जोकर जासूस – शुभानंद

रेटिंग : 2.25/5
उपन्यास 8  मार्च,  2017 से 13 मार्च 2017 के बीच पढ़ा गया


संस्करण विवरण :

फॉर्मेट :
पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 128 | प्रकाशक: सूरज पॉकेट बुक्स | श्रृंखला: जावेद अमर जॉन #१

पहला वाक्य : 
सड़क के बीचों बीच उसे खड़ा देखकर ट्रक ड्राईवर भौचक्का रह गया। 


आर्थर स्मिथ द्रोवेलिया का एक जानामाना वैज्ञानिक था। जब उसने अचानक अजीब हरकतें करनी शुरू की तो उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। फिर दो साल तक वो सबकी नज़रों से ओझल रहा। और जब एकाएक उसके मरने की खबर पुलिस को मिली तो सब हैरत में पड़ गये।

आर्थर ने इन दो सालों में एक अविष्कार किया था।  यह अविष्कार इतना घातक था कि जिसके भी हाथ में ये पड़ता वो दुनिया में तबाही ला सकता था।

अब इस अविष्कार के पीछे एक आतंकवादी संगठन, एक अपराधिक संस्था और द्रवोलिया की खुफिया एजेंसी पड़ी थी। इस आविष्कार को पाने का राज एक फाइल में था जो कि द्रोवेलियन कंट्री इंटेलिजेंस के एजेंट जोकर के पास थी। जोकर उस फाइल को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करन चाहता था। अब उसे केवल आविष्कार तक पहुंचना था। और इसके लिए उसे भारत का रुख करना था।  और उसके बाद वो अपने मकसद में कामयाब हो जाता।

क्या वो अविष्कार तक पहुँच पाया।  उसे इसके लिए किन खतरों का सामना करना पड़ा? आखिर उसका मकसद क्या था ?
ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब आपको इस उपन्यास को पढ़कर ही मिलेंगे।

जोकर जासूस जावेद अमर जॉन श्रृंखला का पहला उपन्यास है। उपन्यास का आधा कथानक द्रोवेलिया नामक देश में और आखिरी का तीस प्रतिशत उपन्यास भारत में घटित होता है। उपन्यास की शुरुआत रोचक तरीके से हुई थी। लेकिन इसके बाद अचानक काफी कुछ होने लगता है। ऐसे में किरदारों के साथ मैं  भावनात्मक जुड़ाव महसूस नहीं कर पाया। घटनायें तेजी से घटित हो रही थी लेकिन इन्होने रोमांच पैदा करने की जगह मेरे अन्दर कंफ्यूजन ही पैदा किया।

कुल मिलाकर कहूं तो उपन्यास मुझे औसत से थोड़ा बेहतर लगा। उपन्यास की कुछ बातें थी जो मुझे पसंद नहीं आयीं और इन्होने भी कुछ हद तक उपन्यास को मेरे लिए कम मनोरंजक बनाया।

उपन्यास में तीन चार  जगह वर्तनी की गलतियाँ हैं। शुरू में ही साक्षात को शाख्शात लिखा है। एक जगह अंदाजा के जगह अंदाज लिखा है। ऐसे ही दो तीन जगह गलतियाँ है लेकिन ये गिनती की हैं। ऐसे प्रिंटिंग में अक्सर हो जाता है लेकिन मैंने इसलिए नोट किया क्योंकि साक्षात वाली गलती से मैं खुद कंफ्यूज हो गया था। ऐसे में अगर कोई नौसीखिया पाठक उपन्यास से हिंदी सुधारना चाहता है तो उसे दिक्कत आएगी।

उपन्यास में एक जगह एक किरदार कोट के अन्दर से a k 47 निकालता है। ये मुझे अटपटा लगा। अगर किसी को हथियार छुपा के ही रखना है तो कई छोटे आटोमेटिक हथियार होते हैं जो a k 47 से छोटे होते है।  ak 47 तो खुद 34 इंच के लगभग होती है जिसे कोट में  छुपाना नामुमकिन नहीं तो कठिन अवश्य होता है।

किताब का फॉन्ट साइज़ भी काफी छोटा और पतला है। इसे पढ़ना थोड़ा तकलीफदय था। अगर आप पॉकेट बुक पढ़ने के आदि हैं तो इससे आपको थोड़ा दिक्कत होगी।

इसके इलावा एक अजीब बात मुझे जो लगी वो ये थी इस किताब के शुरुआत में लिखा है कि ये जावेद अमर जॉन श्रृंखला का प्रथम उपन्यास है लेकिन उपन्यास आधे से ज्यादा बीतने पर भी इन तीनों का कहीं अता पता नहीं था।  मैं तो इनका ही इंतजार करते रह गया। इनकी उपयास में एंट्री काफी लेट होती है। इस वजह से भी मैं उपन्यास को पूरी तरह से एन्जॉय नहीं कर पाया।

मेरा मानना है कि अगर किसी श्रृंखला के किरदार को पहली बार पाठकों के सामने रखते  हो तो पहले पाठकों से उसका परिचय करवाते हो। आप चाहते हो कि पाठक जाने वो कौन है और क्यों है ताकि पाठक उससे एक  तरीके का रिश्ता कायम कर सके। अगर ऐसा होता है तो उस पात्र का संघर्ष पाठक का संघर्ष बन जाता है। लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं होता है। कहने को तो श्रृंखला का नाम जावेद अमर जॉन है लेकिन हम इनसे काफी देर में मिलते हैं। फिर हमे इन तीनो किरदारों की इकुऐशन का भी पता नहीं लगता है। जहाँ अमर और जॉन में दोस्ताना ताल्लुक है वहीं जावेद इनसे बड़ा प्रतीत होता है। एक बार अमर भी जॉन को कहता है कि जबसे जावेद का प्रमोशन हुआ है वो उन्हें ऐसे ट्रीट करता है जैसे वो सड़क के कुत्ते हों। फिर वो जावेद से फोर्मल व्यवहार करते हैं।  ऐसे में ये तीनो एक साथ कैसे होंगे ये बात मुझे अटपटी लगी। हो सकता है आने वाले उपन्यासों में ये क्लियर हो।

यही चीज जोकर के साथ भी देखने को मिली। हमे केवल ये पता है वो अच्छा स्पाई है लेकिन फिर उसका नाम जोकर क्यों पड़ा? इसके विषय में कोई प्रकाश नहीं डाला गया। या डाला भी गया तो ऐसा रहा कि मुझे याद तक नहीं।

ऐसा नहीं है कि उपन्यास बुरा है। उपन्यास में कई जगह अच्छे दृश्य है। कुछ अच्छे एक्शन सीक्वेंस भी हैं लेकिन कुल मिलाकर उपन्यास मेरी उम्मीदों पे खरा नहीं उतरा। हो सकता है इसका कारण ये भी रहा हो कि मेरा पूरा ध्यान श्रृंखला के मुख्य किरदारों की एंट्री के ऊपर था।

अंत में केवल इतना कहूँगा कि इसे एक बार पढ़ा जा सकता है।

ये श्रृंखला का पहला नावेल है। इसके शायद दो और नावेल आ चुके हैं। मेरा पास इस श्रृंखला का तीसरा नावेल कमीना है। वो मैं जरूर पढूँगा और उसके बाद निर्णय लूँगा कि श्रृंखला का दूसरा नावेल पढना है या नहीं।

अगर आपने यह किताब पढ़ी है तो आपको कैसी लगी? अगर आपने इस किताब को नहीं पढ़ा है तो आप इसे निम्न लिंक से मंगवा सकते हैं :
अमेज़न – पेपरबैक

© विकास नैनवाल ‘अंजान’

FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

4 Comments on “जोकर जासूस – शुभानंद”

  1. ये सूरज पाॅकेट बुक्स से प्रकाशित लेखक शुभानंद का उपन्यास है।
    मैं इनका एक और उपन्यास पढ चुका हूँ, उसमें भी शाब्दिक गलतियाँ बहुत हैं।
    – दूसरा उस उपन्यास पर लिखा है ' राजन- इकबाल Reborn सीरीज' का है।
    लेकिन इस बारे में कहीं कुछ भी स्पष्टीकरण नहीं मिलता, लेखकिय/ संपादकीय की कमी महसूस होती है उपन्यास में।

    1. जी सही कहा आपने। ये उपन्यास उनके राजन इकबाल श्रृंखला से इतर जावेद अमर जॉन श्रृंखला का है। प्रकाशन में वर्तनी की गलती हो तो थोड़ा खटकता है मुझे क्योंकि पाठक इसको सही मानकर इसका उपयोग करने लगता है।
      बाकी, जब एस सी बेदी जी राजन इकबाल को लिखना बंद कर दिया था तो शुभानन्द साहब ने दुबारा लिखना शुरू किया। हाँ, ये बात उन्हें लेखकीय में देनी चाहिए थी।

  2. 'जोकर जासूस' उपन्यास पढा और फिर ध्यान आया आपकी समीक्षा का।
    जैसा की आपने लिखा पात्रों का परिचय आवश्यक था, यह बात सही है।
    हालांकि कथा के तौर पर उपन्यास मुझे पसंद आया। अगर इस उपन्यास को JAJ सीरीज का न बनाया होता और भारत के साथ अनावश्यक संबंधित न किया जाता तो ज्यादा अच्छा रहता।
    जोकर जासूस

    1. जी सही कहा। इस उपन्यास को शृंखला से अलग रखा जाता तो बेहतर होता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *