गजानन रैना साहित्यानुरागी है और साहित्य के अलग अलग पहलुओं और साहित्यिक कृतियों पर बात करने का उनका अपना अलग अंदाज है। रैना उवाच के नाम से वह यह टिप्पणियाँ अपने सोशल मीडिया पर साझा करते रहते हैं। आज हम आपके लिए ऐसा ही एक रैना उवाच ला रहे हैं जिसमें वह अपनी दो पसंदीदा कहानियों पर बात कर रहे हैं।
– विकास नैनवाल ‘अंजान’
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गजानन रैना |
आज आपसे बात करते हैं, अपनी पसंदीदा दो कहानियों की।
पहली है, हिमांशु जोशी की ‘स्मृतियाँ ‘।
हिमांशु जोशी सावधानीपूर्वक दूर रहे हैं प्रचार पुंश्चल लेखन से, मठों की चेलागिरी से और गुटबंदियों से। वे पाठकों के लिये लिखते हैं ।
हिमांशु भारतीयता के विभिन्न रंगों के रचना शिल्पी हैं ।
उनके कथा संग्रह ” मनुष्य चिन्ह ” की एक कहानी है, ” स्मृतियाँ “।
इस कहानी में एक विवाहित लड़की किसी पारिवारिक उत्सव में अपने पुराने प्रेमी से मिलती है ।
प्रेमी की आँखों के सामने एक चित्र है ,भूरी आँखें, तन्वंगी लड़की, बिखरे बाल।
मतलब, एक बहुत सुन्दर लड़की अपने पुराने प्रेमी से मिलती है । पहाड़ों की पृष्ठभूमि है, सर्दियों के दिन हैं ।
अपने पति और बेटी से प्रेमी का परिचय कराती है,फिर पुनर्जन्म के विश्वास की बात करती है । फिर सूने रेलवे स्टेशन पर उसे बुलाती है , जहाँ उसके , अपने प्रेमी के साथ घंटों रहने, यहाँ तक कि रात बिताने की संभावनायें हैं ।
पहले, प्रेमी को टी बी का रोग हुआ था, और वह सैनिटोरियम जा रहा था, अब प्रेमिका को टी बी हो गयी है और वह सैनिटोरियम जा रही है ।
प्रेमी स्वस्थ हो कर लौट आया था , वह नहीं लौट पायेगी , जानती है।
पति को यह सब पता है, इसीलिए उसने पत्नी को प्रेमी के साथ वक्त बिताने के लिये छोड़ दिया है ।
ट्रेन आने वाली है । प्रेमिका बताती है कि यह अंतिम यात्रा है ।
ट्रेन आती है और प्रेमिका चली जाती है ।
खंडित स्मृतियों की दृष्टि से निर्मित हुई यह एक सुन्दर कथा है।
विस्मृत प्रेम के एक आलाप से शुरू हुई यह कथा अपने अंत तक पहुँचते पहुँचते एक सुदीर्घ सिसकी में, एक शमित विलाप में बदल जाती है।
न कोई आलंब है, न कोई आश्वासन !
दूसरी कथा है, मित्रवर की याद दिलाई लेखिका राजी सेठ की, नाम है ‘तदुपरांत’।
यह कथा मृत्यु दुख को संसार सुख में बड़े प्रतीक प्रत्यय के साथ नापने वाली कथा है।
नायिका के जीवन में पति के निधन के बाद एक अनवरत उदासी है, लेकिन एक मौका आता है, जहाँ न चाहते हुए भी उसे एक पार्टी में जाना है ।
वह पार्टी में जाते समय पति की स्मृतियों को साथ लिये जाना नहीं चाहती। यहाँ वह निष्ठुर प्रतीत होती है लेकिन ऐसा नहीं है।
उन स्मृतियों को वह स्वयं के लिये, केवल स्वयं के लिये बचा कर, सँजो कर रखना चाहती है।
जो नितांत व्यक्तिगत है, वह सार्वजनिक क्यों हो !
कथा , प्रेम कथा और मृत्यु व्यथा, दोनों को, एक साथ प्रस्तुत करती है।
जीने के लिये मृत्यु को भूल जाना आवश्यक है और जीने के लिये मृत्यु के एहसास के साथ निरंतर बने रहना वांछित, यह तथ्य ‘ तदुपरांत ‘ के उपनिषद को भी सामने रखता है और वेदांत को भी।
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यह कहानियाँ निम्न लिंक से मँगवाई जा सकती हैं:
स्मृतियाँ
दूसरे देश काल में
लेखक का विस्तृत परिचय निम्न लिंक पर:
परिचय: गजानन रैना
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
उपयोगी लघुकथाएँ।
जी आभार…