एक ही अंजाम लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक का लिखा हुआ थ्रिलर उपन्यास है। यह उपन्यास पहली बार 1993 में प्रकाशित हुआ था। उपन्यास शिवालिक इंडस्ट्री के दो बड़े शेयरधारकों के बीच की नियंत्रण की लड़ाई को दर्शाता है जिसके बीच में अनिरुद्ध शर्मा नाम का टीवी प्रडूसर ना चाहते हुए भी पड़ जाता है और फिर जान पर बन आती है।
आज एक बुक जर्नल पर पढ़िए एक ही अंजाम का एक छोटा सा अंश। उम्मीद है यह अंश आपको पसंद आएगा।
पुस्तक लिंक: अमेज़न
वो नीचे पहुँची तो उसने पाया कि रिसैप्शन डेस्क पर एक क्लर्क सामने काउन्टर पर सिर डाले सोया पड़ा था और दरवाजे के करीब के बैल बॉय एक स्टूल पर बैठा ऊंघ रहा था।
प्रवेश द्वार पर एक दरबान अलबत्ता खड़ा था जिसने बड़ी मुस्तैदी से उसके लिए दरवाजा खोला। वो एक कृतज्ञ मुस्कराहट उसकी तरफ फेंकती हुई वहाँ से बाहर निकल गयी और पार्किंग में खड़ी टयोटा के करीब पहुँची। उसने चाबी लगाकर टयोटा का दरवाजा खोला और उसकी ड्राइविंग सीट पर सवार हो गयी। उसने हौले से उसका इंजन स्टार्ट किया और पार्किंग लाइट्स ऑन की। उसने एक सतर्क निगाह परे होटल के सुनसान पड़े मुख्य द्वार की ओर डाली और फिर हौले से कार को गियर में डाल दिया। कार निशब्द आगे बढ़ी। पार्किंग लाइट्स पर ही उसे चलाती हुई वो निकास द्वार तक पहुँची तो एक क्षण के लिए उसकी निगाह रियर व्यू मिरर पर पड़ी जिसमें से उसी क्षण उसे अपने पीछे कोई हेडलाइट जलने का अहसास हुआ था।
होगा कोई उसी जैसा रात का राही।
उसने रियर व्यू मिरर पर से निगाह उठाई और कार को बाहर मॉल रोड पर लायी।
मॉल रोड और राजा रोड के क्रॉसिंग पर पहुँचकर कहीं उसने कार की हेडलाइट्स ऑन की और फिर उसकी रफ्तार बढ़ा कर उसे सारनाथ रोड पर डाल दिया।
उसके पीछे एक कार की हेडलाइट फिर चमकी।
क्या वो वही हेडलाइट थी जिसकी रोशनी उसने अपने रियर व्यू मिरर में से होटल से बाहर निकलते भी देखी थी?
वो कार सारनाथ रोड पर दौड़ती रही।
हेडलाइट रियर व्यू मिरर में से गायब न हुई।
कार गौतम बुद्ध राजपथ पर पहुँची।
हैडलाइट फिर भी पीछे।
वो तनिक चिंतित हुई।
आगे क्रॉसिंग आया तो उसने कार को बाएँ सारनाथ की ओर मोड़ने की जगह सीधे नेशनल हाईवे नंबर 29 पर डाल दिया और कार की स्पीड फुल कर दी।
तब वो ये जानकर भयभीत हुए बिना रह सकी कि पीछे आती कार की रफ्तार भी तत्काल बढ़ गयी थी और उसकी हैडलाइट्स अब भी बदस्तूर उसके रियर व्यू मिरर में प्रतिबिंबित हो रही थी।
कोई खास उसी के पीछे लगा हुआ था।
भय से उसका दिल तेजी से धकड़ने लगा और कनपटियों में खून बजने लगा। अब तो वो एक खाली सुनसान सड़क पर थी जहाँ कि उसे कोई पनाह भी हासिल नहीं थी। उस घड़ी सड़क पर ट्रैफिक के नाम पर वो दो कारें ही थीं जो कि आगे पीछे दौड़ रही थीं।
“जीसस!”- वो होंठों में बुदबुदाई – “जीसस!”
फिर पिछली कार की रफ्तार बढ़ने लगी और दोनों कारों के बीच का फासला घटने लगा।
घबराकर सोनिया ने एक्सीलेटर का पैडल और दबाया।
उसकी कार की रफ्तार तो बढ़ी लेकिन पिछली कार उससे दूर न हुई। दूर होने के स्थान पर कुछ ही क्षणों में वो उसके ऐन पीछे पहुँच गयी। तब उसने महसूस किया कि वो एक इम्पाला कार थी जिसे कि एक गोल्फ कैपधारी नौजवान चला रहा था।
कौन था वो?
फिर उसे एक ख्याल आया।
वो मूर्ख थी और खामखाह डर रही थी। वो जरूरी उसी की तरह कोई मुसाफिर था जो सड़क पर से गुजर रहा था और क्योंकि उसके पास ज्यादा शक्तिशाली इंजन वाली कार थी इसीलिए वो उसे ओवरटेक करके आगे निकलने की कोशिश कर रहा था।
उसकी जान में जान आयी।
बस इतनी सी बात थी जिसका उसने बतंगड़ बना दिया था।
उसने अपनी कार को बाएँ काटा और कार से बाहर हाथ निकालकर उसे गुजर जाने का इशारा किया।
तत्काल इम्पाला उसके पीछे से निकलकर उसकी बगल में पहुँची।
यानि कि सच में ही वो ही बात थी। वो सिर्फ आगे निकल रहा था।
दोनों कारें समानांतर चलने लगीं। उसकी गोल्फ कैप वाले से निगाह मिली। वो मुस्कराया।
और फिर उसने ऐसी हरकत की जिससे सोनिया को क्षण भर को लगा जैसे उसे दिल का दौरा पड़ने लगा हो।
वो कार को बाएँ काट रहा था।
धड़ाम!
इम्पाला टयोटा से कहीं टकराई।
सोनिया के जिस्म को जोर का झटका लगा। स्टिरिंयंग व्हील उसके हाथ से छूटते-छूटते बचा। बड़ी मुश्किल से उसने कार को वापिस अपने काबू में किया।
“यू स्टूपिड फूल”- वो आतंकित भाव से चिल्लाई-“व्हाट आर यू डूइंग!”
जवाब देने की जगह गोल्फ कैप वालए ने स्टियरिंग फिर बाएँ काटा। इस बार इम्पाला पहले से ज्यादा जोर से सोनिया की कार से टकराई।
धड़ाम!
“यू बास्टर्ड!”
तब तक गोल्फ कैप वाले की नीयत उस पर पूरी तरह से जाहिर हो चुकी थी। वो उसकी कार का जबरन क्रैश कराना चाहता था।
लेकिन क्यों?
ताकि उसकी कार रुक जाये।
तो?
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किताब: एक ही अंजाम | लेखक: सुरेन्द्र मोहन पाठक
पुस्तक लिंक: अमेज़न
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'एक ही अंजाम' पाठक साहब का अंडररेटेड थ्रिलर है। उपन्यास बेहतरीन है लेकिन इसकी चर्चा बहुत ही कम हुई है। चूंकि मुझे यह बहुत पसंद आया था, इसलिए मैंने इसकी समीक्षा लिखी थी।
जी मुझे भी यह काफी पसंद आया है। जल्द ही इसके विषय में कुछ लिखने का भी इरादा है।