संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 116 | प्रकाशक: बुक ऑडियो
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
श्याम प्रसाद का परिवार इन दिनों परेशान चल रहा था। कुछ समय से उसके परिवार पर विपत्तियों के आने का सिलसिला ही चल निकला था। वह एक विपत्ति से खुद को निकालते तो दूसरी विप्पति उन्हें मुँह बाए खड़ी दिखाई देती।
अब श्याम का एक्सीडेंट हो गया था और वो कोमा में चला गया था।
डॉक्टरों की माने तो उसके शरीर में ऐसी चोट नहीं लगी थी कि उसकी बेहोशी इतनी लंबी खिंचे। ऐसे में श्याम की बेहोशी का कारण उनकी समझ से परे था।
आखिर श्याम के ऊपर विप्पतियों का यह पहाड़ क्यों टूट पड़ा था?
आखिर श्याम और उसके परिवार की हुई इस हालत के पीछे कौन जिम्मेदार था?
किरदार
नीलिमा – नन्ही की मां
श्याम – निलीमा का पति
हेमंत – पुजारी का बेटा और श्याम का दोस्त जो अब पूजा पाठ करता था
दुर्गा प्रसाद – श्याम के दादाजी
महुआ – दुर्गा प्रसाद की पत्नी
लक्ष्मी प्रसाद – दुर्गा प्रसाद के पिता
भानु प्रसाद – दुर्गा प्रसाद का बड़ा बेटा
शशि प्रसाद – दुर्गा प्रसाद का छोटा बेटा
महेंद्र – भानु प्रसाद का बड़ा बेटा
सुरेंद्र – महेंद्र का छोटा भाई
लछमन दास – अयोध्या का साहूकार जो कि दुर्गाप्रसाद के पिता का मित्र था
बुद्धया – लछमन दास का नौकर
शीला – सुरेंद्र की पत्नी
धीरज – पुजारी जी, हेमंत के पिता
राम प्रसाद – श्याम का बड़ा भाई
राजीव – श्याम का छोटा भाई
दीपका – विवेक की पत्नी
कविता – विवेक की बहन
मेरे विचार
क्या जादू टोना होता है? क्या भूत प्रेत होते हैं? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसके विषय में हर व्यक्ति अलग अलग विचार रखता है। कई लोग इसे अंधविश्वास मानते हैं और कई लोग जिन्होंने इसका अनुभव किया होता है वो इसके होने पर विश्वास रखते हैं। वैसे यह भी अपने आप एक सच है कि मनुष्य इस धरती पर चाहे कहीं भी बसा हो उसके समाज में जादू, टोना और मंत्र तंत्र की उपस्थिति रही ही है। भारत में भी मंत्र तंत्र के विषय में हर राज्य की अपनी धारणा है और यह धारणाएँ हर धर्म को मानने वाले लोगों में दिख जाती हैं। इन बातों को भले ही कई लोग अंधविश्वास कहकर नकारे लेकिन इनसे जुड़ी कथाएँ काफी रोमांचक रहती है और इन्हें पढ़ने का अपना एक अलग मज़ा रहता है। मुझे भी भयकथाएँ पसंद हैं और इन भय कथाओं की एक उपविधा तंत्र मंत्र या जादू टोने से संबंधित साहित्य होता है जिसे अंग्रेजी में ऑकल्ट (occult) भी कहा जाता है। लेखक राम ‘पुजारी’ का उपन्यास ‘कुलदेवता का रहस्य’ एक ऐसी ही उपन्यास है जिसमें तंत्र मंत्र, जादू, टोने के तत्वों को लेकर वो एक ऐसी कथा आपको देते हैं जिसे आप पढ़ते चले जाते हैं। मूलरूप से यह एक ऐसे परिवार की कहानी है जो कि उस शक्ति से लड़ते दिखता है जिसे उसका रक्षक होना चाहिए था लेकिन अब वह शक्ति अपने अहम और अपनी वासना के कारण उस परिवार का भक्षक बनने पर तुली थी।
उपन्यास की कथा एक अस्पताल से शुरू होती है जहाँ पर श्याम बेहोश पड़ा है। पाठक को पता लगता है कि श्याम पिछले तीन दिन से अस्पताल में बेहोश है लेकिन उसके बेहोश होने के कारण डॉक्टरों को समझ नहीं आ रहा है। जैसे जैसे कथानक आगे बढ़ता है वैसे वैसे पाठक जानते हैं कि केवल श्याम ही पीड़ित नहीं है बल्कि कुछ समय से श्याम के साथ साथ उसके परिवार के बाकी सदस्य भी विपत्तियों का सामना कर रहे हैं। यह विपत्तियाँ क्या हैं और इनके पीछे क्या कारण है यह धीरे धीरे पाठक को पृष्ठ पलटने के साथ पता चलता जाता है।
उपन्यास दस अध्यायों में विभाजित है। अधिकतर अध्यायों में लेखक कथा को दो हिस्सों में आगे बढ़ाते हैं। अध्याय के एक हिस्से में श्याम की वर्तमान स्थिति का पाठकों के समाने रखी जाती है और एक हिस्से में पहले उसके दादा दुर्गाप्रसाद और फिर उसके और उसकी परिवार की अब तक की कहानी पाठकों को बताई जाती है। यह दूसरे हिस्से की कहानी फ्लैशबैक में आगे बढ़ती है या फिर पिछली घटनाओं को कोई किरदार किसी दूसरे किरदार को सुना रहा होता है।
ऐसे में लेखक काफी हद तक पाठक की रुचि कहानी में बनाए रखने में कामयाब हो पाते हैं। पाठक जानना चाहता है कि श्याम और उसके परिवार के साथ क्या हुआ है और कौन इसके पीछे है।
कहानी तेज रफ्तार है और लेखक जरूरत भर की चीजें ही बताते हैं। ऐसे में कथानक पढ़ते हुए कहीं बोरियत नहीं होती है।
अक्सर, हॉरर उपन्यासों में लेखक कल्पनाओं का तकड़ा लगाकर चीजों को अतिनाटकीय बना देते हैं लेकिन लेखक इधर ऐसा करने से बचे हैं जो कि कथानक को असलियत के निकट सा रखता है।
किरदारों की बात करूँ तो श्याम उपन्यास का केन्द्रीय पात्र लगता है। उपन्यास की शुरुआत उसके ही अस्पताल में भर्ती होने से होती है। साथ ही शशिप्रसाद के बेटों में से एक वही है जिसे इन मामलों की अधिक जानकारी होती है और वह उनके लिए एक गाइड का काम करता भी दिखता है। हेमंत श्याम का दोस्त है और दोस्ती का फर्ज निभाना अच्छी तरह से जानता है। इसके अतिरतिक्त महेंद्र और सुरेन्द्र के रूप में ऐसे भाई मौजूद हैं जो कि अपने भाइयों के द्वारा की गई मेहनत नहीं देखते हैं बस उसके फल को देखकर कुढ़ते रहते हैं। आदिकाल से भाइयों के बीच जो बैर चला आ रहा है वह इधर भी दिखता है। साथ ही यह भी दिखता है कि बुराई का रास्ता या सफलता के लिए गलत राह पर चलने वालों के साथ क्या होता है। चूँकि अधिकतर कहानी फ़्लैश बैक में है या किसी के द्वारा किसी को सुनाई जा रही है तो काफी किरदार उतने उभर कर नहीं आ पाते हैं। फिर भी लेखक इनके बीच द्वन्द दर्शाने में सफल हुए हैं और कहानी की जरूरतानुसार जीवंत इन्हें बना पाये हैं।
चूँकि उपन्यास की विषय वस्तु जादू टोना, तंत्र मंत्र है और इससे जुड़े किरदार भी इधर दिखते हैं। यहाँ तांत्रिक हैं, उनकी क्रियाएँ हैं और उनके द्वारा छोड़े गए साये हैं। चूँकि मैं खुद गढ़वाल से आता हूँ तो उपन्यास में बताई गई कई चीजों और तरीकों से वाकिफ हूँ। यह यथार्थ के निकट लगते हैं। लेखक इधर अतिनाटकीयता से बचे हैं जो कि अच्छा है।
उपन्यास का नाम ‘कुलदेवता का रहस्य’ है। कुलदेवता कौन है? वह कैसे परिवार में आया और उसका इन मुसीबतों से क्या लेना देना है? यह सब कथानक के बढ़ने के साथ पता चलता रहता है। इधर इतना ही बताना सही होगा कि उपन्यास में भय पैदा करने वाले जितने दृश्य हैं उनमें इनका हाथ है। हाँ, पढ़ते हुए मन में ये ख्याल आ रहा था कि अगर कुलदेवता का रहस्य की बजाए कुलदेवता का प्रकोप होता तो बेहतर होता क्योंकि यह काम कौन कर रहा है यह तो काफी हद तक पता रहता है। इस प्रकोप से बचा कैसे जाए ये परिवार के लिए जीने मरने का प्रश्न बना रहता है। ‘कुलदेवता का रहस्य’ पाठक के मन में इसके रहस्यकथा होने की गलत अपेक्षा पैदा कर सकता है। अगर आपको भी ऐसा लगता है कि यह कोई रहस्य कथा है तो यहाँ ये साफ कर देना बेहतर होगा कि ऐसा नहीं है।
कथानक की कमी की बात करूँ तो जहाँ मुझे श्याम के दादा दुर्गाप्रसाद की कहानी को समानांतर दर्शाने का लेखक का तरीका पसंद आया वहीं यह बात भी चुभी कि उपन्यास का अधिकतर हिस्सा फ्लैश बैक में है या पूर्व में हुई घटनाएँ नीलिमा द्वारा दूसरे किरदार को सुनावायी जा रही हैं। फ्लैश बैक में चीजें होने के कारण पढ़ते हुए आपके मन में यह विचार बार बार उठता है कि जहाँ से कहानी शुरू हुई है उसके आगे क्या होगा क्योंकि आपको यह तो पता चल चुका होता है कि जिनका फ्लैश बैक या जिनकी कहानी हम पढ़ रहे हैं उनकी वर्तमान स्थिति क्या है। यही चीज प्रस्तुत कथानक के साथ होती है। आपको पता रहता है कि श्याम की अभी की स्थिति क्या है, नीलिमा की अभी की स्थिति की क्या है, नन्ही की अभी की स्थिति क्या है। आप ये तो जानना चाहते हो कि ये लोग अनी वर्तमान स्थिति में कैसे पहुँचें लेकिन उससे भी अधिक आपके मन में यह जानने की इच्छा रहती है कि ये अपनी वर्तमान स्थिति से कैसे निकलेंगे। ऐसे में कई बार आप चाहते हो कि फ्लैश बैक या उनकी पिछली कहानी जल्दी खत्म हो और वर्तमान की कहानी आगे बढ़े। पर ऐसा इस उपन्यास में नहीं होता है। दस अध्यायों में विभाजित इस उपन्यास में लगभग 9वें अध्याय में कहानी उस समय में आती है जहाँ पर से इसकी शुरुआत हुई थी। और एक अध्याय में ही उपन्यास खत्म हो जाता है। यह चीज थोड़ी खलती है। मुझे लगता है कि फ्लैश बैक का हिस्सा थोड़ा कम होता। या वर्तमान की कहानी श्याम के परिवार के साथ होने वाली बुरी घटनाओं के शुरू होने से दर्शाई होती तो शायद उपन्यास और बेहतर बन सकता था।
फ्लैश बैक में कहानी होने के कारण कई बार ऐसा होता है कि लेखक चीजों को दर्शाने की जगह बताता है। यह बताना भी कथानक के रस को थोड़ा कम कर देता है। यह चीज भी इधर देखने को मिलती है। विशेषकर उन दृश्यों में जो कि भय पैदा कर सकते थे। मुझे लगता है कि ऐसे कई दृश्य उपन्यास में आते हैं जिन्हें लेखक थोड़ा और रोमांचक और थोड़ा और समय लेकर विकसित करते तो वह पाठकों के मन को और अधिक सिहरा सकते थे। मैं ये नहीं कह रहा हूँ कि इसे अतिनाटकीय करते बल्कि ये कि उधर माहौल और अच्छे तरीके से बनाया जा सकता था। उन हिस्सों को थोड़ा और अधिक समय दिया जा सकता था। मुझे लगता है कि दृश्य फ्लैशबैक में घटित होते न दर्शाकर वर्तमान में घटित होते दिखते तो शायद ज्यादा फायदा होता क्योंकि तब आपके मन में किरदारों को लेकर एक तरह की अनिश्चितता होती। आपको पता नहीं होता कि इस घटना से वो उभर पाएँगे या नहीं। जो कि तब नहीं होता है जब आपको पता होता है कि किरदार कि वर्तमान स्थिति क्या है।
कथानक में नन्ही की नानी का एक किरदार है। यह किरदार रोचक है और ताकतवर भी है। श्याम के परिवार पर आई मुसीबतों में उसका हाथ भी होता है पर इधर उसका केवल जिक्र होता है। वह कहानी में दिखती नहीं है। अच्छा होता कि उस किरदार को वर्तमान समय में भी कुछ करते हुए देखते या श्याम और नीलिमा से एक बार उनकी मुलाकात करते हुए दिखाते। ये सीन प्रभावशाली बन सकते थे।
इस सबके अलावा कहानी में एक दो बात ऐसी थी जो कि कहानी के हिसाब से तो इतनी जरूरी नहीं थी लेकिन फिर भी अजीब लगी। उपन्यास में श्याम का एक बड़ा भाई है राम और छोटा भाई है राजीव। उपन्यास में बताया गया है कि राम के बड़े बेटे विवेक की शादी हो चुकी है लेकिन राजीव की शादी के विषय में बस ये कहा जाता है कि अभी हुई नहीं है। यह थोड़ा अटपटा लगता है। क्या राजीव विवेक से छोटा था या उसके हम उम्र था? यह बात इधर उतनी साफ नहीं हुई है या फिर हुई होगी तो मेरे पढ़ने में नहीं आयी और मुझसे मिस हो गयी। इसके अलावा कहानी के शुरुआत में बताया गया है कि राम प्रसाद का अपना बिजनेस था जो कि अच्छा ही चल रहा था। लेकिन बाद में विवेक के ऊपर जब आर्थिक दिक्कत आती है तो उसके लिए उसके चाचा मिलकर एक दुकान खोलते हैं। उस समय मन में यही आया था कि विवेक ने अपने पिता के बिजनेस में हाथ क्यों नहीं बँटाया। ये दोनों बात कहानी के लिहाज से उतनी महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन मन में ये सवाल उठे तो लिख ही दिया।
प्रस्तुत संस्करण की बात करूँ तो इसमें कुछ कुछ जगहों पर प्रूफरीडिंग की गलतियाँ भी हैं। उदाहरण के लिए:
पृष्ठ 11 में लिखा है कि ‘दुर्गाप्रसाद ने हाथ मुँह धोने के उपरांत खाली बोतल साफ करके पानी भर दिया। ‘ यह लगभग तब की बात है जब अंग्रेजों का राज्य था। उस वक्त बोतल का चलन रहा होगा इस बात में मुझे थोड़ा संशय है। ये चीज मुझे खटकी थी तो थोड़ा ढूँढा तो पता लगा उस वक्त पानी ले जाने के लिए कपड़े के थेले, जिसे छागल कहते थे, का प्रयोग होता था। यहाँ भी छागल लिखा जा सकता था।
पृष्ठ 18 में लिखा है ‘अंत में गुजारे के लिए किसी फैक्ट्री में करने लगा।’ यहाँ ‘फैक्ट्री में नौकरी करने लगा’ या ‘फैक्ट्री में काम करने लगा’ बेहतर होता।
पृष्ठ 32 में लिखा है कि ‘ये सारी प्रक्रिया उस विधि की माँग थी जिसे दुर्गा प्रसाद कई बार अपने सपनों में देखा चुका था…’। यहाँ ‘देखा चुका’ की जगह ‘देख चुका’ होना था।
पृष्ठ 35 में लिखा है ‘दुर्गा प्रसाद के तीन बेटे हुए, कोई बेटी नहीं थी। तीनों में सबसे बड़े राम प्रसाद का अपना बिजनेस था।’ यहाँ दुर्गाप्रसाद के तीन बेटे नहीं शशि प्रसाद के तीन बेटे होना चाहिए था। दुर्गा प्रसाद तो राम प्रसाद का दादा था।
पृष्ठ 38 में लिखा है ‘खौलती हुई खीर चपड़ चपड़ खीर खाई जा रही थी।’ यहाँ ‘चपड़ चपड़’ के बाद खीर की आवश्यकता नहीं थी।
ऐसे ही पृष्ठ 38 में लिखा है पूजा में आरंभ हो चुकी थी जिसमें पूजा के बाद में की जरूरत नहीं थीं।
ऐसी ही प्रूफ की छोटी मोटी गलतियाँ आगे भी हैं। श्याम प्रसाद के ताऊ के लड़कों का नाम महेंद्र और सुरेन्द्र है लेकिन अंत तक आते आते पृष्ठ 115 में वो महेश और सुरेश हो जाता है।
अगर अगले संस्करण में ये छोटी छोटी गलतियों को सुधार लिया जाए तो बेहतर होगा। प्रूफ की ये गलतियाँ बीच बीच में पढ़ने के फ़्लो को बाधित करती हैं।
अंत में यही कहूँगा कि ‘कुलदेवता का रहस्य’ एक रोचक उपन्यास है। उपन्यास पठनीय है और बिना अतिरिक्त नाटकीयता के साथ ऐसे विषय को लेकर लिखा गया है जिसके बारे में कम ही लिखा गया है। उपन्यास ने मेरा मनोरंजन किया और उम्मीद है आपका मनोरंजन करने में सफल होगा।
पुस्तक लिंक: अमेज़न
'कुल देवता का रहस्य' के विषय में अच्छी समीक्षा दी है।
धन्यवाद
जी लेख आपको पसंद आया ये जानकर अच्छा लगा। आभार।