वरिष्ठ लेखक योगेश मित्तल पिछले पचास वर्ष से लेखन कार्य कर रहे हैं। उन्होंने अपना अधिकतर जीवन ट्रेड नामों के लिए लिखते हुए बिताया है पर अब फेसबुक, ब्लॉग, पुस्तकों इत्यादि के माध्यम से अपने नाम से लेखन कर रहे है। हाल ही में उन्होंने डॉक्टर हरविंदर माँकड़ और उनकी आत्मकथा सफरनामा: कर्मभूमि की जीवनयात्रा पर अपने विचार लिखे हैं। आप भी पढ़िए।
किताबें बहुत पढ़ी होंगी आपने, लेकिन किसी के दिल पढ़ने का अवसर शायद ही मिला हो। मिला हो या न मिला हो, अगर दिल को पढ़ना है तो हरविन्द्र माँकड़ की ‘सफरनामा – कर्मभूमि की जीवनयात्रा’ पढ़कर देखिये।
इसमें सिर्फ़ कोई कहानी नहीं है, पर कहानी भी है और जो कहानी है, उसमें किसी पावनतम नदी के निर्मल स्वच्छ जल सी बहती हुई रवानी है।
और….!
इस पुस्तक में जो कहानी है, उसे हम ज़िन्दगी कहते हैं और यह ज़िन्दगी फर्श से अर्श पहुँचने वाले एक ऐसे इंसान की ज़िंदगी है, जिसका बचपन बहुत से नहीं, बहुत ज्यादा अभावों से गुज़रा। जो गली मोहल्ले के साथियों के साथ खेल तो लेता था, लेकिन उसका असली खेल – पेंसिल, ब्रुश और क्राकर थे।
उन दिनों स्केचिंग के लिए नटराज और कैम्लिन पेंसिल्स का बोलबाला था। पेंसिल स्केच पर इंकिग के लिए वीटो और कैम्लिन इंक का बोलबाला था। एन. एस. धम्मी ने अपने गुरु पृथ्वी सोनी और महेन्द्र सोनी से नटराज की नीले रंग की बोल्ड और नॉर्मल पेन्सिल्स का बहुत बेहतर प्रयोग सीखा था। हरविन्द्र माँकड़ को जब मैंने एन. एस. धम्मी से मिलवाया, तब वो एक स्वाभाविक जन्मजात कलाकार के रूप में स्वयं ही उभर रहा था। धम्मी साहब को उसे पेन्सिल्स और क्राकर का सही उपयोग समझाने में जरा भी परेशानी नहीं हुई, बल्कि यूँ कहिये, विशेष आवश्यकता ही न पड़ी।
धम्मी साहब के यहाँ हरविन्द्र की पहचान करवाने के बाद एक बार जब शाम को काम की छुट्टी होने के बाद जब मैं और राजभारती, विजय पाकेट बुक्स में प्रकाशित होने वाले राजभारती के एक उपन्यास के टाइटिल कवर बनवाने के लिए रात आठ से नौ बजे के बीच, बातचीत करने और आइडिया देने के लिए गये तो धम्मी साहब ने हरविन्द्र के बारे में बहुत सी बातें करते हुए मुझसे कहा था, “योगेश जी, इस लड़के के अन्दर आग है। कुछ करने की। कुछ बड़ा बनने की। इसे तो कुछ भी समझाने में मेहनत ही नहीं करनी पड़ती। जो भी बताओ, एक ही बार में समझ जाता है। देख लेना, एक दिन यह बहुत ऊपर तक जायेगा।”
और धम्मी साहब के शब्दों को एकदम सच साबित किया – हरविन्द्र माँकड़ ने।
आज धम्मी साहब की आत्मा भी शायद अपने शब्दों की सच्चाई देख, परलोक में प्रसन्न हो रही होगी।
हरविन्द्र तब नौंवी कक्षा का एक छात्र था, लेकिन अपनी आयु के अन्य बच्चों के मुकाबले बहुत भोला था। स्वभाव से बेहद सरल था, जो मन में होता कभी बेझिझक तो कभी झिझक के साथ धीमे-धीमे मद्धिम स्वर में कह देता था। वह सौ परसेन्ट एक सच्चा और ईमानदार बच्चा था और आज भी वह वैसा ही बेबाक, सच्चा और ईमानदार है, यह आप उसकी लिखी पुस्तक ‘सफरनामा – कर्मभूमि की जीवनयात्रा’ के एक-एक शब्द, एक-एक पृष्ठ में महसूस करेंगे।
जिन लोगों के दिल में आज कुछ बनने की, कुछ कर गुज़रने की, शोहरत और दौलत हासिल करने की आग है, उन्हें हरविन्द्र माँकड़ की ‘सफरनामा – कर्मभूमि की जीवनयात्रा’ एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए।
जिस उम्र में आज लड़के लड़कियों को अच्छे कपड़ों, फिल्मों, अपोजिट सैक्स से दोस्ती और खाने-पीने, घूमने का शौक होता है, उस उम्र में हरविन्द्र माँकड़ का एक ही शौक था, एक ही जुनून था – ब्रुश, क्राकर और रंग। हाँ, धम्मी साहब के यहाँ काम करने के दौरान उसकी दोस्ती ‘राटरिंग एरिस्टो और ब्रोपाल जैसे आर्ट पेन्स से भी हो गई थी, जो तब क्राकर की जगह इस्तेमाल होने लगे थे और ज़ीरो से नौ नम्बर तक के उपलब्ध हुआ करते थे।
उन दिनों हरविन्द्र के दोस्तों में भी कुछ बचपन के दोस्त और कुछ धम्मी साहब के यहाँ काम करने के दौरान बने दोस्त ही हुआ करते थे। उसने अपनी किशोरावस्था से यौवनावस्था का एक भी पल व्यर्थ नष्ट नहीं किया और आज उसके दोस्तों की संख्या बेशुमार है। बहुत से फिल्मी अभिनेता और अभिनेत्रियाँ, टीवी पर्सनैलिटीज़ और सेलिब्रिटीज़, गायक-गायिकाएँ, संगीतकार भी हरविन्द्र माँकड़ से दोस्ती कर गर्व महसूस करते हैं और स्वयं को गौरवान्वित मानते हैं। उसके साथ खुले दिल से मिलते हैं।
हरविन्द्र माँकड़ का कहना है कि मुझे कॉमिक्स जगत का इतिहास भी लिखना चाहिये। यकीनन मैं जब लिखूँगा तो हरविन्द्र के बारे में शायद उससे बेहतर जानकारियाँ आपको दे सकूँ, क्योंकि यह हरविन्द्र से ज्यादा मैं जानता हूँ कि हरविन्द्र की पीठ पीछे लोग उसके बारे में कैसी-कैसी राय रखते थे और किस तरह उसे कामिक्स के भविष्य का सुपरस्टार कहते थे।
जो लोग ज़िन्दगी में कुछ बनना चाहते हैं। आज और अभी हरविन्द्र माँकड़ का ‘सफरनामा – कर्मभूमि की जीवन यात्रा’ पढ़ें और जानें कि कैसे, बचपन की गलियों से आगे निकल, एक नौवीं क्लास का बच्चा, सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ता, एक सेलेब्रिटी बन गया। लोगों के लिए एक मिसाल बन गया।
आज भी हरविन्द्र में वही विनम्रता, सादगी, सरलता और सच्चाई है, जो तब थी – जब वह एक नौवीं कक्षा का छात्र था। आज भी वह किसी वयोवृद्ध आदरणीय को देख सरेआम पाँव छूने में भी संकोच नहीं करता, जबकि आज वो जमाना है, जब लोग किसी आदरणीय को प्रणाम करने से बचने के लिए मुँह घुमाकर चल देते हैं। अपनी सफलताओं में मददगार – हर छड़ी को, आगे बढ़ते ही तोड़ देना ही अपनी शान समझते हैं। किसी अन्य को अपनी सफलताओं का श्रेय देने से कतराते हैं। जीवन में बहुत अधिक ऊँचाइयों पर पहुँचने वालों को समझना चाहिए कि कामयाबी के शिखर पर पहुँचने से जीवनमूल्य नहीं बदल जाने चाहियें। सफलताओं के शिखर पर – बीते हुए रास्तों और पगडण्डियों का एहसान मानने से कोई छोटा नहीं हो जाता, बल्कि उसके चरित्र की जड़ों की मजबूती – पदचिन्हों पर चलने वाले हर शख्स को प्रेरित करती है और स्वयं उसे भी महान बनाती है।
इस पुस्तक के कथ्य के बारे में मैं बहुत कुछ कह सकता हूँ। प्रशंसा में कसीदे पढ़ सकता हूँ, किन्तु ऐसा कुछ भी मैं स्वयं नहीं करना चाहता। चाहता हूँ कि आप स्वयं पढ़ें – जो कुछ भी इसमें है। मैंने यदि आपको इसी पोस्ट में सब कुछ बता दिया तो आप इस पुस्तक को पढ़ने का वांछित लाभ नहीं उठा सकेंगे।
यह पुस्तक निस्सन्देह आत्मकथाओं की पुस्तकों में ‘मील का वो पत्थर’ है, जिसकी अपनी जगह – बेमिसाल है।
हाँ, एक सबसे बड़ी और खास बात इस पुस्तक में यह भी है कि जब आप इसे पढ़ेंगे तो बहुत से स्थानों पर आप हरविन्द्र माँकड़ के स्थान पर स्वयं को महसूस करेंगे, बशर्ते आप में भी कुछ कर गुज़रने की ललक हो, सनक हो, आग हो, जोश हो और आप शोहरत और दौलत के पायदान पर अपना कदम रखना चाहते हों।
पुस्तक विवरण
पुस्तक: सफरनामा: कर्मभूमि की जीवनयात्रा | फॉर्मैट: हार्डकवर | पुस्तक लिंक: अमेज़न
टिप्पणीकार परिचय
हाल ही में लोकप्रिय साहित्य पर उनकी लिखी पुस्तकें प्रेत लेखन का नंगा सच और वेद प्रकाश शर्मा: यादें, बातें और अनकहे किस्से पाठकों को काफी पसंद आई हैं। जल्द ही उनकी अपराध कथा जुर्म के खिलाड़ी नीलम जासूस कार्यालय से प्रकाशित होने वाला है।
अब वह अपनी रचनाएँ फेसबुक,ब्लॉग इत्यादि पर लिखते रहते हैं।
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