ पर देवराज का है। यह किरदार मुझे पसंद आया और यह आपको डराने, चौंकाने और प्रभावित करने में कामयाब होता है। देवराज की कहानी लेखक संक्षिप्त रूप में इधर जरूर बताते हैं लेकिन मैं चाहूँगा कि वो कभी इसे विस्तार देकर एक उपन्यास के रूप में जरूर ढालें।
इसके अलावा उपन्यास में सिंडिकेट की एक हल्की सी झलक दिखती है। मैं इस संस्था से दूसरा चेहरा की वजह से वाकिफ़ था। यहाँ पर इसका हल्का सा परिचय ही मिलता है। सिंडिकेट का प्रतिनिधि नारंग एक खतरनाक किरदार है जिसकी मोहित से हुई मुलाकात मुझे रोचक लगी। हाँ, अंत में जो उसके साथ हुआ वो देखकर भी मज़ा आ गया।
लेखक अजिंक्य शर्मा के उपन्यासों की एक खासियत यह भी होती है वो अपने उपन्यासों से समाज के ऊपर कभी-कभार टिप्पणी भी करते हैं जो कि उनके उपन्यास में सोचने के लिए काफी कुछ दे जाता है। यहाँ इस उपन्यास में भी कई ऐसी चीजें उन्होंने की हैं। फिर चाहे वो कोरोना का जिक्र हो (जो कि उस वक्त चालू हुआ था), या नशे की गिरफ्त में जूझती वैशाली का किरदार हो जो कि नशे की लत के नुकसान को उजागर करता है या समाज में फैले अपराधियों के दबदबे की बात हो जो कि शालिनी और वैभव के नारंग के प्रति रवैये से जाहिर होती है। उपन्यास की निम्न कुछ पंक्तियों से वह यह तो उजागर करते ही हैं कि कैसे हम लोग एक दूसरे से कटते जा रहे हैं वहीं दूसरी तरफ वह अमीर और गरीब के समाज का फर्क भी दर्शाते हैं।
लोग सोशल मीडिया पर हजारों किलोमीटर दूर बैठे लोगों को दोस्त बना लेते हैं लेकिन उन्हें ये पता नहीं होता कि उनके पड़ोस में कौन रह रहा होता है?
अमीर लोग जहाँ अपनी दौलत से संतुष्ट होकर अपने-आप में सीमित होने की कोशिश करते हैं, नई जान-पहचान बनाने में सावधानी बरतते हैं और अपनी रिश्तेदारी और जितनी जान-पहचान होती है उसी में संतुष्ट रहते हैं, वहीं गरीब लोगों के लिए यह जान-पहचान ही उनकी दौलत होती है।
उपन्यास में ऊपर मैंने ऐसी बातें लिखी हैं जो कि मुझे पसंद आई लेकिन उपन्यास में कुछ बातें ऐसी भी थी जो कि मुझे खटकी थी।
मसलन लेखक उपन्यास के नायक अविनाश भारद्वाज के का विवरण देते हुए लिखते हैं:
वो किसी हॉलीवुड हीरो की तरह स्मार्ट लेकिन चेहरे से ही बेहद तेज तर्रार दिखने वाला युवक था।
यह विवरण मेरे लिए तो भ्रामक था। एक भारतीय युवक को हॉलीवुड हीरो की तरह स्मार्ट दिखलाने से दिमाग में किसी गोरे व्यक्ति या काले व्यक्ति की ही तस्वीर बनती है, किसी भारतीय युवक की तस्वीर इससे नहीं बनती है। मेरी व्यक्तिगत समझ तो यह कहती है कि या तो लेखक को किसी विशेष कलाकार का नाम लिखना चाहिए था किसी फिल्म स्टार सरीखा लिख सकते थे। क्योंकि व्यक्ति या तो अच्छा दिखने वाला होता है या नहीं होता है। हॉलिवुड वाला हीरो बॉलीवुड वाले हीरो से अलग तरह का स्मार्ट नहीं होगा। हाँ, कपड़े वह किसी विशेष तरीके से पहन सकता है लेकिन यहाँ पर ऐसा लगता नहीं है कि लेखक ने उसके कपड़ों के लिए यह विवरण दिया हो।
उपन्यास में एक जगह पर अविनाश और मोहित के बीच अविनाश की सेक्रेटरी को लेकर एक बातचीत है जो कि मुझे अटपटी लगी। मतलब अगर कोई आपसे अपने पिता की मौत की तफतीश की बात करने आया तो कोई भी व्यक्ति वो बात नहीं करेगा जो अविनाश मोहित से अपनी सेक्रेटरी के बाबत करता है। उस बातचीत का उधर कोई तुक मुझे नहीं लगा। फिर दो व्यक्तियों की आपसी नौक झोंक अलग बात होती है लेकिन उसमें से एक व्यक्ति अगर उसके विषय में किसी तीसरे से ऐसी टुच्ची बातें करते हैं तो वह दर्शाता है कि उस व्यक्ति के मन में उस दूसरे व्यक्ति की कोई इज्जत नहीं है। लेखक इस चीज से बच सकते थे।
इसी तरह एक और छोटी सी बात मुझे खटकी। उपन्यास का ज़्यादतर घटनाक्रम नैनीताल में घटित होता है लेकिन उपन्यास में पहाड़ी लोगों की कमी दिखती है। वहीं कई जगह पर ऐसा भी लगता है कि शायद लेखक को नैनीताल की इतनी ज्यादा जानकारी भी नहीं है। मुझे लगता है बेहतर होता कि उपन्यास का कथानक किसी काल्पनिक जगह पर बसाया जाता। वैसे मुझे लगता है केवल वो लोग जिन्होंने नैनीताल देखा है या उत्तराखंड से आते हैं इस फर्क को पहचान पाएँगे। मेरे पर चूँकि दोनों चीजें लागू होती हैं तो मुझे यह बात ज्यादा खटकी थी।
उपन्यास में एक प्रसंग है जब अविनाश को शालिनी एक मेंटल इंस्टीट्यूट के विषय में बताती है और उसे वहाँ जाकर कुछ पता करने को कहती है लेकिन अविनाश बात पता करने को कहकर भी उधर जाकर कुछ दरयाफ्त नहीं करता है। अगर वो ऐसा कुछ करता तो शायद सनाया और गिरिराज के विषय में जो चीज उसे डायरी से पता चली वो पहले ही चल जाती।
“मेंटल क्लीनिक में साइकोपैथ का भी इलाज होता है?”
“होता होगा। आखिर है तो वो भी एक तरह का पागलपन ही।”
“ठीक है। मैं पता करता हूँ मेंटल क्लीनिक में भी। थैंक्स फॉर ऑल द इनफार्मेशन, मिस शालिनी”
“योर वेलकम” (loc 4062)
उपन्यास में कुछ जगह वर्तनी की गलतियाँ भी हैं और कई जगह नामों का घाल मेल किया गया है। लगता है लेखक ने पहले मुख्य किरदार का नाम राज रखा था जिसे बदलकर अविनाश किया क्योंकि कई जगह उन्होंने अविनाश की जगह राज का ही प्रयोग किया है। कुछ और किरदारों के नामों में भी अदला बदली है। यह घाल माल पढ़ते हुए व्यक्ति को उलझन में डाल सकता है और पढ़ने के अनुभव को थोड़ा सा बदमजा कर सकता है। चूँकि यह ई संस्करण है तो मेरी लेखक से यही गुजारिश होगी कि एक बार दोबारा उपन्यास को प्रूफरीड करवाएँ और फिर किताब को अपडेट कर दें। कुछ उदाहरण
वाह बेटा। हर जगह यही डिलोग मार कर साफ बच कर निकल जाते हो। (loc 2848 डायलॉग होना चाहिए )
लोगों की मदद करने उनका हाथ सबसे पहले उठता था। (loc 4187 )
लेकिन उस युवक पर रोशनी के घूरने का कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा था। (loc 4642 रोशनी की जगह आरती होना चाहिए था)
दोनों लिफ्ट से चौथी मंजिल पर पहुँचे, जहाँ रोशनी ने अपने फ्लैट का लॉक खोला। (loc 4752 रोशनी की जगह आरती होना चाहिए था)
“मैं नहीं बचाऊँगा।”- अविनाश ने एक कागज रोशनी की ओर बढ़ा दिया… (loc 4768 रोशनी की जगह आरती होना चाहिए था)
इस डायरी को क्राइम इंवेस्टिगेशन के ऑफिस में प्राइवेट डिटेक्टिव अविनाश मेहरा तक पहुँचा दीजिए। (loc 4966 अविनाश मेहरा की जगह अविनाश भारद्वाज होना चाहिए था। )
मोहित को कनविन्स करने में राज को अच्छी खासी मेहनत लग गई (loc 4966 राज की जगह अविनाश होना चाहिए। कई जगह अविनाश को राज लिखा गया है।)
मोहित की आवाज इतनी तेज थी कि इन्स्पेक्टर और राज को लगा कि (loc 5411 इंस्पेक्टर और अविनाश होना चाहिए था )
अंत में यही कहूँगा कि काला साया एक अच्छी रहस्यकथा है जो कि आपका मनोरंजन करने में सफल होती है। अगर आपने नहीं पढ़ी है तो एक बार पढ़कर देख सकते हैं। अविनाश भारद्वाज शृंखला के मैं अब तो दो उपन्यास पढ़ चुका हूँ और दोनों ही मुझे पसंद आये हैं। देखना है इसका तीसरा कारनामा लेखक कब लेकर आ रहे हैं। मैं उसे जरूर पढ़ना चाहूँगा।
पुस्तक लिंक: अमेज़न
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