हिन्दी साहित्य में अक्सर साहित्यकारों को वह स्थान नहीं मिल पाता है जिसके वह हकदार होते हैं। कई बार उन्हें वह स्थान मिलता भी है तो आगे आने वाली पीढ़ी द्वारा वह भुला दिये जाते हैं। आज गजानन रैना अपने इस लेख में ऐसे ही साहित्यकारों को याद कर रहे हैं जिन्हें याद करना जरूरी है। आप भी पढ़िये।
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कुछ लेखक ऐसे हैं जो याद करने लायक थे, लेकिन हम भूल गये। आज से शुरू करते हैं, उनको याद करना।
आप जानते हैं ब्रजेश्वर मदान को? कैलाश नारद को? सत्येन कुमार को? अरे,सब छोड़ दें यार, के पी सक्सेना को?हिन्दी के पाठक की स्मृति दुर्बल है और पाठकीय विवेक रुग्ण।
आपकी गलती नहीं, यदि आप इन्हें नहीं जानते,गलती है उन लोगों की,जिन्होंने इन जादूकलम लेखकों को पढा था और भूल गये ।
सत्येन कुमार पीले जार्जेट सी धूप की भाषा ले कर आये थे।उनके पास भाषा का अनोखा तेवर था, माउथ आर्गन,पुराने एल पी रिकार्ड्स, फिल्म प्रोजेक्टर, जहाज,राइफल और सनकी लड़कियाँ थीं । सत्येन पतनोन्मुख सामंतवाद, decadent feudalism के लेखक थे, क्योंकि वो उनका खूब जाना,पहचाना परिवेश था। इसके अतिरिक्त वे जुझारू किरदारों के रचयिता थे। कभी पढें, ‘ जहाज’, ‘ बर्फ’ या ‘ नदी को कुछ याद नहीं ‘।
ब्रजेश्वर मदान जैसा हिन्दी सिनेमा और वैश्विक सिनेमा का जानकार हुआ नहीं । वो हिन्दी के जेम्स एगी थे। उनकी दृष्टि से किसी फिल्म को देखना एक ऐसा अनुभव होता था जो आप कभी नहीं भूल सकते।
कैलाश नारद परालौकिक के रचयिता थे। उनकी रचनाओं में बर्फ भीगी हवा होती थी, आवारा उड़ती बरसाती बूँदें होती थीं, एक धुंध होती थी,एक चूता हुआ कोहरा होता था। होती थीं, किसी नीरव,निर्जन राह पर पगलाई सी उड़ती सूखी पत्तियाँ। दूर कहीं, किसी पुराने रिकार्ड प्लेयर पर रिरियाती, किसी अनजान नीग्रो गायक की आवाज।
के पी सक्सेना |
के पी सक्सेना अद्भुत प्रतिभा के स्वामी थे,लेकिन वे कभी खुद को या अपने लेखन को ले कर गंभीर नहीं हुये। के पी शुद्ध, खिलंदड़े हास्य से रचना शुरू करते थे और उनकी रचना जा कर रुकती थी, विषाद के स्टेशन पर। ये के पी की यू एस पी थी, जिसको आगे जा कर डाक्टर ज्ञान चतुर्वेदी ने नई नई ऊँचाइयाँ दीं।
इन्हें खोजिये,इन्हें पढ़िये। अपने लेखकों के प्रति ऐसे अकृतज्ञ न होइये। याद रखें, जो अतीत के प्रति अकृतज्ञ होते हैं, उनका भविष्य उन्हें धोखा ही देता है।
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