एक्सपीडिशन
यूएन ऑफिशियल्स के सामने रीति ने ही फाइनल प्रेजेंटेशन पेश की। सवाल-जवाब का एक लम्बा दौर चला और आठ घंटे की यह मीटिंग पॉजिटिव रही और प्रोजेक्ट को एक्सेप्ट कर लिया गया।
उस हॉल में मौजूद हर शख्स को यकीन था कि कुछ तो ख़ास ज़रूर है उस बर्फ के नीचे। प्रोजेक्ट ऐनलाइज़ किया गया, बजट एस्टीमेशन किया गया, टीम रिक्वायरमेंट्स मेज़र की गयीं और मिशन को फाइनल शक्ल दी जाने लगी। यूएन के इन्वॉल्व होते ही अमेरिका और इंग्लैंड भी इस प्रोजेक्ट में भारत के हिस्सेदार बनना चाहते थे। प्राइम मिनिस्टर ने इसके लिए हामी भर दी थी, क्योंकि यह दो देश ऐसे कई प्रोजेक्ट पहले भी कर चुके थे। उनके अनुभव की वजह से फेल होने के चांस बहुत हद तक घट रहे थे।
जोर-शोर से मिशन पर काम शुरू हो गया। टीवी, रेडियो, इन्टरनेट पर मिशन ‘बिग थिंग’ एक सेंसेशन बन चुका था। ऐसे में कोई भी इस मामले को टालना नहीं चाहता था। तीनों देशों ने अपने सारे प्रोजेक्ट्स रोककर सारा ध्यान इसी मिशन पर लगा दिया। एस्टीमेट, बजट और मैनपॉवर फाइनल होने में बस सात दिन का वक़्त लगा और टीमें लाव-लश्कर सहित अन्टार्क्टिका में खुदाई करने पहुँच गयीं।
सेटैलाइट इमेज को फिजिकल लैंडस्केप से मिलाकर एक नक्शा बनाया गया। कंटूर(ज़रूरी एरिया) फाइनल होने के बाद टीमें रवाना हो गयीं। बड़े-बड़े हैलीकॉप्टरों से मशीनरी उतारी गयी और धीरे-धीरे बर्फ हटाई जानी शुरू हो चुकी थी।
रीति और पाटिल सर, यूएन के ऑफिसर्स के साथ सैन फ्रांसिस्को के ब्रॉडकास्ट रूम में बैठे लाइव फीड बड़ी-सी स्क्रीन पर देख रहे थे। बर्फ हटा-हटाकर इधर-उधर फेंकी जा रही थी। दिन-रात टीम कड़ी मेहनत में लगी हुई थी।
14 दिन तक लगातार चली खुदाई के बाद एक बड़ी-सी उंगली बाहर नज़र आई। हाथों से बर्फ हटाई जाने लगी थी। तीन दिन हाथों से हुई खुदाई के बाद आखिर टीम को सफलता मिल ही गयी। एक बड़ा-सा आदमकार शरीर जिसकी लम्बाई 35 फीट थी, निकला।
ब्रॉडकास्ट रूम में बैठा हर शख्स जश्न के मूड में खड़ा हो गया, पर रीति की आँखें फटी हुई थीं। उसके मन में एक ही ख्याल आया कि कहीं उसके पिता के पास मौजूद किताबों में लिखी बात सही तो नहीं।