अधूरा ख्वाब – आलोक कुमार सिंह

संस्करण विवरण: 

फॉर्मैट: ई-बुक | पृष्ठ संख्या: 53 | एएसआईएन: B094BMMZLY

पुस्तक लिंक: अमेज़न

कहानी 

उस शनिवार को विराट के साथ सुबह से ही ऐसी काफी छोटी मोटी दुर्घटनाएँ हो रही थी जो कि आम दिनों से अलग थी। लेकिन विराट ने सपने में भी नहीं सोचा था कि वह  शाम को मीटिंग से जब घर लौटेगा तो अकेला नहीं होगा। उसके साथ एक पारलौकिक शक्ति मौजूद होगी। 

ऐसी शक्ति जिसका एक अधूरा ख्वाब था और उसे अब विराट को पूरा करना था। 

विराट एक वैज्ञानिक सोच वाला आधुनिक युवक था जिसे पारलौकिक चीजों पर विश्वास नहीं था। लेकिन फिर उसके साथ जो जो घटित होता गया उसके कारण उसे ऐसी चीजों पर विश्वास करने के लिए मजबूर होना पड़ा।

आखिर विराट के साथ क्या हुआ था? कौन सी शक्ति उसके साथ आई थी? वह विराट से क्या चाहती थी? क्या विराट उसकी इच्छा पूरी करने में सफल हो पाया?

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किरदार 

विराट सिंह राजपूत – एक इंजीनियर जो कि गुड़गाँव की कंपनी में कार्य करता था 
बुलबुल – विराट की पत्नी 
विक्रांत सिंह राजपूत – विराट का भाई जो कि गाँव में रहता था 
मायरा सिद्दकी – एक लड़की 
खुर्शीद हसन सिद्दकी – मयारा के अब्बू जिनकी पंचर की दुकान 
शगुफ्ता सिद्दकी – मायरा की माँ 
फिरोज – मायरा के ताऊजी के लड़के 
सना – मायरा की छोटी बहन 
इकबाल – मायरा का भाई 
राशिद – फिरोज का बेटा 
जमाल – वो लड़का जिसके साथ मायरा के रिश्ते की बात चल रही थी

मेरे विचार

कहा जाता है कि अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु के वक्त कोई इच्छा बची रह जाती है तो वह इच्छा उसे प्रेत योनि में ले जाती है। अब ऐसा होता या नहीं ये नहीं पता लेकिन इस एक थीम पर काफी रचनाएँ लिखी और फिल्माई जा चुकी है। लेखक आलोक कुमार की प्रस्तुत रचना अधूरा ख्वाब भी इसी थीम पर लिखी गयी है। यह एक पारलौकिक थ्रिलर है जिसके केंद्र में मौजूद पारलौकिक शक्ति इसिलिये प्रेत योनि में जाती है क्योंकि उसका एक अधूरा ख्वाब है जिसे उसे पूरा करना होता है। अपने इस ख्वाब को पूरा करने के लिए वो विराट सिंह राजपूत को चुनती है। 
यह अधूरा ख्वाब क्या है? वह क्यों विराट सिंह राज पूत को चुनती है और किस तरह यह ख्वाब पूरा होता है यही इस रचना का कथानक बनता है। कहानी शुरू से ही अपनी पकड़ पाठक पर बना लेती है। कहानी में लेखक ने हॉरर के तत्व तो रखे ही हैं साथ में रहस्य और जासूसी के तत्व भी मौजूद हैं जो अंत तक पाठक को कहानी से बाँध कर रखती है। मुख्य किरदारों मायरा और विराट के बीच की नोक झोंक भी पठनीय है और पाठक का मनोरंजन करती है। वहीं उपन्यासिका का अंत आपको भावुक कर देता है। 
प्रेत के रूप में मायरा नाम की लड़की है जो कि अट्ठारह साल की थी जब उसकी मृत्यु हुई थी। वह आम प्रेतों से अलग है। वह चौंकाती भी है, डराती भी है और हँसाती भी है। एक तरह की मासूमियत और दर्द भी इस किरदार में लेखक ने रखा है जो कि आपको किरदार से जोड़ देता है।
मायरा के अलावा विराट और बुलबुल अन्य मुख्य किरदार हैं। विराट और बुलबुल आज के वक्त के पढ़े लिखे पति पत्नी हैं जो कि लड़के लड़कियों को बराबर मानते हैं। यह चीज उनके जीवन में झलकती भी है। लेखक ने लॉकडाउन में वह किस तरह काम का बंटवारा किया है इससे इस चीज को दर्शाया है। मेरे नजर में  आज के वक्त में पति पत्नी का रिश्ता इनके जैसे ही होना चाहिए। 
वैसे तो इस रचना में हॉरर और रहस्य का तड़का है लेकिन यह समाज में स्त्री की दशा पर टिप्पणी भी करती है। आज भी भारत में कई घर ऐसे हैं जहाँ स्त्री को पुरुष से कमतर समझा जाता है। माँ बाप भी लड़का लड़की के बीच फर्क करते हैं और इस कारण कई बार प्रतिभाशाली युवतियाँ आगे नहीं बढ़ पाती हैं। लेखक ने रचना के माध्यम से इस सामाजिक पहलू को भी दर्शाया है। और यह फर्क केवल अनपढ़ लोग ही नहीं पढे लिखे लोग भी करते हैं। विराट, जो कि उच्च शिक्षित व्यक्ति है, और मायरा के बीच होने वाली बातचीत ध्यान देने योग्य है:

“तुम चलो, लेडीज फर्स्ट।”

“सिर्फ कहने की बात है ये, वरना दुनिया का सिद्धांत तो लेडीज लास्ट… बल्कि लेडीज नेवर का है।” मायरा फीकी हँसी के साथ पासा फेंकती हुई बोली। 

“किसी से प्यार में खता खाई मालूम होती हो?” विराट सहज भाव से बोला। 

“तुम मर्द लोगों के लिए लड़की बस इसी काबिल होति है, प्यार मोहब्बत बस, वो समाज के और किसी काम में कोई योगदान नहीं दे सकती?” मायरा क्रुद्ध स्वर में बोली।

अंत में यही कहूँगा कि लेखक द्वारा लिखी गयी यह उपन्यासिका मुझे पसंद आई। अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो आप इसे पढ़िए। उम्मीद है जिस तरह से इसने मेरा मनोरंजन किया उस तरह से यह आपका मनोरंजन करने में भी सफल होगी।
पुस्तक की कुछ पंक्तियाँ जो मुझे पसंद आईं:

हिंदुस्तानियों की खास आदत है, पाँच सौ का नोट हो चाहे कोई एक्सरे हो, मालूम चाहे खाक ना  हो पर चेक जरूर करते हैं, ऐसे हवा में उठाकर देखते हैं जैसे विशेषज्ञ हों। 

 

आदमी कितना भी बड़ा नास्तिक हो कितना भी बड़ा दिलेर हो लेकिन भय की अपनी सत्ता होती है, और अंधकार और एकांत उस सत्ता के प्रहरी।

 

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

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2 Comments on “अधूरा ख्वाब – आलोक कुमार सिंह”

    1. देव दिवाली में मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार मैम….

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