तिन पहाड़ – कृष्णा सोबती

उपन्यास 30 मई 2020 से 31 मई 2020 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:

फॉर्मेट: पेपरबैक 
पृष्ठ संख्या: 92 
प्रकाशक: राजकमल पेपरबैक 
आईएसबीएन: 9788126725960
तिन पहाड़ - कृष्णा सोबती
तिन पहाड़ – कृष्णा सोबती
पहला वाक्य:
साँझ की उदास-उदास बाहें अँधियारे से आ लिपटीं।
कहानी:
तिन-पहाड़ स्टेशन का नाम देखते ही तपन के मन की कई स्मृतियाँ पुनः सजीव हो गयी।  ऐसे ही एक यात्रा के दौरान उसे जया मिली थी। जया जो पूरी यात्रा में रोती ही रही थी।
जया जिसके इर्द गिर्द इस यात्रा के दौरान उसकी दुनिया बसने लगी थी। जया और वो तीन पहाड़ उसकी जिंदगी के ऐसे हिस्से बनकर रह गये जिन्हें वह कभी नहीं भुला पाया।
जया कौन थी और वह क्यों रो रही थी? 
जया और तीन पहाड़ का क्या रिश्ता था? 
एक स्टेशन की नेमप्लेट देख तपन की कौन सी स्मृतियाँ पुनर्जीवित हो गयी थी?



मुख्य किरदार:
तपन – नायक 
जया – एक युवती जो तपन को ट्रेन में रोते हुए दिखी थी  
श्रीनाथ – जया श्री से प्रेम करती थी 
एडना – श्री नाथ की पत्नी 
चारु – श्री की माँ की साथिन 
रौस – सिंगरापोंग में मौजूद चाय बागान में रहने वाला एक अंग्रेज
मेरे विचार:
जीवन में कई बार हमारे साथ ऐसा घटित हो जाता है  कि मन की गहराई में बसी हुई स्मृतियाँ मन के सतह में आ जाती हैं। स्मृतियों को इस तरह जागृत करने के लिए कई चीजें जैसे कोई दृश्य, नाम, खुशबू इत्यादि उत्प्रेरक का काम कर सकती हैं। तिन पहाड़ के नायक तपन के साथ भी  यही होता है। जब उसकी आँखों के सामने तिन-पहाड़ रेलवे स्टेशन का बोर्ड दिखाई देता है तो उसकी स्मृतियाँ फिर सक्रिय हो जाती हैं। इस स्मृतियों में जया का वास है जिसे वह एक ऐसी ही यात्रा के दौरान मिला था।  इन स्मृतियों में वो तीन पहाड़ भी हैं जहाँ उसने जया को हमेशा के लिए खो दिया था।
अक्सर यात्राओं में आपको ऐसे कई लोग मिल जाते हैं जिनसे आपकी दोस्ती गंठ जाती है और  कई बार अनजाने लोगों में प्रेम भी हो जाता है। कभी यह रिश्ते केवल सफर तक ही रहते हैं और कई बार यह रिश्ते जीवन पर्यन्त के लिए हो जाते हैं। तिन पहाड़ भी एक ऐसे ही रिश्ते की कहानी है, एक ऐसे सफर की कहानी है।
इस किताब के माध्यम से पाठक सबसे पहले तपन से मिलता है और फिर तपन की स्मृतियों में मौजूद जया से उसकी मुलाक़ात होती है।  जया की कहानी में एंट्री इस तरह से होती है कि आप उसके विषय में जानने को उत्सुक हो जाते हैं और किताब पढ़ते चले जाते हैं।
तिन पहाड़ के केंद्र में प्रेम है,आकर्षण है, विरह है और अवसाद है। हमे अक्सर बताया जाता है कि प्रेम एक ही व्यक्ति से होता है लेकिन क्या असल में ये सच है। कई बार प्रेम अपने आप फूटता है और उस पर आपका कोई वश नहीं रहता है।
 कुछ हो जाता है जिसके आगे वचन नहीं रहते, आग्रह नहीं रहते- कुछ नहीं रहता। बस- एक राग, एक प्यास।(पृष्ठ 73)
कहने को तो ऊपर दिया कथन किताब का एक किरदार श्री अपने विषय में कहता है लेकिन यह कहानी के तीनों मुख्य किरदारों जया,तपन और श्री पर फिट बैठता है। जहाँ श्री को एडना से प्रेम होता है वहीं तपन को पूतूल के रहते हुए जया पसंद आती है और जया के मन भी कहीं न कहीं तपन के लिए आकर्षण पैदा हो ही जाता है। इस तरह से देखा जाए तो तपन और श्री क्या उतने जुदा हैं। एडना और जया क्या उतने जुदा हैं। शायद नहीं। सारी बात अहमियत की होती है और यह अहमियत शायद वक्त के साथ साथ बदलती चली जाती हैं। कई बार भावनाओं के अतिरेक में हम यह बात समझ नहीं पाते हैं। हमे लगता है कि हमारी दुनिया ही खत्म हो गयी है लेकिन असल में ऐसा नहीं होता है।
उपन्यास एक अवसाद से घिरी लड़की की कहानी भी है। जया कि जिंदगी में जो कुछ घटित हुआ है उससे वह अवसाद में है लेकिन तपन यह जान पाने में असमर्थ होता है। उसे लगता है वह दुखी है लेकिन दुःख कितना गहरा है यह वह समझ नहीं पाता है। आज भी चीजें ज्यादा बदली नहीं हैं। लोग अवसाद में रहते हैं लेकिन हम उसे पहचान नहीं पाते हैं और फिर अंत में तपन की तरह हमारे अंदर केवल पछतावा ही रह जाता है। कहानी पढ़ने के बाद मैं यही सोच रहा था कि कृष्णा जी को किस घटना ने यह लिखने के लिए विवश किया होगा। इसकी बेक स्टोरी मैं जानना चाहूँगा।
उपन्यास चूंकि 1968 में छपा था तो उस हिसाब से इसमें एक चीज ऐसी है जिसके विषय में मुझे पढ़ते वक्त अंदाजा नहीं था और उसने मुझे उलझाया था। कहानी की शुरुआत में ट्रेन तिन पहाड़ स्टेशन रूकती है, वहाँ से सँकरी घाट पहुँचती है और फिर स्टीमर का जिक्र होने लगता है और फिर स्टीमर के बाद दोबारा ट्रेन का जिक्र हो जाता है। चूंकि मैं 2020 में इसे पढ़ रहा था तो मुझे यह अटपटा लगा कि व्यक्ति ट्रेन से उतरकर स्टीमर और फिर ट्रेन पर क्यों चढ़ेगा। शुरुआत में मुझे लगा कि दो अलग अलग यात्राओं के विषय में वो सोच रहा है। इससे थोड़ा संशय मन में हुआ लेकिन फिर बाद में गूगल किया तो पता लगा कि  सफर करने का उस वक्त का यही  सामान्य तरीका था। फराका बराज (1975) बनने से पहले कलकत्ता से दार्जीलिंग या उत्तरी बंगाल जाने वाले लोग सँकरी गली घाट तक ट्रेन से जाते थे। फिर सँकरी गली घाट से स्टीमर पकड़ कर गंगा नदी पार करके मनिहारी घाट तक जाते थे और फिर उधर से सिलीगुड़ी के लिए ट्रेन पकड़ते थे। मुझे यह चीज रोचक लगी। ट्रेन के टिकेट में स्टीमर की यात्रा मुफ्त। मैं ऐसी यात्रा करना चाहूँगा। हाँ, इधर यह कहूँगा की प्रकाशक इधर एक छोटा सा नोट इस बाबत देते तो अच्छा रहता। जो कहानियाँ काफी समय पहले लिखी हैं उनमें ऐसे नोट होने चाहिए ताकि नये पाठक उसे लेकर कंफ्यूज न हो। वैसे ये भी हो सकता है कि यह सभी लोग जानते हो और मुझ अकेले को ही इस विषय में न पता हो। क्या भारत में ऐसी और भी जगहें हैं जहाँ  ऐसी यात्राएँ आज भी होती हों।
अंत में यही कहूँगा तिन पहाड़ आपको बाँधे रखती है। भाषा खूबसूरत है और आपका मन मोह देती हैं। किरदार रोचक हैं और आप उनसे जुड़ाव महसूस करते हो। कहानी का अंत आपको दुखी कर जाता है।
रेटिंग: 3.5/5
अगर किताब आपने पढ़ी है तो आपको यह कैसी लगी? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत कर्वाइएयेगा। 
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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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8 Comments on “तिन पहाड़ – कृष्णा सोबती”

  1. उपन्यास की समीक्षा के साथ-साथ ट्रेन स्टीमर यात्रा भी अच्छा रोमांच देती है।
    अच्छी समीए, धन्यवाद
    – गुरप्रीत सिंह, राजस्थान

    1. जी आभार… इस यात्रा पर कुछ ही पंक्तियाँ लेखिका ने खर्च की हैं लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मुझे यह नई जानकारी मिली तो सोचा उसे साझा कर दूँ… आभार….

    1. जी मेरे पास ईबुक नहीं रहती हैं और शगुन शर्मा जी के उपन्यास तो वैसे भी copyright के आधीन होंगे… उन्हें साझा करना वैसे भी गैरकानूनी है…

  2. बहुत अच्छी समीक्षा विकास जी । पढ़ना चाहूँगी यह उपन्यास यदि मिल पाया तो….

    1. जी आभार…. आप अमेज़न के माध्यम से इस लघु-उपन्यास को मँगवा सकती हैं… उधर मौजूद है…राजकमल प्रकाशन की वेबसाइट पर भी यह किताब आसानी से मिल जायेगी

    1. आपकी शंका का निवारण हुआ यह जानकर ख़ुशी हुई। ब्लॉग पर आते रहियेगा। आभार।

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