गुप्तचरी के साथ फंतासी का तड़का लिए हुए है ‘तबाही का देवता’ | वेद प्रकाश काम्बोज

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: पैपरबैक | पृष्ठ संख्या: 110 | प्रकाशन: नीलम जासूस कार्यालय  

किताब लिंक: अमेज़न

कहानी

विदेश विभाग के कुछ जरूरी कागजात जब गायब हो गए तो उन्हें ढूँढने के लिए विदेश विभाग ने सीक्रिट सर्विस की मदद ली। 
विजय चूँकि हाल ही में सीक्रिट सर्विस से चीफ के रूप में जुड़ा था तो उसे इस केस पर काम करना था। 
उसे क्या मालूम था कि उसके विभाग द्वारा करी जा रही कागजों की जासूसी उसे तबाही के देवता के सम्मुख लाकर खड़ी कर देगी। 
आखिरी विदेश विभाग के जरूरी कागजात किसने उड़ाये थे? 
यह तबाही का देवता कौन था? 
सीक्रिट सर्विस और इस तबाही के देवता का टकराव क्यों हुआ? 
इस टकराव का नतीजा क्या निकला?

किरदार

अशरफ – एक जासूस जो मिलिट्री पुलिस से सीक्रिट सर्विस में आया था 
पवन – सीक्रिट सर्विस का चीफ 
विजय – पवन के रूप में वह सीक्रिट सर्विस का चीफ था लेकिन उसके साथी यह बात नहीं जानते थे
रघुनाथ – पुलिस सुप्रीटेंडेंट
नाहर – सीक्रिट सर्विस का एक जासूस 
ब्लैकबॉय – विजय का मातहत जो उसकी गैरमौजूदगी में पवन बनकर उसके फोन उठाता था 
रहम तुल्ला – एक गंजा जो कि कागजातों के पीछे पड़ा हुआ था  
जेम्स आर्मस्ट्रॉंग उर्फ प्रिंस बिली – एक ऐसा व्यक्ति जिसकी लाश होटल डीलक्स से मिली थी और जो दुनिया के सबसे बड़े ब्लैकमेलरों में से एक था 
आशा – सीक्रिट सर्विस के स्टाफ की एक सदस्या 
डॉक्टर जैदी – एक वैज्ञानिक जो कि जानवरों पर अलग अलग तरह के प्रयोग कर रहा था
परवेज – सीक्रिट सर्विस का एक सदस्य 
बनवारी – विजय का नौकर 
जाबर रेस्टोरेंट – विक्रमपूरा में मौजूद एक रेस्टोरेंट का मालिक 
जयपाल – एक व्यक्ति जो कागजों के पीछे पड़ा था 
लता – जयपाल की पत्नी 

विचार

‘तबाही का देवता’ नीलम जासूस कार्यालय से प्रकाशित हुआ लेखक वेद प्रकाश काम्बोज का विजय शृंखला का उपन्यास है।  विजय से अगर आप वाकिफ नहीं है तो बता दूँ कि विजय एक युवक है जो कि अपनी बेवकफाना हरकतों के लिए अपने जानने वालों में मशहूर है। वह अपनी इन बेवकूफियों से अपने जासूसी के उस हुनर में पर्दा डाल देता है जिसके चलते उसने कई मामले रघुनाथ के लिए सुलझाए हैं। इस उपन्यास की बात करें तो अब विजय सीक्रिट सर्विस का चीफ बना दिया गया है लेकिन इसके विषय में केवल उसका मातहत ब्लैकबॉय ही जानता है। विजय खुद पवन के रूप में सीक्रिट सर्विस को हैन्डल करता है। 
उपन्यास की शुरुआत अशरफ नाम के व्यक्ति के एक गंजे के पीछे किए जाने से होती है। इसके बाद घटनाओ का एक ऐसा चक्र चल पड़ता है कि आप उपन्यास पढ़ते चले जाते हैं। जैसे-जैसे आप उपन्यास पढ़ते हैं आपको पता लगता है कि यह सब मामला कुछ ऐसे जरूरी दस्तावेजों का है जो कि विदेश विभाग से चोरी हुए हैं। एक तरफ एक समूह है जो कि यह दस्तावेज हथियाना चाहता है और दूसरी तरफ सीक्रिट सर्विस के सदस्य है जो कि इन्हें वापिस पाना चाहते हैं। उपन्यास का अधिकतर हिस्सा इन्हीं के बीच चलने वाले दाँव पेंचों में जाता है। इस दौरान विजय की बेवकूफिया भी आपको देखने को मिलती हैं। उसकी बिना सिर पैर की बातें आपको कई बार हँसाती हैं और तो कई बार उन्हें आप छोड़कर कथानक में आगे भी बढ़ने की सोचते हो। 
उपन्यास की खास बात यह है कि यहाँ पर विजय को काफी चीजें पहले से मालूम होती हैं और पाठक उनसे अंजान रहता है। कई बार विजय जो कर रहा है उसका मतलब पाठक को समझ नहीं आता है लेकिन आगे चलकर आपको भान होता है कि आप तहकीकात के बीच में दाखिल हुए हैं जहाँ पर विजय को काफी ऐसी चीजें मालूम है जिससे आप नावाकिफ हो। अगर आपको ऐसे जासूसी उपन्यास पसंद हैं जिसमें पहले केस पता चलता है और फिर आप जासूस को परत दर परत उस केस के रहस्य सुलझाते देखते हैं तो तबाही का देवता में इसके न होने के चलते आपकी रुचि थोड़ा कम हो सकती है।
उपन्यास की एक और खास बात यह है कि 110 पृष्ठ के इस उपन्यास में शुरुआती 75 पृष्ठ में यह उपन्यास एक साधारण गुप्तचरी के दाँव पेंच वाला उपन्यास लगता है लेकिन आगे के कुछ पृष्ठों में ‘तबाही के देवता’ के आने से यह एक विज्ञान-गल्प या फंतासी (क्योंकि विज्ञान पक्ष का इतना कोई विवरण नहीं दिया गया है) का रूप धारण कर लेता है। कहानी में मौजूद ‘तबाही का देवता’ एक शक्तिशाली जीव है जिसे विज्ञान की ताकत से बनाया हुआ दिखाया गया है। अगर मैरी शैली का उपन्यास फ्रैंकेन्सटाइन आपने पढ़ा है तो आप इस तबाही के देवता में और विक्टर के आविष्कार में काफी साम्य देख पाएंगे। 
विजय और उसके साथी इस शक्तिशाली तबाही के देवता से किस प्रकार लड़ते हैं यह देखना रोचक रहता है। अगर आप यथार्थवादी उपन्यास पढ़ने के शौकीन हैं तो इस उपन्यास में अचानक आये इस जीव की मौजूदगी आपको अटपटी लग सकती है लेकिन अगर आप लेखक की रची दुनिया में विश्वास करने वाले व्यक्ति हैं तो  विजय और इस तबाही के देवता की रोचक भिड़ंत का आनंद भी ले सकते हैं। 
उपन्यास के किरदारों की बात करूँ तो इसके केंद्र में विजय है जिसकी बेवकूफियाँ आपको इधर देखने को मिलती हैं। वह कभी आपका मनोरंजन करती है और कभी आपके अंदर कोफ्त भी पैदा करती हैं। यहाँ रघुनाथ भी मौजूद है लेकिन उसे एक मेहमान किरदार की तरह ही रखा गया है। उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप हैं और चूँकि उपन्यास में घटनाएँ एक के बाद एक तेजी से होती हैं तो बस जरूरत भर की जगह ही उन्हें इधर मिली है। फिर भी डॉक्टर जैदी का किरदार मुझे रोचक लगा।  
नीलम जासूस से प्रकाशित इस संस्करण की बात करूँ तो पुस्तक बेहतरीन कागज पर छपी हुई है जो कि पढ़ते हुए सुखद एहसास तो देती है लेकिन इसके कारण ही शायद इसकी कीमत ऊपर चली जाती है। प्रकाशक अपनी पुस्तकों का सस्ता संस्करण भी निकालें तो वह बेहतर होगा। ऐसे में संग्रह करने वाले इस संस्करण को ले सकते हैं और पढ़ने वाले सस्ते संस्करण से काम चला सकते हैं। इसके अलावा इस संस्करण में वर्तनी की भी काफी गलतियाँ देखने को मिलती है। उनमें अगले संस्करण में सुधार हो तो बेहतर होगा। 
अंत में यही कहूँगा कि उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है। उपन्यास का ढांचा (किस तरह से कहानी खुलती है) और इसमें मौजूद तबाही का देवता इसे आम जासूसी उपन्यासों से जुदा बनाते हैं। यही दो ऐसे बिन्दु भी हैं जिनके होने से हो सकता है कि उपन्यास आपको पसंद न आए या ऐसा भी हो सकता है कि उपन्यास काफी पसंद आए। आखिर में व्यक्ति के स्वाद पर यह बात निर्भर करेगी।  
 
अगर आपने इसे पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? मुझे अवश्य बताइएगा। 
अगर आप विजय को लेकर लिखे गये उपन्यास पढ़ते आए हैं और अपनी पसंद के पाँच उपन्यासों के नाम भी साझा कीजिएगा। 

किताब लिंक: अमेज़न

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

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2 Comments on “गुप्तचरी के साथ फंतासी का तड़का लिए हुए है ‘तबाही का देवता’ | वेद प्रकाश काम्बोज”

  1. उपन्यास के विषय में रोचक जानकारी के‌ लिए धन्यवाद।

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