पुस्तक अंश: सुन्दरता की ब्लैकमेलिंग – एस सी बेदी

सुंदरता की ब्लैकमेलिंग एस सी बेदी द्वारा लिखा गया राजन इकबाल श्रृंखला का बाल उपन्यास है। यह उपन्यास राजा पॉकेट बुक्स के राजा बाल पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया था और उपन्यास में दर्ज जानकारी के अनुसार यह उनके द्वारा प्रकाशित 227 वाँ बाल उपन्यास था।

आज एक बुक जर्नल पर पढ़िये एस सी बेदी के बाल उपन्यास सुन्दरता की ब्लैकमेलिंग का एक छोटा सा अंश।  

उम्मीद है उपन्यास का यह अंश आपको पसंद आएगा।

**************

पुस्तक अंश: सुन्दरता की ब्लैकमेलिंग - एस सी बेदी

 “अब तुमने बकवास की तो मैं तुम्हारा सिर तोड़ दूँगा।”

“शोभा भाभी!” इकबाल रुँआसे स्वर में बोला – “क्या सिर तुड़वा लूँ।”

“तुम्हारी सल्लो रोएगी, ऐसा गजब मत करना।”,शोभा ने कहा और खिलखिलाकर हँस पड़ी।

“मैं सिर तुड़वाने के लिए तैयार नहीं हूँ प्यारे, इसलिए बकवास बंद। अब तुम्हें जो कहना है कहो।”

राजन के होठों पर भी मुस्कान थिरक उठी, फिर वह कार को दाईं तरफ मोड़ता हुआ बोला -“मैं तुम्हें एक ख़ास आदमी के पास भेजना चाहता हूँ।”

“क्यों?”

“वह तुम्हें एक दिन में ही निशानेबाजी के कुछ ऐसे गुर सिखाएगा कि तुम वाकर से बहुत आगे निकल जाओगे।”

“कौन है वह व्यक्ति?”

“हापर अली, आधा देशी आधा विदेशी। दक्षिणा के रूप में तुम उसके लिए दो शराब की बोतलें ले जाना।”

“क्या वह शरीफ आदमी है?”

“शरीफ आदमी हर समय नशे में नहीं डूबा रहता। वह महापियक्कड़ व्यक्ति है। अंग्रेज उसके नाम से काँपते थे? आज़ादी के लिए वह लड़ा लेकिन आजादी की प्राप्ति के बाद भारत में जो धांधलियाँ हो रही हैं उससे वह बहुत दुखी है। उसका कहना है- हम आजाद नहीं हुए बल्कि हमारे नेताओं ने हमें और भी मोटी मोटी गुलामी की बेड़ियाँ पहना दी हैं। इसी गम को भुलाने के लिए  हमेशा वह पीता रहता है। स्वभाव का चिड़चिड़ा है। तुम्हें उसकी गालियाँ भी सुननी पड़ेंगी, अगर तुम विचलित नहीं हुए तो उससे बहुत कुछ सीखकर वापिस आओगे।”

“ओके डिअर! तुम्हारे कारण मैं गालियों को भी फूल समझकर स्वीकार कर लूँगा।”

राजन ने एक शराब की दुकान के सामने कार रोक दी। इकबाल कार से नीचे उतरता हुआ बोला – “राजन! अब तो तुम शोभा के साथ अकेले हो।”

“फिर?”

“मैंने झख द्वारा जो शिक्षा दी है, उस पर अमल करना। शोभा के पाँवों पर झुकना, बहुत प्यार व दुलार मिलेगा।”

शोभा कनखियों से राजन को देख रही थी। उसके होंठों पर शरारती मुस्कान थी।

********

इकबाल जैसे ही शराब की दुकान की तरफ बढ़ा, वहाँ उसकी भेंट वाकर से हो गई। उसके साथ एक खूबसूरत औरत भी थी।

“हेल्लो मिस्टर इकबाल।” वाकर मुस्कराता हुआ बोला।

“हेल्लो!” इकबाल गुर्राया।

फिर इकबाल ने शराब की दो बोतलें खरीद लीं।

“यार!” वाकर बोला- “हममें अगर मुकाबला तय हुआ है, तो इसका मतलब यह नहीं कि हम एक दूसरे के शत्रु हो गये।”

“ऐसी बात नही है।”

“हमारे देश में तो अगर कोई हार जाए तो जीतने वाले को बधाई देता है।”

“और हमारे देश में अगर कोई हार जाए तो जीतने वाला उसका मुँह कला करके गधे पर बैठाकर घुमाता है।”

“मिस्टर इकबाल!” औरत तीखे स्वर में बोली -“आप भारतीयों का अपमान कर रहे हैं।”

“और आप भारतवर्ष का नाम ऊँचा कर रही हैं। हमारी औरतें पराये मर्दों के साथ इस तरह नहीं घूमतीं।”

“शटअप!  मैं आपसे बात नहीं करना चाहती।” वह चिड़चिड़ाकर बोली।

इकबाल ने वाकर को आँख मारी और दुकान से बाहर आ गया।

पीछे से उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। इकबाल पलटा, सामने वाकर उस औरत के साथ मौजूद था।

“कहो?” इकबाल ने पूछा।

“तुम्हें इनसे माफ़ी माँगनी होगी।”

“वो किस ख़ुशी में प्यारे?”

“तुमने इनका अपमान किया है।”

“मूर्ख हो तुम! जो पहले ही अपनी इज्जत बेचकर अपमान से नहाई हुई हो, उसका अपमान कैसे हो सकता है?”

“माफ़ी माँग लो, वरना मैं तुम्हारे साथ बहुत बुरा व्यवहार करूँगा।”

“प्यारे! मैं जब चाहूँ तुमहरा भी अपमान कर सकता हूँ।” इकबाल मुस्कराता हुआ बड़ी अदा से बोला -“क्योंकि अगर तुम बुरे आदमी हो तो मैं बहुत अच्छा आदमी हूँ।”

“वाकर चलो!” औरत उसका हाथ खींचते हुई बोली -“हमें असभ्यों के मुँह नहीं लगना चाहिए।”

“इकबाल! मैं तुम्हें देख लूँगा।” वाकर ने गुर्राते हुए कहा और उस औरत के साथ आगे बढ़ गया।

इकबाल की इच्छा हुई आगे बढ़कर उसका सिर तोड़ दे, लेकिन ऐसा करना गुण्डागर्दी होती, इसलिए उसने अपना क्रोध बोतलों पर उतारा और उन्हें जमीन पर पटक कर तोड़ दिया। फिर बड़बड़ाया – “चमगादड़ की औलाद, तू क्या मुझे देखेगा, मैं तुझे देख लूँगा।”

अगले पल वह चौंका – राजन की कार उसे वहाँ दिखाई नहीं दी थी।

*********

इकबाल को जब वापस आने  में देर हुई तो शोभा बोली – “राजी! इकबाल अभी तक वापिस नहीं आया, जाकर देखो तो क्या बात है।”

राजन दरवाजा खोलकर जैसे ही बाहर निकला सनसनाती हुई कोई चीज उसके पास से निकल गई। सामने की दुकान का शोकेस छनछ्नाता हुआ टूट गया।

राजन जल्दी से अन्दर आ गया।

“क्या हुआ?” शोभा ने पूछा।

“बेआवाज़ रिवॉल्वर से मुझ पर गोली चलाई गई थी। कान के पास से होती हुई निकल गई।”

“हाय राम!” शोभा ने काँपते स्वर में कहा। यह सोचकर ही शोभा सिर से लेकर पाँव तक हिल गई थी, कि अगर गोली सिर में लग जाती तो क्या होता।

राजन ने कार को गति दे दी, फिर स्पीड बढ़ाता चला गया।

“अब कहाँ जा रहे हो?”

“सफेद कार से गोली चलाई गई थी। हमारी कार के बगल में से अभी निकली है।”

शोभा ने क्रोध में दाँत पीसे और ब्लाउज में हाथ डालकर चोली में से पिस्टल निकाल ली।

कुछ ही क्षणों बाद सफेद कार दिखाई देने लगी। जब कारें शहर के बाहर आ गई तो राजन सावधान हो गया।

“राजी!” शोभा ने पूछा -“फायर करूँ।”

“नहीं।”

तभी सफेद कार रुक गई।, फिर एक औरत कार से उतरी और बोनट खोलकर इंजन देखने लगी। राजन ने कुछ दूरी पर अपनी कार रोक दी। लेकिन नीचे नहीं उतरा।

“राजी!” शोभा बोली – “कार में तो और कोई भी नहीं है।”

“मैं देख रहा हूँ।”

एकाएक उस औरत ने उनकी कार की तरफ देखा, फिर वह उनकी तरफ बढ़ने लगी। उसने नीले रंग की स्कर्ट कमीज पहन रखी थी। होंठों पर लिपस्टिक व गालों पर लाली लगी थी।

वह हिरनी की चाल से चलती हुई कार के पास पहुँची और तीखे स्वर में बोली – “आप मेरा पीछा क्यों कर रहे हैं मिस्टर?”

“मेरी कार का इंजन खराब हो गया है, इसलिए यहाँ कार रोकनी पड़ी। भला, मैं आपका पीछा क्यों करूँगा।”

“शायद मुझे ही गलतफहमी हो गई थी।”

“बात क्या है?” शोभा ने पूछा – “आप कुछ परेशान नजर आ रही हैं।”

“मेरी कार खराब हो गई है। मैं इंजन के बारे में कुछ नहीं जानती। क्या आप लोग मेरी मदद करेंगें?”

राजन उसकी कार को बड़े गौर से देख रहा था। अचानक जेब से रिवॉल्वर निकालकर उसकी तरफ तान दिया।

“यह…यह… क्या ?” वह औरत बौखलाए स्वर में बोली।

**********


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *