संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: ईबुक | प्लेटफॉर्म: किंडल
पुस्तक लिंक: अमेज़न
लेखक सुरेंद्र मोहन पाठक की ब्लाइंड डील 7 जून 2022 को सीधे किंडल पर प्रकाशित हुई थी। ‘कातिल कौन’ के बाद यह दूसरा मौका था जब लेखक द्वारा कोई किताब पहले ई बुक के रूप में प्रकाशित की गई थी। ‘ब्लाइंड डील’ में पाठकों के लिए लेखक द्वारा एक विस्तृत लेखकीय, एक उपन्यास ब्लाइंड डील और चार कहानियाँ परोसी गई थी। प्रस्तुत लेख में हम केवल उपन्यास पर बात करेंगे।
कहानी
शिवनाथ व्यास अपने कंपेनियन कपिल मेहता के साथ जब पुणे से मुंबई आया तो उसके जहन में एक पुराने वादे को पूरा करने की मंशा थी।
एक ऐसा वादा जिसके चलते उसे हीरे किसी को देने थे।
अपनी इसी मंशा को पूरा करने के लिए उसने हीरे से जुड़ी वो ब्लाइंड डील ली थी।
पर वो कहाँ जानता था कि यह डील उसके जीवन की आखिरी डील होने वाली थी।
इस डील के कुछ ही घंटों बाद वह अपने कमरे में कत्ल कर दिया जाएगा।
आखिर कौन था जिसने शिवनाथ व्यास का कत्ल किया था?
आखिर क्या थी ये ब्लाइंड डील?
डील में मिले हीरों का क्या हुआ?
किरदार
शिवनाथ व्यास – एक बुजुर्ग जिसका कत्ल हुआ था
कपिल – शिवनाथ का कंपेनियन
लौंगमल कृपलानी – एक हीरे का व्यापारी
कोकिला कृपलानी – लौंगमल की बेटी
उदित आहूजा – एक और डायमंड मर्चेंट
तपन दीवान – एक डायमंड ब्रोकर
देवांग शिंदे – पुलिस इंस्पेक्टर जो तहकीकात कर रहा था
एलिजाबेथ सिलवा उर्फ लीजा – एक बारबाला जिससे शिवनाथ के संबंध थे
मनु सावंत – कोकिला का पार्टनर
भरत कार्की – सिंडीकेट का वो सदस्य जो उदय की मदद कर रहा था
सूर्य विक्रम बराल – नेपाली कस्टम अधिकारी
विचार
लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक का लिखा उपन्यास ‘ब्लाइंड डील’ मूलतः यह एक मर्डर मिस्ट्री है।
उपन्यास की शुरुआत एक होटल के कमरे से होती है। कमरे में पुलिस है और साथ ही हैं कोकिला कृपलानी और कपिल मेहता। इस कमरे में एक सत्तर वर्षीय बुजुर्ग शिवनाथ व्यास का कत्ल होकर हटा है और कपिल के बुलाने से पुलिस वहाँ आई है। कपिल का कहना है कि कोकिला कृपलानी द्वारा ही बुजुर्ग की हत्या हुई है लेकिन चूँकि बुर्जुग की मिल्कियत में मौजूद हीरे गायब हैं तो पुलिस के शक के घेरे में कपिल भी है। कोकिला कौन है? कपिल का बुर्जुग के साथ क्या रिश्ता है? हीरों का क्या चक्कर है? और कत्ल किसने किया? यह सब वो प्रश्न हैं जिन्हें जानने की उत्सुकता आपसे उपन्यास के पृष्ठ स्वाइप करवाते जाती है।
उपन्यास का कथानक दो तरीके से उजागर होता है। शुरुआत में शिवनाथ व्यास, कपिल, उनके रिश्ते और उनके पुणे से मुंबई आने की बाबत पाठक को कपिल के लिखे एक विस्तृत बयान से पता लगता है। चूँकि यह बयान है तो यह हिस्सा प्रथम पुरुष में होता है।
उपन्यास के बाद की कहानी तृतीय पुरुष में होती है जहाँ पुलिस के साथ मिलकर कपिल अपने दिमागी घोड़े दौड़ाता है और कातिल तक पहुँचने की कोशिश करता है। इस कोशिश में उसका शक कुछ लोगों में जाता है और हीरों की जो डील उसके एंप्लॉयर ने की थी उससे जुड़े कुछ ऐसे किरदारों से उसका सामना होता है जिनके पास कत्ल का पूरा मोटिव था।
कथानक में दो रहस्य रहते हैं। पहला कि हीरे कहाँ हैं और दूसरा कि कत्ल किसने किया। चूँकि पाठक ने बयान पढ़ा रहता है तो उसके लिए पहले रहस्य का अंदाजा लगाना इतना कठिन नहीं होता है। पहले रहस्य के मार्फत यही कहूँगा कि उपन्यास में एक किरदार शेरो शायरी का शौकीन होता है। ऐसे में वह हीरों की मौजूदगी वाला क्लू किसी शेर के माध्यम से साझा करता तो शायद उसका पता लगना पाठक के लिए थोड़ा और मुश्किल हो जाता। अगर ऐसा होता तो कथानक और मजबूत हो जाता।
वहीं दूसरे रहस्य का पता जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है और मामला साफ होता रहता है तो ही लगता है।
वैसे तो यह रहस्य कथा है और साक्ष्यों के सहारे ही किरदार आगे बढ़ते हैं लेकिन लेखक ने कथानक में ट्विस्ट दिया है और इस कारण कथानक की पठनीयता बनी रहती है। जैसे जैसे आगे मामले से जुड़ी चीजें उजागर होती रहती हैं वैसे वैसे आगे पढ़ते जाने की इच्छा जागृत होती रहती है।
लेकिन रहस्य को लेखक एक संयोग द्वारा उजागर करवाते हैं जो कि मुझे लगता है कथानक को थोड़ा सा कमजोर करता है। अगर संयोग के बजाय किसी ऐसे क्लू से, जो कि पाठक के साथ पुलिस से भी मिस हो गया, राज उजागर होता तो बेहतर रहता। यहाँ ये बात भी है कि जहां संयोग हुआ है उधर भी मुख्य किरदार दिमाग लगाकर ही पहुँचता है। वो बात सोचकर पहुँचता है जिस तक पुलिस भी न सोच पाई थी तो यह ऊपर लिखी कमजोरी की थोड़ी बहुत भरपाई कर देता है।
उपन्यास की कमी की बात करूँ तो ऊपर रहस्य से जुड़ी कमी के अलावा उपन्यास में संपादन की कमी दिखती है। कहीं कहीं पर तृतीय से प्रथम पुरुष में कथानक अचानक से एक दो लाइन के लिए हो जाता है जो कि कंफ्यूज कर देता है। उदाहरण के लिए:
“एनी फ्रेंड ऑफ कोकिला इज़ ए फ्रेंड ऑफ माइन। नो?” कबीर ने जवाब न दिया।
उस से पूरी तरह विमुख हो के वो युवती की ओर घूमा, “मैं यहाँ तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था। जरूरी बात करनी है, चलते हैं कहीं जहां . . .”
“यहाँ क्या हर्ज है?” कोकिला बोली, “मिस्टर मेहता ने मुझे कॉफी के लिए इनवाइट किया है। अगर तुम भी कॉफी पीना पसंद करो तो . . .”
“मैं तो कुछ खाना भी पसंद करूंगा।” वो चहका, “यहाँ पहुँचने की जल्दी में टाइम न लगा ब्रेकफ़ास्ट का। मिस्टर बेदी – आई मीन मेहता – अगर मुझे भी इनवाइट करें तो बात बने!”
“बी माई गेस्ट, सर!” मैं अनमने भाव से बोला।
“दिखाई दे रहा है मुझे! तभी तो रात हवालात में कटी!”
इन्स्पेक्टर हँसा, मेरी बेबसी पर हँसा कम्बख्त!
“व्यास साहब मेरे पितातुल्य थे,” कबीर धीरे से बोला, “मेरे लिए पूज्यनीय थे, मैं उनके साथ सुखी था, संतुष्ट था, उनके माल पर निगाह रखना मेरे लिए डूब मरने का मुकाम होता। कैसे मैं उनकी खरीद हीरों पर लार टपकाने का खयाल भी जेहन में आने दे सकता था!”
उपन्यास में होटल के कमरे में एक मर्डर होता है। पुलिस वाले को दिए बयान में एक व्यक्ति कहता है कि मरने वाले से मिलने के लिए कोई व्यक्ति आने वाला था। अब पुलिस यह बात जानती है कि कत्ल करने वाल कमरे में आया होगा। ऐसे में आज के समय में जब हर होटल में सी सी टी वी कैमरा होता है वहाँ पुलिस को पहला काम ये ही सुनिश्चित करना था कि क्या कमरे वाले गलियारे में कैमरा था। वहाँ नहीं था तो रिसेप्शन पर रहा होगा। अगर वो ये काम करती तो आसानी से पता लगा सकती थी कि कौन कौन होटल और फिर कमरे में आया था। इस बिंदु का जिक्र न होना भी एक कमी है। अच्छा होता कि लेखक कैमरे और उसकी मौजूदगी या गैरमौजूदगी का जिक्र करते। अभी इसका जिक्र ही न करना एक कथानक का बदा प्लॉट होल है।
इसके अतिरिक्त कोकिला और कपिल के बीच का रिश्ता आखिर में जिस मोड़ पर् आता है वह थोड़ा फिल्मी लगता है। मुझे लगता है कुछ ऐसे प्रसंग डालने चाहिए था जिससे रिश्ते को प्रगाढ़ होते हुए पाठक देखते। फिर शायद उनके रिश्ते की परिणति को पचाना आसान होता।
ब्लाइंड डील मूलतः भले ही एक रहस्यकथा हो लेकिन यह उपन्यास भावनातमक रूप से काफी सशक्त मजबूत है। उपन्यास में मौजूद प्रसंग मन को छू जाते हैं। आज के जमाने में जहाँ लोग खून के रिश्ते की कद्र नहीं करते उसमें कपिल का शिवनाथ के प्रति भाव भावुक करता है। इसी रिश्ते से जुड़ा उपन्यास का आखिर का हिस्सा आपके मन को छू जाता है। वहीं कई बार एक तरफे प्यार के चलते व्यक्ति क्या क्या कर देता है यह भी इधर दिखता है। आखिर में यह एक तरफा वाला प्रसंग भी आपका मन छू देता है। वहीं शिवनाथ यक एकाकीपन भी आपको साल देता है।
किरदारों की बात की जाए तो शिवनाथ व्यास का किरदार प्रेरक है। अपने वादे को निभाने वाले ऐसे कम ही होते हैं और उसका एकाकीपन आपको छू जाता है।कपिल मेहता के किरदार से भी आपका जुड़ाव हो जाता है। उदय आहूजा और कपिल के वार्तालाप के माध्यम से लेखक हास्य भी पैदा करते हैं। इंस्पेक्टर के रूप में देवांग शिंदे मौजूद है। देवांग एक कर्तव्य परायण पुलिसिया है जो कि कडक जरूर है लेकिन ईमानदार है। अक्सर पुलिस वालों को चेहरे पर् कठोरता का एक नकाब ओढ़कर चलना पड़ता है क्योंकि वो ऐसे पेशे से जुड़े हैं जहाँ पता नहीं कौन उन्हें बेवकूफ बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करे। पर पुलिस वालों के कठोर चेहरों के पीछे भी एक मनुष्य होता है। देवांग इसका उदाहरण उपन्यास में भली भाँति देता है।
अंत में यही कहूँगा कि ब्लाइंड डील एक पठनीय उपन्यास है। कथानक में रोचकता अंत तक बनी रहती है। ऊपर एक आध कमी बताई है लेकिन क्योंकि उपन्यास सेल्फ पब्लिश है और एडिटिंग प्रोसेस से नहीं गुजरा है तो वो रह गई है। पर अगर आप मनोरंजन के लिए उपन्यास पढ़ते हैं तो मुझे लगता है आपका मनोरंजन करने में यह सफल होगी।
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