द ग्रेट सोशल मीडिया ट्रायल – गौरव कुमार निगम

संस्करण विवरण:

फॉर्मैट: ई-बुक | प्लेटफॉर्म: किंडल | पृष्ठ संख्या: 146 

पुस्तक लिंक: अमेज़न

कहानी

कपिल माथुर अपने बेटे को उसके जन्मदिन पर एक सरप्राइज गिफ्ट देना चाहता था।
पर वह कहां जानता था कि तकदीर ने उसकी जिंदगी में खुद एक सप्राइज लिख दिया था।
कुछ शब्द। बस कुछ शब्दों द्वारा उसकी  जिंदगी बर्बाद की जाने वाली थी। उसका सब कुछ लूट लिया जाने वाला था।
आखिर कौन था कपिल माथुर?
तकदीर ने उसकी जिंदगी में क्या सरप्राइज़ लिखा था?
आखिर ऐसा क्या हुआ जिसके चलते उसका सब कुछ लुट गया?
और इस घटना का क्या असर पड़ा?

मुख्य किरदार 

अविनाश माथुर – एक ग्यारहवीं का छात्र 
कपिल माथुर – अविनाश का पिता 
जयंत – बाइक सेल्समैन 
चित्रा खरे – कपिल की बहन 
राजेश खरे – चित्रा का पति 
महक चौधरी – अविनाश की सहपाठी 
इकबाल चौधरी – महक का पिता 
चंद्रेश मणि त्रिपाठी – इंस्पेक्टर और इकबाल का दोस्त 
पंकज पराशर – कपिल का दोस्त और एक वकील 
कमल कुशवाहा – नीलकमल नामक रेस्टोरेंट का मालिक 
शिल्पी साचान – एक सोशल ऐक्टिविस्ट 
विपुल सिंह – गाजियाबाद का एक रिटायर्ड आदमी 

मेरे विचार

कुछ ही वर्षों में तकनीक ने जिस तेजी से विकास किया है वह आश्चर्यजनक है। जहाँ  कुछ वर्षो पहले तक अपने लिखे पत्रों को अपने लोगों तक पहुँचाने में कई दिनों का वक्त लग जाता था, वहीं अब कुछ ही पलों में हमारे विचार सामने वाले तक पहुँच जाते हैं। यही नहीं सोशल मीडिया के माध्यम से तकनीक ने हमें एक ऐसा मंच दिया है जहाँ पर हम अपने विचारों को कई हजार लोगों के समक्ष रख सकते हैं। इसने लोगों को एक बहुत बड़ी ताकत दी है। 
सोशल मीडिया के अंदर कितनी ताकत है यह इस बात से ही जाना जा सकता है कि यहां से सरकारें अब बनाई और गिराई जाने लगी है । लोगों के विचार, उनकी सोच को तब्दील किया जा रहा है। जनआन्दोलन कराए जा रहे हैं। 
ऐसे में जरूरी हो जाता है कि इस ताकत का सोच समझकर प्रयोग किया जाये क्योंकि हर ताकत के साथ कुछ जिम्मेदारियाँ आती हैं। लेकिन अफसोस है  कि यहीं पर चीजें सोशल मीडिया के लिए खराब हो जाती हैं। यहाँ जिम्मेदारी का आभाव है। आप पलक झपकते ही कोई भ्रामक चीज आगे फॉरवर्ड कर देते हैं, कुछ फैसला सुना देते हैं या कहीं कुछ उल्टा सीधा कमेन्ट कर देते हैं और फिर अपनी दुनिया में मशगूल हो जाते हैं। आपके इन फॉरवर्ड और इन टिप्पणियों का क्या असर होता है यह आप न समझते हैं और न समझना चाहते हैं । आप भूल जाते हैं कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है और कई बार आपकी क्रिया किसी की ज़िंदगी बर्बाद कर देते है। 
गौरव कुमार निगम का प्रस्तुत उपन्यास ‘द ग्रेट सोशल मीडिया ट्रायल’ सोशल मीडिया की इसी कमी को उजागर करते हुए यह दर्शाता है कि कैसे कई बार सोशल मीडिया का प्रयोग झूठ परोसने के लिए किया जाता है। यह दर्शाता है कि कैसे लोग  कई बार अपने पूर्वग्रहों के आधीन होकर बात के एक पहलू को जानकर अपनी धारणा बना लेते हैं और फिर एक ऐसा दुष्चक्र शुरू हो जाता है जिससे कई बार एक हँसता-खेलता परिवार तबाह हो जाता है। 
उपन्यास के केंद्र में कपिल माथुर नामक एक आम सा शिक्षक है जिसकी ज़िंदगी में सोशल मीडिआ की इस प्रवृत्ति के कारण एक भूचाल सा आ जाता है और उसका सब कुछ तबाह कर देता है। 
उपन्यास मुख्यतः दो भागों में बँटा है। पहले में एक सोशल मीडिया पोस्ट के चलते कपिल की ज़िंदगी में होने वाली तब्दीलियाँ आती हैं। वह कैसे इससे जूझने की कोशिश करता है और आखिरकार उसका जीवन कैसे इससे बदल जाता यह दर्शाया जाता है। वहीं उपन्यास के दूसरा हिस्सा कपिल के बदला लेने की दास्तान है। 
जहाँ उपन्यास का पहला हिस्सा कपिल के दर्द को दर्शाकर आपको भावविहल कर देता है वहीं दूसरा हिस्सा एक तेज रोमांचकथा है जहाँ आप यह देखने के लिए पृष्ठ पटलते जाते हैं कि कपिल क्या करेगा और कैसे बदला लेगा। 
सोलह अध्यायों में विभाजित यह उपन्यास तेज गति से आगे बढ़ता है और इसमें कुछ न कुछ ऐसा होता रहता है जो आपको बैठकर उपन्यास खत्म करने के लिए विवश सा कर देता है।
उपन्यास के किरदारों  की बात करूँ तो उपन्यास के किरदार जीवंत हैं और ज़िंदगी के नजदीक ही लगते हैं। 
कपिल एक आम सा बाप है जो अपने परिवार को वो हर खुशी देना चाहता है जो कि उसके बस में है। एक ऐसे आम व्यक्ति पर जब सितम ढाया जाता है तो वो किस तरह लाचार लगता है यह लेखक ने बाखूबी दर्शाया है। कहते हैं सबसे खतरनाक व्यक्ति वो होता है जिसके पास खोने के लिए कुछ नहीं होता है। आखिर में कपिल का यही रूप दिखता है। 
कई बार हमारा सिस्टम सामर्थ्यवान का साथ देता है फिर चाहे वो गलत ही न हो। वह जागता भी है तो तब तक काफी देर हो जाए और मामला हाथ से निकल जाए। ऐसे ही सिस्टम का प्रतिनिधित्व  इन्स्पेक्टर चंद्रेश मणि त्रिपाठी का किरदार करता  है। वह एक आम पुलिसिया है जो दोस्त की खातिर कानून को तोड़ने मरोड़ने से भी नहीं हिचकता है लेकिन फिर भी वह समझता है कि सही चीज क्या है। कभी कभी उसकी अच्छाई भी देखने को मिलती है लेकिन वो स्वार्थ को ऊपर रखता है। यही कारण है जो अच्छाई का अंश भी आपको उसके अंदर दिखता है वह आपको प्रभावित नहीं कर पाता है। पढ़ते हुए मुझे यही लग रहा था कि इस मामले में सबसे बड़े दोषी यही सिस्टम के लोग  हैं जो जानते बूझते व्यक्ति को कोने में तब तक धकेलते हैं जब तक वह अपराधी न बन जाए। मेरी यही इच्छा था कि कपिल इसको भी इसके किए की सजा देता तो कितना सही रहता। 
उपन्यास का एक मुख्य हिस्सा चौधरी परिवार भी है। यह ऐसा परिवार है जो कि बच्चों की गलतियों पर पर्दा डालने से नहीं हिचकता है। अमीर माँ बाप की बिगड़ी औलादों का प्रतिनिधित्व यह परिवार करता है।   
उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप हैं। एक अच्छी बात ये लगी कि जिन लोगों को लेखक ने कपिल का शिकार बनाया उन्हें जरूरत से अधिक स्याह रंग में नहीं दर्शाया। वो आम से लोग थे जो कि इस कथानक को मजबूती प्रदान करता है। 
कथानक की कमी की बात करूँ तो मुझे लगता है कि आखिरी शिकार होने से पहले इंस्पेक्टर और कपिल के बीच का चूहे बिल्ली का खेल थोड़ा और रोमांचक बनाया जा सकता था। अगर ऐसा होता तो ज्यादा मज़ा आता। 
इसके अतिरिक्त उपन्यास में कुछ-कुछ जगह थोड़ा वर्तनियों की गलतियाँ हैं जिन्हें सुधारा जा सकता है। 
मसलन एक जगह व्यंग्य को व्यंग लिखा है। एक जगह ‘एक क्षण’ की जगह ‘के क्षण’ लिखा है। ‘दर्द ने उसके होश खोये थे’ की जगह ‘दर्द ने उसके खोए थे’ लिखा है।
एक और प्रसंग था जिसने मुझे कन्फ्यूज किया। जहाँ तक मुझे पता है कपिल और उसका परिवार लखनऊ में रहता था। वहीं चौधरी परिवार भी लखनऊ में रहता था। ऐसे में जब कपिल का दोस्त कपिल को बताता है कि चौधरी परिवार गायब हो गया है तो वह उसके शहर से बाहर न होने के बजाए दिल्ली में होने की बात करता है तो मुझे अटपटा लगा। 
“इस बात की उम्मीद कम है कि वो रेलवे से कहीं दूर निकले होंगे। रीजनिंग ये कहती है वो दिल्ली में हैं और किसी होटल में हैं।” 

“वो कैसे?”

“जो आदमी पब्लिक की वजह से मोहल्ला छोड़कर फरार है… मुझे लगता है वो फैमिली शहर में ही है। इतना बड़ा शहर है। अपना शहर छोड़कर हफ्ता दस दिन किसी होटल में चुपचाप पड़े रहने में ___ एंड फैमिली का क्या जाता है?”
 मुझे लगता है इधर दिल्ली की जगह शायद लखनऊ होना था। 
यह छोटी छोटी चीजें जिन्हें ई बुक में सुधारा जा सकता है। उम्मीद है लेखक इसमें सुधार करेंगे। 
अंत में  यही कहूँगा कि ‘द ग्रेट सोशल मीडिया ट्रायल’ एक पठनीय उपन्यास है जो कि एक प्रासंगिक विषय पर लिखा गया है। इसे पढ़ते हुए आप सोशल मीडिया उसकी ताकत और उसके स्याह पहलू के विषय में एक बार सोचने के लिए मजबूर हो जाएँगे। वहीं उपन्यास एक दिलचस्प रोमांचकथा है जो कि आपका मनोरंजन करने में सफल होती है। उपन्यास मुझे पसंद आया। अगर आपने इसे नहीं पढ़ा तो एक बार पढ़कर देख सकते हैं। 

पुस्तक लिंक: अमेज़न


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “द ग्रेट सोशल मीडिया ट्रायल – गौरव कुमार निगम”

    1. पुस्तक पर लिखा लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा दिलशाद भाई। आभार।

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