संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 32 | प्रकाशक: बुल्सआय प्रेस | शृंखला: ड्रैक्युला 1
टीम
लेखक: सुदीप मेनन | चित्रांकन: दीप जॉय सुब्बा | रंग सज्जा: मौरीशियो सैंटिएगो | हिंदी रूपांतरण, शब्दांकन एवं ग्राफिक डिजाइन: मंदार गंगले | आवरण चित्रांकन एवं रंग सज्जा: जोहेब मोमीन एवं योगेश पुंगावकर | संपादक: रवि राज आहूजा | विशेष आभार: समीर रमेश झाड़े
पुस्तक लिंक: बुल्स आय प्रेस
कहानी
विचार
‘ड्रैक्युला: रक्तिमभूमि’ बुल्सआय प्रेस द्वारा प्रकाशित कॉमिक बुक है। साहित्य में एक विधा है जिसमें लेखक कल्पना करता है कि कुछ ऐतिहासिक घटनाओं में अगर कुछ चीजें थोड़ा अलग होती तो क्या होता? इसे व्हाट इफ कहते हैं। मसलन अगर द्वितीय विश्व युद्ध जर्मनी जीतता तो दुनिया का क्या रूप होता? या अगर केनेडी की हत्या को रोक दिया जाता तो क्या होता? भारत 1857 में आजाद हो जाता तो क्या होता? या ऐसे ही किसी घटना को लेकर लेखक कल्पना करते रहे हैं और इसमें असल और काल्पनिक किरदारों को डालकर नई नई परिस्थितियाँ बनाई जाती रही हैं।
प्रस्तुत कॉमिक बुक ‘ड्रैक्युला: रक्तिमभूमि’ ऐसी ही एक कल्पना करता है। ड्रैक्युला ब्राम स्टॉकर का एक ऐसा किरदार है जिसने लोकप्रियता के कई पायदान पार कर लिये हैं। इस बार लेखक सुदीप मेनन द्वारा ड्रैक्युला को भारतीय इतिहास की एक घटना में फिट करके इस बात की कल्पना की है कि अगर उस घटना में ड्रैक्युला का हस्तक्षेप होता तो क्या होता?
कॉमिक बुक का कथानक की शुरुआत 326 ईसा पूर्व में हुए झेलम के युद्ध से होती है। सिकंदर द्वारा पोरस को हराये जाने के बाद पोरस ड्रैक्युला से मदद माँगता है। इसका जो परिणाम होता है वह कथानक बनता है।
कथानक रोचक है और आपको बाँधकर रखता है। आपको ये पता रहता है कि ड्रैक्युला और सिकंदर का परिणाम क्या होगा लेकिन उसके बाद जो होता है वह आपको हैरान करने के लिए काफी होता है।
अक्सर हम दूसरों के लिए जो गड्ढा खोदते हैं उसमें उनके साथ खुद भी गिर पड़ते हैं। यह बात बड़े बुजुर्गों द्वारा कही जाती रही है और प्रस्तुत कॉमिक बुक में भी यह उजागर होती है।
चूँकि कॉमिक बुक 32 पृष्ठ का है तो इसमें ज्यादा घुमाव की गुंजाइश नहीं है लेकिन फिर भी लेखक एक कसा हुआ कथानक पाठकों को देने में सफल होते हैं। साथ ही अंत में ऐसी चीज छोड़ देते जो कि पाठकों के मन में अगला भाग पढ़ने की इच्छा जागृत कर देगी।
कॉमिक बुक का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट इसका आर्ट वर्क है। दीपजॉय सुब्बा का आर्टवर्क तारीफ़ के काबिल है और कई पैनल्स ऐसे हैं जिन्हें आप ठहरकर देखना चाहेंगे। इसका श्रेय मौरीशियो सैंटिएगो के रंग सज्जा को भी जाता है जिन्होंने कॉमिक बुक के अलग अलग हिस्सों के लिए अलग अलग कलर पैलेट का प्रयोग किया है जो कि घटनाओं के प्रभाव को बढ़ा देते हैं।
अगर आर्टवर्क की आलोचना करनी पड़े तो मैं ये ही कहूँगा कि पोरस की पत्नी को थोड़ा बेहतर बनाया जा सकता था।अभी बाकी किरदारों के मामले में वह अधिक भावहीन दिखती है।
अंत में यही कहूँगा ‘ड्रैक्युला: रक्तिमभूमि’ एक पठनीय कॉमिक बुक है जो कि मनोरंजन करने में सफल होता है। कथानक में किया गया प्रयोग सफल होता है और उच्च कोटि का आर्टवर्क इसे पढ़ने के अनुभव को बढ़ा देता है। अगर नहीं पढ़ा है तो आप इसे पढ़कर देख सकते हैं।
पुस्तक लिंक: बुल्स आय प्रेस