- गीतकार शैलेन्द्र के जन्मशती वर्ष में आ रही गीतों की कहानी पर मुक्कमल किताब
- रेडियो उद्घोषक युनूस खान द्वारा लिखित किताब का आवरण हुआ जारी
- गीतकार शैलेन्द्र के लिखे गीतों की गहराइयों से परिचय कराती है किताब
- राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुई है— ‘उम्मीदों के गीतकार शैलेन्द्र’
23 नवंबर, 2024 (शनिवार)
नई दिल्ली. गीतकार-कवि शैकेंद्र के गीतों पर केंद्रित किताब ‘उम्मीदों के गीतकार शैलेंद्र’ की प्री-बुकिंग शुरू हो गई है। किताब का आवरण साहित्य आजतक के कार्यक्रम में शनिवार को जारी किया गया। राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब को विविध भारती मुम्बई के रेडियो उद्घोषक युनूस खान ने लिखा है।
किताब की प्री-बुकिंग शुरू होने के मौके पर लेखक युनूस खान ने कहा, वर्ष 2023-24 गीतकार शैलेंद्र का जन्मशती वर्ष है। जाहिर है कि यह वो समय है जब हमें शैलेंद्र के गीतों का विश्लेषण करना चाहिए और उन्हें उस मुकाम पर रखना चाहिए जिसके वो सही मायने में हकदार है। मैंने अपनी किताब में उनके गानों और फ़िल्मों में उनकी जगह का विश्लेषण किया है।
उन्होंने कहा, फ़िल्मी गानें हम सभी सुनते हैं लेकिन अक्सर हम उनकी गहराइयों से परिचित नहीं होते। हमें उनके बनने की कहानियाँ पता नहीं होतीं। ‘उम्मीदों के गीतकार शैलेंद्र’ किताब में मैंने इस बात पर जोर दिया है कि शैलेंद्र के लिखे गाने स्क्रिप्ट में और किरदारों के मद्देनज़र किस तरह से लिखे गए। मुझे उम्मीद है कि यह किताब पाठकों को बहुत पसंद आएगी और उन्हें अपने पसंदीदा गीतकार को करीब देखने और समझने का मौका देगी।
किताब के बारे में
‘उम्मीदों के गीतकार शैलेंद्र’ किताब शैलेंद्र के गीतों और उनकी रचनात्मकता के बारे में गहराई से विचार करती है। यह किताब केवल शैलेंद्र के गीतों और उनकी कला को नहीं, बल्कि उनके गीतों के माध्यम से फ़िल्मों की संरचना और कथा को भी एक नए दृष्टिकोण से देखती और दिखाती है।
गीत की विधा के मास्टर और अपने समय तथा समाज को ज़मीन पर उतरकर देखने-समझने वाले गीतकार-कवि शैलेंद्र ने अपने छोटे-से फ़िल्मी जीवन में भारतीय जन-गण को वह दिया, जो सदियों उनके दुःख-सुख के साथ रहनेवाला है। अनेक ऐसे गीत, अनेक ऐसी पंक्तियाँ, जो मुहावरों की तरह हमारी ज़िन्दगी में शामिल हो गईं।
शैलेंद्र ने जो गीत लिखे, वे केवल संगीत या शब्दों के रूप में नहीं, बल्कि भारतीय समाज की गहरी भावनाओं और संघर्षों का प्रतिबिंब बने। लेकिन वे गीत वजूद में कैसे आए, उन फ़िल्मों की पर्दे पर और पर्दे के पीछे की कहानियाँ जो इन गीतों को हम तक लाईं, शैलेंद्र का अपना जीवन और उस दौर के हिन्दी सिनेमा का अनूठा माहौल; यह किताब हमें इस बारे में भी एक साथी की तरह पास बैठकर बताती है।
यूनुस ख़ान को रेडियो से और फ़िल्मी गीतों से जुड़े एक लम्बा अरसा हो चुका है, फ़िल्मी गीतों को वे जुनून की तरह जीते हैं। शैलेंद्र को इस किताब में प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहीं अपने इस जुनून की लय को टूटने नहीं दिया। इस किताब में शैलेंद्र अपनी तमाम ख़ूबियों के साथ साकार होते दिखते हैं।
लेखक के बारे में
यूनुस ख़ान रेडियो, फ़िल्म-संगीत की दुनिया का जाना-पहचाना नाम हैं। वे बीते ढाई दशकों से विविध भारती सेवा, मुम्बई में उद्घोषक हैं। उन्होंने विविध भारती के लिए सिनेमा की सैकड़ों कालजयी हस्तियों के इंटरव्यू लिये हैं, रेडियो के इतिहास, सिनेमा एवं संगीत पर अनेक कार्यक्रम बनाए और विगत तीन दशकों से सिनेमा पर लगातार लिख रहे हैं। साथ ही वह ‘लोकमत समाचार’ में सिनेमा पर केन्द्रित चर्चित कॉलम ‘ज़रा हट के’ और लोकप्रिय ब्लॉग ‘रेडियोवाणी’ के लिए लेखन कर रहे हैं। उन्होंने मशहूर गीतकार आनंद बख़्शी की जीवनी ‘नग़मे क़िस्से बातें यादें’ और गुलज़ार की बातचीत की किताब ‘जिया जले : गीतों की कहानियाँ’ का अनुवाद भी किया है।