रोमांचक पहले भाग के बावजूद औसत दूसरे भाग के चलते एक औसत शृंखला बनकर रह जाती है ‘वॉरलॉक’

‘वारलॉक’ विक्रम दीवान द्वारा लिखित दो उपन्यासों की शृंखला है जिसका पहला भाग ‘वारलॉक’ है और दूसरा  भाग ‘मौत की घाटी’ है। उनकी इस शृंखला पर राकेश वर्मा ने अपने विचार व्यक्त किए हैं। आप भी पढ़िए। 

 कहानी

पायल एक सुंदर और महत्वकांक्षी लड़की है जिसका सपना एक सफल अभिनेत्री बनना है। पर सफलता नहीं मिलती। उसकी मुलाकात एक प्रसिद्ध कोरियोग्राफर से होती है जो उसे अभिनय करने का अवसर दिलाने का दावा करता है । शहर में सीरियल किलिंग हो रही है जो पुलिस की पकड़ से दूर है और क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर उदय ठाकुर सीरियल किलर को पकड़ने में नाकाम हो रहे हैं । पायल भी सीरियल किलर  अका वॉरलॉक के चंगुल में फंस जाती है और उसके प्रेतबाधित फार्महाउस में कैद होकर राह जाती है । उस फार्महाउस से कोई जीवित नहीं लौटा है इसलिए पायल के पास जीवित रहने का बहुत कम मौका है। 

क्या पायल वॉरलॉक के चंगुल से बच पाई? 

वॉरलॉक जो अपने आप को सबसे ताकतवर और क्रूर तांत्रिक मानता है वह अपने उद्देश्यों में सफल हो पाया?

वॉरलॉक के सामने खड़े होने वाला एक अन्य तांत्रिक जो जन्मजात अंधा है। 

 क्या वो वॉरलॉक को रोक पाया? 

क्या हुआ जब तांत्रिको और प्रेतों का युद्ध हुआ?

विचार

वैसे तो विक्रम दीवान द्वारा लिखी गई वारलॉक शृंखला में दो उपन्यास हैं। प्रस्तुत लेख में मैं पूरी शृंखला पर ही अपने विचार व्यक्त करने वाला हूँ। वैसे तो प्रकाशक ने इसे हॉरर श्रेणी में रखा है लेकिन मेरे हिसाब से प्रस्तुत उपन्यास शृंखला को हॉरर श्रेणी में न रखकर सुपरनेचुरल थ्रिलर (पारलौकिक रोमांचकथा) की श्रेणी में रखना बेहतर होगा। 

वारलॉक की कहानी शुरू होती है एक बच्चे के विचारों से जिसकी बलि दी जा रही होती है। यह उपन्यास का टोन निर्धारित करता है जिससे पाठको को उपन्यास के शुरुआत में ही अंदाजा लग जाता है कि आगे और भी घृणित दृश्य या घटनाक्रम आयेंगे।  

शृंखला के पहले भाग में इसी तरह की एक के बाद एक घटनाएँ घटित होती रहती हैं जिनमें से कुछ ऐसी हैं जो रोमांच पैदा करती है और पाठक को पृष्ठ पलटने के लिए मजबूर कर देती हैं। वारलॉक के तांत्रिक अनुष्ठान और क्रूरता पूर्वक बलि चढ़ाने वाले दृश्य एक बारगी तो झुरझुरी पैदा करते है। 

शृंखला के पहले भाग में कहानी की गति, सस्पेंस, थ्रिलर और मनोरंजन संतुलित रहा जबकि दूसरे भाग में कहानी की गति धीमी और थ्रिल की कमी रही। धीमी गति के कारण कहानी कहीं कहीं पर बोझिल हो गई। 

कहानी के दो ही मुख्य किरदार रहे है  पायल और वॉरलॉक। कहानी में किरदार तो बहुत आये पर पूरी कहानी इन्ही दो किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है। कहानी के साथ ही पायल का किरदार बेहतर होता जाता है। वॉरलॉक की जैसी दहशत और वहशियत दर्शा रहे थे वैसा दिखा नहीं पाये। कहानी में अन्य किरदार भी महत्वपूर्ण थे पर उनको लेखक ने उनको जैसे भूला दिया । कुछ किरदार है जिनको ज्यादा अच्छे से दर्शाया जा सकता था  जैसे- उदय ठाकुर। उदय ठाकुर क्राइम ब्रांच का अफसर है जो दिल्ली में हो रही शृंखलाबद्ध हत्याओं की तफतीश कर रहा है।  कहानी के शुरुआत में यह किरदार अच्छे से दर्शाया गया पर कहानी के साथ आगे नहीं बढ़ाया गया। जबकि इस किरदार को लेकर पाठक को बहुत उम्मीद थी लेकिन लेखक ने इसे बाद में गुमनामी में धकेल दिया। उदय ठाकुर की आगे बहुत संभावनाएं थी वह सीरियल किलर और सुष्मिता मर्डर केस की इन्वेस्टिगेशन करता दिखाया जा सकता था और कड़ी से कड़ी जोड़कर वारलॉक तक पहुँचता दिखाया जा सकता था।

कर्नल नारंग, के किरदार के लिए भी बहुत संभावनाएँ थी।  इनको एक तीव्र बुद्धि और ज्ञानी व्यक्ति के तौर पर दर्शाया है पर इनकी क्षमताओं का बहुत कम उपयोग करते दिखाया गया है।

इस शृंखला में कमी की बात करूँ तो कहानी की लंबाई ज्यादा है। यह कहानी दो भागों में न होकर यह एक उपन्यास में ही होती तो ज्यादा बेहतर बनती। लम्बे-लम्बे वार्तालाप और वक्तव्य पाठको को उबाते है। वहीं जो घटनाएँ दर्शाई गई हैं वह समय के अनुसार तर्क संगत नहीं बैठती है। उपन्यास में दो घटनाएँ एक साथ घट रही है पर दोनों में लगा हुआ समय अलग अलग दर्शा रहे है।

जैसे – पहले भाग के अंत मे वारलॉक एक तांत्रिक साधना करने वाला होता है सभी तैयारी कर लेता है। साधना को करने में सप्ताह भर का समय लगना है। उसका विरोधी भी एक तांत्रिक साधना करने वाला है तैयारी के लिए पैसे ले लेता है। उसको भी 4-5 दिन का समय लगना है। पायल शादी करने वाली है। (हुई नहीं है)

अब दूसरे पार्ट में स्टोरी कंटिन्यू होती है। और अचानक बताते है कि पायल की शादी को दो महीने हो गए है। पर तांत्रिक और वारलॉक साधना अब स्टार्ट करेंगे जबकि पहले पार्ट के लास्ट में साफ बताया गया था कि अगले दिन से ही साधना करेंगे और पायल अब शादी करेगी। 

अब एक तरफ तो लेखक पायल की स्टोरी में 2 महीने का गैप दे रहे है पर तांत्रिक और वारलॉक की स्टोरी वहीं है आगे ही नहीं बढ़ी। और कहीं पर यह भी नहीं कहा गया कि यह घटनाये आगे पीछे घटी है। सभी घटनाये समांतर एक ही समय मे चल रही है। यह बहुत बड़ी गड़बड़ है।

ऐसे ही 2-3 पेज आगे बढ़ते ही पायल 7 महीने की गर्भवती है पर बाकी दूसरी घटनाएँ ऐसे घट रही है जैसे समय का कोई गैप आया ही नहीं है।

यहाँ मैं यह साफ करना चाहूँगा कि मूलतः अंग्रेजी में लिखी इस शृंखला का मैंने अनुवाद पढ़ा है। तो दो सम्भावनाएँ है कि या तो लेखक की तरफ से गलती है या अनुवादक की तरफ से।

कहानी के खलनायक वारलॉक को भी अपने पूरे जलाल पर नहीं दिखाया गया है। जिस तरह का किरदार था वह और कहर बरपा सकता था लेकिन ऐसा नहीं होता है। 

उपन्यासों को पढ़ते हुए एक बात बिल्कुल साफ है कि इनकी प्रूफ रीडिंग और एडिटिंग नहीं हुई है या हुई है तो न होने के बराबर है। शाब्दिक और मात्राओं की बहुत गलतियाँ है। एडिटिंग होती तो जो कमियाँ ऊपर बताई है वो सही हो जाती।

अंत में यही कहूँगा  कि वारलॉक शृंखला मुझे औसत लगी। इसका पहला भाग दूसरे भाग के मुकाबले ज्यादा अच्छा लगा और कई जगह पर ट्विस्ट एंड टर्न ने मुझे रोमांचित किया। अगर बेहतर सम्पादन होता तो ऊपर दर्ज गलतियों को सुधार कर उपन्यास बेहतर किए जा सकते थे। खैर, लेखक ने कुछ नया प्रयोग किया है जो काबिले तारीफ़ है।

– राकेश वर्मा

पुस्तक विवरण:

पुस्तक: वारलॉक, वारलॉक: मौत की घाटी | पृष्ठ संख्या: 204, 198 | प्रकाशक: बुक कैफै प्रकाशन | पुस्तक लिंक: वारलॉक | मौत की घाटी | Warlock | Valley Of Death

टिप्पणीकार परिचय:

राकेश वर्मा - परिचय
राकेश वर्मा

राकेश वर्मा राजस्थान के जयपुर शहर के निवासी हैं। वह बी कॉम से स्नातक हैं। बचपन से उन्हें कॉमिक्स और कहानियाँ पढ़ने का शौक रहा है। 2015 से उन्होंने उपन्यास पढ़ने शुरू किये और अब उपन्यासों से उन्हें विशेष लगाव हो चुका है। पौराणिक-ऐतिहासिक गल्प और फंतासी श्रेणी के उपन्यास उनकी पहली पंसद रहती है।

एक बुक जर्नल पर राकेश वर्मा के लेख:
राकेश वर्मा

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