संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: हार्डकवर | पृष्ठ संख्या: 33 | अनुवाद: देवलीना
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कहानी:
अटलबिहारी बसु कभी बदामतल्ले मोहल्ले की शान हुआ करता था। मोहल्ले का हर एक बच्चा अटल जैसा बनना चाहता था। मोहल्ले के लोग उसकी तारीफ़ के पुल बांधते नहीं अघाते थे।
पढ़ाई लिखाई हो, शरीर सौष्ठव हो या फिर समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह हो। अटल सभी कुछ बड़ी ही समझदारी से किया करता था।
सभी को लगता था कि अटल न केवल मोहल्ले का बल्कि पूरे देश का नाम रोशन करेगा। वह कोई महान कार्य करेगा।
उन्हें लगता था कि भविष्य में अटल के पास धन-सम्पत्ति और यश किसी भी चीज की कमी नहीं होगी।
पर फिर ऐसा क्या हुआ कि अटल सब छोड़छाड़ कर चला गया और दरिद्रता में अपना जीवन यापन करने लगा?
मुख्य किरदार:
अटलबिहारी बसु – बदामतल्ला मोहल्ले की शान
कथावाचक – एक साहित्यकार जो कभी बदामतल्ला मोहल्ले में रहता था और अटल जिसका आदर्श हुआ करता था
इंदुलेखा देवी – अटल की पत्नी
कुंतीदेवी – अटल की पत्नी
भुवन बाबू – बालिका विद्यालय के मालिक
सुरेश बाबू – बदामतल्ला मोहल्ले में मौजूद विद्यालय के हेडमास्टर
आशु बाबू – अटल के पिता
अधीर बोस – कथावाचक का दोस्त
मंगलमय सरकार – कुंतीदेवी के पिता जिनका असल नाम ब्रोजेन था जो कि एक क्रांतिकारी रह चुके थे
मेरे विचार:
वे दोनों और वह बिमल मित्र के रचना संकलन चतुरंग में मौजूद दूसरी रचना है। ‘वे, दोनों और वह’ के अलावा चतुरंग में ‘आज, कल और परसों’, ‘गवाह नम्बर तीन’ और काजल नाम की रचनाएँ संकलित की गयी हैं।
वे दोनों और वह का अनुवाद देवलीना ने किया है। अनुवाद अच्छा है और पढ़ते हुए कहीं भी ऐसा नहीं लगता है कि आप अनूदित कृति पढ़ रहे हैं।
बचपन में हम सभी के आसपास ऐसे लोग होते हैं जिन्हें हम लोग अपना आदर्श समझते हैं। यह व्यक्ति अक्सर हमसे थोड़ा बड़ी उम्र के लड़के या लड़कियाँ होते हैं जिनके जैसा हम लोग बनना चाहते हैं या जैसा हमारे अभिभावक चाहते हैं कि हम बनें। हम उन्हें श्रद्धा की नजर से देखते हैं और हमारे अभिभावक प्रशंसा की नजर से। प्रस्तुत रचना में कथावाचक ऐसा ही एक व्यक्ति है जिसका आदर्श अटल नाम का लड़का हुआ करता था।
अटल एक परफेक्ट लड़का था। ऐसा लड़का जिसके जैसा कथावाचक बनने की उम्मीद कर सकता था लेकिन जानता था कि बन नहीं सकता था। कथावाचक ही नहीं वरन बदामतल्ला मोहल्ले के हर एक व्यक्ति को अटल को लेकर कई आशाएं थीं लेकिन वह सभी आशाएं पूरी न हो सकी। आज कथावाचक साहित्यकार है और कई कहानियाँ एवं उपन्यास लिख चुका है लेकिन उसका आदर्श एक छोटे से स्कूल के हेडमास्टर के रूप में गरीबी में अपना जीवन बिता रहा है। यह सब कैसे हुआ और क्यों हुआ? यही कहानी कथावाचक इस लघु-उपन्यास में सुना रहा है।
उपन्यास की शुरुआत कथावाचक द्वारा एक साक्षात्कार लिए जाने से होती है जिसमें प्रतिभागी के तौर पर अटल की पत्नी इन्दुलेखा उसके सामने उपस्थित होती है। इस साक्षत्कार के बाद ही कथावाचक के जहन में अटल की कहानी घूमने लगती है। इन्दुलेखा अटल की पत्नी थी जिसने अपने पति अटल का त्याग कर दिया था और अब नौकरी की तलाश में आई थी। इन्दुलेखा के पिता कभी एक बड़े व्यापारी हुआ करते थे और ऐसे में इन्दुलेखा का एक शिक्षिका की नौकरी के लिए उपस्थित होना कथावाचक को सोच में डाल देता है। क्या पैसों की कमी के कारण वह यह काम कर रही है? अगर ऐसा है तो पैसे की कमी क्यों हुई? यह एक ऐसा प्रश्न है जो कथावाचक को एक बार फिर अपने आदर्श अटल, जिसके विषय में काफी समय से सोच नहीं था, के विषय में सोचने पर मजबूर कर देता है।
कहानी शुरुआत से ही पाठक के रूप में आपको बांध लेती है। अटल का जैसा खाका कथावाचक खींचता है उससे आपके मन में भी यह जानने की इच्छा प्रबल हो जाती है कि अटल के साथ जो हुआ वो क्यों हुआ? एक आदर्शवादी व्यक्ति जो काफी कुछ कर सकता था ऐसे असफल जीवन क्यों जीने लगा? यही प्रश्न आपको कहानी पढ़ते चले जाने पर विवश करते हैं। उपन्यास की कहानी पहले बैकफ्लैश में चलती है और फिर मुख्य किरदारों के वर्तमान जीवन पर आती है। कहानी में लगातार एक रहस्य का पुट बना रहता है।
उपन्यास की कहानी हमें कथावाचक सुना रहा है जो कि अब एक बड़ा साहित्यकार बन चुका है और मुख्य किरदारों के जीवन से जुड़ा हुआ है। उसके अलावा कहानी में इक्का दुक्का ऐसे किरदार आते हैं जिनका इस्तेमाल कहानी को आगे बढ़ाने के लिए किया गया है। मुख्य किरदारों के अलावा जिस किरदार ने मेरी रुचि जागृत की वह मंगलमय सरकार का किरदार है जो कि कभी क्रांतिकारी हुआ करता था और ब्रोजेन के नाम से प्रसिद्ध था। उस पर अंग्रेजों द्वारा ईनाम भी घोषित किया गया था। उसके क्रांतिकारी जीवन का छोटा सा खाका भी इधर खींचा गया है जो कि पढ़ते हुए रोमांचक लगा था। अगर ब्रोजेन लेकर एक कहानी लिखी गयी होती तो वह मैं जरूर पढ़ना चाहता।
कहानी के मुख्य किरदार अटल, इंदुलेखा देवी और कुंती देवी हैं। कहानी में वे दोनों और वह कौन है यह पता करना मेरे लिए मुश्किल था। जिस तरह से कहानी शुरू होती है उसमें वे दोनों अटल और इंदुलेखा देवी नजर आते हैं वह कुंती देवी। जब कहानी आगे बढ़ती है तो वे दोनों अटल और कुंतीदेवी नजर आती है और वह इंदुलेखा देवी। एक अलग कोण से कहानी को देखें तो वे दोनों इंदुलेखा देवी और कुंती देवी नजर आती हैं और वह अटल नजर आता है। इन्हीं तीनों के विभिन्न समीकरणों की यह कहानी है। यह तीनों ही ऐसे किरदार हैं जिनमें खूबियों के साथ साथ कमियाँ भी मौजूद हैं। यह कहानी में अलग अलग जगह नायक और खलनायक दोनों ही लगते हैं।
अटल के विषय में जो बातें हमें पता लगती है वह कथावचक के माध्यम से ही पता लगती है। इसमें कथावचक उसे कैसे देखता है यही हमें दिखता है। कई बार जो सबसे ज्यादा आदर्शवादी होते हैं वह अपने जीवन में ही उन आदर्शों को लागू नहीं कर पाते हैं। देश और समाज की रक्षा का बीड़ा तो वह उठा देते हैं लेकिन खुद के लिए खड़े नहीं हो पाते हैं। ऐसी ही हालत अटल की लगती है। वह एक वादा करता है और फिर उस वादे को निभा भी देता है और लेकिन उसके लिए खड़ा नहीं हो पाता है। एक यह घटना उसे इतना हिला देती है कि उसकी सारी इच्छाशक्ति ही खत्म हो जाती है। फिर वह अपना कोई भी दायित्व फिर वह अपने किसी भी रिश्ते के प्रति क्यों न हो निभा नहीं पाता है। न वह अच्छा पति बन पाता है और न ही अच्छा बेटा। अगर वह दृढ़ होकर अपनी बात रखता तो शायद जो उसके जीवन में हुआ वैसा कुछ नहीं होता और कई जीवन बर्बाद होने से बच जाते।
इंदुलेखा देवी एक अमीर घर की लड़की है जिसे ब्याह के दिन ही पति से धोखा मिला था। ऐसे में उसके अंदर कटुता आना स्वभाविक है। परंतु कहा गया है न कि न हम जिसने नफरत करते हैं अगर नफरत करना जारी रखें तो हमें उनके जैसे बनते देर नहीं लगती है। हम किसी को बर्बाद करने की चाह में खुद ही बर्बाद हो जाते हैं। यही कहानी कुछ हद तक इंदुलेखा देवी की है। उन्हे देखकर दुख ही होता है।
कहानी की तीसरी पात्र कुंती देवी है जो कि अपने हक हकूकों के लिए लड़ने वाली महिला है। वह जानती है कि अपने हक के लिए लड़ते हुए उसे सब खलनायिका ही समझेंगे क्योंकि वह जिसके लिए लड़ रही है वह उससे हर कोण में बेहतर है। शायद यही कारण है कि वह उसे अपने पल्लू में बांधकर सबसे अलग रखना चाहती है। अपने इस डर के चलते भी वह यह नहीं देखती है कि उसका पति केवल उसका पति नहीं है बल्कि किसी का बेटा भी है। अगर शायद वह यह सोचती तो क्या पता अटल और उसकी ज़िंदगी कुछ और होती।
खैर, होने को तो कुछ और भी हो सकता था लेकिन ऐसा होता नहीं है। इन टूटे किरदारों के विषय में पढ़ते हुए आप काफी कुछ सोचने लग जाते हैं। उपन्यास आपको दुखी करता है। आप अटल से जुड़े हर किरदार के लिए दुखी ही हो सकते हैं। फिर वो उसके अभिभावक हो, उसके दोस्त हों या उसकी जीवनसंगनियाँ। उपन्यास को इस तरह से लिखा गया है कि इसमें काफी कुछ ऐसा रह जाता है जो बताया नहीं गया है। उपन्यास की कहानी कथावाचक जरूर सुना रहा है लेकिन उसे काफी चीजें खुद पता नहीं रहती हैं। काफी चीजें उसे उसका दोस्त अधीर बोस बताता है। ऐसे में कई बार आपको लगने लगता है कि इन किरदारों के जीवन के कई पहलू ऐसे हैं जो आपकी नज़रों में आने से बच जाते हैं। उन पर पर्दा पड़ा रहता है। यह एक तरह की अनस्तुष्टि का भाव मन में जगाता है। एक दो बार ऐसा भी लगता है कि कहानी को खींचा गया है। अटल की कहानी जैसी ही पता लगने वाली होती है कुछ घटना ऐसी होती है कि पता नहीं लग पाता है। यह पढ़ते हुए लगता है कि शायद पृष्ठ बढ़ाने के लिए यह किया गया हो। लेकिन फिर कई बार जीवन में आप हर चीज कहाँ जान पाते हैं और कई व्यक्तियों के बारे में पूरी बात पता न होते हुए भी उनके प्रति धारणा बनाने से नहीं चूकते हैं। वहीं कई बार आप जिस चीज की तलाश में निकलते हैं वो आपको आसानी से मिलती कहाँ है। ऐसे में इसे आप जीवन के ऐसे ही टुकड़े के तरह भी देख सकते हैं।
बिमल मित्र मेरे पसंदीदा कथाकारों में से एक हैं और उनकी यह कृति ‘वे दोनों और वह’ भी मुझे पसंद आयी। हाँ, कई बार पढ़ते हुए सोच रहा था कि कथावाचक जो कहानी सुना रहा है वो कहानी अटल, इंदुलेखा देवी और कुंती देवी सुनाते तो कैसा रहता। शायद कथानक और रोचक बन जाता।
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पाठकों से प्रश्न:
नोट: ‘पाठकों से प्रश्न’ पाठकों से एक संवाद बनाने की मुहिम है जिसमें मैं एक प्रश्न वेबसाईट के पाठकों से पूछता हूँ ताकि वह अपने विचारों से मुझे अवगत करवा सकें। उम्मीद है आप अपने विचारों से मुझे अवगत जरूर करवाएंगे।
प्रश्न: क्या आपको उपन्यास पढ़ते हुए कभी ऐसा लगा है कि कहानी जिस किरदार के दृष्टिकोण से दर्शाई जा रही है उससे अलग किरदार के दृष्टिकोण से दर्शाई जाती तो बेहतर होता? वो कौन सा उपन्यास था जिसे पढ़ते हुए आपको ऐसा लगा और आप किस किरदार की नजर से उस कहानी को पढ़ना चाहते थे? अपने उत्तर से मुझे अवगत जरूर करवाइएगा।
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बिमल मित्र का यह लघु उपन्यास मैंने उनके 'कगार और फिसलन' नामक उपन्यास में पढा था।
बिमल जी की रचनाएँ मन को छू जाती हैं। कभी कभी तो दुख के सागर में उतार देती हैं।
अच्छी समीक्षा, धन्यवाद।
– गुरप्रीत सिंह, राजस्थान
जी सही कहा। लेख आपको पसन्द आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।
Like the way you analyze & present stories. 🙂
Thank you for your kind words…