बाँहों के दरमियाँ – गीता श्री

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: ई-बुक | प्रकाशक: जगरनॉट बुक्स | पृष्ठ संख्या: 239 
पुस्तक लिंक: ई-बुक

समीक्षा: बाँहों के दरमियाँ - गीताश्री

पहला वाक्य:
पहला इश्क, अपने होश की पहली बारिश, पहला नशा और पहली मदहोशी कौन भूल सका है भला।

कहानी:

रति जबसे कस्बे से अपने पति रवि के साथ गुडगाँव आई थी तब से वह शहरी चाल ढाल में खुद को ढालने के लिए मेहनत कर रही थी। उसे मालूम था कि वह जैसी थी वैसे उसके पति को पसंद नहीं थी।

उसके कस्बाई संस्कार, उसके सिद्धांत, उसके जीवन जीने का सलीका सभी कुछ उसके अतिआधुनिक पति के लिए शर्म की बात थी। 

वैसे तो उसका पति भी उसी कस्बे से आता था लेकिन उसने खुद को शहर आकर पूरी तरह शहरी बना लिया था। और अब वह चाहता था कि उसकी पत्नी भी वह सब कुछ करे जो कि उसकी हाई क्लास सोसाइटी में चलता था।

वह चाहता था कि रति वाइफ स्वैपिंग के लिए हामी भर दे। 

क्या रति ने उसकी हर माँग की तरह यह माँग भी मान ली? 
रवि की इस जिद का उनके जीवन पर क्या असर पड़ा?

मेरे विचार:
‘बाँहों के दरमियाँ’ एक नवयुगल रवि और रति की कहानी है। किताब की शरूआत में ही पाठक जान जाते हैं कि रति और रवि एक पार्टी में जाने के लिए तैयार हो रहे हैं। रवि के दबाव में रति ऐसा कुछ पहन रही है जिसमें वह सहज नहीं है। वहीं रवि खुश है कि रति आखिरकार उसकी इच्छा पूरी कर रही है। वाइफ स्वैपिंग के लिए हामी भरने की इच्छा। 

वाइफ स्वैपिंग पार्टीज ऐसी पार्टीज होती हैं जहाँ जोड़े जाते हैं और फिर बीवियों की अदला बदली होती है। यह पार्टियाँ कई जगह आम ही समझी जाती हैं। यह दूसरी ऐसी पार्टी है जिसमें वो जा रहे हैं। रति पहली पार्टी में जब गयी थी तो वह खुद को वह करने के लिए तैयार नहीं कर पाई थी जो कि उससे अपेक्षित था और इसलिए भाग आई थी।  लेकिन अब उसने अपना मन कड़ा कर लिया है।

‘बाँहों के दरमियाँ’ का ज्यादातर कथानक इसी पार्टी के इर्द गिर्द घूमता है। पार्टी में मौजूद रति अपनी यादों के सहारे आजतक का सफर करती हुई पाठकों को दिखती है। पाठकों जान पाते हैं कि वह कैसे परिवेश से आती है और वह क्या चीजें थी जिसने उसे यह सब करने के लिए मजबूर कर दिया था।

वहीं जब पार्टी समाप्त होती है तो रति में किस तरह का बदलाव आते हैं और यह बदलाव रवि और रति के रिश्ते में क्या प्रभाव डालते हैं यह भी पाठकों को कहानी पढ़ते हुए पता लगता है।

भारत में उपभोग की संस्कृति में कुछ वर्षों से काफी इजाफा हुआ है। अचानक से इतना सब कुछ भारतीयों के लिए खुल सा गया है कि वह चाह रहे हैं कि जिस स्थिति में पाश्चात्य समाज इतने वर्ष लेकर पहुँचा है वह पल भर में ही पहुँच जाये। यही बात यौनिकता को लेकर भी हुई है। एक उन्मुक्त यौन जीवन जीने की इच्छा लोगों में पनप रही है। नव युगलों में पल भर में बनते-बिगड़ते हुए रिश्ते, एक साथ कई पार्टनरों के होने का चलन, वन नाईट स्टैंड और वाइफ स्वेपिंग जैसी चीजें लोग आधुनिकता के नाम में स्वीकार करने लगे हैं। लेकिन चूँकि भारत में कई भारत हैं। हर जगह का संस्कृति अलग है, संस्कार अलग है और रूढ़ियाँ अलग हैं। इसके चलते लोग आधुनिकता के नाम पर इन चीजों को अपना तो लेते हैं लेकिन खुद को परिवरिश के दौरान मिली इन रूढ़ियों से निजाद नहीं दिला पाते हैं। और इसलिए कई बार जिन चीजों को वह उत्साह से अपनाते हैं वही चीजें बाद में उनके लिए अवसाद के कारण भी बन जाती  हैं। 

ऐसा ही किरदार इस लघु-उपन्यास में रवि का है। उसकी अपनी दुनिया है जिसे वह हाई सोसाइटी समझता है। यहाँ लड़कियाँ शराब पीतीं हैं, सिगरेट पीती हैं, छोटे कपड़े पहनती हैं और वाइफ स्वैपिंग के लिए तैयार रहती हैं। उसकी नजर में हाई सोसाइटी का हिस्सा बनने के लिए इन चीजों को करना पड़ता है और चूँकि उसे केवल इसका उजला पहलू, यानी मर्दों का औरतों का उपभोग करने की छूट, दिखता है तो वह इसमें शामिल होने के लिए लालायित रहता है। वह अपनी इस इच्छा में अपनी पत्नी को शामिल करना चाहता है। उसकी पत्नी जिसके होने पर वह अब तक शर्म महसूस करता था क्योंकि वह उसके सोचे गये मापडंडों पर खरी नहीं उतरती थी।  उसकी आधुनिकता की परिभाषा में शराब सिगरेट पीना तो शामिल है लेकिन अपनी मर्जी से जीना शामिल नहीं है। इच्छाओं का सम्मान करना शामिल नहीं है। वह आधुनिक बनता तो है लेकिन उसकी रूढ़ियाँ कथानक के दौरान कई बार सामने आती हैं। जब पत्नी उसकी बातों का विरोध करती है तो वह उसे उसकी औकात दर्शाने से भी नहीं चूकता है।

वह एक कमजोर किरदार का  व्यक्ति है जो भले ही अपने पर आश्रित पत्नी का शोषण करने से पहले एक बार भी नहीं सोचता है लेकिन अपने पिता के सामने खड़े होने की ताकत उसमें नहीं है। उसे पता रहता है कि रति वैसी लड़की नही है जिससे वह शादी करना चाहता है लेकिन इस बात को वह अपने परिवार के जिद के समक्ष खड़ा नहीं हो पाता है। वह आधुनिक बनता है लेकिन अपनी मर्जी से शादी करने की हिम्मत उसमें नहीं है। वह अपनी पत्नी को अत्याधुनिक बनाना तो चाहता है लेकिन वह उसके बताये रास्तों पर चलने लगती है तो उसका अभिमान इस बात को गँवारा नहीं करता है। वह अपनी पत्नी को अपने हिसाब से हाँकना चाहता है।

वहीं कहानी में रति है। रति जो कि कस्बे के ऐसे परिवार से आती है जहाँ लड़के और लड़की के बीच हमेशा से भेद रहा है। लड़कियों को बोझ समझा जाता रहा है। वहीं अपने घर में वह यौन शोषण का भी शिकार हुई है। इन सबने मिलकर उसके आत्मविश्वास को कम कर दिया है। 

सरकारी स्कूल में पढ़ी वह। ममेरी बहनों के उतरे कपड़े पहने उसने, कभी तीज त्योहारों पर कोई नया कपड़ा आ गया तो ठीक, नहीं तो पुराना ही सही, तो फिर ऐसे में बाबा उससे प्यार करते थे, यह बात उसके गले से नीचे नहीं उतरती थी।

बुआ जी लड़कियों के लिए सीमाएं तय करने में बहुत ही मुस्तैद थीं। उन्हें पता था कि छोटे शहरों की लड़कियों का आसमान बहुत ही छोटा और सीमित होता है। ऐसे में उनके स्पों और उनकी हरकतों पर कैंची चलाते रहना चाहिए। पर उसे क्या। उसे अपने बढ़ते शरीर से जैसे नफरत होने लगी थी। शरीर के बढ़ने से उसके अपने उसे अपने भाइयों से दूर कर रहे थे। ओह, क्या शरीर का बढ़ना इतना बुरा है?

शायद बुरा है ही।

वह अपना घर बचाने के लिए एकदम आज्ञाकारी बन गई है। वैसे भी जवाब देना या विद्रोह करना तो उसे आता भी नहीं था। जैसा माँ ने कहा उसने कर लिया था, बचपन में माँ और बाबा ने जैसा कहा वह करती रही थी और शादी के बाद जसिया उसकी सास और ननद ने कहा वह करती रही।

जब उसके परिवारिक परिवेश को आप जानते जाते हो तो आपको इसका अंदाजा भी होता है कि क्यों वह वह सब करते जाने के लिए मजबूर है जो वो करती जा रही है। क्यों वह विरोध नहीं कर पाती है। उसकी क्या मजबूरियाँ है। घरों में अच्छा सपोर्ट सिस्टम न हो तो कई बार स्त्रियाँ ऐसा शोषण झेलने के लिए अभिशप्त हो जाती हैं। ऐसी ही रति भी है। जब वह विरोध करती भी है तो पति द्वारा घर से निकाले जाने की बात पर सहम जाती है। उसे मालूम है मायके में उसे समर्थन नहीं मिलेगा। उसकी बात को नहीं समझा जायेगा।

घर से निकालने वाली बात पर रति डर जाती थी। वह कहाँ जाएगी? उसके मायके आने की बात पर उसकी माँ और बाबा तो आत्महत्या ही कर लेंगे। कैसे जी पायेगी अपने बाबा का कत्ल अपने सिर पर लेकर।

छोड़ो, जैसा चल रहा है चलने दो।

 वह कमजोर है। यह बात आपको कहानी में पता चल ही जाती है। इसलिए वह यह सब करने को तैयार हो जाती है। आपको उसके लिए दुःख भी होता है। यह दुःख दो कारणों से होता है- एक जो उसके साथ घटित हुआ और दूसरा जो वह आखिर में बन जाती है क्योंकि समझौता तो वह फिर भी कर ही रही थी। 

कहानी के अंत में रति पूरी तरह से वह बन जाती है जो कि रवि उसे बनाना चाहता था। यह अंत मुझे थोड़ा खला लेकिन मुझे लगता है कि रति के पास शायद कोई और विकल्प भी नहीं था।  हाँ, यहाँ अगर रति अपने आप को बचा पाती तो शायद मुझे अच्छा लगता। सौरभ से जो बातें उसे पार्टी में जानने को मिली उनसे सीख लेकर वह जीवन की नई शुरुआत करती तो शायद वह बेहतर होता। 

रति के माध्यम से यह कहानी हमें यह भी बताती है कि हमें अपने परिवार की लड़की को कम से कम इतना विश्वास तो देना होगा कि अगर उसके साथ कभी कहीं गलत हो तो वह रति के जैसे खुद को मारकर समझोते के लिए तैयार न हो। उसे इतना पता हो कि शादी होते ही उसका घर छूटा नहीं है। वह वापिस लौटकर आ सकती है।

यह उपन्यास वाइफ स्वैपिंग के ऊपर है। यह एक ऐसा विषय है जिसे लेकर लोग अपने अपने तौर पर अपनी अलग अलग राय रख सकते हैं। जहाँ तक मेरी बात है मुझे लगता है इसमें सही गलत कुछ नहीं है।  मेरा मानना यह है कि शादी एक पार्टनरशिप है और इसलिए कोई भी निर्णय लेते हुए दोनों व्यक्तियों का रजामंद होना बेहद जरूरी है। अगर पति पत्नी दोनों इस चीज के लिए राजी है तो किसी तीसरे को इससे दिक्कत नहीं होनी चाहिए।

अगर उपन्यास के किरदारों की बात करूँ तो अगर रवि रति से शादी न करके ऐसी लड़की से शादी करता जिसे इस सब से कोई दिक्कत नहीं है तो वह गलत नहीं होता। इस कहानी में उसे गलत केवल एक चीज बनाती है वह यह कि वह अपनी पत्नी को वो सब करने के लिए मजबूर करता है जो वह करना नहीं चाहती।

अंत में यही कहूँगा कि बाँहों के दरमियाँ हमें ठिठक कर यह सोचने पर मजबूर करती है कि आधुनिक बनने की होड़ में क्या हम भेड़ चाल में नहीं चल रहे हैं। हम आधुनिक बनने के लिए शराब पीने लगते हैं, सिगरेट का धुंआ उड़ाने लगता हैं, अपने प्रेमी भी बदलने लगते हैं लेकिन यह नहीं सोचते कि क्या आधुनिक बनना यही सब है? क्योंकि यह सब करते हुए भी भीतर की रूढ़ियों को हम पोसते रहते हैं। औरत आदमी का फर्क बना रहता है। इच्छाओं का सम्मान करने की समझ हमारे अंदर विकसित नहीं हो पाती है। प्रभुत्व की इच्छा भी बनी रहती है। जबकि इस सबका टूटना ही आधुनिकता की पहली सीढ़ी होनी चाहिए जिसे बड़ी आसानी से अनदेखा कर दिया जाता है। जबकि आधुनिक बनने पर सबसे पहले इन्हीं पर काम करना चाहिए। 

लेखिका इस कहानी के माध्यम से दोनों ही तरह के समाज पर प्रहार करती दिखती हैं। वह दर्शाती हैं कि चाहे वह अत्याधुनिक समाज हो या वह कस्बाई रूढ़ीवादी समाज हो वह लड़कियों को अपने अनुसार जीवन जीने से रोकता है। जब तक यह मूलभूत अधिकार उन्हें नहीं मिलेगा तब तक शायद यह शोषण चलता रहेगा। शहरों में शराब पीने वाली लड़की भी उसी तरह शोषित होती रहेगी जैसे गाँव या कस्बे की वो औरत है जो शराब पीने को पाप समझती है।  यह दोनों औरते भले ही देखने में दो अलग अलग युगों की लगती हों लेकिन इनकी स्थितियों में ज्यादा फर्क नहीं है।

हाँ, उपन्यास का अंत जहाँ पर होता है उधर न होकर थोड़ा आगे होता तो बेहतर होता। जहाँ पर अभी यह खत्म हुआ है वहाँ पर रति के अन्दर बदलाव की केवल शुरुआत हुई है। इनके रिश्ते में जो असर होता है वह भी शुरूआती ही है। बदलाव होने के बाद कुछ वर्षों बाद इस रिश्ते का क्या हुआ यह मैं देखना चाहता था। अभी बस इस विषय में कयास ही लगाये जा सकते हैं।

किताब की कुछ पंक्तियाँ जो मुझे पसंद आईं:

पहला इश्क, अपने होश की पहली बारिश, पहला नशा और पहली मदहोशी कौन भूल सका है भला। लड़की के साथ तो बहुत कुछ पहली बार होता है। पहली की छाया जीवन भर चली आती है।

 जब सुख खोने लगता है तो पिछले सुख की बड़ी याद आती है।

 चूँकि रवि खुद एक मल्टीनेशनल कम्पनी में सेल्स मैनेजर था तो उसे पता था कि कैसे बाज़ार में नयी चीजों को लाया जाता है, कैसे हर चीज को एन्जॉय किया जाता है। कैसे हर चीज को एन्जॉय करके भूल जाया जाता है। बार बार एक ही चीज से एन्जॉयमेंट कितने दिन तक आ सकता है। बाज़ार का नियम है पुरानी से पुरानी चीज को नये से नये तरीके से एन्जॉय करने की कला।

जीवन में कभी कभी एबनार्मल भी होना जरूरी होता है। रोज-रोज एक-सा ही जीवन जीते जीते सब लोग कुछ साल में बोर हो जाते हैं। देखती है, आजकल कितने घर, कितने परिवार टूट रहे हैं। सब इसी नोर्मल के चक्कर में होता है। कभी कभी एबनार्मल होने से ही नोर्मल का मतलब समझ में आता है। 

वह जानती थी कि छोड़ना बहुत आसान नहीं होता। आसान होता तो वह पहले प्रस्ताव के समय ही छूट जाती या पहली मनाही पर छोड़ दी जाती। हम सब किसी न किसी उम्मीद के साये में छूटने से बचे रहते हैं।

वह समझ गयी थी कि उठने के लिए गिरना पड़ता है। सब कुछ पाने के लिए सब कुछ सब तरह से सौंपना पड़ता है।

 “ओह तुम तो ऐसे चौंक रही थी, जैसे कुछ गिर गया।”
“हाँ , कुछ तो….”
 बेआवाज चीजें भी गिरा करती हैं। वे बड़ी बेशकीमती होती हैं।

केवल टारगेट को पूरा करना। बेचो, बेचो, जो बेच सकते हो बेचो। जो नहीं बिक सकता है, उसे भी बेचो। सब कुछ बेचो, इस बेचने के चक्कर में रवि ने सब बेच दिया था। उसने वह प्यार बेच दिया था तो माँ ने उसे दिया था। उसने हैण्डपंप से होने वाले प्यार को बेच दिया था और ले आया था बिसलरी का बोतलबंद पानी। उसने बेच दिया था बेल के शरबत को। और अपने घर ले आया था कोल्ड ड्रिंक की बड़ी बड़ी क्रेट। 

इस वैश्वीकरण के युग में लड़कियों ने अपने शरीर के साथ कुछ न कुछ समझौता कर लिया था। वे बेचती थीं अपनी अदाओं को, अपने हुस्न को। और रवि जैसी घाघ उन्हें खरीदते थे। जो लड़कियाँ कुछ समझौता नहीं कर पाती थीं वे वहीं की वहीं ठिठकी रह जाती थीं।

अब उसने सोचना बंद कर दिया। वह खुश रहना चाहती थी। वह खुद से बात करना चाहती थी। रवि ने उससे शादी करके अहसान किया है यह रवि का पूरा कुनबा उसे समझाता था।

पुस्तक लिंक: ई-बुक

रेटिंग: 3.5/5

© विकास नैनवाल ‘अंजान’


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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