रैना उवाच: जेम्स जॉयस के ‘यूलिसीस’ पर कुछ बातें

गजानन रैना साहित्यानुरागी हैं। साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखते रहते हैं।उन्होंने जेम्स जॉयस के प्रसिद्ध उपन्यास यूलिसीस पर टिप्पणी लिखी है। इस लेख में वह यूलिसीस पर तो बात  करते ही हैं साथ ही अन्य कई रचनाओं का जिक्र भी करते हैं जो पाठकों के लिए रोचक हो सकता है। आप भी पढ़िए। 

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प्रियंवद हमारे सबसे अधिक पढ़े, लिखे और (सबसे बढ़ कर) समझदार लेखक हैं। प्रचंड प्रतिभाशाली और‌  धाकड़ पढ़ाकू प्रियंवद के साथ साहित्य के गलियारों में टहलना एक विरल अनुभव होता है। आज हम विश्व के सर्वाधिक दुर्बोध दो उपन्यासों में से एक, ‘यूलिसीस’ की बात करते हैं। हम यहाँ प्रियंवद की उँगली पकड़ कर चलते हैं और देखते, समझते हैं कि ‘यूलिसीस’ है क्या!

‘यूलिसीस’ एक महाकाव्यात्मक उपन्यास है । आयरिश रचनाकार जेम्स जॉयस की इस कृति की बीसवीं सदी के १०० सर्वोत्कृष्ट उपन्यासों में गिनती की जाती है। सात सौ पैंतीस पृष्ठ वाले इस उपन्यास को लिखने में सात वर्ष लगे।१९२२ में इसका प्रकाशन हुआ।

प्रसिद्ध रचनाकार प्रियंवद ने, एक आयोजन में, अपने संबोधन में इसकी चर्चा की, तब इसे लेकर उत्सुकता जगी। ‘यूलिसीस’ को यूनान के होमर के महाकाव्य ‘ओडिसी’ की आधुनिक पुनर्रचना बताया गया है।

जेम्स जॉयस को टी एस इलियट और वर्जीनिया वुल्फ की पंक्ति में रखा जाता है, जिन्होंने अंग्रेजी सभ्यता के अतिरेक की कटु आलोचना की है।

इस उपन्यास को पढ़ना और इसका  सारांश बताना दोनों मुश्किल काम है। हर रचनाकार अपने तरीके से संसार को देखता, समझता है और उसकी कहानी लिखता है। हम यह नहीं कह सकते कि इसके लिए कौन सा तरीका सही है।

उपन्यास की कहानी एक साधारण व्यक्ति के ‘डर’ के बारे में है। यह उपन्यास एक साधारण व्यक्ति के प्रेम , अहंकार, ईर्ष्या की मानवीय समस्याओं से जूझता है। इसमें दो मुख्य पात्र हैं – डबलिन में रह रहे , मध्य आयु के यहूदी, लियोपोल्ड ब्लूम और युवा बुद्धिजीवी स्टीफन डेडौलस।

इसमें धार्मिक और राजनीतिक संघर्षों के मुद्दों पर बहस भी है। और यह रोमन कैथोलिक चर्च की भूमिका और उसकी संरचना को प्रश्नांकित भी करता है कि इसने मानवीय आत्मा को ऊपर उठाने के बजाय उसे पतन के गर्त में धकेलने का काम किया।

यद्यपि व्लादिमीर नबोकोव और जोसेफ कैंपबेल ने इसकी सराहना की।

वर्जीनिया वुल्फ ने इसे अश्लील बताकर इसकी कटु आलोचना की। कार्ल जुंग भी इसके विरोध में रहे। तब ब्रिटेन और अमेरिका में इसे प्रतिबंधित किया गया, किंतु एक न्यायधीश के इसके अश्लील होने की बात से इंकार करने पर यह प्रतिबंध हटाया गया।

अंग्रेजी साहित्य के इतिहास में ‘यूलिसीस’ का एक विशिष्ट स्थान है। अपनी गहनता और जटिलता के चलते यह उपन्यास हमारी साहित्य और भाषा की समझ को परिवर्तित करता है। इस उपन्यास की पठनीयता उतनी न होने के कारण मुश्किल पेश आती है, लेकिन बार बार पढ़ने पर यह अपने पाठकों को निराश नहीं करता है।

इंटरनेट पर उपलब्ध समीक्षाओं को पढ़ते हुए  ‘यूलिसीस’ को ‘स्ट्रीम आफ कांशसनेस’ का उपन्यास कहा जाता है । 

यह जो पद है , ‘स्ट्रीम आफ कांशसनेस’  यानी  ‘चेतना प्रवाह’,  इसका प्रयोग  सबसे पहले विलियम जेम्स ने अपनी पुस्तक ‘प्रिंसिपल्स आफ साइकोलाजी’ (1890) में किया था । 

इसमें शब्दों का दोहराव,  प्रतीकों के सिद्धांत , चेतना की परिधि से पहले अँधेरों-उजालों में बनती बिगड़ती छवियाँ, विचार, अतीत, स्वप्न ,सब हैं ।

यहाँ काल के स्तर बिना किसी सूचना के बदलते हैं । चरित्र के अंदर चरित्र प्रवेश करते हैं ।

हिंदी में भी कुछ लेखकों ने इसका प्रयोग किया है। महेन्द्र भल्ला ने अपने उपन्यास, ‘एक पति के नोट्स’ में,  कृष्ण बलदेव वैद ने अपने अस्सी प्रतिशत लेखन में,  श्रीकांत वर्मा ने उपन्यास  ‘दूसरी बार’ में इसका प्रयोग किया । मोहन राकेश और राजकमल चौधरी ने भी इसका प्रयोग किया ।

कविताओं में इसकी झलक सौमित्र मोहन की ‘लुकमान अली’ और मुक्तिबोध की  ‘अँधेरे में’ में मिलती है ।

एक ध्यान देने योग्य तथ्य यह भी है कि लेखिकाओं ने इस शैली में अधिक लेखन नहीं किया। ज्यादा से ज्यादा मृदुला गर्ग के उपन्यास ‘चित्तकोबरा’ में लेखिका ने आंशिक प्रयास किया है।

‘यूलिसीस’ में  माॅली ब्लूम वाले अध्याय में कामुकता निरी  ढीठ बन कर सामने आती है ।

इसके लिए आलोचकों ने उपन्यास की कम छीछालेदर नहीं की।

खासकर नारी-मुक्ति के अलमबरदारों की मान्यता थी कि जाॅयस की मानसिकता एक ठेठ पुरूषवादी मानसिकता है, वे मान कर चलते हैं कि नारी अपने एकांत में सिर्फ शरीरकेंद्रित चिंतन करती है ।

जाॅयस की परेशानी यह थी कि वह एक पुरुष के माइंडसेट के साथ नारी की चेतना में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे थे जो एक असंभवप्राय: काम था।

वह दिखाते हैं कि माॅली अपने पति और प्रेमी के फिसिकल मेजरमेंट्स (physical measurements) की तुलना करती है।

यहाँ वो एक नारी की चेतना में पुरुष चित्त की स्थायी हीनग्रंथि को आरोपित कर रहे हैं ।

हिंदी में देहमुक्ति की हाँफ गयी तुरही में फूँक मारने और फफूँद लग चुके नारी-विमर्श को झंडे की तरह लहराने से अलग क्या कोई लेखिका, नारी के चेतना प्रवाह ( स्ट्रीम आफ कांशसनेस) के रहस्यमयी संसार में प्रवेश करने की,  उन अँधेरे कोनों को रोशन करने का ईमानदार साहस करेगी?

हम उम्मीद करें कि करेंगी,  आमीन!

‘यूलिसीस’ की क्लिष्टता के बारे में यूँ समझें, कि इस एक उपन्यास को पढ़ने के लिए ये किताबें चाहिएँ, एक शब्दकोश, ‘मेकिंग आफ यूलिसीस ‘, ‘ ओडिसी’, ‘होमरिक काॅरस्पांडेस’ और खुद ‘यूलिसीस’।

‘होमरिक काॅरस्पांडेस ‘ के बगैर होमर लिखित ‘ओडिसी’ को समझना बहुत कठिन है और  ‘ओडिसी ‘ के पात्रों के संदर्भ के बगैर ‘यूलिसीस’ को समझना असंभव है।

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टाइम पत्रिका के विश्वव्यापी सर्वेक्षण से सिद्ध हुआ था कि बीसवीं सदी का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास  ‘यूलिसीस’ माना गया है। लेकिन हमेशा ऐसा नहीं था। इंग्लैंड और अमेरिका में इस उपन्यास को प्रतिबंधित कर दिया गया था। उपन्यास को धर्मविरोधी कहा गया।

उपन्यास लेखक की अपने निजी जीवन में भटकन और देशनिकाले से उपजी पीड़ा ने इस रचना को जन्म दिया था। कह सकते हैं कि निष्कासन और अस्तित्व के संकट ने इस उपन्यास के कथ्य को गढ़ा है। 

‘यूलिसीस’  जब आप लेखक के तौर पर पढ़ते हैं तो आप रचनात्मकता के विराट संसार में प्रविष्ट होते हैं, लेकिन जब आप यह पाठक के तौर पर पढते हैं तब!!

यहाँ कुछ भी ऐसा नहीं है जो हमारी मान्यताओं के अनुसार हो। न एक स्पष्ट कथ्य है, न चरित्र। यहाँ तक कि पारंपरिक आदि, मध्य और अंत वाला औपन्यासिक स्ट्रक्चर भी अनुपस्थित है ।

आप पढ़ना शुरू करते हैं और भौंचक रह जाते है। बजाते खुद, बतौर पाठक हमें खुद पर गर्व रहा है। बाणभट्ट का उपन्यास ‘कादंबरी’ मैंने लेखक सुनील कुमार जी के ललकारने पर पढ़ डाली ।

हाँ,  वे सच कहते हैं कि बाणभट्ट घोड़े की बात करते हैं तो तीन पृष्ठों में घोड़े के अलंकरण का वर्णन करते हैं । आगे नायिका के नख शिख वर्णन पर तो वे दसेक पृष्ठ लगा देते हैं । ऐसे लेखक को हमने पढ़ा और पूरा उपन्यास !

लेकिन  ‘यूलिसीस’!  प्रियंवद ठीक कहते हैं कि यहाँ कोई क्लाइमेक्स नहीं है,  कोई प्रोजेक्टेड विमर्श नहीं है,  कोई स्थूल यथार्थ नहीं है।

औपन्यासिक रोचकता नहीं है, कोई क्रांतिकारी अवधारणा नहीं है। कोई  सामाजिक संघर्ष , आदर्शवाद , सामयिक प्रासंगिकता या कोई घोषित सत्ता प्रतिरोध  नहीं है। 

घटनाओं का कोई सुनिश्चित क्रम गायब, संवादों का पारंपरिक रूप लापता! भाषा अराजक,  व्याकरण ध्वस्त!

‘यूलिसीस’ के साथ दो और उपन्यास हैं , अब तक के श्रेष्ठतम तीन उपन्यासों की कोई सूची बनाई जाये तो सूची कोई भी हो, इन तीनों में से एक उपन्यास जरूर शामिल होगा। शेष दो उपन्यास हैं,  ‘वार एंड पीस’ ( लियो टाल्सटाय) और ‘वन हंड्रेड इयर्स आफ सालिच्यूड’ ( गैब्रियल गार्सिया मार्केज)।

इन तीनों उपन्यासों की विशेषता यह है कि ये समय का अतिक्रमण करते हैं। तीनों उपन्यास सहज पठनीय नहीं हैं। ये तीनों लगभग एक ही तरह के और एक ही धरातल पर रचे गये हैं।

तीनों उपन्यासों के बीच लगभग पचास वर्षों का अंतराल है। तीनों उपन्यास बड़े युद्धों की छाया में रचित हैं। इन युद्धों के प्रभाव ने मनुष्य जाति को झकझोर दिया था। उसके अस्तित्व और चेतना पर सवालिया निशान लगा दिये गये थे। 

‘वार एंड पीस’ युद्ध की विभीषिका से संत्रस्त एक राष्ट्र के जीवन पर है, ‘यूलिसीस’ में विमर्श है संपूर्ण मनुष्य पर और ‘वन हंड्रेड इयर्स आफ सालिच्यूड’ में बात हो रही है संपूर्ण सभ्यता की ।

‘वार एंड पीस’ की इतिहास पर बहसें, सामाजिक नैतिकता के आग्रह और युद्ध की व्यर्थता का आख्यान,  ‘यूलिसीस’ के मनुष्य के आत्म निर्वासन,  चेतना प्रवाह  और अंतर्जगत को जुंग तथा फ्रायड की अंतहीन,  अँधेरी गुफाओं और ‘वन हंड्रेड इयर्स आफ सालिच्यूड’ की परी कथाओं,  मिथक और स्वप्नों में गुँथे इतिहास और सभ्यता अलग-अलग दिखते हुये भी एक ही बात कहते हैं कि मनुष्य का सामान्य जीवन ही सबसे बड़ा सत्य है।

इतिहास, धर्म, दर्शन और ईश्वर उसी सत्य से जन्मते हैं और यह बात हर पचास साल बाद दुनिया के सर्वश्रेष्ठ उपन्यास कह रहे थे। विश्व के तीन सर्वकालिक महान उपन्यासों का मर्म तीन पदों में व्यक्त किया जा सकता है। 

‘वार एंड पीस’ का इतिहास  का दर्शन,  ‘यूलिसीस’ का चेतना प्रवाह और ‘वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सालिच्यूड’ का जादुई यथार्थ।

हमारी दकियानूसी सोच ने हमें कभी ऐसी अवधारणाओं पर विचार भी नहीं करने दिया।

अन्यथा क्या कारण था कि ‘वार एंड पीस’ के समय हम जानते नहीं थे कि उपन्यास क्या है,  ‘यूलिसीस’ के समय हम छायावादी उच्छवासें भर रहे थे और ” वन हंड्रेड इयर्स आफ सालिच्यूड ” के समय नई कहानी,  अकहानी, अकविता, समांतर कहानी जैसी प्रायोजित व नकली बहसों में लगे थे।

अपनी आत्ममुग्धता और आत्मसंतुष्टि में सुखी थे। 

तीनों उपन्यासों में कहीं वो मूलतत्व था जो रचना को श्रेष्ठ बनाता है।

 एक लेखक के रूप में उस मूलतत्व को ग्रहण करना होगा, जैसे टाल्सटाय ने विक्टर ह्यूगो से, जाॅयस ने ‘ओडिसी’ से और मार्केज ने परीकथाओं और फ्रैंज काफ्का से किया था।

(प्रियंवद से बहुत कुछ साभार)

– रैना उवाच 

पुस्तक विवरण:

पुस्तक: यूलिसीस | लेखक: जेम्स जॉयस | पुस्तक लिंक: अमेज़न

टिप्पणीकार परिचय

गजानन रैना
गजानन रैना बनारस से हैं। वह पढ़ने, लिखने, फिल्मों  व संगीत के शौकीन हैं और इन पर यदा कदा अपनी खास शैली में लिखते भी रहते हैं। 
एक बुक जर्नल में मौजूद उनके अन्य आलेख: गजानन रैना

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About गजानन रैना

गजानन रैना का जन्म फिरोजपुर, पंजाब में  हुआ था। वह वाराणसी में पले, बढ़े हैं। काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से स्नातकोत्तर हैं। वह पढ़ने, लिखने, फिल्मों  व संगीत के शौकीन हैं और इन पर यदा कदा अपनी खास शैली में लिखते भी रहते हैं।  फ्रीलांस अनुवाद व संपादन आय का जरिया । हॉबी ज्योतिष।

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