संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ईबुक | पृष्ठ संख्या: 71 | प्रकाशक: बुकेमिस्ट | एएसआईएन: B06XVD9WQT | शृंखला: JAJ #2
किताब लिंक: अमेज़न
कहानी
सेठ जामवंत राय की बेटी निहारिका गायब हो गयी थी। वह अपने दोस्तो के साथ काली पहाड़ी में बहने वाली नदी के किनारे कैंपिंग के लिए गयी थी और फिर अचानक से गायब हो गयी।
पुलिस की माने तो निहारिका किसी के साथ भाग गयी थी। वहीं सेठ जामवंत राय तो यह यकीन था कि उनकी बेटी के साथ कुछ बुरा घटित हो चुका था।
जब पुलिस भी निहारिका का पता नहीं लगा पाई तो सेठ जी ने अपनी पहुँच लगाकर सीक्रेट सर्विस को इस मामले को सुलझाने के लिए नियुक्त करवा दिया।
अब जावेद अमर जॉन को निहारिका का पता लगाना था।
निहारिका कहाँ गायब हो गयी थी?
क्या जावेद अमर जॉन की तिकड़ी इस मामले को सुलझा पाई?
किरदार
जावेद खान – खुफिया विभाग का एजेंट
अमर वर्मा, जॉन – जावेद के टीम के एजेंट
जामवंतराय – एक सेठ जिसकी जोहरीबाज़ार में चार दुकाने थीं
निहारिका राय – जामवंत की बेटी
अविनाश – निहारिका की दोस्त
इमरतीलाल – अमर का नौकर
बिंगो – अमर का कुत्ता
हीना, मंदिरा – निहारिका की दोस्त
करण,सौरभ,धीरज,गौरांग – निहारिका के दोस्त
करण गिरेवाल – निहारिका का दोस्त
संपत – होटल अजंता का एक वेटर
श्रीनिवासन – खुफिया विभाग का एनालिस्ट
धनिया, गुड्डू, रुस्तम – तीन अपराधी
मेरे विचार
बदकिस्मत कातिल लेखक
शुभानन्द द्वारा लिखा गया लघु-उपन्यास है। यह
जावेद अमर जॉन श्रृंखला का दूसरी पुस्तक है। इस श्रृंखला का पहला उपन्यास जोकर जासूस था जो कि मैंने 2017 में पढ़ा था। और अब लगभग चार साल बाद इस तिकड़ी से मिलना हो रहा है।
प्रस्तुत लघु-उपन्यास की बात करूँ तो बदकिस्मत कातिल में जावेद अमर जॉन की तिकड़ी को हम लोग एक लड़की के अपहरण की गुत्थी सुलझाते हुए देखते हैं। यह एक प्रोसीजरल है जिसमें इन खुफिया एजेंट्स द्वारा मामले को किस तरह सुलझाया जाता है यह दिखता है। छोटे छोटे अध्यायों में विभाजित यह लघु-उपन्यास अपने में रुचि बनाये रखता है। जावेद और अमर किस तरह से तहकीकात करते हैं और यह तहकीकात किस तरह से आम पुलिस वालों से अलग होती है यह लघु-उपन्यास के कथानक में दृष्टिगोचर होता है। कथानक में जैसे जैसे हमारे नायक आगे बढ़ते हैं वैसे वैसे कई घुमाव भी कथानक में आते हैं जो कथानक में रोचकता बनाए रखते हैं।
यहाँ यह बताना भी जरूरी है कि बदकिस्मत कातिल का कथानक ज्यादा जटिल नहीं है। कई बार चीजें पुलिस की लापरवाहियों के कारण अनसुलझी रह जाती हैं। यह बात असल के कई हाई प्रोफाइल मामलों में भी देखने में आई है। इस कथानक के साथ भी ऐसा ही है। अगर पुलिस लापरवाह नहीं होती तो नायकों को बुलाने की जरूरत ही न पड़ती। पुलिस की लापरवाहियों पर जब हमारे नायक कार्य करते जाते हैं तो वह इस मामले को सुलझा लेते हैं।
अक्सर ऐसी शृंखलाएँ जिसमें लेखक ज्यादा किरदारों को लेकर रचना लिखते हैं तो कथानक में इन मुख्य किरदारों के बीच संतुलन बनाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में कुछ किरदारों को दूसरे किरदारों से ज्यादा जगह न चाहते हुए भी मिल जाती है। यही चीज इस लघु-उपन्यास में भी दिखती है। वैसे तो यह जावेद अमर जॉन शृंखला की किताब है लेकिन यहाँ पर अमर और जावेद को ज्यादा जगह दी गयी है। अगर जॉन उपन्यास में न भी होता तो शायद इतना ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसे में लेखक से उम्मीद रहेगी कि वह आगे जब इस शृंखला के उपन्यास लिखे तो कोशिश करें कि तीनों का किरदार महत्वपूर्ण हो।
जहाँ जावेद एक संजीदा किस्म का एजेंट है वहीं अमर एक दिलफेंक मजाकिया एजेंट है। चूँकि अमर हास्य भी पैदा करता है,उसकी आशिक गिरी पुस्तक में रंग भी लाती हैं और पाठक उसकी व्यक्तिगत जिंदगी से जुड़े कई किरदारों से भी मिलता है तो वह पाठक के मन में ज्यादा प्रभाव छोड़ता है।
जॉन को कथानक में जितनी भी जगह मिली है उससे यही लगता है कि उसकी अमर से ज्यादा पटती है। जावेद इनका सीनियर लगता है वहीं जॉन और अमर जूनियर लगते हैं जिनकी आपस में तू तू मैं मैं होती रहती है। इनके वार्तालाप रोचक हैं और कई बार हास्य भी पैदा करते हैं।
लघु-उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप ही हैं।
इस लघु-उपन्यास का शीर्षक बदकिस्मत कातिल भी कहानी पर फिट बैठता है। सचमुच कथानक का अंत पढ़कर एक पल के लिए आप मामले से जुड़े लोगों के लिए दुखी हो जाते हो। कई बार लोगों की किस्मत बहुत खराब रहती है और इस मामले से जुड़े लोगों के विषय में यही बात कही जा सकती है।
अंत में यही कहूँगा कि जावेद अमर जॉन शृंखला का यह लघु-उपन्यास बदकिस्मत कातिल मुझे पसंद आया। कथानक सरल जरूर है लेकिन फिर भी आखिर में आए कुछ ट्विस्टस के लिए एक बार पढ़कर देखा जा सकता है। उम्मीद है आगे आने वाले उपन्यासों में लेखक ने तीनों किरदारों को बराबर जगह देंगे। श्रृंखला के अन्य रचनाएँ मैं जरूर पढ़ना चाहूँगा।
लेखक ने जावेद अमर जॉन शृंखला के एक नॉवेल तुम्हारी मौत का जिक्र इस किताब के अंत में किया है। जहाँ तक मेरी जानकारी है अभी तक यह किताब प्रकाशित हुई नहीं है। आखिर इस किताब का क्या हुआ? अगर लेखक बताएँ तो अच्छा रहेगा।
किताब लिंक: अमेज़न
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शुभानंद की कलम में पैनी धार है।
जी सही कहा… आभार..