दंश – लक्ष्मण राव

रेटिंग : 3/5
उपन्यास मार्च 20, 2018 से मार्च 30, 2018 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 211
प्रकाशक : भारतीय साहित्य कला प्रकाशन
एएसआईएन:B072SFRS74





पहला वाक्य:
उस समय सुबह के सात बज रहे थे।

परमजीत जब पंजाब से पुणे आया तो उसके सामने एक लक्ष्य था। उसे फेग्युर्सन कॉलेज से अंग्रेजी में एम ए करना था। वो जानता था कि किस तरह उसके पिता ने उसे इस शहर में भेजा था। उसकी दो बहने थी जिनका विवाह करना था। आर्थिक हालात भी इतने अच्छे नहीं थे। वो जानता था कि उसे मेहनत करनी है।

पुणे आकर उसके जीवन में कई लोग आये और इन ही लोगों में से लता और नंदिनी नामक दो बहने थीं। नंदिनी छोटी बहन थी लेकिन शारीरिक और मानसिक रूप से वो थोड़ी बीमार चल रही थी। लेकिन ऐसा हमेशा से नहीं था। नंदिनी से मिलकर उसने जाना कि कभी वो पूरी तरह से स्वस्थ होती थी। उसकी गुजरी ज़िन्दगी में ऐसी घटना हुई थी जिसने दंश के समान उसके वर्तमान तक को आहत कर दिया था।

आखिर ऐसा क्या हुआ था नंदिनी के साथ?क्या परमजीत उसकी मदद कर पाया?


परमजीत के जीवन में आए लोगों ने उसके जीवन के मार्ग को कैसे बदला? 


क्या पुणे वो जिस मकसद को लेकर आया था उसे पूरा कर सका?

परमजीत की इस कहानी को जानने के लिए तो आपको इस उपन्यास को पढ़ना होगा।

मुख्य किरदार:
परमजीत – उपन्यास का नायक 
सरदार बलवंत सिंह – महारष्ट्र शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारी जिनके भरोसे परमजीत पुणे आए थे
महेश,रमन,सुरेश – लड़के जो परमजीत की काम करने की जगह में खड़े रहते थे 
सूरज – महेश,रमण और सुरेश का बॉस 
लता मैडम – एक महिला जिनके पास सूरज हर महीने पैसे लेकर जाता था 
नंदिनी – लता मैडम की छोटी बहन 
नीलेश – एक बैंक कर्मचारी 
डॉ सिंह – परमजीत के प्रोफेसर जो अंग्रेजी साहित्य पढ़ाते थे 

दंश लक्ष्मण राव जी का पहला उपन्यास है जो मैंने पढ़ा है। दंश मुख्यतः परमजीत की कहानी है। पुणे में आकर जिस प्रकार वो नए रिश्ते बनाता है और उन रिश्तों से उसके जीवन में क्या बदलाव आता है, यही इस उपन्यास का कथानक बनता है।

उपन्यास की बात करूँ तो उपन्यास पठनीय है। उपन्यास की भाषा सरल है। उपन्यास का कथानक परमजीत के चारों तरफ घूमता है। जब परमजीत पुणे आता है तो वो केवल सरदार बलवंत सिंह को जानता था। लेकिन पुणे आने के बाद अपने आप वो कई लोगों के बीच अपनी मेहनत और अपने व्यक्तित्व से जगह बना लेता है।

चूँकि कहानी आपके मेरे जैसे आम आदमी के जीवन की है तो कथानक सरल है। ये एक आम आदमी की आम सी कहानी है। यानी न ज्यादा बड़ा कनफ्लिक्ट है और इसलिए किरदारों को ज्यादा कुछ करना नहीं पड़ता है इस कनफ्लिक्ट को रेसोल्व करने के लिए। हमारे आपके ज़िन्दगी में वैसे भी कहाँ ज्यादातर इतना कुछ नाटकीय होता है।  कहानी के सारे किरदार जीवंत हैं और कहीं भी कुछ बनावटी  नहीं लगता है।

सूरज और उसके दोस्तों के प्रति परमजीत उनके पहनावे और बातचीत को देखकर एक अंदाजा लगाता है जो कि बाद में गलत साबित होता है। अक्सर परमजीत की तरह ही हम  भी ऐसा करते हैं। लेकिन फिर जैसे जैसे हम लोगों को जानते जाते हैं तो पाते हैं कि फर्स्ट इम्प्रैशन भले ही लास्ट इम्प्रैशन हो लेकिन वो हमेशा सही हो ये जरूरी नहीं है।

उपन्यास में नंदनी का प्रसंग कथानक को रहस्यमय बनाता है। उसके भूतकाल में ऐसा क्या हुआ ज्सिने उसको शारीरिक और मानसिक रूप से इतना आहत कर दिया? ये बात जानने की इच्छा पाठक के मन में जागती है। परमजीत इसे जानने के लिए तहकीकात भी करता है। ये वाला हिस्सा काफी रोमांचक बन पड़ा है।

इसके इलावा कहानी में मौजूद कई और पात्रों जैसे सूरज और प्रोफेसर सिंह के जीवन की झलक भी हमे दिखती है। उनकी इच्छाएं और उनके पछतावों के विषय में हमे पता चलता है।

परमजीत काफी अच्छा इनसान है और अच्छों के अक्सर अच्छे लोग ही मिलते हैं ये इस कहानी से पता चलता है। हाँ, चूँकि सब कुछ परमजीत के अनुरूप ही होता है तो कई पाठकों को ये पचाने में थोड़ी दिक्कत हो सकती है। लेकिन अगर हम अपने आस पास देखें तो कई परमजीत जैसे किरदार हमे देखने को मिलेंगे।

कथानक में मुझे अगर थोड़ी बहुत कमी लगी तो वो ये कि एक दो  बार कुछ चीजों को दोहराया गया है। उदारहण के लिए नंदिनी की कहानी को दोहराया गया था जिससे बचा जा सकता था।  ये दोहराव (जो की एक आध बार ही हुआ है) ही मुझे थोड़ा उपन्यास में थोड़ा सा खटका था।

इसके इलावा सभी किरदारों की भाषा एक जैसी ही बनी है। मैं मुंबई में रहा हूँ तो मुझे पता है वहाँ के लोकल लोगों की हिन्दी पंजाब के लोगों की हिन्दी से काफी भिन्न है। यही हाल पुणे का भी होगा। ये फर्क किरदारों के बोलने के तरीके में भी देखने को मिलता तो कथानक में थोड़ा और वास्तवितकता आ सकती थी।

हाँ, अगर आपको आम लोगों की आम  कहानियाँ पढने  में रूचि नहीं है तो शायद आपको ये इतना पसंद न आये। लेकिन अगर आपको आम ज़िन्दगी के विषय में पढ़ने का शौक है तो आप इसे एक बार पढ़ सकते हैं। मुझे तो उपन्यास पसंद आया था।

उपन्यास की कुछ पंक्तियाँ जो मुझे पसंद आईं :

व्यक्ति चाहे कुछ भी शिक्षा ग्रहण करे  जैसे की डॉक्टर,इंजिनियर, वकील आदि बने, अच्छे से अच्छे पद पर कार्यरत रहे। पर जब तक साहित्य का अध्ययन नहीं करेंगे तब तक भाषा का ज्ञान,सभ्यता,आदर्श, संस्कार सीखे नहीं जा सकते। यदि क्रोध को शांत करना हो तो साहित्य का ज्ञान प्राप्त कर लो, क्रोध पर नियंत्रण हो सकता है। 

हमेशा प्रश्न स्त्री के चरित्र पर ही उठते हैं। स्त्री के चरित्र पर शंका की जाती है, पर पुरुष के चरित्र को कभी देखा नहीं और न ही उसकी समीक्षा की जाती है।

प्रेम में सब कुछ निर्माण करके सफलता मिलती है। प्रेम किसी भी तरह प्रतिबंधित नहीं है। इसलिए प्रेम में जात-पात, छोटा-बड़ा, ऊँचा-नीचा कुछ नहीं देखा जाता। परन्तु प्रेम में पहली प्राथमिकता यह है कि प्रेम को भविष्य में सफल बनाना। 

यादें अतिथियों की तरह होती हैं और यादें बार-बार स्मृति में घूमती रहती हैं। 

अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको ये कैसा लगा? अपने विचार से मुझे कमेंट के माध्यम से अवगत करवाईयेगा। अगर आपने उपन्यास नहीं पढ़ा है तो आप इसे निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं:
हार्डकवर
किंडल 


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

2 Comments on “दंश – लक्ष्मण राव”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *