उपन्यास 27 नवम्बर,2017 से 2 दिसम्बर,2017 के बीच पढ़ा गया
संस्करण विवरण
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या : 192 | प्रकाशक: अंजुमन प्रकाशन
पहला वाक्य :
तेज हवा के झोंके से दीवार पर टँगा कैलेंडर फड़फड़ाया और उसने अणि नज़र आसमान से हटा कर आज की तारीख पर डाली, 13, अगस्त,1978, उसने तारीक पढ़ी और एक झूठी हँसी हँसा।
कहानी
देव ने दुष्यंत से फोन में कुछ ऐसा कहा कि दुष्यंत ने अपने को खत्म करने का निर्णय बदल दिया। उसके दोस्त को उसकी जरूरत थी और वो देव की हर संभव सहायता करना चाहता था। शायद उसकी ज़िन्दगी, जिसका कि कोई मकसद नहीं बचा था, को एक मकसद मिल गया था। और दुष्यंत निकल पड़ा देहरादून जाने के लिए।
देव की माने तो उसे भूत प्रेतों ने परेशान कर रखा था और एक दुष्यंत ही था जिससे वो मदद की गुहार लगा सकता था। देव ने जब बात की तह तक जाने की कोशिश की तो वो उसमे फँसता ही चला गया।
आखिर क्या चीज थी जो देव को परेशान कर रही थी? क्या दुष्यंत उसकी मदद कर सकता था? क्या दुष्यंत उसकी मदद करने में सफल हो पाया? क्या दुष्यंत को जिस सुकून की तलाश थी उसे वो मिल पाया?
मेरे विचार
विक्रांत शुक्ला जी का उपन्यास मुझे काफी पसंद आया। उपन्यास में तंत्र मन्त्र, जादू टोना, पिशाचिनी यानी हॉरर उत्पन्न करने के लिए सब कुछ हैं। इसके इलावा उपन्यास में एक रहस्य का पुट है और अंत के करीब आते आते पाठक को आश्चर्यचकित कर देता है।
उपन्यास की कमियों की बात करें तो ज्यादातर कमियाँ सम्पादन और प्रूफरीडिंग से जुडी हैं। उपन्यास में कई जगह वर्तनी की गलतियाँ हैं। उदाहरण के लिए पूरे उपन्यास में ‘पूछा’ को ‘पुछा’ लिखा गया है।
पृष्ठ 51 में ‘स्वर’ को ‘सवार’- किया गया है।
पृष्ठ 59 में दूसरा को दुसरा किया गया है
पृष्ठ 60 में ‘यह कहकर वो गायब हो गई और मुझे आईने में अपना चेहरा नज़र आने लगा’ कि ‘यह कहकर वो गायब हो गई और मुझे आईने में अपना चेहरा जगह नज़र आने लगे’
पृष्ठ 68 में ‘मैं रसोई के एक कोने में खड़ा होकर कुछ पलों तक खुद को संभालने की कोशिश…’ की जगह ‘मैं रसोई के एक कोने में खड़ा होगा कुछ पलों तक खुद को संभालने की कोशिश…’
पृष्ठ 69 में निरीक्षण को निरिक्षण
पृष्ठ 75 में चाबी को चाभी
पृष्ठ 78 में घूमते को घुमते
ऐसी ही कई गलतियाँ है।
ऊपर लिखी गलतियों के इलावा एक जो गलती मुझे लगी ये थी कि उपन्यास के शुरुआत में बताया जाता है कि देव कुमार हरियाणवी फिल्मों का हीरो था लेकिन अंत तक आते आते वो भोजपुरी फिल्मों का हीरो बन जाता है।
देव कुमार हरियाणवी फिल्मों का नामी हीरो था पृष्ठ 9
….से मिलने के कुछ ही महीनों के भीतर देव की तो जैसे ज़िन्दगी ही बदल गयी और वो भोजपुरी फिल्मों का नामी सितारा बन गया पृष्ठ 129
अक्सर ही हम उपन्यास के माध्यम से शब्द सीखते हैं। इसलिए ये प्रकाशक की जिम्मेदारी बनती है कि वो सही शब्द प्रकाशित करे। ऐसे गलत सलत शब्द छापने से प्रकाशक की गुणवत्ता घटती ही है क्योंकि ये उनका लापरवाह रवैया दर्शाता है। पाठक अगर उस शब्द की सही वर्तनी से वाकिफ नहीं है तो वो भी गलत शब्द ही सीखेगा। कहानी के बहाव में भी ये रोड़ा अटकाता है। उम्मीद है अगले संस्करण में ऐसी गलतियाँ नही होगी।
इस सबके इलावा कहानी में मुझे कहीं कमी नही लगी। अगर आप हॉरर उपन्यास पढ़ने के शौक़ीन हैं तो आपको ये जरूर पसंद आएगा। हाँ, अंत थोड़ा अलग हो सकता था। अभी अंत थोड़ा नकारात्मक लगा। खैर, हर चीज आपके पसंद की नहीं हो सकती है।
अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो अपनी राय से मुझे कमेंट बॉक्स में अवगत करवाईयेगा।
अगर आपने उपन्यास नहीं पढ़ा है और पढ़ना चाहते हैं तो निम्न लिंक से मंगवा सकते हैं:
पेपरबैक
उपन्यास की समीक्षा बहुत अच्छी लगी। उपन्यास पढने को प्रेरित करने वाली। अगर कहीं यह उपन्यास उपलब्ध हुआ तो अवश्य पढूंगा।
हिंदी में अच्छे हाॅरर उपन्यासों की बहुत कमी है।
धनयवाद। मैंने तो उपन्यास अमेज़न से मंगवाया था। उसका लिंक भी पोस्ट में दिया है। दुकान में किधर मिलेगा इसका मुझे इतना आईडिया नहीं है। वैसे उपन्यास पढियेगा तो बताईयेगा कि कैसा लगा।
कई हफ़्तों से कार्ट में सेलेक्ट कर रखा था पर नेगेटिव रिव्यु मिले इसके चलते आर्डर नहीं किया था आज करता हूँ, आपका लिखा रिव्यु पढ़कर हिम्मत बंधी है😎
जी,अच्छा लगा यह जानकर। हॉरर उपन्यासों को पढ़ने का तरीका यही ही है कि आप ये सोचकर पढ़ो कि अगर आपके सामने ये घटित होता है तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी। अक्सर लोग ऐसे नहीं पढ़ते हैं। उन्होंने हॉरर सुनकर अपने मन में अलग धारणा बना ली होती है। इस कारण अगर अपेक्षा पूरी नहीं होती है तो वो इसका मज़ा नहीं ले पाते हैं। बिना धारणा के पढ़िए। आप एन्जॉय करेंगे।
लो जी यह उपन्यास भी पढ लिया। वास्तव में हिन्दी में बेहतरीन हाॅरर उपन्यासों की कमी है। लेकिन इस उपन्यास को पढने के बाद यह शिकायत दूर हो जाती है।
उपन्यास का कथानक रोचक है और डरावना भी। कहानी आदि से अंत तक बांधने में सक्षम है।
अच्छी समीक्षा धन्यवाद।
– गुरप्रीत सिंह, राजस्थान
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जी, शुक्रिया।